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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 6, 2015

एक बेळिक शौचालय दे दे का जमाना चली ग्ये अब

मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -13 
                             अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत -  13                   
                                  
      
                              जत्र्वै - भीष्म कुकरेती 

            ब्रिटिश राज का बाद पाख पख्यड़ों बिटें पलायनौ पवाण लग अर जन स्वतंत्रता बाद हमारा आइइएस ऑफिसरोंन अंग्रेजुं दियुं लालफीताशाही तै चरम सीमा पर पंहुचाई उनि नेहरुवाद अर मनमोहनवाद की आर्थिक सिद्धांतुंन  पलायन  तै चरम सीमा पर पंहुचाई। कुछ समय पैल हमरि गाँव मा ना हरेक पहाड़ी गाँव मा देस (मैदान ) बटें ब्वारी -ब्यटा घौर जांद छा तो इकुळया  बुडड़ि  ब्वे कुण रकर्याट ह्वे जांद छौ कि प्रवासी हुयां परिवारौ कुण दूधक क्या ह्वालो।  त वा बुडड़ि गौंमा फिरड़ा फिरड़ा कौरी द्वी चार मौक इक जैक एक बेळिक, द्वी बेळिक वास्ता दूधक इंतजाम करिक ऐ जांदी छे अर बदल मा एकाद भ्यूंळ , एकाद खड़िक काटणो बोली ऐ जांदी छे। 
                       भैर झाड़ा जाण तब तक क्वी आफत , समस्या , प्रॉब्लम नि ह्वे छे बस दूध ही समस्या छे। अब टेट्रापैक , पोलिथिन तकनॉलॉजी विकास अर परिवहन वयवस्था विकास से कुछ क्या भौत हद तक दूधौ समस्या नि रै गे अर बजार से दूध मिल जांद -देर सबेर इ सै ! 
             अब प्रवासी बेटी , ब्वारी या नाती -नत्येणी  तिसरी  जनरेसन कि बि ह्वे गेन तो  युंकुण  सबसे बड़ी समस्या च शौचालय , झाड़ा , ट्वाइलेट की। यी कल्पना मा बि नि सोचि सकदन कि खुला असमान तौळ झाड़ा कनै करे सक्यांद।  तो कुछ समय पैलि गढ़वाळि गाउँ मा एक संस्कृतिन जलम ले - ये क्क्या सासु ! ये भूलि !  ये ब्वारि ! म्यार नाती नतणा पंजाबी ब्वारिक दगड़ पूजै वास्ता ड्यार आणा छन।  द्वी बेळिक बान अपण शौचालय दे देलि क्या ? अर द्वी बेळिक शौचालयौ बान एकाद भ्यूंळो  डाळि साल भरौ कुण दिए जांद । 
                   हमर गांमा बि यि द्वी संस्कृति ऐन अर कुछ हद तक अबि बि " ये कक्या सासु जी एक बेळिक दूध दे देन हाँ ! ये भुली द्वी बेळिक दूध दे दे हाँ , ये भुली द्वीएक बेळिकुण अपण शौचालय दे दे हाँ " संस्कृत विद्यमान छन । 
   हमर गांमा तीन साल या छै साल पैलि सँजैत , सार्वजनिक , सामूहिक नागराजा पूजा मा कुछ इन घटना ह्वेन कि प्रवास्युं तै अपणो आप अपण उजण्या कूड़ , उजड़्या कूड़ चिणनो या ड्यारम एक अदद शौचालय बणाण आवश्यक ही ह्वे गेन। 
  छै साल पैली हमर गांमा नागराजा पूजै मा एक परिवार सत्रह (बेटी , जंवै , ब्यटा -ब्वारी , नाती नत्येणी समेत ) झण  लेकि घौर ऐ गेन अर दुखदायी बात इ छे कि यूंक कूड़ सफाचट उजड़्यूं छौ।  स्वार भारुंक इख बि इथगा जगा नि छे कि रौणे जगा मिल जावो अर गां वळुन ऊँ तै स्कूलम ठहराइ।  मीन मुंबई सूण बल यु परिवार गांवळु पर नराज ह्वेन।   जब कि कूड़ उजड़णु राइ अर यीं प्रवासी मौउन अपण कूड़ नि समाळ अर भगार लगाइ गौं वळु पर कि हमर रौणौ ठीक ब्यवस्था नि कार। अबारिक पूजा मा या मौ नि ऐ। कुज्याण किलै धौं ? 
                 कै पणि बोल च बल निर्भगिक इख पोड बाग़ अर भग्यानो इक पोड़ जाग।  इनि यीं प्रवासी मवासो परेशानी से हौर प्रवासी डर गेन कि कै दिन हमर कूड़ बि उजड़ी गे तो हम कख रौला ? बस यीं घटना से सीख लेकि हमर गांमा तब बिटेन  बारा पंदरा मौउँका कूड़ूं या त मरम्मत ह्वे या नया कूड चिणे गेन अर द्वी तीन  कूडु ठ्यका अब्याकि नागराजा पूजा मा दिए गेन अर कूछुँकी योजना बणनी छन। 
        ये सालकी पूजा से पैल शौचालय नि हूण से बि कुछ घटना ह्वेन तो ये साल शौचालयुं कमी नि ह्वे किलैकि अधिकतर लोगुंन शौचालय बणाण पर जोर दे। यु भल बातक सूचक छौ कि शौचालय अब देवालय से अधिक महत्वपूर्ण ह्वे गे। 

              
     तो ये साल जब मि सँजैत नागराजा पूजा करणो गां ग्यों तो  बस स्टॉप से लेकि सरा गांमा हमर कूड़ तक हवा मा सीमेन्ट्याण इ सीमेन्ट्याण फैलीं छे।  कुछ कूड़ूं मरम्मत हूणि छै  अर कुछ नया चिणेणा छया।  हमर कूड़ौ मरम्मत हूणी छे अर काम बाकी छौ , रात बि काम लग्युं छौ , इनि हमर कूड़ो ठीक मथि गोविन्द चचा जी क कूड़    मरोम्मतौ बान खुल्युं छौ , गोवर्धन चचाजिक नया कूड़ चिणेणु छौ अर तिनि जगा काम बाकि   छौ तो वातावरण मा सीमेन्ट्याण हूणि छौ। इनि पांच छै शौचालय बि एक दिन पैलि य बणिक तयार ह्वेन।   
   असल मा अब प्रवास्युं अर वास्युं मा कुछ पैसा बचण शुरू ह्वेग्ये तो 'सेकंड , थर्ड होम' संस्कृति का  कॉन्सेप्टऐ ग्ये तो  प्रवासी /वासी गढ़वाली गाउँमा नया कूड़ चिणणा छन या पुरण कूड़ूं मरम्मत करणा छन जो सकारात्मक सूचक च।  





 अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक   नागराजा पूजा जात्रा वृतांत का बाकी  भाग    में पढ़िए 14

Copyright @ Bhishma Kukreti  5/7/15
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