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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, September 25, 2018

गंदेला /करी पत्ता कृषीकरण / वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Curry Leave Tree Plantation for Medical Tourism Development 

औषधि पादप वनीकरण -52
Medicinal Plant Community Forestation -52

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -156
Medical Tourism Development Strategies -156
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 259
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -259

आलेख : 
          विपणन आचार्य 
         भीष्म कुकरेती 

लैटिन नाम - Murraya koenigii
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -
सामान्य   नाम - करी पत्ता , गन्ध्यल , गंधेला 
आर्थिक उपयोग --
उत्तराखंड के पहाड़ों में यह पेड़ अनुपयुक्त पेड़ झड़ी माना जाता है।  बरसात में पत्तियां मच्छर /कीड़ों से बचाव हेतु जानवरों के नीचे बिछाया जाता है 
लकड़ी 

-----औषधि उपयोग ---




 
 रोग व पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं 

जड़ें 

पत्तियां 

 

फल 

बीज 
रोग जिनके निदान में पादप उपयोगी है 
सिद्ध आयुर्वेद में  गंदेला मोटापा कम करने , मोतिया बिंद न होने व अश्रु ज्योति वृद्धि व बाल न झड़ने हेतु प्रयोग होता है। 
सुगंधित भोजन हेतु 
पाचन शक्ति वृद्धि 
जले व घाव भरान  हेतु 
कीड़ों के काटने पर 
दस्त रोकथाम 
शक़्कर बीमारी में 
कैंसर रोकथाम 
कोलेस्ट्रॉल कम  करता है 
कैडियम आदि रेडिओ ऐक्टिव पदार्थ के प्रभाव को कम करता है 
बैक्टीरियल व जंगल प्रभाव क्षीण करता है 
यकृत की बीमारी
बाजार में उपलब्ध औषधि 

पादप वर्णन 

समुद्र तल से भूमि ऊंचाई मीटर  - 500 -1450 
तापमान अंश सेल्सियस - 25 -37 
वांछित जलवायु वर्णन - उष्ण कटबंधीय 
वांछित वर्षा mm उत्तराखंड के दक्षिणी पहाड़ी जलवायु उपयुक्त 
वृक्ष ऊंचाई मीटर - 9 तक 
तना गोलाई सेंटी मीटर -  40 लघभग 
छाल -मटमैली 
टहनी -जाधियाँ बनाने में सक्षम 
पत्तियां -एक टहनी पर 21 तक पत्तियां 

फूल आकार व विशेषता - छोटे सफेद गुच्छों में 
फूल रंग - सफेद 

बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - गुठली के गूदे में बीज , गुठली भूरे रंग की गोल मटोल 
फूल आने का समय - अप्रैल मई 
फल पकने का समय - जुलाई अगस्त 
बीज निकालने का समय - पकते ही तुरंत 
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - 12 महीने 


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -लाल बलुई , अच्छी जल निकासी  वाले स्थान , धुपेली पृष्ह्ठयति किन्तु छाया भी सहन ककर  सकता है 

बीज बोन का समय - तुरंत पके बीजों के गूदे को निकाल कर बो देना चाहिए , कृषिकरण हेतु बीज बोन से पहले दो  तीन बार चलाना आवश्यक 
रोपण हेतु एक मीटर दूरी होनी ही चाहिए  
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ?हाँ 
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ गोबर गोले बनाकर तूंग  बनों में अधिक  उत्पादक हो सकते हैं /अथवा  कटे-पके फलों व बीजों को नदी या गदनों में बहा देना श्रेयकर 
वयस्कता समय वर्ष - पत्तिया दो साल में ही उपयोगी 
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें 

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें 


Copyright@ Bhishma Kukreti , 2018 , kukretibhishma@gmail.com
Medical Tourism Development in Uttarakhand , Medical Tourism Development in Garhwal, Uttarakhand , Medical Tourism Development in Kumaon Uttarakhand ,
Medical Tourism Development in Haridwar , Uttarakhand , Medicinal Tree Plantation for Medical Tourism Development in Garhwal, Medicinal Tree Plantation for Medical Tourism Development in Kumaon;  Medicinal Tree Plantation for Medical Tourism Development in Haridwar , Herbal Plant Plantation in Uttarakhand for Medical Tourism; Medicinal Plant cultivation in Uttarakhand for Medical Tourism, Developing Ayurveda Tourism Uttarakhand, गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;हरिद्वार गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;  उधम सिंह नगर कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; नैनीताल कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; अल्मोड़ा कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; चम्पावत कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; पिथोरागढ़  कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;

Quit India Movement in Kumaon Uttarakhand

British Administration in Garhwal   -349
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -369

            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1205
          By:  Bhishma Kukreti (History Student)

        From 6th August 1942 onwards Government initiated many oppressive methods for suppressing quit India movement.
 There were government assets damaging activities by activists against government in Haridwar, Pilibhit, Sahranpur, Dehradun , Almora, Nainital etc.
   Activists offered advance wages to labors that they did not work for government in Nainital  Kumaun . Shopkeepers left Nainital hills and shifted to Haldwani. There were damaging activities, processions  by quit India activists. 350 Indian soldiers refused entering into hills of Almora. Patwari, Police refused going to hill villages. There were firings twice on activists in Almora.  Government locked Someshwar Khaddar Bhandar and caught at least 10 activists.
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2018
*** History of British Rule/Administration over British Garhwal (Pauri, Rudraprayag, and Chamoli1815-1947) to be continued in next chapter 1206
-
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)

 History of British Garhwal, Education , Caste, History of Devalgarh Garhwal , ; History of Badhan Garhwal; Education , Caste History of Barasyun Garhwal; Education , Caste, History of Chandpur Garhwal; Education , Caste History of Chaundkot Garhwal; Education , Caste History of Gangasalan Garhwal;  History of Mallasalan Garhwal;  Education , Caste, History of Tallasalan Garhwal; Education , Caste History of Dashauli Garhwal; Education , Caste, History of Nagpur Garhwal; Society  in British Garhwal. History of British Garhwal, History of Social Structure and Religious Faith in Chamoli Garhwal, History of Social Structure and Religious Faith of Pauri Garhwal ,  Education , Health, Social and Culture History of Rudraprayag Garhwal.

ब्लैक लोकुस्ट वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Black Locust Tree Plantation for Medical Tourism Development 

औषधि पादप वनीकरण -53
Medicinal Plant Community Forestation -53

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -157
Medical Tourism Development Strategies -157
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 260
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -260

आलेख : विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती 

लैटिन नाम - Robima pseodoacacia 

सामान्य   नाम -ब्लैक लोकुस्ट या व्हाइट लोकुस्ट , भरत का पेड़ नहीं यह अमेरिका से आया है 
आर्थिक उपयोग --
लकड़ी बहुत ही उपयुक्त 
बगीचों में आकर्षक पेड़ 
बीजों का तेल 
भोज्य पदार्थ , फल 
कागज उद्यम में 
नाइट्रोजन फिक्सेशन 
-----औषधि उपयोग ---
 
 रोग व पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं 

जड़ें 

छाल 

फूल 



बीज 
रोग जिनके निदान में पादप उपयोगी है 
अश्रु रोग 
दांत रोग 
उलटी 
निर्बलता दूर करता है 
वाइरस निरोधक 
बाजार में उपलब्ध औषधि 

पादप वर्णन 

समुद्र तल से भूमि ऊंचाई मीटर  - सामन्यतया तकरीबन सब जगह 
तापमान अंश सेल्सियस -
वांछित जलवायु वर्णन -
वांछित वर्षा mm
वृक्ष ऊंचाई मीटर -12 से 30 यहां तक 52 मीटर के पेड़ भी मिलते हैं 
तना गोलाई मीटर -  एक- तक जा सकता है 
छाल - लाल काला 
टहनी -कांटेदार 
पत्तियां -जटिल /compound 
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता -15 -36 , हरा किन्तु ऊपर भूरे 
फूल आकार व विशेषता - गुच्छों में , आकर्षक , 
फूल रंग -सफेद, बैंगनी , गुलाबी 

फल आकार व विशेषता 
बीज /गुठली विशेषता, आकार , रंग - टांटी , बीज , नारंगी व गोल चपटे 
फूल आने का समय - मई जून 
फल पकने का समय - सात  दिन में किन्तु 
बीज निकालने का समय -शीत  ऋतू तक पकते  हैं 
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - 


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -अभी प्रकार की मिट्टी 
वांछित तापमान विवरण - धूप पसंद 
बीज बोन का समय - शीत 
बीजों को गुनगुने गर्म पानी में 48 घंटे रखना सही , यी बीजों को खुरच दिया जाय 
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  cm   यदि सीधा बोना हो तो दो मीटर 

आरम्भ में सिंचाई आवश्यक 

क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? जड़ों की कलम लाभदायी 
ब्लॉक रोबिना खर पतवार जैसे अपने आप भी बढ़ जाता है , जड़ों से वयं कलम निकलकर फ़ैल जाता है 
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ नम बीजों को गोबर गोले बनाकर अधिक  उत्पादक हो सकते हैं /अथवा  कटे-पके फलों व बीजों को नदी या गदनों में बहा देना श्रेयकर 
वयस्कता समय वर्ष -
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें 

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें 


Copyright@ Bhishma Kukreti , 2018 , kukretibhishma@gmail.com 

Medical Tourism Development in Uttarakhand , Medical Tourism Development in Garhwal, Uttarakhand , Medical Tourism Development in Kumaon Uttarakhand ,
Medical Tourism Development in Haridwar , Uttarakhand , Medicinal Tree Plantation for Medical Tourism Development in Garhwal, Medicinal Tree Plantation for Medical Tourism Development in Kumaon;  Medicinal Tree Plantation for Medical Tourism Development in Haridwar , Herbal Plant Plantation in Uttarakhand for Medical Tourism; Medicinal Plant cultivation in Uttarakhand for Medical Tourism, Developing Ayurveda Tourism Uttarakhand, गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;हरिद्वार गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;  उधम सिंह नगर कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; नैनीताल कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; अल्मोड़ा कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; चम्पावत कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ; पिथोरागढ़  कुमाऊं , उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन विकास ;

Quit India Movement in Haridwar Uttarakhand

British Administration in Garhwal   -350
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -370

            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -1206
          By:  Bhishma Kukreti (History Student)
   The students of Sanskrit pathshala , Haridwar closed down the school and led a procession in support of Quit India Movement. Indian police solders denied lathi charge on them. Government called army from Dehradun for suppressing quit India movement in Haridwar. Army fired guns at Har ki paidi and there was blood shed there. Army insulted women in Haridwar for suppressing quit India Movement in Haridwar.  Army caught many students. Students burnt post office , police station . People burnt Kankhal post office.  Police and civil guards misbehaved with women and others.  People were distributing pamphlets for activating the activists. Students and teachers took part in distributing pamphlets for Quit India Movement
(Shiv Prasad  Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 8, page 286)
  
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2018
*** History of British Rule/Administration over British Garhwal (Pauri, Rudraprayag, and Chamoli1815-1947) to be continued in next chapter 1207
-
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)

 History of British Garhwal, Education , Caste, History of Devalgarh Garhwal , ; History of Badhan Garhwal; Education , Caste History of Barasyun Garhwal; Education , Caste, History of Chandpur Garhwal; Education , Caste History of Chaundkot Garhwal; Education , Caste History of Gangasalan Garhwal;  History of Mallasalan Garhwal;  Education , Caste, History of Tallasalan Garhwal; Education , Caste History of Dashauli Garhwal; Education , Caste, History of Nagpur Garhwal; Society  in British Garhwal. History of British Garhwal, History of Social Structure and Religious Faith in Chamoli Garhwal, History of Social Structure and Religious Faith of Pauri Garhwal ,  Education , Health, Social and Culture History of Rudraprayag Garhwal.

कालिदास साहित्य में बिजनोर , हरिद्वार , सहारनपुर वर्णन

Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur in Kalidasa Literature 
                    
                               हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                  

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
   कालिदास साहित्य चंद्र गुप्त काल की  है। 
कालिदास ने उत्तराखंड विशेषकर गढ़वाल वर्णन अधिक किया है। 

  अभिज्ञान  शाकुंतलम में बिजनौर व भाभर 
अभिज्ञान शकंतुलम में पृथक अंक में कण्वाश्रम व मालनी नदी का वर्णन है जो अजमेर गढ़वाल , भाभर व बिजनौर के क्षेत्र में आता है द्वितीय , तृतीय व चतुर्थ अंक की घटनाएं भी कण्वाश्रम की हैं याने गढ़वाल व बिजनौर का समावेश ही है।  
    कालिदास साहित्य में कण्वाश्रम 
  कुलपति कण्व का आश्रम आज के भाभर (कोटद्वार , बिजनौर,  क्षेत्र ) में स्थित था।  आज भी भाभर में कण्वाश्रम नाम चलता है। आश्रम मालनी तट के दोनों ओर बसा था। गौरी गुरु नामक पर्वत श्रेणी वर्णन है। 
कण्वाश्रम हिमलय के तलहटी में बसा था।  यद्यपि कण्वाश्रम में रथ आ सकते थे फिर भी भूमि ऊपर नीचे थी। 
    मेघदूत में कनखल व सावधानी वर्तनी पड़ती थी (शकुंतला अंक -१)
कण्वाश्रम में दस सहस्त्र ऋषि व छात्र अध्ययन करते थे (शकुंतला अंक ५ ) अर्थात निकट कृषि क्षत्र रहा होगा। 
मालनी से नहरों की भी चर्चा कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम मेंहै कई वनस्पतियों व जानवरों का उल्लेख मिलता है। 

पूर्व मेघदूत में यक्ष मेघ से कुरुक्षेत्र से कनखल होते हुए हिमालय श्रेणियों में जाने की पैरवी करता है। उत्तर मेघदूत कव १ वे अंक में कनखल का उल्लेख हुआ है। कुरुक्षेत्र से कनखल सहारनपुर क्षेत्र से ही आया जाया जा सकता था। 
 मालिनी नदी - कण्वाश्रम में बहने वाली नदी आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है। मालिनी के बारे में विद्वानों जैसे भगवत शरण अग्रवाल का मत है  तब यह नदी सहारनपुर , अवध से होते हुयी घाघरा में गिरती थी 
भाभर /बिजनौर की जलवायु - भाभर याने भाभर , हरिद्वार , सहारनपुर के बारे में कालिदास ने शकुंतला में व मेघदूत में वर्णन किया है।  ग्रीष्म में भाभर में वृक्षों से पत्ते झड़ जाते थे 

(शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ , पृष्ठ ३१४ - ३४० )
   Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 kukretibhishma@gmail.com 

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History; 
कनखल , हरिद्वार  इतिहास गुप्त काल ; तेलपुरा , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार गुप्त कालइतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर गुप्त काल   इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर गुप्त कालइतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर गुप्त काल इतिहास , बेहत सहारनपुर गुप्त काल इतिहास , नकुर सहरानपुर गुप्त काल इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

Sperm Donation Tourism Concept in Mahabharata Epic -1

History of Medical Tourism, Health and Wellness Tourism in   Mahabharata Epic -9
History of Medical Tourism, Health and Wellness Tourism in India, South Asia -17
 By: Bhishma Kukreti (Medical Tourism Historian)
       Conceiving through some outsider’s sperm was quite old system for keeping family tree alive in case, the husband was unable for conceiving or the woman was widow.  Today, sperm storage is easy but was not easy in past. Therefore, man had to have physical mating with the woman.
 There are a couple of instances of sperm donation or offering uterus for carrying child in Mahabharata.  The stories might be unreal but it is a fact that the concept of sperm donation tourism was there in that initial period of Mahabharata epic creation or Gupta Empire Period.
  Sperm donation created tourism in Mahabharata epic too.
  There is a story in Sambhav Parva (Adiparva, 103- 104 -105 Chapters ) in Mhabharata epic.  Satyavati was queen anf wife of Kuru Emperor Shantuna . Shantanu and Satyavati had two sons and Bhishma (De Vrata) was step son of Satyavati . The first son of queen Satyavati died early. Second Son Vichitra Virya had two wives and he died without childless.  Then, there was problem of family tree of Kuru Vansh for future.
     Satyavati asked her step son Bhishma for marrying that Kuru Vansh forwarded. Bhishma reminded his step mother about his vows of non-marrying and no sex with any woman. Bhishma advised Satyavati for conceiving wives of Vichitravirya by Niyog by calling a Brahmin –
पुनार्भरतवंशस्य हेतुं संतानवृधये
यक्षामि नियतं मातस्त्म्भे निगदत शृणु. –१
ब्राह्मणों गुणवान कश्चिद धनेनोनिम्न्तर्यताम
विचित्रवीर्य क्षेत्रेषु य: समुत्पादयेत प्रज्ञाः – २
(Sambhav Parva of Adiparva , 104 Chapter)  1, 2 )
 Mother! For continuing and protection of  the Kuru family tree, I am speaking the fixed rule . Call a healthy and  suitable Brahmin by offering him money and produce children from wives of Vichitravirya.
 This is another way of medical tourism by calling sperm donors by offering him money and conceiving the women. In Manuspmriti, (9, 51)  there is detailing of Niyog (Sperm donation system) that the donor would paste Ghee on his body and should have sex with the woman. After producing children, the man was as good as father for the said woman.
 Satyavati called her first son Krishna Vyas produced  by Sage Parashar . That was also another case of sperm donation type too ( Sambhav Prava 9-15)
  Vyas Came and had sex with Amba and Ambalika and a maid servant by Niordh system. In Nirodh, the sperm donor had to be without emotion and had to have sex not for pleasure but for producing child. ( Sambhav Parva 27-53, Sambhav parva chapter 104 , 105)
    The discussion between Bhishma and Satyavati reveals that , usually, sperm donor would be strong and having qualities. Sperm donor was paid the money. After sx, there was no right on children by sperm donor. In this case, the donor had to travel to the women and not women travelling to the donor.

Copyright @ Bhishma Kukreti, //2018
  History of Medical, health and Wellness Tourism in India will be continued in – 18
History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , North India , South Asia;, History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , South India; South Asia, History of Medical, health and Wellness Tourism in India , East India, History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , West India, South Asia; History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Central India, South Asia; ;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , North East India , South Asia;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India , Bangladesh , South Asia; History of Medical, health and Wellness Tourism in India, Pakistan , South Asia;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Myanmar, South Asia; ;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Afghanistan , South Asia ; ;  History of Medical, health and Wellness Tourism in India  , Baluchistan, South Asia,  to be continued 

सोनपाठा कृषिकरण/ वनीकरण से स्वास्थ्य पर्यटन विकास

Broken Bone Tree, Midnight Horror tree Plantation for Medical Tourism Development 

औषधि पादप वनीकरण - 54
Medicinal Plant Community Forestation -54

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति -158
Medical Tourism Development Strategies -158
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 261
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -261 

आलेख : विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती 

लैटिन नाम - Oroxylum indicum 
संस्कृत /आयुर्वेद नाम -श्योनाक 
सामान्य   नाम - सोनपाठा 
आर्थिक उपयोग --
सब्जी व कई भोज्य पदार्थ अवयव 

-----औषधि उपयोग ---
 
 रोग व पादप अंग जो औषधि में उपयोग होते हैं 

जड़ें 

पत्तियां 

छाल 

फूल 

फल 

बीज 
रोग जिनके निदान में पादप उपयोगी है 
अतिसार 
आमवात 
मूत्राशय शोथ 
अपाचन 
स्वास , कफ सर्दी जुकाम , सरदर्द 
हड्डी दर्द 
दस्त।  पेचिस 
मुख कैंसर आदि में संसार के कुछ भागों में प्रयोग 
त्वचा 
रक्तशोधक 
बाम का अवयव 

दशमूलारिष्ट व च्यवनप्राश में अवयव 
बाजार में उपलब्ध औषधि 

पादप वर्णन 
यह जाती खतरे में है 
समुद्र तल से भूमि ऊंचाई मीटर  - हिमायी श्रेणियों की घाटी में , 500 -900 , भारत में सर्व्रत्र , गदन किनारे , धुपेली पसंद 
तापमान अंश सेल्सियस - 20 -35 
वांछित जलवायु वर्णन -पर्वततल  घाटी 
वांछित वर्षा mm- 850 -1300 
वृक्ष ऊंचाई मीटर -9 -15 , कहीं  कहीं 50 भी 
तना गोलाई सेंटी मीटर - 40 से 50 
छाल -मटमैला भूरा 
टहनी -लम्बी 
पत्तियां -लम्बे 
पत्तियां आकार , लम्बाई X चौड़ाई cm और विशेषता - युगल एक मीटर 
फूल आकार व विशेषता -
फूल रंग -सफेद -बैंगनी  रात को चमगादड़ों को आकर्षित करने हेतु खिलते हैं 
फल रंग -मटमैले टांटी या फली 
फल आकार व विशेषता 
टांटी तलवारनुमा 
फूल आने का समय - जुलाई -अगस्त 
फल पकने का समय - दिसंबर मार्च 
बीज निकालने का समय -टांटी फटने से पहले 
बीज/गुठली  कितने समय तक अंकुरण हेतु क्रियाशील हो सकते हैं - एक साल 


संक्षिप्त कृषिकरण विधि -
बांछित मिट्टी प्रकार pH आदि -तकरीबन सभी मिटटी 
वांछित तापमान विवरण - धुपेला स्थान 
बीज बोन का समय - मार्च और सिंचाई प्रबंधन सही 
बीजों को मंतत पानी में 24 घंटे हेतु भिगोना आवश्यक 
नरसरी में बोते समय बीज अंतर -  पॉलीथिन बैग में अन्यथा जुताई हेतु गेंहू जैसे खेत त्यार करना होता है ,, गड्ढे 60 x 60 x 60 cm 
मिटटी में  बीज कितने गहरे डालने चाहिए - 6 cm गहराई  व दूरी दो  मीटर , रोपण हेतु दूरी दो मीटर 
अंकुरण प्रतिशत 80 -90 , 18 -20 दिनों में अंकुरण आ जाते हैं , सिचाई सालभर में छह से आठ किन्तु ग्रीष्म में अधिक 
क्या कलम से वृक्ष लग सकते हैं ? हाँ किन्तु बीज भी  सही हैं 
क्या वनों में सीधे बीज या पके फल छिड़के जा सकते हैं ? हाँ गोबर गोले बनाकर अधिक  उत्पादक हो सकते हैं /अथवा  कटे-पके फलों व बीजों को नदी या गदनों में बहा देना श्रेयकर 
वयस्कता समय वर्ष - तीन साल में फूल आने लगते हैं पांच साल में बीज 
कृषिकरण लाभकारी 
 
यह लेख औषधि पादप कृषिकरण /वनीकरण हेतु जागरण हेतु लिखा गया है अतः  विशषज्ञों , कृषि विद्यालय व कृषि विभाग की राय अवश्य लें 

कृपया इस लेख का प्रिंट आउट ग्राम प्रधान व पंचायत को अवश्य दें 


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