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Sunday, September 2, 2018

राजनैतिक मृत्यु विपणन के अमर नियम

विपणन आचार्य - भीष्म कुकरेती 

  स्व अटल विहारी बाजपेयी की शव यात्रा व अस्थि कलश विसर्जन यात्राओं ने सभी माध्यमों में विपणन चर्चा के रास्ते खोल दिए।  नेहरू जी  , अम्बेडकर जी , इंदिरा जी , राजिव जी की मृत्यु के समय सोशल मीडिया न था तो इतनी चर्चा नहीं हुयी होगी जितनी आज हो रही है । 
 वास्तव में जब से समाज बना तब से मनुष्य अपने सगों की मृत्यु विपणन करता आया है।  इजिप्ट के पिरामिड , भारत उपमाहद्वीप   ही नहीं गढ़वाल में  भी मृतकों को दफनाते समय उस लोक हेतु विषय वस्तु रखने का प्रचलन कुछ नहीं मृत्यु विपणन ही कहा  जाएगा।  शाहजहां द्वारा ताज महल निर्माण कुछ नहीं मृत्यु विपणन ही था।  शव यात्राएं , चौथ दिन बड़ी बड़ी सभाएं कुछ नहीं मृत्यु विपणन है।  
  विपणन का असली अर्थ है कम्युनिकेशन कर कोई विशेष छवि /perception निर्मित करना।  
      मृत्यु के समय दाह  संस्कार में भीड़ जुटना वास्तव में पहले दुःखरबंटाई था जो कालांतर में अहम तुष्टिकरण बन गया।  अहम  तुष्टिकरण प्रचार प्रसार माध्यम में परिवर्तन हो गया तो अस्थि विसर्जन भी प्रचार प्रसार में शामिल हो गया। 
          कॉर्पोरेट क्षेत्र में भी शव यात्रा में शामिल होना या चौथ दिन व  बुके आदि भेजना कुछ नहीं मृत्यु विपणन है।  मेरे एक सहचर ने  अपने बॉस को अपना प्रभाव दिखाने हेतु अपने पिताजी के चौथ रश्म में अपनी टीम को डीलर्स लाने भेजा , बहुत बड़ी भीड़ जमा करवाई और बॉस को लगा बल उनका मैनेजर वास्तव में डीलर्स का लाडला है।  

 
      अग्रिम विक्री 

ढांगू , गढ़वाल के ग्वील शिवाला  में एक माई रहती थीं। उन माई जी ने मृत्यु से पहले श्रीमद भागवत सप्ताह करवाया था और बड़ी भीड़ जुटावायी थी। पंडित नेहरू ने भी अपनी वसीयत में पूरे भारत में अस्थि विसर्जन करवाने की हिदायत दी थी।  यह कुछ नहीं मृत्यु बिक्री का अग्रिम डील ही थी।  राजनीति में यह सही भी है कि मृत्यु उपरान्त भी  चर्चा व समाचारों में रहा जाय , राजनैतिक चतुराई बुरी नहीं। 

     कुछ प्रतियोगियों की मृत्यु यात्रा को नगण्य बना दिया जाय 
    मृत्यु विपणन का एक पहलू और भी है कि अपने सहोदरों / समर्थकों की मृत्यु विपणन को भव्य बनाओ किन्तु प्रतियोगी की मृत्यु विपणन को नगण्य बनाया जाय ।  स्व नरसिम्हा राव की मृत्यु विपणन दिल्ली में नहीं हुयी , कॉंग्रेस कार्यालय में शव नहीं रखा गया।  यह भी एक प्रकार की मार्केटिंग ही है।  अन्य प्रधान मंत्रियों की मृत्यु को कम महत्व दिलवाना भी मार्केटिंग का एक विशेष अंग है।   जो प्रतियोगी हो उसे शव के पास न आने दिया जाय अथवा फोटो ही न हों ऐसी व्यवस्था आवश्यक है। 
              
      राजनैतिक मृत्यु विपणन के अमर  नियम 

 राजनैतिक मृत्यु विपणन राजनैतिक  दल  के प्रचार प्रसार हेतु आवश्यक है और सर्वथा सही भी है। 

 नाम दो - शव यात्रा हो या अश्थी विसर्जन दोनों को अभिनव नाम देना आवश्यक है 
  मेक इट  लार्ज - शव यात्रा या अस्थि विसर्जन यात्रा जितनी लम्बी हो लंबी करो , भुरत्या  मड़ोइ भी बुलाने पड़ें तो बुलाओ 
 मस्तिष्क के नियम - मस्तिष्क यद्यपि प्रथम को ही याद रखता है किन्तु विशेष कृत्य कर उसे प्रथम कैटेगरी का बनवा दो।  नेहरू जी , इंदिरा जी , राजिव जी की शव यात्रा के बाद अटल जी की शव यात्रा थी जो प्रथम न थी किन्तु प्रधान मंत्री द्वारा शव यात्रा में पैदल चलने से इसे विशेष कैटेगरी में रखवा दिया।  
छवि नियम - छवि एक बार बन जाय वह  मिटती नहीं . जब राजनैतिक शव यात्रा प्रथम न हो हो तो वैकल्पिक छवि प्रस्तुत कीजिये।  अटल जी की शव यात्रा में प्रधान मंत्री द्वारा पैदल शामिल होने ने इसे  अभिनव बनवा दिया। 
  अभिनव नियम - किसी भी तरह मृत्यु /शव यात्रा /अस्थि कलस यात्रा को अभिनव बनाओ।  यदि मृत्यु यात्रा अभिनव न हो तो लाभ न मिलेगा।  पिछली यात्राओं से कुछ अलग करो। 
  सीढ़ी नियम - किसी भी ब्रैंडिंग में घोड़ा या सीढ़ी आवश्यक है।  सीढ़ी याने जनता।  लीडर लीडर में अंतर् होता है अतः जनता की भावना समझ कर कृत्य होने चाहिए।  वहां शव यात्राएं कीजिये जहां जनता अधिक आ सके 
  विरुद्ध का नियम = go opposite  of  your  opponent  - ध्यान रहे नकल न हो . कुछ बातों में नकल हो किन्तु छवि अलग बंनाने का प्रयत्न होना ही चाहिए , नई छवि बंनाने की चेष्टा होनी चाहिए 
  संभावनाओं के नियम - हर मृत्यु विक्री में भविष्य की संभावनाएं दिखनी चाहिए या छुपी होनी चाहिए।  भविष्य की संभावनाओं को देखकर ही यात्राएं निश्चित की जायँ 
 भावनाओं का दोहन - मृत्यु विपणन में भावनाओं का दोहन अत्त्यावष्यक शर्तें हैं वास्तव में मृत्यु विक्री का सारा खेल भावना दोहन ही है 
सफलता व हाइप में संबंध - संवाद माध्यमों में जो हाइप दिखता है वह आवश्यक नहीं कि  कार्य सफल ही हुआ हो।  संवाद माध्यमों में हाइप कई अन्य कारणों से भी हो सकता है 
मृत्यु स्थल की मांग - किन्ही महान नेता के बगल की धरती को  समाधि हेतु मांग आवश्यक है।  परन्तु विरोधी नेता के लिए महान नेताओं के पास की धरती कतई सुलभ न हो ऐसे नियम खोजे जाने चाहिए 
मृत्यु होते ही भारत रत्न की मांग  - नेता महान हो न हो भारत रत्न की मांग मृत्यु साथ ही उतनी चाहिए 
संसाधन के नियम - यदि संसाधन नहीं हैं तो कुछ नहीं हो सकता है।  श्मशान घाट पर भी बिना दक्षिणा के पंडित पिंड दान नहीं पूजेगा 

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