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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, September 25, 2018

ब्राह्मण वंशावलियों में शिल्पकारों की घोर उपेक्षा

(श्री चक्रधर कुकरेती का प्रशंसनीय कार्य )

घपरोळ - भीष्म कुकरेती 

मैंने कुछ ब्राह्मण वंशावलियों का अध्ययन  और उन पोथियों के बारे में इंटरनेट में भी सूचना देने का भरसक प्रयत्न किया क्योंकि   भविष्य इतिहास हेतु आधार बन रहे ,  संदर्भ बन रहे है , यथा - बहुगुणा वंशावली , कैंथोला वंशावली , डोभाल वंशावली ( मदन डोभाल ), लखेड़ा वंशावली (कार्य हो रहा है ) चंदकोट के डोभाल (चंद्र भूषण डोभाल ), डबराल वंशावली )मैंने नहीं पढ़ी )  आदि।  घोर आश्र्चर्य यह है बल इन ब्राह्मणों की वंशावलियों में शिल्पकारों का जिक्र तक नहीं है।  
   मुझे यह कहने में संकोच नहीं है बल बिना शिल्पकारों के सामाजिक स्वीकार्यता (बल ब्राह्मण  चाहिए ) , कृषि कार्य संपादन से ब्राह्मण ब्राह्मण नहीं रह पाते आज भी यदि ब्राह्मण ब्राह्मण हैं तो उसमे शिपकारों की भागीदारी अहम है। 
 बुगाणी के बहुगुणा , डोभ के डोभाल , डाबर के डबराल ,  जसपुर /ग्वील के कुकरेती बगैर शिल्पकारों के जीवित ही नहीं रह सकते थे।  इन गाँवों में इन ब्राह्मणों की जो व्ही भूमि है वह शिल्पकारों ने ही साधी है।  कटळ खणने से लेकर जुताई , बुवाई के हर कार्य  किया था।  ब्रिटिश काल में गंगड़ी ब्राह्मणों  ने हल लगाना शुरू कर दिया था किन्तु सर्यूळों  ने तो स्वतंत्रता पश्चात भी हल को नहीं छुवा।  अर्थात गढ़वाल के ब्राह्मणों का ब्राह्मणत्व शिल्पकारों ने बचाया।  
 जब ब्राह्मण का ब्राह्मणत्व शिल्पकारों पर अआधारित आज भी है (स्वीकार्यत्ता ) तो  इतिहास के साथ उन ब्राह्मणों के पारिवारिक लोहार या टमटाों का नाम भी संग संग ही होना चाहोये कि नहीं ? किन्तु किसी भी ब्राह्मण वंशावली में आदि गाँव के शिल्पकारों की बिलकुल उपेक्षा की गयी है जो सही नहीं है।  
   मैं श्री चक्रधर कुकरेती की भूरी भूरी प्रशंसा करना चाहूंगा जिन्होंने ग्वील केकुकरेतियों की वंशावली के साथ साथ ग्वील के शिल्पकारों की वंशावली भी प्रकाशित की।  जसपुर के शिल्पकारों की वंशावली (ग्वील आज भी जसपुर के शिल्पकारों पर निर्भर है ) के बारे में मुझे सूचना मिली है की अगले संकलन में अवश्य जसपुर के शिल्पकारों वंशजों को जोड़ा जाएगा। 
    मेरा वंशावली पर कार्य करने वाले सभी इतिहासकारों से  खुटपड़ै प्रार्थना है बल अपनी वंशावली के साथ अपने शिल्पकारों के वंशजों को अवश्य स्थान दें।  बिना शिल्पकारों के स्वीकार्यता के ब्राह्मण ब्राह्मण न था और न ही भविष्य में भी।  अतः  जब भी वंशावली बनाएं अपने शिल्पकारों को ना बिसरें प्लीज।  आप आश्चर्य होएंगे बल जैसे ही आप शिल्पकारों का इतिहास खोजेंगे आपको आपके क्षेत्र का सांस्कृतिक व वास्तु इतिहास स्वयमेव मिलता जाएगा। 

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