अपील - भीष्म कुकरेती
सभी गैरसैण राजधानी समर्थको तै सिवा सौंळी !
आप सभी कई वर्षों से गैरसैण गैरसैण , उकाळसैण चिल्ला रहे हो। पता नहीं कितने धरने झरने हुए होंगे आपको भी याद नहीं होगा। कितने सम्मेलन हुए होंगे गैरसैण मर्थन में यह तो याद रखने का विषय ही नहीं। जब पौड़ी गढ़वाल , यंग उत्तरांचल जैसे ग्रुपों का ज़माना था तो इंटरनेट पर गैरसैण समर्थकों ने एक चर्चा में इतना हल्ला मचाया था जैसे आज ही , अभी , इसी वक्त गैरसैण राजधानी बन जाएगी। किन्तु आज भी गैरसैण आंदोलन जनता सर्मथ रहित है सोशल मीडिया और अखबारों में कितना भी हो हल्ला हो रहा है किन्तु जनता हर हल्ले को अनसुनी कर रही है। जनता को आपके गैरसैण की पड़ी ही नहीं है जी। स्वीकारो या न स्वीकारो। जनता समर्थन विहीन आंदोलन विधवा तो ऐसा ही होता है जैसे बालू की सिंचाई करना। करते रहिये बालू की सिंचाई।
मैं भी मुंबई उत्तराखंड आंदोलन से पहले दिन से ही तन , मन , समय व धन से जुड़ा रहा हूँ और मैंने भी अनुभव किया था बल कई वर्षों तक हम किताबी कार्यकर्ता पृथक उत्तराखंड की ढपली बजाते रहे किन्तु जनता में सिरहन तक नहीं हुयी। जब ओबीसी प्रकरण से जनता को अळजाट महसूस हुआ तब जनता सड़कों पर आयी मुल्ला मुलायम को हत्त्यारा बनने को मजबूर किया क्योंकि जनता समझ चुकी थी उत्तराखंड से उसके उद्देश्य जुड़े हैं। जब जनता जुडी तो किसी के बस में था ही नहीं उत्तराखंड न बने।
आज फिर वही समस्या गैरसैण राजधानी आंदोलन का भी है जनता ही नहीं जुड़ पा रही है आंदोलन से। सन 1985 में मुंबई में एक बैठक में प्रश्न उठा था बल जनता क्यों नहीं जुड़ रही है। मैंने सलाह दी थी बल एक या दो ऐसे लाभ जनता के सामने रखे जांय जिसमें चुंबक हो। मैंने दो ही लाभों को उत्तराखंड राज्य से जोड़ने की सलाह दी - प्रत्येक महिला हेतु बाथरूम-शौचालय व आधारिक विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई। मैंने लेख भी लिखे थे इन लाभों हेतु। बाथरूम शौचालय चूँकि नर पक्ष में न था तो किसी ने आँख भी नहीं झपकाई और मेरा सुझाव समय से बहुत पहले का था । अंग्रेजी माध्यम पर वे ही विरोध में आ गए जिनके बच्चे मुंबई की बड़े अंग्रेजी /कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ रहे थे।
अब आता हूँ मैं गैरसैण आंदोलन पर। जब तक जनता साथ नहीं देगी तब तक आप लोग कितना ही विधान सभा घेराव कर लो कुछ नहीं होगा। जनता बगैर सब शून्य है।
मेरी राय है एक या दो ऐसे लाभ गैरसैण जांय जो जनता हेतु चुंबक साबित हों। यदि हम २००५ चुनावों पर नजर डालें तो विकास , पलायन , , बिजली रोजगार जनता को उतने आकर्षित नहीं करते जितना बुद्धिजीवी सोचते हैं
मेरी एक राय है बल पहाड़ों की जनता पलायन रोको के समर्थन में उतनी नहीं है। सड़क बिजली पानी धीरे धीरे सब जगह उपलब्ध ही हो रहे हैं। एक विषय है जो अब सारे विश्व में मानव समाज की प्राथमिक आवश्यकता बन गयी है और वह है चिकित्सा सुविधा। पहाड़ों में भी चिकिता सुविधा एक अप्राप्य सुविधा है। क्यों न गैरसैण को आधुनिक सुविधा सम्पन चिकित्सा सुविधा से जोड़ा जाय कि जनता खुद ब खुद क्रान्ति पर उत्तर जाय। हर संवाद में कहा जाय गैरसैण याने ग्रामीण चिकित्सा सुविधा , गैरसैण याने आंतरराष्ट्रीय स्तर के अस्पतालों का शहर। मतलब हर कोण से गैरसैण को चिकित्सा से जोड़ा जाय। अभी कैसे चिकत्सा सुविधा उपलब्ध होगी की बात नहीं हो सकती यह दूसरे पायदान पर होगी
आपकी राय क्या है गैरसैण को ग्रामीण सुविधा विस्तार से जोड़ने हेतु ?
क्या चिकित्सा सुविधा विस्तार को गैरसैण से जोड़ने पर जनता साथ न देगी ?
आज दो अभी दो गैरसैण राजधानी दो !
ग्रामीण चिकित्सा सुविधा हेतु गैरसैण दो अभी दो
गैरसैण होगा मेरे गाँव में डाक्टर होगा
प्रार्थी - भीषम
Pahadiyon ko free ki rashan daru sikar chahiye hospital nahi
ReplyDelete