उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Friday, October 22, 2010

Daayen Ya Baayen Movie Review : Hills and Wheels

Daayen Ya Baayen Movie Review : Hills and Wheels

Tuesday, October 19, 2010

"आश कु पंछी "

म्यारू आश कु पंछी रीटणु रेएँद ,झणही किल्लेय बैचैन होव्केय ?
झणही किल्लेय डब-डबानि रेंदी मेरी आँखी दिन रात इन्ने फुन्डे ?
किल्लेय देखणी रेह्न्दी टक्क लग्गे की बाटू पल्या स्यार कु ?
उक्क्ताणु रेंद म्यारू तिसल्या प्राण झणही कैय्येका बाना ?
शयेद में आज भी आश कनु छों की ,
वू कब्भी त़ा आला बोडी की अपडा घार ?
वू जू म्यरा छीन ,और मीं सिर्फ जौं की छों ,
बस इंही आश मा कटणू छों आपणा दिन की ,
मतलब से ही सही ,पर वू आला जरूर कभी त़ा ,
क्या पता से वेह्य जाऊ वों थे भी मेरी पीड कु अहसास
और बौडी आला सब म्यरा ध्वार ,अपना घार,अपणा पहाड़
बस एही चा आज मेरी आखरी आश !
बस एही चा आज मेरी आखरी आश !
बस एही चा आज मेरी आखरी आश !

"जन्म -भूमि उत्तराखंड की साखीयौं पुराणी पलायन पीड़ा थेय सादर समर्पित मेरी कुछ पंक्तियाँ एंन्ही आश का साथ की एक दिन पहाड़ मा पलायन एक समस्या नि रैली "

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ),दिनाक ११-०९-2010
अस्थाई निवास: सिंगापूर / मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड

Source: म्यरा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " और पहाड़ी फोरम मा पूर्व-प्रकशित

आवा गढ़वाळी सिखला -४०

Let Us Learn Garhwali -40
Bhishma kukreti
English translation
1- A girl plays
(एक ) नौनि खिलणि च
2- Girls play
(बिंडी ) नौनि खिलणा छन
3- ( A Girl ) student writes
पढ़ण वाळी या स्कुल्या नौनि लिखणि च
4- (girl) students write
पढ़ण वाळ या स्कुल्या नौनि लिखणा छन
5- She writes
वा लिखणि च
6- They (girls) write
वो लिखणा छन
7- Sudha laughs
सुधा हंसणि च
8- Girls laugh
नौनि हंसणा छन
9- Ram runs
राम दौड़नु च
10 You run
तू दौड़नु छे / तू दौड़नी छे /
तुम दौड़ना छंवा
11- They run
वो दौड़ना छन
12- Raam and shyam run
राम अर श्याम दौड़ना छन
13- I write
मि लिखणु छौं
14- We write
हम लिखणा छंवां
Copyright @ Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com

"जग्वाल"

धुरपाली कु द्वार सी
बस्गल्या नयार सी
देखणी छीन बाटू आँखी
कन्नी उल्लेरय्या जग्वाल सी

छौं डबराणू चकोर सी
छौं बोल्याणु सर्ग सी
त्वे देखि मनं तपणु च घाम छूछा
हिवालां का धामं सी

काजोल पाणी मा माछी सी
खुदेड चोली जण फफराणि सी
जिकुड़ी खुदैन्द खुद मा तेरी लाटा
घुर घुर जण घुघूती घुरयान्दी सी

देखणी छीन बाटू आँखी
कन्नी उल्लेरय्या "जग्वाल" सी
कन्नी उल्लेरय्या "जग्वाल" सी
कन्नी उल्लेरय्या "जग्वाल" सी

रचनाकार: गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत : म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " एवं "पहाड़ी फोरम " मा पूर्व - प्रकाशित
( http://geeteshnegi.blogspot.com & http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,122.0.html)

"त्वे आण प्वाडलू

रंगली बसंत का रंग उडी जाण से पहली
फ्योंली और बुरांश का मुरझाण से पहली
रुमझुम बरखा का रुम्झुमाण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

बस्गाल्य्या गद्नियुं का रौलियाँण से पहली
डालीयूँ मा चखुलियुं का च्खुलियाँण से पहली
फूलों फर भोंरा - पोतलियूं का मंडराण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

उलैरय्या होली का हुल्करा कक्खी ख्वै जाण से पहली
दम्कद्दा भेलौं का बग्वाल मा बुझ जाण से पहली
हिन्सोला ,किन्गोड़ा और डांडीयों मा काफुल प़क जाण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

छुंयाल धारा- पंदेरोउन का बिस्गान से पहली
गीतांग ग्वेर्रऊ का गीत छलेएजाण से पहली
बांझी पुंगडीयों का डीश, खुदेड घ्गुगती का घुराण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

मालू , गुईराल , पयें और कुलैं बाटू देखेंण लग्गयाँ
और धई जन सी लगाण लग्गयाँ त्वे
खुदेड आग मा तेरी , उन्हका फुक्के जआण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

आज चली जा कतागा भी दूर मी से किल्लेय भी
मेरु लाटा ! पर कभी मी से मुख ना लुक्केय
पर जब भी त्वे मेरी खुद लागली ,त्वे मेरी सौं
मुंड उठा की ,छाती ठोक्की की और हत्थ जोड़ी की
त्वे आण प्वाडलू
त्वे आण प्वाडलू
त्वे आण प्वाडलू

"मातृभूमि उत्तराखंड की वहीं धरती थेय सादर समर्पित जू आज भी आस लग्गे की निरंतर हमरी कुशल-कामना कन्नी चा सिर्फ इंही आस का दगडी की वहु कब्भी ता आला बोडि की अपणी माँ का और अपणा गौं का ध्वार "

रचनाकार: गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत :म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " एवं "पहाड़ी फोरम " मा पूर्व - प्रकाशित

"म्यारु उत्तराखंड "

देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै गै
देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै गै
माँ थे अपड़ी भूली गयेनी , ढूध पिये कै
अरे माँ थे अपड़ी भूली गयेनी ,दूध पिये कै

बाँजी छीन सगोड़ी ,सयारा रगड़ बणी गयें
परदेशूं मा बस गईनी , अपणु गढ़ देश छोड़ी कै
माँ थे अपड़ी भूल गयीं , ढूध प्येई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध प्येई कै


रूणा छीं पुन्गडा ,खिल्याण छैल्यी गेई
रोलूउं मा रुमुक पोडी , ग्युइर्र हर्ची गयें,
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई की
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई की

पंदेरा - गदेरा भी सुक्की गयेनी ,अब रौई रौई कै
अरे ढंडयालू भी बौऊलै गेई , धेई लगयी लगयी कै
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै


बोली भाषा जल्याई याल , अंगरेजी फुकी कै
अरे गौं कु पता लापता ह्वै,कुजाअणि कब भट्टे
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै


ढोल - दमोऊ फुट गयीं ,म्यूजिक पोप सुनिके
गैथा की रोट्टी भूली ग्योऊ , डोसा पिज्जा खाई कै
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै


रुन्णु च केदार खंड ,खंड मानस बोल्याई गेई
अखंड छो जू रिश्ता , किलाई आज खंड खंड होए गयी
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै

रूणा छीं शहीद ,शहीद "बाबा उत्तराखंडी " होए गेई
नाम धरयुं च उत्तराँचल ,कख म्यारु "उत्तराखंड " खोयेगे
माँ थे अपड़ी भूल गयौं ,किले तुम दूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी भूल गयौं ,किले तुम ढूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी भूल गयौं ,किले तुम ढूध पीयें कै



"देव भूमि उत्तराखंड का अमर सपूतों थेय सादर समर्पित "

स्वरचित रचना : "गीतेश सिंह नेगी "
स्रोत :म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " एवं पहाड़ी फोरम मा पूर्व - प्रकाशित
( http://geeteshnegi.blogspot.com & http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,122.0.html)

Let Us Learn Garhwali - 37

Bhishma Kukreti
बाळ लोक गीतुंन बराखड़ी ( बारहखड़ी ) सिखणो ब्यून्त
Learning Consonants of Devnagari Alphabet with twelve Vowels
After learning consonants , it is essential that we learn the combination of twelve vowles with each consonent and
Our forefathers brought the learning lessons in Folk Songs
बिजगनी क , कन्दन का
बै मती कि, दैणे की
उर्ताले कु, बड्डेरो कू
एकलगु के , द्विलगु कै
एक्ल्गन्या को , द्विलगन्या कौ
सिर बिन्दुं कं, द्विबास क:
--- ----- ---
आभार अबोध बंधु बहुगुणा , डा नन्द किशोर ढौंडियाल , डा मनोरमा ढौंडियाल , रजनी कुकरेती
Copyright for comments, Bhishma kukreti, bckukreti@gmail.com

बचपन का ऊ प्यारा दिन

जब मनख्यौं का मन मा,
याद बणिक ऊभरिक औन्दा,
पापी पराण क्वांसु होन्दु,
कुजाणि क्यौकु खूब सतौंदा.

खैणा तिमलौं की डाळी मा बैठि,
"ऊ बचपन का दिन" खूब बितैन,
सैडा गौं की काखड़ी मुंगरी,
छोरों दगड़ि छकि छक्किक खैन.

पिल्ला, थुच्चि, कबड्डी अर गारा,
खूब खेलिन गुल्ली डंडा,
बण फुन्ड खाई हिंसर किन्गोड़,
घोलु फर हेरदा पोथलौं का अंडा.

गौं का बण फुन्ड गोरु चरैन,
छोरों का दगड़ा गोरछ्यो खाई,
आम की दाणी खाण का खातिर,
आम की डाळी ढुंग्यौन ढुंग्याई.

थेगळ्याँ लत्ता कपड़ा पैर्यन,
चुभ्यन नांगा खुट्यौं फर कांडा,
हिंवाळि काँठी बुरांश देखिन,
जब जाँदा चन्द्रबदनी का डांडा.

स्कूल्या दिन ऊ कथगा प्यारा,
आँगळिन लिख्दा माटा मा,
प्यारू बचपन आज खत्युं छ,
गौं का न्योड़ु स्कूल का बाटा मा.

हे बचपन! अब बिछड़िग्यौं हम,
याद औन्दि चून्दा छन तरबर आंसू,
बचपन की बात आज बतौणु,
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु".

(रचना पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
दिनांक: १०.१०.२०१०,@सर्वाधिकार सुरक्षित

औंसी की रात

सड़क बणौण वाळा मजदूर,
सड़क का न्योड़ु,
एक पुंगड़ा मा,
टेंट का भितर बैठिक,
रात मा अबेर तक,
खाणौ-पेणौ खैक,
खेन्न लग्याँ था ताश,
सड़क बिटि एक जनानि की,
आवाज आई ऊँका पास,
"होटल कथगा दूर होलु",
"यख फुन्ड त जंगळ छ".

मजदूरून जब सुणि,
तब एक सयाणा मन्खिन बोलि,
अरे! चुपरा अर रण द्या,
खबानि कुछ यीं रात मा,
पर फिर भि,
ऊन जबाब दिनि,
झट सी एक जनानि,
जैंका मुण्ड मा पट्टी सी लगिं,
बदन मा चोळा सी पैरयुं,
टेंट भितर ऐक सामणी बैठी,
अर खाणौ का खातिर बोन्नि,
"मैकु रोठठी खलावा",
सब्बि मजदूरू न सोचि,
शायद अस्पताळ बिटि,
या भागिक अयिं छ,
दगड़ा का सयाणा मन्खिन,
जग्दु लम्पु वींका सामणी बिटि,
झट-पट कैक दूर सरकाई,
कखि बुझै नि द्यो,
यनु विचार मन मा आई.

जब ऊन पूछि, तू कु छैं?
"मैं भंडारी रावत छौं",
पट्टी. तळैं, पौड़ी गढ़वाल की,
वीं जनानिन बताई,
थोड़ी देर मा एक छोट्टा,
दगड़्या फर फट्ट भैरू आई,
अरे! भूतणि छ या,
सब्ब्यौं तैं या बात बताई,
वा जनानि अचाणचक्क,
कुजाणि कख भागिगी,
फेर नजर नि आई,
भौत साल पैलि,
१९७२ किछ या बात,
वे दिन थै बल बग्वाळ,
अर "औंसी की रात".

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा " जिज्ञासु"
(दिनांक: २८.०९.१०)
एक सज्जन श्री कीर्ति सिंह थलवाल, प्रताप नगर, टिहरी गढ़वाल, जो दिल्ली भ्रमण पर आये थे, उनके द्वारा सुनाई लगभग १९७२ की आप बीती पर आधारित. वे उस समय पौड़ी-श्रीनगर मार्ग से बुगाणि को बन रही सड़क पर कार्यरत थे

Learn Garhwali -29

Bhishma Kukreti
ड़रयौण्या रस , भयानक रस ( Rapture of Fear )
वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण
वर्ण मसाण को भयो बहतरी मसाण
बहतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
*** ****** ***** ******* **** **** *****
वीर मसाण , अधो मसाण मन्त्र दानौ मसाण
तन्त्र दानौ मसाण
बलुआ मसाण , कलुआ मसाण , तालू मसाण
************* ********** *************************
डैणी जोगणी को लेषवार , नाटक चेटको फेरवार
मण भर खेँतड़ी , मण भर गुदड़ी , लुव्वाकी टोपी बज्र की खंता
(रौख्वाळी गीत
इकबटोळ करण वाळ : डा शिवानन्द नौटियाल
Copyright @ Bhishma Kukreti for narration, bckukreti@gmail.com

"उत्तराखंड मा बसगाळ-२०१०

उत्तराखंड मा भादौं का मैना,
गाड, गदनौं अर धौळ्यौंन,
धारण करि ऐंसु विकराल रूप,
अतिवृष्टिन मचाई ऊत्पात,
नाश ह्वैगि कूड़ी, पुंगड़्यौं कू,
जान भि चलिगि मनख्यौं की,
आज पर्वतजन छन हताश,
प्राकृतिक आफत सी,
निबटण कू क्या विकल्प छ?
आज ऊँका पास .

संचार, बिजली, सड़क संपर्क,
छिन्न भिन्न ह्वैगी,
अँधियारी सब जगा छैगी,
हरी जी की नगरी,
विश्व प्रसिद्ध हरिद्वार मा,
शिव शंकर जी की,
मानव निर्मित विशाल मूर्ति,
गंगा नदी का बहाव मा,
धराशयी ह्वैक बल,
कुजाणि कख बगिगी,
यनु लगदु भगवान शिव शंकर,
प्रकृति का कोप का अगनै,
असहाय कनुकै ह्वैगी?

यनु लगणु छ आज,
लम्पु-लालटेन कू युग,
पहाड़ मा बौड़िक ऐगी,
बसगाळ बर्बादी ल्हेगी,
सब्ब्यौं का मन की बात,
जुमान फर ऐगी,
हे लठ्यालौं आज,
पहाड़ की भौत बर्बादी ह्वैगी.

पहाड़ की ठैरीं जिंदगी,
ठण्डु मठु जगा फर आली,
पहाड़ फर आफत की घड़ी,
बद्रीविशाल जी की कृपा सी,
बगत औण फर टळि जाली,
पर मनख्यौं का मन मा,
"उत्तराखंड मा बसगाळ-२०१०" की,
दुखदाई अतिवृष्टि की याद,
एक आफत का रूप मा बसिं रलि.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(दिनांक:२२.९.२०१०, पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.

"लालटेन-लैम्प युग"

हमारा उत्तराखंड,
कल्पित ऊर्जा प्रदेश,
आज अँधेरे में डूबा है,
क्योंकि, पहाड़ पर पानी,
रौद्र रूप धारण करके,
बरस रहा है बरसात में,
ऊफान पर हैं नदियाँ,
दरक रहे हैं पहाड़,
विनाश का मंजर,
निहार कर पर्वतजन,
हो रहे हैं हताश,
किसी के टूट रहे हैं घर,
पहाड़ का टूट गया है,
सड़क संपर्क,
संचार का साधन,
खामोश हैं मोबाइल यन्त्र,
बिना चार्जिंग के,
नहीं हो पा रहा है,
प्रवासी उत्तराखंडियौं का,
स्वजनों से संपर्क,
आज पहाड़ पुराने,
"लालटेन-लैम्प युग" में,
लौट आया है २१वीं सदी में.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:२२.९.२०१०
(पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)

टिमटिमांदा गैणा मा उज्यली खैणा रे।

टिमटिमांदा गैणा मा उज्यली खैणा रे।

चल बणोला राजधानी गैरसैण रे।

राजधानी मठरी बजटै की गठरी,

पहाडों मां ऐ जैंया रेले की पटरी।

पहाडोँ मां ऐयरर्पोट कब बिछौला रे।

चल बणोला राजधानी गैरसैण रे।

RAM CHAMOLI

हमारू पहाड़

आज नाराज किलै छ,
सोचा दौं हे लठ्याळौं,
किलै औणु छ आज,
बल गुस्सा वे सनै?

रड़ना झड़ना छन,
बिटा, पाखा अर भेळ,
भुगतणा छन पर्वतजन,
प्रकृति की मार,
कनुकै रलु पर्वतजन,
पहाड़ का धोरा?

जरूर हमारू पहाड़,
आज नाराज छ,
इंसान कू व्यवहार,
भलु निछ वैका दगड़ा,
नि करदु वैकु सृंगार,
करदु छ क्रूर व्यवहार,
हरियाली विहीन होणु छ,
आग भी लगौंदा छन,
पहाड़ की पीठ फर,
चीरा भी लगौंदा छन,
घाव भी देन्दा छन,
ये कारण सी होणु छ,
गुस्सा "हमारू पहाड़".

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:१५.९.२०१०
(पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, October 14, 2010

होरी कु गीत

होरी का पैली
होल्यारु की टोली
जांदी छ वो गों गों
वो मांगना कु होरी |

जो हमुतैं दयालु
होरी कु दान
वेतैं दयालु
श्री भगवान |

होल्यार झणी
अब कख हर्ची गैन
वून्का बेश मा
कवी होरी येन |

जो हमुतैं दयालु
होरी कु दान
वैकु नि होलू
कबि अपमान |

मंग्दरा वोट
बस्गाल्या गाड
दिन्दरा
जाखा तखी
जित्दरा ताळ |

तुम जब्भी
देहरादून
जब भि ऐल्या
गेट पर म्यारा
कुकर नि पैल्या |

मैता की होरी
गीतू का छंद
सिवा सौली वेमा
बसंत का रंग |

येन्सू का साल
होरी देल्या
भोळ का साल
नाती खिलेल्या |

विजय मधुर