देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै गै
देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै गै
माँ थे अपड़ी भूली गयेनी , ढूध पिये कै
अरे माँ थे अपड़ी भूली गयेनी ,दूध पिये कै
बाँजी छीन सगोड़ी ,सयारा रगड़ बणी गयें
परदेशूं मा बस गईनी , अपणु गढ़ देश छोड़ी कै
माँ थे अपड़ी भूल गयीं , ढूध प्येई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध प्येई कै
रूणा छीं पुन्गडा ,खिल्याण छैल्यी गेई
रोलूउं मा रुमुक पोडी , ग्युइर्र हर्ची गयें,
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई की
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई की
पंदेरा - गदेरा भी सुक्की गयेनी ,अब रौई रौई कै
अरे ढंडयालू भी बौऊलै गेई , धेई लगयी लगयी कै
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
बोली भाषा जल्याई याल , अंगरेजी फुकी कै
अरे गौं कु पता लापता ह्वै,कुजाअणि कब भट्टे
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
ढोल - दमोऊ फुट गयीं ,म्यूजिक पोप सुनिके
गैथा की रोट्टी भूली ग्योऊ , डोसा पिज्जा खाई कै
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
रुन्णु च केदार खंड ,खंड मानस बोल्याई गेई
अखंड छो जू रिश्ता , किलाई आज खंड खंड होए गयी
माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी भूल गयीं ,ढूध पयेई कै
रूणा छीं शहीद ,शहीद "बाबा उत्तराखंडी " होए गेई
नाम धरयुं च उत्तराँचल ,कख म्यारु "उत्तराखंड " खोयेगे
माँ थे अपड़ी भूल गयौं ,किले तुम दूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी भूल गयौं ,किले तुम ढूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी भूल गयौं ,किले तुम ढूध पीयें कै
"देव भूमि उत्तराखंड का अमर सपूतों थेय सादर समर्पित "
स्वरचित रचना : "गीतेश सिंह नेगी "
स्रोत :म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " एवं पहाड़ी फोरम मा पूर्व - प्रकाशित
( http://geeteshnegi.blogspot.com & http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,122.0.html)
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