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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Saturday, June 9, 2018

किनगोड़ा , किलमोड़ा। दारु हल्दी वनीकरण

किनगोड़ा , किलमोड़ा।  दारु हल्दी वनीकरण 

Indian Barberies , Chitra Foestation in  Uttraakhand 
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक ) 
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  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -9

Community Medical Plant Forestation -9
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  -111
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  111                 
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--214       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 214

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
  लैटिन नाम Berberies  aristata 
संस्कृत नाम दारुहरदा , दारु हल्दी 
हिंदी-  चित्रा 
पादप वर्णन 
किनगोड़ा उत्तराखंड में लगभग सभी जगह जंगलों , पथरीली जमीन में 1800 -३००0  मीटर की ऊँचे स्थानों में पाया जाता था अब इसकी प्रजाति खतरे में है।  झाडी नुमा 6  -9  फ़ीट ऊँचा।  कांटेदार झाडी , पत्तियां भी कांटेदार। 
बाड़ के काम आता है , रंग बनाने में उपयोग 

औषधि उपयोग 

आँख औषधि -कजतवाईरस में उपयोग 
जलन कम करता है , घाव आदि पर उपयोग 
यकृत रोग में उपयोग 
कैंसर में क्लोन न होने हेतु  उपयोग 
स्त्रियों हेतु मूत्र रोग में उपयोग 
डाइबिटीज कम करता है 
कई कर्ण रोग उपचार में उपयोग 
पाचन शक्ति वर्धक 
गरारा में उपयोग 

पारम्परिक , आयुर्वेद , यूनानी व सिद्ध औषधियों में उपयोग होता है 
जलवायु आवश्यकता - सामन्य किन्तु गर्म हो तो भला, खुली जमीन 
 भूमि  
खुला , बलुई , दुम्मट व पथरीली।  वास्तव में सब जगह हो सकता है।  हाँ पानी भरान हानिकारक है। 
फूल आने का समय - अप्रैल मई 
फल तोड़ने का समय  - मई जून 
बीज बोन का समय - पके फलों से बीज बो दिए जाने चाहिए और इन्हे एक शीत ऋतू आवश्यक है (cold frame ) . शीत ऋतू अंत या वसंत में उगने लगते हैं। 
भण्डारीकृत बीजों को एक शीत आवश्यक है एयर जनवरी में बो दिए जाते हैं जब अंकुरित  पौधा 20 सेंटी मित्र का हो जाय तो उसे अपने निर्णीत स्थान पर रूप दिया जाता है। 
रोपण का समय -वसंतान्त या ग्रीष्म से पहले भाग में 
कलम से भी रोपण होता है किन्तु असंभव नहीं तो भी बहुत कठिन। 
खाद आवश्यकता - कम्पोस्ट या  वनों में स्वजनित प्राकृतिक खाद 
सिंचाई आवश्यकता -कम किन्तु सरसरी में आवश्यक , अधिक पानी हानिकारक 
वयस्कता समय - 5  6 साल 
 सार्वजनिक वनीकरण हे तु वनों में पके फल /बीज सब जगह छिड़क दिए जांय किन्तु  अधिक बीजों की आवश्यकता पड़ेगी . बकरी चरण से बचाव आवश्यक है 
विशेषज्ञों से राय आवश्यक 




Copyright @ Bhishma Kukreti 6  /6  //2018 
संदर्भ 

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस 
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

उत्तराखंड में पारम्परिक अभ्यंग /मालिश चिकित्सा

उत्तराखंड में पारम्परिक अभ्यंग /मालिश  चिकित्सा 
    
 Massage Therapy in Uttarakhand (History Aspects) 

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 89
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  89
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  89            
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--192)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -192

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  
  मालिश  प्रयोग मानव सभ्यता में बहुत प्राचीन युग से होता आया है।  मिश्र में प्रागैतिहासिक अवशेषों में मालिश चिकित्सा के 2500 BCE  के अवशेष मिले हैं। चीन में भी मालिश चिकित्सा प्रयोग का उल्लेख 2700  वर्ष पुरानी  पुस्तक 'आंतरिक या वैकल्पिक चिकत्सा /औषधि ' (1949 में अंग्रेजी में प्रकाशित ) मिलता है। किन्तु मालिश से वैज्ञानिक  ढंग से चिकित्सा प्रयोग का श्रेय हिन्दुओं के आयुर्वेद को ही जाता है मालिश चिकित्सा में इसे अभ्यंग  कहते हैं चरक संहिता में सर्वांग अभ्यंग  का उल्लेख हुआ है। वाग्भट्ट के अष्टांग हृदयम  में उल्लेख है कि यदि सर्वांग अभ्यंग  संभव न हो तो सिर  व पैरों की मालिश करनी चाहिए। भारत से ही अभ्यंग चिकित्सा मिश्र व चीन में प्रचलित हुयी। 
    उत्तराखंड में मालिश चिकत्सा हर गाँव में प्रचलित थी और आज भी मालिश चिकित्सा प्रचलित है - मालिश बिना किसी द्रव या द्रव (घी , सरसों , टिल के तेल व औषधि ) की सहायता  से की जाती है या द्रव की सहायता से की जाती है। 
   थकावट शान्ति हेतु सर्वांग अभ्यंग या मालिश चिकित्सा - थकावट या अन्य दुःख में सर्वांग या पुरे वदन की मालिश की जाती है। 
   शिरो अभ्यंग अथवा सर मालिश - सरदर्द या अन्य स्थिति में सर की तेल मालिश या शुष्क की जाती है।  
  पाद अभ्यंग अथवा पैर मालिश - अति ठंड लगने या बेहोशी की स्थिति में पाद अभ्यंग साधारण बात है। 
 मर्मांग अभ्यंग अथवा अंगों की मालिश - गम चोट या चोट लगने की स्थिति में विशेष अंग की मालिश की जाती है। 
वात विरोशी अभ्यंग /मातृ अभ्यंग - नई माओं की सर्वांग मालिश की जाती है. कम से कम छह महीनों तक नवी माओं की मालिश की जाती है। 
नवजात या शिशु बाल अभ्यंग या नवजात शिशु मालिश - नवजात शिशुओं की लगातार नौ दस महीनों तक या अधिक काल तक मालिश तो हर घर में प्रचलित है। 
  हस्त घर्षण अभ्यंग अथवा हाथ रगड़ना - अति ठंड, शरीर अंग सुन्न पड़ने या अन्य दर्द में हाथों को रगड़ा जाता है। 
  मुख घर्षण , मुंह की मालिश भी विशेष स्थितियों में की जाती है। 
  अंग मर्दन , , अंग विशेष उमेठन या कान -नाक उमेठना - बहुत सी परिस्थितियों में नाक , कान या विशेष अंग को उमेठा जाता है। 
    अंग दबाब - बहुत सी स्थितियों में अंगों को दबाया जाता है जैसे अँगुलियों को खींचना या तड़काना। 
     कुरचना या दबाना - कईयों को जब खाई बाण होती है तो बच्चों की सहायता से पैरों से शरीर , पैर दबाना (कुरचना )या हाथों से शरीर  पटकाया /दबाया जाता है। 
   मोच , नस चढ़ने या लछम्वड़ होने पर मालिश की जाती है। 
  लकवा या अन्य स्थिति में मालिश चिकित्सा प्राचीन काल से चली आ रही है। 
  उदर अभ्यंग - पेट में मरोड़ या नाळ पड़ने की स्थिति में उदर अभ्यंग किया जाता है।  
 हड्डियों की मालिश या अँगुलियों से  ठक टाना भी आम चिकित्सा प्रचलित है। 
 चिकुटी काटना या चुनगी देना भी  का अभ्यंग का अंग माना जा सकता है।  आँखों की मालिश भी एक चिकित्सा ही है 
  

       पर्यटकों हेतु अभ्यंग चिकत्सा 
    उत्तराखंड में पर्यटकों हेतु उपरोक्त सभी अभ्यंग चिकित्सा सुलभ होती थीं।


Copyright @ Bhishma Kukreti  16 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
  
  Massage therapy &Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;    Massage therapy &Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Massage therapy & Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;   Massage therapy & MedicalTourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;    Massage therapy & Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Massage therapy &  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Massage therapy &  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

पुरुगुप्त और उत्तराधिकारी काल में हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास

 पुरुगुप्त और उत्तराधिकारी काल में हरिद्वार  ,  बिजनौर  और  सहारनपुर   इतिहास
Ancient  Purugupta of Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur 
 
                     

                               हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -214                   

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
  स्कंदगुप्त के पश्चात पुरुगुप्त वृद्धावस्था में शासन पर बैठा ततपश्चात पुत्र नृसिंह गुप्त व पौत्र कुमारगुप्त शासन पर बैठे. इन सबने लगभग सात आठ वर्ष ही शासन किया।  पुरुगुप्त से कुमारगुप्त काल में गुप्त राज्य का तीब्रतापूर्बक ह्रास हुआ। 
 कमजोर शासन में गुप्त परिवार के कई क्षेत्रीय शासक क्षेत्र पर पृथक शासन चलाने लगे।  कई क्षेत्रीय शासकों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर डाला।  स्कंदगुप्त की मृत्यु पश्चात कुछ आश्रित शासकों ने हेफ्ताल नरेश तोरण मल की अधीनता स्वीकार कर ली। 
    गुप्त वंश का अंतिम नरेश बुद्धगुप्त ने किसी न किसी प्रकार मगध , मध्यदेश व मालवा पर अधिपत्य जमाने का प्रयत्न  किया। 
          सौराष्ट्र , पंचनद व मध्यदेश में संभवतया पुरुगुप्त काल में गुप्त साम्राज्य का अधिपत्य नाममात्र हेतु रह गया था।  बुधगुप्त का साम्राज्य बंगाल व ऐरण मध्यप्रदेश तक सीमित रह गया था। बुधगुप्त की कमजोरी से पुष्यभूति वमुखर वंशजों हेतु मार्ग प्रशस्त हो गया (वासुदेव उपाध्याय , गुप्त साम्राज्य का इतिहास ). 
        




Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

उत्तराखंड में जीव , जंतु , पक्षी आधारित चिकित्सा

 उत्तराखंड में जीव , जंतु , पक्षी  आधारित चिकित्सा 
Animal based Medicines in Uttarakhand 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -89
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   89                
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--192)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -192

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
     यद्यपि आयुर्वेद वनस्पति आधारित विज्ञानं माना जाता है किन्तु  आयुर्वेद में जैसे चरक संहिता में जीव जंतु आधारित औषधियों का उल्लेख है।  उत्तराखंड में भी जीव -जंतु व पक्षियों के अंगों से औषधि निर्मित होती थीं या कुछ समय पहले तक प्रयोग होती  थीं। वैकल्पिक पारम्परिक औषधि में जीव -जंतु व पक्षियों के कई अंग उपयोग होते हैं 
मांश -पालतू या  वनैले जंतुओं का मांश आहार शक्ति वृद्धि व नर शक्ति वृद्धि हेतु प्रयोग होता था /है।  बकरी -भेड़ , सूअर , खरगोश , शाही , सौलु , मुर्गे , हिरण काखड़ जाति , चकोर , तीतर बटेर व अन्य पक्षियों का मांश ताकत बढ़ाने हेतु उपयोग होता है।  मुर्गी के अंडे स्वास्थ्य व विशेष बीमारियों में उपयोग होते हैं। 
शहद - मधुमखियों से निकला शहद  का विशेष अवयव है।   
 चिड़ियों  का बीट - कई औषधियों में चिड़िया बीट प्रयोग होता है /था 
सींग -हिरण के सींग कई औषधियों में उपयोग होता था अन्य जंतुओं के सींग , खुर व हड्डियां भी औषधि निर्माण में उपयोग होती थीं। 
 हड्डी का रस - बूढ़ों को बकरी की हड्डियों के रस पीने की हिदायत तो वैद्य  आज भी देते हैं। 
हिरण की नाभि से भी औषधि तैयार की जाती थी। 
नर हाथी के नर जननांग भी नर शक्ति वृद्धि हेतु उपयोग होते थे। कई जन्तुओं की वसा से तेल घाव आदि में उपयोग होते थे .
गौ मूत्र का भी उपयोग औषधि में होता है। 
मस्वड़ पक्षी के रक्त  उपयोग बयळ (कान से पानी या पीप बहना ) ठीक करने में उपयोग होता था। 
टीका तो घोड़ों में इंजेक्शन से निर्मित होता है 
जोहार पिथौरागढ़ के भोटिया समाज में निम्न जीव जंतुओं का उपयोग कई बीमारियों में होता था**) -
जंतु -------अंग या विधि ----------------- व्याधि  उपचार में उपयोग 
खरगोश ----रक्त ------ -------------------स्वास 
मेंढक - ---सम्पूर्ण ---तेल में पके पदार्थ का जले घाव 
बिच्छू ------सम्पूर्ण को तेल में पकाकर ------बबासीर 
बिच्छू भष्म ----------------------  -------   घाव 
घरेलू छिपकली ------तिल तेल में उबालकर ---एक्जिमा 
जंगली छिपकली ---तेल में उबालना ------उस तेल से मवेशियों के घाव 
मछली ------------रक्त ----------- घाव 
कनखजूरा ------जलाकर धुंवा --------बबासीर 
खटमल -----तुलसी रस में कूटकर  ----संयुक्त रस रिंगवर्म कृमिनाश 
सांप -------मांश -------------- आँख , नजर वृद्धि , मूत्र व्याधि आदि 
भराल -------सींग घोटकर --------पेस्ट ---पेट दर्द या बुखार 
 बाग़ ---------------- मांश -----------     शक्ति 
बाग़ बाल ----------  जलाकर  भूसी ------- पैर व मुंह व्याधि , तेल के साथ मालिस 
गधे /घोड़े -------मांश ---------------- शक्ति , नर शक्ति 
हिरण ----------- मांश -------------- उपरोक्त 
 सूअर ---------  मांश  -------------     उपरोक्त 
चूहा -----------    मांश --------          वीर्य वृद्धि व शक्ति 
चीर व उल्लू --------- मांश ------------- शक्ति वीर्य वृद्धि 
केकड़ा ------------   मांश ---------------   शक्ति , ऊर्जा व रक्त व्याधि 
काला कबूतर -------- मांश -----------     लकवा 
खरगोश -----------     मांश  ---------------माहवारी सुधार 
   
सियार --------मांश ( लकवा , गठिया ) (रक्त स्वास व्याधि )
शाही ------- अंतड़ी मांश (बच्चों को पेट व्याधि व स्वास रोग )
बिल्ली ----------- बगैर चमड़ी के उबालते हैं व रस्से से गठिया व्याधि उपचार
मार्टेन चिड़िया ---------------हड्डी लुगदी -----------घाव भरान
कस्तुरी मृग की कस्तुरी के कई औषधीय उपयोग
कई पक्षियों के पीले जर्दे को सर आदि पर मला जाता है जो कई व्याधियों के उपचार में पयोग होता है
(** चंद्र सिंह नेगी और वीरेंद्र सिंह पयाल के 2007 में  प्रकाशित खोजपूर्ण लेख से साभार )
   
 

Copyright @ Bhishma Kukreti  30/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - **   ** चंद्र सिंह नेगी और वीरेंद्र सिंह पयाल के 2007 , Traditional uses of Animal Products in medicines by Shoka Tribes Pithoragarh, Uttarakhand , India , Ethno Medicines, 1 (1), 47-53   
-
 
  
  Animal Based Medicines& Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;  Animal Based Medicines&  Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;    Animal Based Medicines& Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Animal Based Medicines&  Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Animal Based Medicines&  Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia; Animal Based Medicines&  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;  Animal Based Medicines&  Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;  Animal Based Medicines&  Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Animal Based Medicines&  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Animal Based Medicines&    MedicalTourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

उत्तराखंड में धूम्रपान चिकित्सा व धूम्र दत्त रक्षा उपाय

उत्तराखंड में धूम्रपान चिकित्सा व धूम्र दत्त रक्षा उपाय 
 Smoking Therapy in Uttarakhand 

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -91
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 91                 
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--194)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -194

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    उत्तराखंड समेत भारत में धूम्रपान का इतिहास 2000 वर्ष से भी प्राचीन है। धूम्रपान औषधि व व्यसन रूप में उत्तराखंड में अशोक काल से भी पहले प्रचलित था। बाढ़ साहित्य में उल्लेख है कि  हरिद्वार व कोटद्वार भाभर में आये बौद्ध भिक्षु  धूम्रपान हेतु पहाड़ी गाँवों में लालायित रहते थ.
    अष्टांग हृदयम  में बागवभट्ट ने धूमप्रापण चिकित्सा का उल्लेख किया है।   
धूम्रपान के निम्न प्रकार हैं -
१- औषधि रूप  धूम्रपान
२-व्यसन रूप में धूम्रपान 
३- धार्मिक   अनुष्ठानों  धूम्रपान 
४- शरीर रक्षा हेतु निर्माण 
५- कीटाणु भगाने व रक्षा हेतु जीव हत्त्या हेतु  धूम्र निर्माण 
        औषधि रूप में धूम्रपान 
उत्तराखंड में सत्रहवीं अठारवीं  सदी में  तम्बाकू ने प्रवेश किया और अंग्रेजी शासन में तम्बाकू व  अन्य व्यसनी धूम्रपान   का उपयोग बढ़ा।
    तम्बाकू धूम्रपान से पहले उत्तराखंड में व्यसन रूप में धूम्रपान का चलन ब्रिटिश शासन  सर्वाधिक हुआ और स्वतंत्रता के पश्चात तो बहुत ही अधिक प्रचलन बढ़ा।
    औषधि रूप में कई तरह के पौधों का उपयोग धूम्रपान हेतु होता रहता था व कई क्षेत्रों में आज भी है। 
      औषधि धूम्रपान मनोरोग , भ्रान्तिमान स्थिति , अति भौतिक दर्द , उत्तेजना विसर्जन व प्राप्ति , तनाव आदि में प्रयोग होता था जैसे भांग , अफीम , धतूरा व कई अन्य वनस्पतियां।  वैद्य कई स्थानीय वनस्पतियों को जानते थे व वनस्पति के अंगों को पीसकर दुखियारे को धूम्रपान करवाते थे . चूँकि परम्परा थी कि गूढ़ विद्या सामन्य जन को नहीं बतलानी चाहिए तो हमारे पास उन बहुत सी वनस्पतियों का ज्ञान ही नहीं रह गया है जिन्हे वैद्य धूम्रपान चिकित्सा में प्रयोग करते थे। प्र्स्सन्न्ता है कि वनस्पति शास्त्री अब अन्वेषण में लगे हैं 
 भट्ट जैसे बीजों  को जलाकर , भूनकर  उसके धूम्र से कफ , सर्दी जुकाम  आदि उपचार होता था। 
    बागभट्ट अष्टांग हृदयम  के 21 वे अध्याय में धूम्रपान के निम्न रोगों में लाभ उल्लेख है -
   अ -कफ 
ब - डिस्पोनइया सुनवैकल्य या  बोलने में कठिनाई 
स - सूंघने, सुनने में कठिनाई
सी -, अश्रु दोष व्  - हिचकी 
ध -खुजली या एलर्जी 
न - पेट , सरदर्द , अधकपाली , शूल पीड़ा , ठंड से  दर्द , निद्रा , अनिद्रा , ऊर्जाहीनता , पीड़ा आदि आदि
             धूम्रपान यंत्र 
मिटटी या धातु की बनी चिलम  
       धूम्रपान बत्ती 
अष्टांग हृदयम में धूम्रपान बत्ती निर्माण की कला वर्णन मिलता है। यही विधियां  उत्तराखंड में धूम्रपान औषधि में उपयोग होती आती हैं (श्री स्व किसन दत्त कंडवाल  वैद्यराज , ग्राम ठंठोली, मल्ला ढांगू ,  पौड़ी गढ़वाल के भतीजे से प्राप्त जानकारी अनुसार अष्टांग आधारित वैदकी ठंठोली में प्रचलित थी )
     अंगार 
 धूम्रपान हेतु किन किन अंगारों का उपयोग होना चाहिए का वर्णन अष्टांग में है।
  अस्टांग में तीन प्रकार -मृदु ,  मध्य , तीक्ष्ण आदि के प्रकार , कब धूम्रपान वर्जित है , धूम्रपान विधि आदि का सम्पूर्ण उल्लेख है। 
   उपरोक्त सभी धूम्रपान औषधि उपयोग  उत्तराखंड में चिकत्सा रूप में उपयोग होते थे व वर्तमान में भी होते हैं।
   मृदु धूम्रपान हेतु वनस्पति व जंतु औषधि 
अगरुरु , गुगलु , मुस्ता , स्थानेय , नालदा , शैलेय , उशिरा , वाल्का , वरंगा , काउंटी , ध्यामका , कुमकुम ,माशा , विल्वमज्जा , कुंदूका , पल्लव , इलावलुका आदि। 
इसके अतिरिक्त तिल  का तेल व की जीवों के चर्बी या हड्डी मज्जा से बने तेल व घी भी धूम्रपान औषधि निर्माण  द्रवणी (मिश्रति करण ) हेतु उपयोग होते थे।
     मध्य धूम्रपान वनस्पति औषधि 
 जटामासी , नीली कमल ककड़ी भाग, शालकी , पृथ्वीका , उदंबरा ,अश्वथा , प्लाक्ष , यस्थिमधु, न्याग्रोधा , पद्मका आदि । 
    तीक्ष्ण धूम्रपान वनस्पति औषधि 
  ज्योतिष्मती , हल्दी , दशमूल , लक्ष , श्वेता , त्रिफला आदि 
    (श्री स्व किसन दत्त कंडवाल  वैद्यराज , ग्राम ठंठोली, मल्ला ढांगू ,  पौड़ी गढ़वाल के भतीजे से प्राप्त जानकारी ) 
      २- धार्मिक अनुष्ठानों में धूम्रपान   
   धार्मिक अनुष्ठानों जैसे होम , यज्ञ , आहुति , व घडेळा आदि में धुपण देना आदि धार्मिक धूम्रपान के उदाहरण हैं।
     ३- शरीर व कृषि रक्षा हेतु धूम्र उपयोग 
   कीटों व अन्य सूक्ष्म सूक्ष्म  जीवों व मच्छरों को भगाने हेतु उपले व गंधेला / कड़ी पत्ता आदि जलाया जाता है।  टिड्डी आदि कीड़ों को भगाने हेतु भी धूम्र निर्माण किया जाता था।  मधु मक्खी/चिमल्ठ भगाने हेतु भी धूम्र निर्माण किया जाता है।
 
   ४- जीव  हत्त्या हेतु धूम्र निर्माण
   बाघ , शाही , सियार , रीछ आदि मारने हेतु इन जानवरों के बिलों /घरों में धूम्र निर्माण कर इन्हे बिल /घरों से बाहर लाया जाता था व मारा जाता था।  बहुत बार बंदरों , बाघों के आतंक कम करने हेतु बणांक लगाने की पुरानी परम्परा भी थी। 
         नशे हेतु धूम्रपान
भांग , धतूरा , तम्बाकू का उपयोग बहुप्रचलित है।
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   वैसे धूम्रपान ने मनुष्य को नुक्सान अधिक पंहुचाया है लाभ कम दिया है जैसे रसोई में धुंवें ने कितनी जाने लीं हैं पता नहीं और अब दिल्ली जैसे श्हरों में धुंवे व प्रदूषित वायु हानि  . पंहुचती है  
 
 पर्यटकों को उपरोक्त चिकत्सा उपलब्ध थी। 
   



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संदर्भ 

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

फा शीन यात्रा व गुप्त युगीन विशेषताएं व हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर इतिहास

Characteristics of Gupta Era & Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur  -215                     
                               हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 215                 

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
 प्राचीन भारत के इतिहास में डेढ़ सौ वर्ष के गुप्त काल को भारत का स्वर्ण काल कहा  जाता है इस काल में भारत में कई मायनों में विकास हुआ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी धार्मिक यात्री फाही यान /फा -शीन  भारत यात्रा पर आया (गाइल्स , ट्रेवल्स ऑफ फा -शीन ). फा शीन ने 322 ईश्वी में यात्रा शुरू की और गोबी रेगिस्तान , खोतान , शंशान , तारतर , कासागरा गांधार होते हुए 400 ईशवी  में भारत पंहुचा व भारत में वह 411 ईशवी  तक विभिन्न स्थानों की यात्रा करता रहा। फा शीन  ने पेशवर ,तक्षिला , पाटलिपुत्र , मथुरा , कन्नौज , पाटलिपुत्र , मालवा , श्रावस्ती , कपिलवस्तु , टॉमलिप्ति -बंगाल बंदरगाह व श्रीलंका की यात्रा की।  फा शीन 411 ईशवी में जावा होते हुए चीन पंहुचा। 
    मगध के संबंध में फा शीन के उदगार
मध्यदेश में अन्य प्रदेशों की तुलना में इस प्रदेश में सबसे अधिक विशाल नगर  व कस्बे हैं। मगध में धनी लोग सहायता करते हैं।  पड़ोसियों के साथ लोगों के मधुर सबंध होते हैं व वे एक दूसरे की सहायता करते हैं।
  
        




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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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