उत्तराखंड में जीव , जंतु , पक्षी आधारित चिकित्सा
Animal based Medicines in Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -89
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 89
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--192) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -192
यद्यपि आयुर्वेद वनस्पति आधारित विज्ञानं माना जाता है किन्तु आयुर्वेद में जैसे चरक संहिता में जीव जंतु आधारित औषधियों का उल्लेख है। उत्तराखंड में भी जीव -जंतु व पक्षियों के अंगों से औषधि निर्मित होती थीं या कुछ समय पहले तक प्रयोग होती थीं। वैकल्पिक पारम्परिक औषधि में जीव -जंतु व पक्षियों के कई अंग उपयोग होते हैं
मांश -पालतू या वनैले जंतुओं का मांश आहार शक्ति वृद्धि व नर शक्ति वृद्धि हेतु प्रयोग होता था /है। बकरी -भेड़ , सूअर , खरगोश , शाही , सौलु , मुर्गे , हिरण काखड़ जाति , चकोर , तीतर बटेर व अन्य पक्षियों का मांश ताकत बढ़ाने हेतु उपयोग होता है। मुर्गी के अंडे स्वास्थ्य व विशेष बीमारियों में उपयोग होते हैं।
शहद - मधुमखियों से निकला शहद का विशेष अवयव है।
चिड़ियों का बीट - कई औषधियों में चिड़िया बीट प्रयोग होता है /था
सींग -हिरण के सींग कई औषधियों में उपयोग होता था अन्य जंतुओं के सींग , खुर व हड्डियां भी औषधि निर्माण में उपयोग होती थीं।
हड्डी का रस - बूढ़ों को बकरी की हड्डियों के रस पीने की हिदायत तो वैद्य आज भी देते हैं।
हिरण की नाभि से भी औषधि तैयार की जाती थी।
नर हाथी के नर जननांग भी नर शक्ति वृद्धि हेतु उपयोग होते थे। कई जन्तुओं की वसा से तेल घाव आदि में उपयोग होते थे .
गौ मूत्र का भी उपयोग औषधि में होता है।
मस्वड़ पक्षी के रक्त उपयोग बयळ (कान से पानी या पीप बहना ) ठीक करने में उपयोग होता था।
टीका तो घोड़ों में इंजेक्शन से निर्मित होता है
जोहार पिथौरागढ़ के भोटिया समाज में निम्न जीव जंतुओं का उपयोग कई बीमारियों में होता था**) -
जंतु -------अंग या विधि ----------------- व्याधि उपचार में उपयोग
खरगोश ----रक्त ------ -------------------स्वास
मेंढक - ---सम्पूर्ण ---तेल में पके पदार्थ का जले घाव
बिच्छू ------सम्पूर्ण को तेल में पकाकर ------बबासीर
बिच्छू भष्म ---------------------- ------- घाव
घरेलू छिपकली ------तिल तेल में उबालकर ---एक्जिमा
जंगली छिपकली ---तेल में उबालना ------उस तेल से मवेशियों के घाव
मछली ------------रक्त ----------- घाव
कनखजूरा ------जलाकर धुंवा --------बबासीर
खटमल -----तुलसी रस में कूटकर ----संयुक्त रस रिंगवर्म कृमिनाश
सांप -------मांश -------------- आँख , नजर वृद्धि , मूत्र व्याधि आदि
भराल -------सींग घोटकर --------पेस्ट ---पेट दर्द या बुखार
बाग़ ---------------- मांश ----------- शक्ति
बाग़ बाल ---------- जलाकर भूसी ------- पैर व मुंह व्याधि , तेल के साथ मालिस
गधे /घोड़े -------मांश ---------------- शक्ति , नर शक्ति
हिरण ----------- मांश -------------- उपरोक्त
सूअर --------- मांश ------------- उपरोक्त
चूहा ----------- मांश -------- वीर्य वृद्धि व शक्ति
चीर व उल्लू --------- मांश ------------- शक्ति वीर्य वृद्धि
केकड़ा ------------ मांश --------------- शक्ति , ऊर्जा व रक्त व्याधि
काला कबूतर -------- मांश ----------- लकवा
खरगोश ----------- मांश ---------------माहवारी सुधार
सियार --------मांश ( लकवा , गठिया ) (रक्त स्वास व्याधि )
शाही ------- अंतड़ी मांश (बच्चों को पेट व्याधि व स्वास रोग )
बिल्ली ----------- बगैर चमड़ी के उबालते हैं व रस्से से गठिया व्याधि उपचार
मार्टेन चिड़िया ---------------हड्डी लुगदी -----------घाव भरान
कस्तुरी मृग की कस्तुरी के कई औषधीय उपयोग
कई पक्षियों के पीले जर्दे को सर आदि पर मला जाता है जो कई व्याधियों के उपचार में पयोग होता है
(** चंद्र सिंह नेगी और वीरेंद्र सिंह पयाल के 2007 में प्रकाशित खोजपूर्ण लेख से साभार )
Copyright @ Bhishma Kukreti 30/4 //2018
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - ** ** चंद्र सिंह नेगी और वीरेंद्र सिंह पयाल के 2007 , Traditional uses of Animal Products in medicines by Shoka Tribes Pithoragarh, Uttarakhand , India , Ethno Medicines, 1 (1), 47-53
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