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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, May 30, 2017

आचार्य डा शिव प्रसाद डबराल

आचार्य डा शिव प्रसाद डबराल 
मथुरा दत्त मठपाल
आचार्य शिव प्रसाद डबराल का नाम स्मृति में आते ही हमें उत्तराखण्ड के एक इतिहास का स्मरण हो आता है। परन्तु आचार्य मात्र एक इतिहासकार ही नहीं थे। उन्हांेने अपने अध्ययन काल में ही बड़ी मात्रा में कविताओं और वीरतापूर्ण नाटकों की रचना की थी, जो बाद में ‘महर्षि मालवीय इतिहास परिषद्’ के माध्यम से प्रकाशित हुई थीं। अपने गृह-प्रदेश में आकर उनका ध्यान उन लोगों की ओर गया जो अपने बेहद कष्टपूर्ण भूगोल से जूझते हुए जीवनयापन कर रहे थे। सरहदी क्षेत्र में निवास करने वाली भोटान्तिक जाति का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया। इसी विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनके परीक्षकों ने इस थीसिस की खूब तारीफ की। आगे चलकर उनकी थीसिस तीन भागों में छपी। इनमें सीमान्त में निवास करने वाली जनजातियों का विस्तृत विवरण दिया हुआ है। सन् 1960 में उनके पहले महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘श्री उत्तराखण्ड यात्रा दर्शन’ का प्रकाशन हुआ, जो विद्वानांे द्वारा प्रशंसित हुआ। नवम्बर 1948 ईं में डीएबी इण्टर काॅलेज दोगड्डा के प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति से नवम्बर 1999 में अपनी मृत्युपर्यन्त डाॅ. डबराल का पाँच दशाब्दियों का काल पूर्ण रूप से विभिन्न प्रकार के सारस्वत आयोजनांे में बीता था। विद्यालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने के बाद उन्हें जितना अवकाश मिला, उन्हांेने उस पूरे समय का एक-एक क्षण साहित्य रचना करन,े उत्तराखण्ड के इतिहास के लेखक उत्तराखण्ड में महत्तवपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों के अन्वेषण उत्खनन, गढ़वाली लोक-साहित्य के संकलन और डेढ़ दर्जन से अधिक रचनाओं की विस्तृत भूमिका लेखन-सम्पादन और प्रायः बीस हजार पृष्ठों के अपने कार्य के प्रकाशन-वितरण बड़ी संख्या में पत्र-पत्रिकाओं में आलेख लेखन जैसे कार्यों में लगाया। सन् 1935 ई. में मेरठ काॅलेज से बीए करने के प्रायः दस साल बाद उन्हंे महामना मदन मोहन मालवीय की संस्तुति पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीटी में प्रवेश मिला। इसी अवधि में महामना ने उन्हंे उत्तराखण्ड के इतिहास भूगोल पर गहराई से कार्य करने का परामर्श दिया था, जिसका उन्हांेने आजन्म पालन किया। मेरे इस आलेख का विषय आयार्च प्रवर द्वारा लोक-साहिल के पुनरुद्धार हेतु किये गये कार्य से सम्बन्धित है। अस्तु डा. डबराल ने लोका-साहित्य सम्बन्धी कोई डेढ़ दर्जन से अधिक रचनाआंे को दुर्लभ काव्यमाला के अन्तर्गत सन् 1993 से 1996 के बीच पुनर्प्रकाशित करवाया। इनमें से अधिकांश तो सन् 1993 से ई0 में प्रकाशित करवाई गई थी। अप्राप्य हो चुकीं इस प्रकार की पुस्तिकाओं को खोज निकालना एक दुष्कर कार्य था। इन रचनाओं को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है।
(1) पहले वर्ग में गढ़वाली नाटक आते हैं। पण्डित भवानी दत्त थपलियाल गढ़वाली नाटककारों के अग्रदूत थे। उन्होंने ’’जय-विजय’ नामक नाटक लिखा-जो अब अप्राप्त है। उनका बड़ा नाटक ’प्रहलाद-नाटक’ गढ़वाली भाषा का दूसरा नाटक हैं। इसमें नृसिंह अवतार की कथा दी गई है। इससे सम्बन्धित तीन नाटकों का भी थपलियाल जी ने लेखन किया, ’फौजदार जी की कछड़ी’, ‘कलिजुग्यानन्द की पाठशाला’ और ‘बाबा जी की कपाल क्रिया’। वस्तुतः तीनांे नाटकांे के विषय और वस्तु क्रमशः हिरणाकश्यप के राजकाल में कानून की स्थिति पढ़ाई की स्थिति और समाज में माता पिता की स्थिति हैं। ये नाटक अनेक दशाब्दियों बाद विस्तृत भूमिकाओं के साथ आचार्य जी द्वारा पुनर्प्रकाशित किये गये। पाँखु नामक नाटिका का भी प्रकाशन किया गया ।
(2) दूसरे वर्ग में पं. तोता कृष्ण गैरोला की ’प्रेमी पथिक’ (पूर्वाद्र्व) ’सदेई’ जाग्रत स्वप्न (पं-तारा दत्त गैरोला) मलेथा की कूल (भोलादत्त देवारानी ) जैसी रचनायें आती हैं। प्रायः परिनिष्ठित खण्ड काव्य रचनायें हैं। ये पूर्णतया छन्दबद्ध रचनायें हैं।
(3) तीसरे वर्ग में कुछ आख्यान आते हैं। भोलादत्त देवरानी का ’नल-दमयन्ती’ श्री धर जमलोकी का ’रूक्मा’ बलदेव प्रसाद दीन का ’सती रमा’ जैसी रचनायें हैं। ये अधिक विस्तृत नहीं हैं।
चैथे वर्ग में राष्ट्र प्रेम और गढ़देश से सम्बन्धित रचनायंे हैं-राष्ट्र रक्षा (श्री धर जमलोकी) गढ दुर्दशा (श्री धर जमलोकी) उढ़ा गढ़वालियों ( सत्य शरण रतूडी) इसी प्रकार की रचनायें हैं। (5) पाँचवे वर्ग में अनूदित रचनायें आती हैं। इनमें सदानन्द जखमोला द्वारा किया गया ’मेघदूूत’ का अनुवाद ’रेबार’ और धर्मानन्द जमलोकी का गढ़वाली मेघदूूत आता है। (6) छठे में गढ़वाल में प्रचलित दो भड़ (पँवाडे-वीर गाथा में) आती हैं। इनमें पहला ‘सूरिज नाग’ का भड़ौ है। और दूसरा शिव नारायण सिंह बिष्ट द्वारा संकलित गढ़ सुम्याल भड़-वाती हैं। (7) सातवें अन्तिम वर्ग में -ढोल सागर संग्रह हैं। जिसमें पं भवानीदत्त धस्माना ब्रहमानन्द थपलियाल और प्रेम लाल भट्ट द्वारा ढोल-दमाऊ के बोलो पर संग्रह की गई सामग्री हैं।
इन रचनाओं के प्रकाशन की सबसे बड़ी विशेषता हैं आचार्य डबराल द्वारा इनकी विस्तृत व्याख्यापूर्ण भूमिकाओं का लेखन। जहाँ इन भूमिकाओं में सैकड़ों संदर्भ ग्रन्थ विद्यमान रहे, वही छोटी बात को भी उन्हांेने नजरअन्दाज नहीं किया हैं। अधिकांश भूूमिकाएँ तो मूल रचना के बराबर या उससे अधिक विस्तृत हैं। प्रह्लाद नाटक की पच्चीस पृष्ठों की भूमिका में लेखक ने प्रह्लाद- हिरण्यक शिशु, होलिका आदि चरित्रांे के पौराणिक से लेकर आधुनिक काल तक के संदर्भ दिये हैं। तोताकृष्ण गैरोला की रचना प्रेमी-पथिक ( पूर्वार्द्ध ) प्रायः एक सौ पृष्ठांे की है, जिसमें कोई 50 पृष्ठांे पर विद्वान सम्पादन की भूमिका है। पं तारादत्त गैरोला की भावपूर्ण रचना ’सदेई’ जाग्रत रचना 54 पृष्ठों की रचना में सम्पादक द्वारा लिखित ये भूमिकायें पुराने गढ़वाल के मानव-समाज पर तथ्य परक एवं गवेषणात्मक प्रकाश डालती हैं। लेखक रचनाकारों का परिचय, रचना की कलात्मक विशेषता पर भी विस्तृत रूप से हमारे सामने इस देवभूमि की रचनात्मक मेधा पर विस्तृत रूप में प्रकाश डालने में समर्थ हैं। इस संक्षिप्त व्याख्या के पश्चात हमें यह देखना है कि आचार्य शिवप्रसाद डबराल के इस महत्वपूर्ण कार्य का क्या महत्व हैं। इस कार्य का प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण कार्य तो अपनी लुप्त होती विरासत को बचाना कहा जायेगा। विरासत अतीत का मोह नहीं। बल्कि अतीत को समझने का प्रथम साधन हैं दुर्भाग्य से हम अभी भी अपनी धरोहर के महत्व को अधिक नही समझ पा रहे हैं। मित्रवर ताराचन्द्र त्रिपाठी जी ने बताया है कि इग्लैण्ड के किसी पुस्तकालय में इस प्रकार की कोई एक सौ कुमाउंनी-गढ़वाली रचनायें आज भी संजोकर रखी हुई हैं। यहाँ तो इनमें से अधिकांश अब लुप्तप्रायः जातियों में ही गिनी जायेंगी। उन्होंने मुझे वहाँ से लाकर प्रायः सवा सौ वर्ष पूर्ण लीलाधर जोशी वेरिस्टर द्वारा किये गये मेघदूत के सुलेखत कुमाउंनी अनुवाद की एक प्रति दी है जिसमें अंग्रेजी में विस्तृत भूमिका दी गई है। क्या हमारा यह दायित्व नहीं कि स्वदेश एवं विदेशों में पड़ी हुई अपनी धरोहर को हम खोजें और उसके प्रकाशन की व्यवस्था करें। आचार्य के जीवन का एक उजला पक्ष उनका सादगी पूर्ण ग्रामीण जीवन भी है। किसी प्रकार की वाह्य सहायता के उन्होंने पचास वर्षों तक अपने हाड़-मांस से ज्ञानग्नि को प्रज्जवलित रखा। उन्होंने न जाने कितनी खोज यात्रायें की लेखन किया और बीस हजार पृष्ठों के कार्य का प्रकाशन किया। उन्हांेने अपने और परिवार के व्यय में से एक-एक पैसा बचाकर यह कार्य किया। रिटायरमेंट के बाद सिर्फ 270/-रु की मासिक पंेशन स्वीकृत हुई थी। अपनी अन्तिम पुस्तकों को छपवाने के लिये उन्हांेने अपने मकान के छवाई के पत्थर तक बेच डाले थे। क्या आचार्य की यह साधना आज के हमारे प्रोजेक्टियों को जो अपने हगने-मूतने की क्रियाओं का भी हर्जाना वसूल करते हैं धन व समय की कमी के बहाने न बनाने के लिये उदाहरण का कार्य कर सकते हैं । डा. डबराल के अनेक ग्रन्थंों की भूमिका में एक आदमी के रूप में भारी पीड़ा उभर कर सामने आई हैं। परन्तु इन दुःख कष्टों के बीच भी वे निर्बाध रूप में अपना काम करते रहे। उन्होंने न कभी सरकारी धन की कामना की न समाज या सरकार द्वारा दिये जाने वाले सम्मान की। इसीलिये उन्हांेने अपने ग्रन्थ राहुल सांकृत्यायन, चन्द्रकँुवर बथर््वाल, श्री देवसुमन, मौलाराम, डा पीताम्बर दत्त वर्थवाल जैसी मेधाविओं को समर्पित किये हैं- तीन टके के किसी भी नेता को नहीं। हमें आचार्य प्रवर के मेधात्मक-रचनात्मक कार्य के साथ-साथ उनके ऋषितुल्य जीवन से भी-शिक्षा लेने की आवश्यकता है कि आखरों को सजोने वाला कारीगर गर्मी-शीत भूख-प्यास, निन्दा-प्रशंशा आदि से ऊपर होता है। उनका मंत्र था-’’नहि दैन्य नहि पलायनम्’’-न दीनता दिखाऊँगा, न पलायन करुँगा। क्रिया सिद्धि सत्वे भवति महतां नोपकरणे। हमारे युग में आचार्य डबराल ने यह सिद्ध कर के दिखाया।
@ नैनीताल समाचार से साभार 

सटक

 " सटक "    
-  
(गढ़वाली कविता ) 

Garhwali Poet Mr Manoj Bhatt , Born in 14/4/1974, Vill Iriya, Talla Udaypur, Post Graduate, Occupation - VDO in Yakeshwar

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जै पर छे सैरी टक्क , सटक  घूली ग्याई  !
धोल दुफरि कू सी छैलू  ,छट छोड़ी ग्याई  !!
द्वार, मवार,परिवार भार कै उंद   विसाण !
क्वाण,कुलिण  ,कूडेटू,मवारु  की   पेथण!
दूर जैकी फाकुडा छोड़ी,जन विराणु भाई !
जै पर छे सैरी टक्क....
धोल दुफरि कू सी छेलू....


खड़  आखर सी तड़ बांची ,लिखवारु  सी लेखी !
जगरी जागंरू मा ढोेोल पूजी ,देवता सी देखी !!
विज्यां आंख्यू मा,सुपिन्या छोड़ी,िढबल्यूं आंसू दयाई !!
जै पर छे सैरी टक्क....
धोल दुफरि कू सी छैलू ....


गैणों की बैंणा  सी, नी बिगयांदु ,कैथे  फिटकारु  !
दाड़े पीड़ा सी कैल  बितांदू, भौ डोोणा  घुड़चयाणु!!
बोई कुचिला ,मा दुधारी  सी फूटी, गिच्चा गफ्फा नी ग्याई !!
जै पर छे सैरी टक्क....
धोल दुफरि कू सी छैलू....

सर्वाधिकर सुरक्षित @  मनोज कुमार भट्ट  पौड़ी गढ़वाल


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सुनील भट्ट - लाटी माया

      "लाटी माया"
हमरू चौक मा ढुंगु चुलै वा,
मी देखी सट्ट लुकी जाणी चा।
तुमरी ठंगरै की काखड़ी,
हमरू सग्वड़ु मा क्या ह्यनी (ह्यरणी) चा।।
देखा त सै क्वा होली घस्यारी,
कनु भलु बाजूबंद गाणी चा,
तुमरी मरख्वल्या गौड़ी भै अब त,
हथल्यौं मेरी चाटी जाणी चा।।
माया का ढुंगौं मा रड़ागुसी ख्यलणी,
मुखड़ी मयाली भली स्वाणी चा।
पण खांदी पेंदी क्या ह्वै होलु वींतैं,
हरबि हरबि ऊंद ऊंद जाणी चा।।
तुमरै ख्वालै की स्या घुगुती,
हमरू छजा मा बैठी टपराणी चा।
खूब छन म्यरा कन्दूड़ अज्यौं त,
सान्यौं मा वा कुछ बिंगाणी चा।।
मी त सदानी कु रैग्यौं लाटु,
मेरी समझ कुछ नी आणी चा।।
हमरू चौक मा ढुंगु चुलै वा,
मीतैं देखी सट्ट लुकी जाणी चा।।
स्वरचित /**सुनील भट्ट **
30/05/17
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"गढवली इश्किया"
तेरी हथ्यौं की रस्याण वाह,
हे छोरी च्या घुटांग,
अहा टपटपी सी लैग्ये।
तेरी ब्वैन आँखी घ्वुरैनी घुर्रर्र,
जमी नी बात भै तेरी ब्वैई कै सौं,
भौतै बुरू तेरू ब्वै कु सुबौ,
क्याफणी सी भै अटपटी सी लैग्ये।।
तेरू बाबान बल त्वै कूटी छक्वै,
सूणी मेरू पापी पराण भ्वरै ऐ,
क्या कन हे ब्वै जिकुड़ी मयाली,
मीतैं कऽलकऽली सी लैग्ये।।
त्यरा द्वी भयौंन, निरभै निहुण्यौंन,
मोऽल मा लपोड़्यु मी छक्वैई
तै दिन बटैई, छी भै मितैंई
निपट्ट कतैई झड़झड़ी सी लैग्ये।।
तेरी ब्वै पंद्यरा मा छुयौं मा मिसीं छै,
झणी क्या मेरी ब्वैमा ब्वनी छै
देखी द्वीयौं मी स्चचदु रैयौं कि क्या होलु छुचौं,
ज्या बी बात ह्वै होली,
पण ह्याँ मितैं जरा खटपटी सी लैग्ये।।
त्यरा बाबाजी मीलीनी,
ब्याली ब्यखुनी द्यखिनी,
पुछणा रैनी म्यरा हाल चाल,
कै गैनी ऊ कैई सवाल
देखी ऊंकु सुबौ मेरी जिकुड़ी घौ
त्यरा भै का सौं छुची सर्र मौऽलीगे,
ज्यू भ्वरै अर छपछपी सी लैग्ये।।
बेसुध छौ मी कै दिनौं बटैई,
फिर से गौला मा आज बडुली लैग्ये,
सची छुची हे मीतैं तेरी फिर से खुद लैग्ये।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
28/05/2017
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      मेरू "दा" भैजी
वैका फिफनौं की तिड्वाल मा,
द्यखेणा छन साफ साफ
वैका दुख, वैका कष्ट,
वैकु सारू भ्वरोसु अर
वैक मेनतै रंग बी
त पहाड़ौ खातिर वैकु प्रेम अर
पहाड़ौ कष्ट बी!
मेरू "दा" (भैजी)
मितैं मिलणु अयुँ चा पहाड़ बटै,
म्यरा गौला भेंटेणु चा,
खूब खुदेणु चा, दुखेणु बी चा
भैर मा म्यरा कष्टौं देखी!!
स्वरचित/**सुनील भट्ट
09/10/16
शुभ संध्या मित्रों.....सबका भला करो भगवान्।
मेरी या गढ़वाली रचना आपकी समीणी।
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                             "तखुन्दू-यखुन्दू"
         ब्वै कु करड़ाट,
         कज्यणी कु किर्र किर्र।
         बुबा कु बरड़ाट,
         सदनी की झीक झीक....
         खिन्दैकी.......
         तखुन्दू चलिग्यूँ कुछ कमाणा कु।
         दुखों का वास्ता सुख खुज्याणा कु।।
         तखुन्दै की हवा पाणी
         फैक्ट्री मालिकै की झाड़।
         मकान मालिकै की झिड़क
         खाणी पीणा की हिरक।।
        सूणी देखी अर सै सै की
        किलसै ग्यौं मी,
        अर फिर ऐग्यों मि...अपणो का बीच
        यखुन्दै।
       यखफुन्डीऽऽ  मेनत मजूरी पर लग्यूँ छौं दिदौं
       सुखा की आस मा।
      अर अजी बी रोजगार की तलाश मा।।

              स्वरचित/**सुनील भट्ट**
              05/08/2016

संदीप रावत की कविताएं ("एक लपाग "से)

संदीप रावत की कविताएं ("एक लपाग "से)
     ----- संदीप रावत ,न्यू डांग, श्रीनगर  गढ़वाल |
( तीन गढ़वाली पुस्तक - एक लपाग, गढ़वाली भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा, लोक का बाना प्रकाशित)
                  
             (1)   कविता :  "  उलटन्त "

गंडेळों का सिंग पैना ह्वेगैनी,
जूंको का हडगा कटगड़ा ह्वेगैनी
किताळों कि बैकबून मजबूत ह्वेग्ये,
अर! मच्छरौं का टँगड़ा सीधा ह्वेगैनी |
किरम्वळा अब तड़ाक नि देंदा, डंक मन्ना छन
सरैल मा जहर कि मिसाइल छ्वडणा छन
उप्पनोंन बि तड़काणु छोड़ियाळि
तौं पर अब डी डी टी अर निआन असर नि कन्ना छन |
संगुळा अर झौड़ा बज्रबाण बण्यां छन
न्योळा अर गुरौ अब दगड्या बण्या छन
बिरौळा कि बरात मा मूसा ब्रेकडांस कन्ना छन
अर! चौंर्या स्याळ बाघ ना, शेर बण्या छन |
भौंरा -मिरासि फूलों मा जहर छ्वळणा छन
बल उल्लू दिन मा द्यखणा छन
हंस, काणा अर गरुड्या चाल हिटणा छन
घूण, अन्न $ बदला, मनखि तैं घुळणा छन |
हूंदा खांदा गौं मा घेंदुड़ा पधान बण्या छन
जूंका अब ल्वे ना, इमान चुसणा छन
बिरौळा अब खौं बाघ बणी गैनी
अर!  कुकरौं कि दौड़ मा, भ्वट्या शेर बण्या छन |
          (2) कविता : जुगराज रयां
जुगराज रयां वू मनखी
जु अपणु फजितु कैकि अब्बि बि
गौं मा मुण्ड कोचिक बैठ्यां छन
अपणा पित्र कूड़ा
अर थर्प्यां द्यबतौं मा द्यू -धुपणो कन्ना छन |
जुगराज रयां वू
औजी, धामी -जागरी
जु अब्बि बि नौबत, धुंयाल बजौणा छन
घर -गौं तैं ज्यूंदो रखणा छन |
जुगराज रयां वू
मां- बैणी
जु  अज्यूं बि कखि दूर गौं मा
थड्या, चौंफळा खेलणा छन |
जुगराज रयां वू सब्बि
जु अपणि ब्वे तैं नि छ्वड़णा छन
जु जांदरौं तैं द्यखणा छन
तब बि अपणा गौं मा छन |
       
            ----- संदीप रावत, न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
                शिक्षक, गढ़वाली लेखक/ गीतकार
                  मो0- 9720752367 

Sunday, May 28, 2017

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#बगत.....

Garhwali Poem by Virendra Juyal 

बगत छिरकुणुं च लाटा अर तू देख्दै रैग्ये।
बिंगण नि चाणु छै किलै बोल त्वै क्या ह्वैग्ये।।
बगत एक बाटु चा
जैमा हम हिटदा बि छो अर रिटदा बि छो।
बगत एक चिट्ठी चा
जैथै हम ल्यख्दा बि छो अर पढदा बि छो।।
बगत एक मुसु चा
जो खैंडि बि जांद अर चंग्वोरि बि जांद।
बगत एक बसग्याल चा
जैमा सुख क छोया बि फुटदि
अर दुख क ब्वगण बि आंद।।
बगत एक सूड बथौं च जो कुंगला डालौं थै लटकै जांद।
बगत सब्युंक दगुडु करंद Juyal  पर लौटिक कब्बि नि आंद।।
-

दिनांक-22-05-17.

हमरी आस - Garhwali Poetry by Sunil Maindola

Garhwali Poetry by Sunil Maindola 
-

त्वेकुु माया जोडियाल
अर पंखुडी-पुच्छडि बि
लगी गेनी त्वेफर
अब त फुरर उडी जैलु तू
म्यारू लाटा दूर परदेस तू
बणैलि एक नै घोल
बसैलि अपणी छ्वटी सि दुन्या
तु बिअास लेकि
फेर कु पुछद ब्वे- बुबा थै
कु द्यखद पुरण कूडि थै
जैका डिंडयल ,चौक फुण्ड
खितगुणू  हैंसणो रैन्द छै बचपन
यांकु दोष त्यारू बि नीच
इन त  जुग-जुग बिटै
चलणी रीति च
पर,
इतगा त याद रखी
हमरी साँखी छै तू
हमरी अाँखी छै तू
हौर
हमरी जिकुडी काख माया छै तू !
तन कि दूरी भले  जै
पर मन कि दूरी न हूण  दे  तू
याद रखी आज जन तू
अपुण भविष्य बणाणि छै
हमरू बि उनि भविष्य छै तू
बुरा दिनों  कि लाचारी म
हमरी एक आस छै तू
एक सांस छै तू
हमरू मन म हुंयूं च घंघतोल
त्वे कनक्वे बिंगौंला
अपणि मन कि बात
यो माया को पहिय्यां
कतगा तेज घुमणो यल्यूं च
ब्यटा रे ,
भोल जब तू चलि जैलु
अपणि नौकरी फर परदेस
तब हमन
घुघती सी खुदेणू रैण दिन-रात
टपराणी रैलि मयलि आँखी
तेरी सकल-सूरत द्यखण को !
ब्यटा,
जौंकि सच्ची सरधा रैद
अपणा ब्वे-बाबु खुणै
वूंकि अौलाद झुल्दा-फुल्दा हून्द
जा म्यारू लाटा
अपणि नौकरी फर
पर,
ज्वानि कि उमंग मा
भूली न जै हमुथै
अरे एक दिन त्वेन बि
हमुमैं त अाण !!

(सुनील दत्त मैंन्दोला )
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 गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; पौड़ी  गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; चमोली  गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; रुद्रप्रयाग  गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ;  टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; उत्तरकाशी गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; देहरादून   गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ;  हरिद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; 

Poems by Dharmendra Negi

१:
मेरा अपणा 
हैंकै भकळौणी मा
हुयाँ बिरणा
:२:
स्वीणा दिखैकी
वोट लीगेनि नेता
दुन्या ठगैकी
:३:
बसन्त ऐगे
खुद मा चखुलौं की
डाळि खुदेणी
:४:
यकुलांस मा
दणमण कै रून्दा
दाना ब्वे बाबु
:५:
मरेणी छन
ब्वे की कोखि मा नौनी
नौनौs खातिर
:६:
ब्वे बबड़ाणी
कनुकै बिसिरि जौं
सैंती डाळ्यूं तैं
:७:
बुबा जी ब्वना
जबतैं ज्यून्दु छौं मी
निभाणी रिश्ता
:८:
स्वाळा अरसा
हैरि गैनि विचरा
लड्डू दगड़
:९:
खाजा बुखणा
बडुळि लगौन्दन
स्वीणों मा अन्दी
:९:
कुटुळु फौड़ा
हैंसि छन उडौणा
पेन पेन्सलै
:१०:
कुरी पौंछिगे
चुलखान्दम तक
निरजी राज
:११:
गौं हुयाँ खाली
सरकार ब्वलणी
स्कुल्या ल्याओ
:१२:
किरम्वला छी
निगता मनख्यों कि
हैंसि उडौणा
सर्वाधिक सुरक्षित -:
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ
============
नि कैर आळि जाळि भुलू
निथर खैलि गाळि भुलू
बिरूट हुयांन स्वारा भै बि
य कैन घात घाळि भुलू
औंगरण दे नि छिनार यींतै
मनख्यातै कुगळि डाळि भुलू
द्यू - धुपणुं कैर सुबाटु बथैलि
व देवी झालि मालि भुलू
नि कैर तु वूं निख्वर्यूं को दगड़ु
जु कटदन ज्यूड़ा द्वी पाळि भुलू
लंगा फंगौं मा कतै नि पोड़ि
अबि उमर छ तेरी बाळि भुलू
दुन्या जणद नि बजदि 'खुदेड़'
एक हथन कबि ताळि भुलू
सर्वाधिकार सुरक्षित :-
धर्मेन्द्र नेगी
ग्राम चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ

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 गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; पौड़ी  गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; चमोली  गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; रुद्रप्रयाग  गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ;  टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; उत्तरकाशी गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; देहरादून   गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ;  हरिद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड ,हिमालय से गढ़वाली कविताएं , गीत ; 

म्यारा ब्वै-बब्बा

Garhwali Poem by Payash Pokhara 
-
******

रिटैर सि सिपै-चौकीदार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ।
खंद्वर्या कूड़ियूं का पैरादार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

पिनसिनी कि फसल-पात हुणीं च
मैना का मैना ।
लैंणा, कटेणां कु तैयार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

लैगी, बरमूडा, कैप्रि, जीन्स का जमना 
मा घुमुणुं छौं ।
दरदरा पट्टदार सुलार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

ब्वै का मुर्खला बब्बा की मुरखी बेचिं 
दीं मिल वै दिन ।
जै दिन बटैकि बिमार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

जाण न पछ्याण क्वी सारु दिदंरु 
भि नि राइ युंकू ।
द्वि अदम्यु कु परिवार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

नौना-बाळौ दगड़ हैंसि-खेलि मा 
सदनि रंगमत्या रौं ।
दुख-दैनि का असगार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

क्य कन, बूढ़-बुढ्यौं कु पापी पराण 
भि त नि मनदू ॥ 
अपणै छ्वारौं कु छुछकार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

रोज-रोज गेड़ मारि-मारिक गंठेणु 
च दानू सरैल ।
खटुला का सड़यूं निवार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

नाति-नतणों कु ळाळ चटणा कु ज्यू ब्वळ्द आज भि ।
दुदिबाळा कु बुखार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

हां, ह्वालु सोरग ब्वै-बाबुका खुटौं मा "पयाश" पर ।
एक लपाग कु लाचार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

@पयाश पोखड़ा ।


-



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Chitga by Satish Rawat

---248---
आज धार मा जून नि आई
रात हौर अंध्यरि ह्वे ग्याई
दानि आँख्यूँ नऽ दगड़ु नि पाई
Copyright © सतीश रावत
15/05/2017

"गढ़वाली बिरह गजल"

स्वील घाम,,,
-
by-देवेश आदमी

---------------------------------------
आज फ़िर यु ब्यखुनि कु   स्वील घाम रुवांसु कै गे मेरु पराण,,,
झणि कनख्वे छबलाट कैकि ये गे फिर सयुं  स्वील घाम कु पितळण्य मुखड़ी,,,

कुछ पराण मेरु रुवांसु च जरा सि ब्यखुनि कु यकुलांस चा,,,
सुनपट ह्वै गे गॉँव का ख्वाला जैगुणा म्यार डिंडोली म लुक्का छुरी छन ख्यणा,,,

उद्द्गार छन जिकुड़ी म लगी आस कभि बौडी आला तेँ मुलुक बैठ,,,
राजि रख्याँ बूण घार उच्यणु गड़ी देवी कु न्यूतु करूल नृसिंघ कु,,,

लाटा त्वे बिगर नव्ला कु पंदौल सि ह्वै य बर्षोंणय आँखि मेरी,,,
खुटयों का कांडा त सब दयख्ला पर जिकुड़ी का छाला त्वे दिखादु,,,

झणि किलै आज नखुर लगणु त्वे बिगर या चुल भितर भभरई आग,,,
टोखिण सि लगणु ज्वान छोरों की य बांसुरी कि सुलगणि,,,

जओठ म दयू जलोनु म मेरु गैति आज झर किलै कनी चा,,,
पलतीर टवाला उठि गेन खबेसों क कैकु अई होल आज तार,,,

चलि गे स्वील घाम अब त चखुला भि अपुड़ा घोल म निंदले गे होला,,,
पर बिचरु मेरु हिलांस सि पराण अगास कखि डब्केनु किलै चा,,,
--------------------------------------
कुंगली ह्वै गे जिकुड़ी.....!!
देवेश आदमी

चार चकड़ैत (कविता में कहावतों का सुंदर प्रयोग )

Uses of Proverbs, Sayings, Idioms in Garhwali Poems 
-
-
:बालकृष्ण बहुखण्डी 

-

पूजिक त्वेथैं भ्यटणू छौं मि ,
     अक्वे  जामाफर आदी !
          कना कना त्यारा दादा प्वड्यां छीं ,
                धार पोर त जादी ।।

अन्धों म तू कांणु बण्यूं छै ,
     हमसबकू सरदार !
         लतु का द्यवता बतु से नि मनदा ,
               त्वे नि सुहांदू प्यार । ।

काम न काजकु दुश्मन नाजकु,
    किलै मि त्वेथै  सुमुरू !
         ना दूधा ना मूता कामा ,
             बखऱा गाल़ा लुमरू ।।

 ऐनसैन तुम लगणा छव जन , 
    पढ्य़ाई लिख़ाई  बल जाट ! 
         काल़ू आखर भैंस जनू अर ,
             सोल़ा दूनी आट  ।।

बालकृष्ण बहुखण्डी 

डा सतीश कालेश्वरी की समाचार युक्त गढ़वाली प्रयोगशील कविताएं

.इकचालिसौं बुलेटिन ....
By Dr. Satish Kaleshwari 
==
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं,सिलसिला अबि ज़ारी चा।
// गुलदस्ता,माऽऴौं की,
लांघिकी बाड़-क्येर।
ऐगे हम्अरु राजा भी,
दैल-फैलुं बटि भैर।
राजतिलक रस्म निपटै, सेवा की तैयारी चा।
सुण्दा रावा....
// 'हरदा' आंख्युं पट्टी बांधि,
ख्यनु राई गुछ्छी ख्येल।
'दिवऽळु निकलि 'होरी' मा,
तबि पड़ि जिकुड़ी स्येळ।
हैंका खुणि खोद्यां खडोल़ौं, अफि ही लमड्यारी चा।
सुण्दा रावा....
// मंदिर मस्जिदमा पैलि,
ऐे छौ कोर्ट फैसला।
बड़ु जज अब बुनू च,
अफी कारा सौ-सला।
मध्यस्था कैरी द्यूंला, मसला यो अंगारी चा।
सुण्दा रावा....
// ई वी एम मा दूण भरी,
युवा भोट योगी प्वड़ीं।
एंटी रोमियो इसक्वैडला,
भोट् दिंदारौं घुंडा फ्वड़ीं।
अफसरूं खुस कनौं बणि, पुलिस अत्याचारी चा।
सुण्दा रावा....
// कतलखाना बंद हूणा,
भुज्जी दाळ सभि खावा।
नौनवेज् छ्वीयुं जगा,
गोरखपंथी गीत गावा।
फैसन मा औण वळी, धोति अर सुलारी चा।
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं,सिलसिला अबि ज़ारी चा।
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★
डॉ.सतीश कालेश्वरी।
30.03.2017
===========================
....बयालिसौं बुलेटिन ....
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
// गळ्ज-बळ्ज सब्बि धांणी,
कख्वै सुरू कर ल्या भुलौ।
ज्येल की कोठड़्यु प्येट,
कै-कै जि धर ल्या भुलौ।
टैम बिकाऽस खुण दियुं, अंक्वै ख्यलण पारी चा।
सुण्दा रावा..
// कांग्रेसियुंला जन दिलै,
यू.के, यू.पी मा बिजै।
गुजरात कर्नाटक उनि,
बघेल, कृष्णा खुजै।
म्वरियुं हाथि सवा लाखौ, इलै सेंधमारी चा।
सुण्दा रावा....
// नोटबंदी, मांसबंदी,
अपार सफलता बाद।
औणि नशाबंदी फिल्म,
घर-घर कनौ आबाद।
एक हौर 'बंदी' खबर,जरा-जरा सुण्यारी चा।
सुण्दा रावा....
// पांच सौ मा शेम्पु मुल्ये,
परफ्यूम हजारा कू।
औन लैन जींस मंगै,
टौप बिग बजारा कू।
यूप्या छुवारा छय्डणा नीन,शौपिंग बेकारी चा।
सुण्दा रावा......
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★
डॉ.सतीश कालेश्वरी।
06.04.2017
==============
...तैंतालिसौं बुलेटिन ....
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
// उप चुनावुं मा द बै,
हरबि उन्नी जलवा रै।
'आप' थैं मिली नि पाणि
बीजेपी छक्वै हलवा खै।
कांग्रेसा पत्तळ मा सिरफ, चटऽणि सि चटकारी चा।
सुण्दा रावा....
// दारु उत्तराखंड कू भाग,
वा भै वाऽ, वा भै वाऽ।
नै बोतळ पुरऽणि सराब,
वा भै वाऽ, वा भै वाऽ ।
डैनिसै हंत्या नचौणि, इखारी-इखारी चा।
सुण्दा रावा....
// सुकामों खुण दियां बाटौं,
शूल-कांडा घेंट यळिं।
राष्ट्र मार्गौं नौं बदलि,
जिला मारग कैरयळिं।
ठग्युं सि मैसूस कनि, यखै ब्येटि, ब्वारी चा।
सुण्दा रावा.....
// गलति ला आंटी बि घूरी,
पड़ऽलि चट्येळि की मार।
पलायनै रस्ता लगऽगिं,
यूपी का छुवारौं की 'डार'।
आंख्युँकि इनर्जि सुट्ट, मनमा बेकरारी चा। सुण्दा रावा.....
// चुनाव आयोग परैं,
लगणि छीं आरोपों झड़ी।
विरोध्यों हराणा खुणि
चुनौ ईवीएमन् लड़ी।
जीत की प्रोग्रामिंग बल, सात-समंदर पारी चा।
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★
डॉ.सतीश कालेश्वरी।
13.04.2017
===================
....चौवालिसौं बुलेटिन ....
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
// जोशी ज्यु, अडवाणी खुण,
'बुरा दिनुं' खुलि रस्ता।
राष्ट्रपति पद त ग्याई,
कोर्ट- कछेड़ि बंधि बस्ता
साजिश बल सी.बी.आई.,आरोप कटियारी चा।
सुण्दा रावा.....
// धड़ा-धड़ फैसलुंन्,
बजगि सब्युं घंऽटी।
और सी.एम., टेस्ट मैच,
यूप्यौ ट्वंटी-ट्वंटी।
छक्का ताळी बजाणन, अठ्ठौं गोळाबारी चा।
सुण्दा रावा.......
// पींदा पकड़्या, उत्तराखंड त्,
दरोळ्यौं समझा ह्वे कुहाऽल।
हैरी-कंडाळि सिंगार ला,
होलु पिंगळु पिछवड़ु लाऽल।
काऽम-काऽज छोड़ि नारी, कनी फौजदारी चा।
सुण्दा रावा.......
// फांसी खुण अडाऽयुं वखऽ,
कुलभूषण जाऽधव।
हमऽरि प्रतिक्रिया यखऽ
जपा हरी माऽधव।
भुजा त् बळकणि पर, साह्सु फौंकाऽरी चा।
सुण्दा रावा.....
// दस हजार किलो बम,
अफगानिस्तान फूटी।
आई.एस.अर तालिबानै,
खडोळुंद कमर टूटी।
ट्रम्प की भाषणूँ जगा, नीति हथियारी चा।
सुण्दा रावा.......
// पर्सनल ला बोर्ड,
मसला तीन तलाक।
बौंळौं मा फुंजणू अपड़ि
बग्दि सिंपोड़्या नाऽक।
बिन सोचि तलाक देण वळौं बहिष्कारी चा।
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★
डॉ.सतीश कालेश्वरी।
20.04.2017
=================
....पैंतालिसौं बुलेटिन.....
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
// कांग्रेसौ भरम टुटी,
दिल्ली फिर बीजेप्या ह्वाई।
बिधान सभा जीत भि,
'आप' का काम नी आई।
'आप' छुव्डन पड़लि दिल्ली, भाजपा ललकारी चा।
सुण्दा रावा...
// आदेश ला हाई कोर्टा का,
कखि खुसि कखि गम।
विकास नगरै विधान सभा,
सील ह्वेगीं ई वी एम।
सांच कु बल आंच क्या, झूट छुरी-कटारी चा।
सुण्दा रावा....
// सुकमा काळकुंड बण्युँ,
हरबि-हरबि ज्वानुं मौत।
नक्सलियुँ चाल समणि,
सी.आर.पी.एफ, हुईं फौत।
जिकर ईं बिपदा मा भि, चुनौ जीत हारी चा।
सुण्दा रावा...
// वेदांति स्वामी जी बुना,
मस्जिद त् तोड़ी मिन।
अडवाणि जी दगड़ि बाऽरा,
आरोपी निर्दोस छिन।
ऊंथैं बख्शा, यो स्वामी , सजा कू हकदारी चा।
सुण्दा। रावा.....
// ह्वै छा पोर दिल्ली मा
एक जुट, एकमुट।
एम सी डी चुनौ मा फेर
सम्मान हमारु लुट ।
इदगा लोखुम, सात सीट पाड़ियुं हिस्सेदारी चा।
सुण्दा रावा ख़ास ख़बरौं, सिलसिला अबि ज़ारी चा।
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
डॉ.सतीश कालेश्वरी।
27.04.2017
==========
...छयालिसौं बुलेटिन.....
सुण्दा रावा खास खबरौं, सिलसिला अबि जारी चा…..
// केदाऽरनाथै खुट्टियुं मा,
मोदी जी न् मुंड धैर्याळि।
देब-भूमि द्यवतौं कृपा,
सदऽनि इनि बणि राऽळि।
हर-हर मोदी छोड़ि बस, जपण शिब-ओंकारी चा।
सुण्दा रावा.....
// सैनिकों सरेल दगड़ि,
फिर व्ई बर्बरता ख्येल ।
क्या म्वर्यां बिरोध्यौं डलीं
सरकाऽर नकुड़ी नकेल?
भितर ठिक च, भैर जितणौ हौसला मुर्दारी चा।
सुण्दा रावा.....
// टुटिं कूढ़ी क्वळण पिछनै,
कुकुर स्याळ गप्प हंक्णा।
राज का पैसों की रीढ़,
भूमि, खनन, दारू-चख्णा।
राज थैं चलाऽण दगड़ि, कर्जै देनदारी चा।
सुण्दा रावा....
// दिल्ली मा अमानतउल्ला,
कुमाऽर बिस्वासै लड़ै।
'आप' थैं रगरियाट् हुयुं
कनुकै करऽला दगुड़ छुड़ै।
एक दोसी एक राजस्थाऽन को प्रभारी चा।
सुण्दा रावा....।
// स.पा. प्रजापति पर,
केस चनु रेप कू।
बीजेपी सांसद फंस्ये त्,
किस्सा हनीट्रेप कू ।
नसा कैकि जाण बूझी, गणिका की यारी चा।
सुण्दा रावा खास खबरौं, सिलसिला अबि जारी चा…..
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★

डॉ.सतीश कालेश्वरी।
4.05.2017
=======================
सैतालिसौं बुलेटिन.....47
सुण्दा रावा खास खबरौं, सिलसिला अबि जारी चा…..
// द्वी करोड़ मा बलाऽ,
बिकी भुला किजरीवाल।
करुड़ जोग कू अडऽयुँ,
वळ्या पळ्या द्वीयुँ ख्वाळ।
बिरोधि भ्रष्टाचारौ बण्युं, नेक भ्रष्टाचारी चा।
सुण्दा रावा.....
// दिल्ली बिधान सभा मा,
डेमो ई.वी.एम्म. को।
एक कोड कुच्याण से,
नसा हुसकी रम्म को।
तर-पर, तर-पर कमल मा, भोटुँ की पणधारी चा।
सुण्दा रावा.....
// बीडियो वायरल हुयुं,
मियां देणु तीन तलाक्
बीबी ल्हीणी योगी नौं त्
मियां बुनु मजाक-मजाक्।
ब्येटी-ब्वारियुँ छैला बण्युँ, योगी ब्रह्मचारी चा।
सुण्दा रावा.....
// चुनौ आऽयोग ऐलाऽन,
मिटिंग होलि मई बाऽरा।
आवा तीन मैना बाऽद,
मसीन गळ्त सिद्ध काऽरा।
नि ह्वे जु साबित अगर, साऽमत तुमाऽरी चा…..
सुण्दा रावा....
// राजनीति दाँव पेंचौं,
सब्युँकू सच्च जण्युँ।
माहिशमति सत्ता कू,
मीडिया कटप्पा बण्युं ।
बाहुबलि मौत पिछनै, क्वी त् षडयंत्रकारी चा…..
सुण्दा रावा खास खबरौं, सिलसिला अबि जारी चा…..
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★★★★★★★★★★★★★★
★★
डॉ.सतीश कालेश्वरी।
11.05.2017


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रमेश हितैषी की गढ़वाली -कुमाउँनी कविताएं

रमेश हितैषी
मोबाईल
मोबाईल क्रांति.
सब सुख शांति.
अफु अफु में सब मस्त छैं.
कैक पास लै टैम नहाति.
मोबाइल देखो भांति भांति.
इच्छाओं की नि छा अनंत ना आदि.
आंगुइ आंखी तंग परेशान छैं.
पर पुर डिमाक में पड़ि रै शांति.
ठडिणकि ताकत बिल्कुल निच.
सभ्यता बटोई बै ल्याणी कां बटि.
रग बग नज़र कसि हैरै.
मोबाइल बनि रौ जीवन साथी.
हे राम यो कसि क्रांति.


हम



-
हम अगर जल, जंगल, जमीन की बात कना छंवा त क्या बुरु कन छंवा
जब य जल, जंगल, जमीन सुरक्षित नि रैली त, हम कुछ कैरिक क्या जाताणा छंवा।
यदि फेस बुक टाइम पास करणकि साईट च, त हम यो भलु नि कना छों ।
कथैं भोल यो पछतावा नि ह्वा कि, कुछ करण टैम मा हम ख़ाली बक्त गवाणा रों।
अपणि जमीन माँ लोग चौकीदार बनिगी, भैर वालू थैं ऐथर बडाणा छों.
अजी बी जन चेतना नि त बताओ हम क्या करना छों
-- 
 
भाषा​
-
​बुल्हाओ भै बैणियों भाषा अपणी.
ऐन्छा तुमुकैं सिखाओ कैकणी।
अब हमुल कमर कसणी​.
भाषा अपणी छूटण नि दिणी। ​
अपणी भाषा बुल्हांनै रौला.
जड़ु से अपणी जुड़ी रहला।
भाषा सिखण सिखणंम सरम नि कणी.
अघिन पीढ़ी कैं जरूरै सिखाणी​.​
=
अपणि भाषा (हमरि भाषा)
=
इजा हैबै जो बुलाणु सीखो ,उछा हमरि दूद बोली।
गढ़वाली कुमई अर भोटिया, य छा जगों अपनी बोली।
जो सबै जगु जो बुलई जै, उ हिंदी हैगे मात्री भाषा।
12 साल बाटि आस लागि रै, कभणि बनली उत्तराखंड की अपणि भाषा।
को बुलां अपणि गों की बोली, वेतिकी पछ्याण हरैणी छा।
कुमै गढ़वाली सुणिनि नि में, हिंदी कम अंग्रेजी जादा छा .
पर क्या कनु गों हमर, देखने देखने खालि हमें।
एक दिन गौर कुल बल हम, यसु हमुहै नेता कमें।
टिहरी जौनसारी अर दान्पुरिया, अल्मोड़ा कि कथै सुणिनि ना।
दोसान्दकि त बात नि करो, अपनि बोली बुलानैं ना।
जब ख़तम है जाली बोलि हमरि, कसिक हमरी भाषा बनलि.
बिन भाषा साहित्य नि हूनू ,हमरी क्या पछयांण रहैलि।
रंगा रंग नाच गहाण, उ कें अपणि संस्कृति बतानि। .
नाची, गै बै नि बचली सभ्यता, पड़ी लिखी ले मुर्ख है जानी। .
घर, गों, मुल्क छ्वाड ,अब त देश लै छोड़ मई।
बोली क़्वे नि बुलानु अपणि , क्या पत लोग कति जा मई।
जब पहाड़ में रहिल लोग, तब त बोलिल पहाड़ी उ।
जब रोजी रोटिके ठिकाणु निछा, कै कै यो जिम्मेदारी दियूं।
पहाड़ छोड्याकु प्रताप छा यौ , तबत हम अंग्रेज हैगोयु।
जनता नेता सब शहरी हैगी, हम जस लिख्वार पहाड़ा का चिन्तक हैगोयु। .
हम जस लिख्वार पहाड़ा का चिन्तक हैगोयु .........................................
हम जस लिख्वार पहाड़ा का चिन्तक हैगोयु ...
==
मीथैं बचावा
=
मीथैं बचावा मिली जुलिक सब,
नागू गात दिखेणु चा.
तुम सब सैत्या पाल्या म्यारा झणि,
तुमथैं किलै नि दिखेणु चा.
 क़्वी म्यरा छाती को ल्वे च पीणु,
क़्वी ल्वे पेकी धक्याणु चा.
क्या हुणु यु कब तक ह्वालु,
समझण मा कुछ नी आणु चा
=
पहाड़ी.
-
दिल्ली की शान अर कपाळ पहाड़ी. 
हर कॉलोनी में बेसुमार पहाड़ी.
गिणती का लाखों मा छन बल,
पर निगलळंदा देखिंद खुतिड़ा अर बाड़ी.
मेहनत करण मां सबसे अगाड़ी,
फैदा लींदा सबसे पिछाड़ी.
=
तीस लाख
=
उत्तराखण्डी हौय हम दिल्ली कि सान,
कै हैबै काम नि छों खैगो हमुकै यौ अभिमान.
तीस लाख छो बस गिणती गिणति छा,
ईमानदार सिध साद, बस ई तमका इ मैडल यौई मान.
 मुख समणी हमरि तारीफ है जैं,
पुठ पछिन क्वे नि कुनु हमरू ध्यान.
पोरों उनुल कौ तुम हमर छा भैक सामान,
आज कसिक होयुं हम आई मेहमान.
दिल्ली चमकाणी पहाड़ी इंसान,
हमेशा कौय हमरु झूठौ गुणगान.
बचाओ भै बन्दों अपणु मान सम्मान,
बिन मान मिली हूँ क्ये लै भीख सामान.
आपणो लिजी मिली बै लड़ाओ ज्यान,
बिल्कुल नि कणु अब औरोँ हणि काम.
आजि छा बघत न होवो सुनसान,
बकरक चार खुट में पांच न बनो पधान.
 अपण पहाड़कि अस्मिता लिजी,
हण पड़लू हमुकैं एकजुट एक ज्यान.
=
सुभ चिंतक छों​
-
-
उतरैणी पंचमी शिवरात मुबारक.
अमुसी रात छिलुक जागणी छों. 
 चालीस साल हैगी उत्तराखंड छोड़ी.
आजी लै उत्तराखण्डक सुभ चिंतक छों.
पलायन कि मार झेलणी छों.
एक मुठी में रहैणी छों.
एक जुट एक मुट है गोयू.
हम एकतकि मिसाल छों
सहीदो कैं न्याय दिवाणू.
हम उनर कर्जदार छों.
अपणी बोली भाषा कि बात कुल.
हम उत्तराखण्डकि पछ्याण छों.
मसक सारणी छों कमर बांधनी छों.
कैक बखाणंम अणी नि छों ,
अपण हक़ हकूबक लिजी.
अपणी ज्यान दीणी लै छों.
सबुक मान सम्मान कबै.
अतिथि देवो भव रीत निभणी छों.
अपणा नन तिन घर छोड़ी बै.
दुहरुक मौज कराणी छों,

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तिन तिन जोड़ी बै किलै तू पंछी.
लि छैं तू घोळ बनाइ.
 चार दीना की जरवत तेरी.
किलै करछै खाल खिंचाई.
रे पंछी किलै करछै खाल खिंचाई
पल पल छीन छिन सोच बनौ छै.
बुण छै अफी जिबाई
रे .पन्छी बुण छै अफी जिबाई
==
पुर्नजन्म
-
हुंदु च बल पुर्नजन्म.
हे बिधाता मि इथगा बोलमु 
त एक बार वी घर मा हो,
जख ये जूनि मा जन्मु.
वी ईजा बुबा हों, वी गों गुठ्यार और अपडुकु प्यार.
कर्ज चुकाण वी माटिकु.
जख मि छोड़ी क ऐग्यों.
वी गोरु बखरा और बल्दुकि जोड़ी.
जौंल मिथैं जोळ माँ खैंचि सवारि करै.
वी गदना धारा नावला देखूं,जख रूड़ी ह्यूंद भैसू थै पाणी पिवै
वी डाँड़ी कांठ्यों माँ घुमु.
जख मेळु किल्मोड़ा घिन्गोरु और भमोरा खै.
एक दौ पुरी जूनी वखि रौं.
जैं देव भूमि मा म्यरा पुर्वज और भगवान दगड़ी रैं
=
Copyright @रमेश हितैषी 

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हिमालयी गिद्ध

Himalayan Griffon ( Himalayan Giddh) (Gyps himalayensis )
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 गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -13

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya -----13 ) 
-
आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.  
115 से 125 सेंटीमीटर का यह पक्षी हिमालय का सबसे बड़ा पक्षी माना जाता है जो सर्वत्र पाया जाता है। पंख व शरीर चमड़ा कम पीले रंग के होते हैं। परिपक्व गिद्ध का सर भी बदरंगी पीला होता है किन्तु बच्चों का रंग सफेद होता है। टांगें गुलाबी होती हैं जबकि पंजे गहरे काळा।  गिद्ध ऊँची चोटियों में घोसले बनाते हैं। जनवरी मे प्रजनन का समय होता है। 

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सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक 



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कृष्ण कुमार ममगांई के गढ़वाली दोहे

मीलदू नीचा स्वर्ग कभी 
 बिना अफु खुदहि म्वर्यां । 
 स्वर्ग पांणुंकू म्वरन की 
 कोशिस कभि नि कर्यां ॥ (२०४)
 .
बाकी फिर कभी अगले अंक में ........
.
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की }

गढ़वाली कै पणि बोल , कहावतें

अतुल गुसाईं जाखी द्वारा संग्रहित 
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=
A collection of Garhwali Sayings, Idioms, Proverbs 
Collected by Atul Gusain 'Jakhi'

  1. जाण न पछ्याण मि त्येरु मैमान। 
  2. दुति एक सरग मा थेकळी लगान्दी हैकि उदाड़ी लांदी। 
  3. मुंडा मकै फवाक। 
  4. अग्ने कि जगि मुछळी पैथरि आंदी।  
  5. जन रमाळ च गौड़ी तन दुधाळ बी होंदी।  
  6. लताड़ च पर दुधाळ खूब च। 
  7. माछा नि खांदू पर मछ्वेण खूब खांदू । 
  8. जोगी भागी हँगणि बटि। 
  9. कजेणयूं देख्यूं बाघ अर मर्दों देख्यूं घास पर बिस्वास नि कन। 
  10. सरि ढेबरि मुंडी मांडी पुछ्ड़े दां नार्ट कराट। 
  11. सुबेरो खायूं बाबो ब्यो कयूं हमेसा काम आन्दू। 
  12. आन्ख्यूं मा खोड़ सी चूबणू
  13. जूटू खाण बल मिठा लोभ। 
  14. ब्वरियूँ सगोर देखी भट भुजण बटि। 
  15. बुग्लो बाघ बताण। 
  16. कितुलू मोरी गुरों कि सौर कैकी। 
  17. हँगदारू नि पकड़े जग्दरू पकड़े। 
  18. देर च पर अंधेर नी। 
  19. कित्लू कैर बल गुरों कि सौर तकणे- तकणे कि मौर। 
  20. जन बुतली तन कटली। 
  21. भलि होंदी त बल ..... नि खांदी। 
  22. दोण नि सक्दू सोला पथा खूब सक्दू। 
  23. हड्गू बल गोळा फंस्यु रसी सान होणि। 
  24. हग्दी दां गीत लागाण। 
  25. चिबलठा घोळ मा हाथ लागाण। 
  26. घाट घाटो पाणी पियूं।                                                                                                                                                  
  27. उकाळ चौड़ी सरबट। 
  28. गुरू गुड़ रैगि चेला सकर व्हेगी। 
  29. घुट्दू छौ त गौळ फुकेंदू, थुक्दू छौ त दूध खातेंदू। 
  30. सेंट्लों की पंचेत। 
  31. बुढ़ेंदू बिग्वूचेणू 
  32. कख मैणू धोळी कख माछा मोरिन। 
  33. बाबे हथै रोटि। 
  34. आँगुळी उंद नि मूत। 
  35. जैकू भात नि खाण, विकू गीत क्या गाण। 
  36. निप्न्दों सिमळो द्वार
  37. सूत से पूत प्यारो।      
  38. सी नरणि। गुरो                                                   
  39. अण भूट्यां खयान
  40. बोली बात बीती रात दुबरा नि आन्द। 
  41. ग्यूं दगड़ी घुण बी पिसेंदन। 
  42. गैणा गणोंलू, माछा मरोलू। 
  43. पाळए सेखि घाम आण तके, पौणे सेखि भात खाण तैके। 
  44. हागि नि जाणि फुंजी खूब जाणि। 
  45. पैंसा न पल्ला द्वि ब्यौ क्ला। 
  46. बिज्या आन्ख्यूं का सुप्न्या। 
  47. सिंगू तेल लग्यूं । 
  48. जिकुड़ी मा डांग। 
  49. जबरि तचि नि तबरि तिडग्या।  ↳↳
  50. बल्द बल्द बल कख जणि छै, बल हौळ, बल बोड़ बोड़ कख जाणि छै हौळ हौळ (श्यामकू वक्त) बल्द-बल्द कख बटि आणी छै- बल हौळ-हौळ, बल बोड़-बोड़ कख बटि आणि छै बल हौळss । 
  51. स्वीली पीड़ा बल कि दै पीड़ा। 
  52. स्वीली पीड़ा दै ही जाण। 
  53. नाक फुंजणो सुख व्हेग्या। 
  54. दूरा ढोल सुहावना लग्द्न। 
  55. अढाई पढाई पाठ, सोळा दुनी आठ। 
  56. लेंडी भाभरेकी आण। 
  57. मूसा जी हौळ लग्दू त बल्द क्यांकू रखदा। 
  58. लोवा हि लोव, इखि खोळा। 
  59. बल हे अंधा त्वे क्या चहेंदा, बल द्वी आँखा।       
  60. गंगा जी का जौ। 
  61. बिंडी बिरोवो माँ मुसा नि मोरदा। 
  62. गरीबे सौह सभ्यू कि बौ। 
  63. रौतू कु डांगू मोरी बल अपड़ी खुस्युन। 
  64. लंका टंका। 
  65. जख स्यूण नि घुसे वुख सबलु घूसेणू । 
  66. गौदाने सी बाछी। 
  67. अट्वाड़ो सी बागी। 
  68. जैकी छाई डौर, ऊ निच घौर। 
  69. आन्ख्यूंमा गरुड रिटला। 
  70. डांगू मोरी बल उज्यडा सारा। 
  71. ब्व़े नि जी दगड़ा आण त बिग्वेण क्यांकू तै। 
  72. काटी तै खून न। 
  73. कुटी कटी घाण मा सासू रगरैयन्दि। 
  74. बबै बन्दुक च पर घार च।          
  75. निगुस्यों का गोरू उज्याड़ जन्दन। 
  76. रात गै बात गै। 
  77. लाटे सार लाटु हि जाण। 
  78. घौ मा लोण लगाण। 
  79. पट्टी पढाण। 
  80. पीठ पर हाथ रख्ण। 
  81. डांगमा दुब्लू जमाण। 
  82. आँखा फाड़ी देख्ण। 
  83. मनख्यूं कि बाढ़ बल भलि।                                              
  84. जबरि छा लोंडा लोफ्डा, वुबरि नि गया चोपडा। 
  85. जख नाक बल ऊख सोनू न, जख सोनू ऊख नाक न। 
  86. जवनि मा नि देखि देश बुढेन्दा खाबेस। 
  87. जुवों कि डौरन घघरू हि छोड देण। 
  88. लगि आग पाणिन बुझी, पर पाणी आग क्यां बुझी। 
  89. सागरों पाणी सागर समान्दू। 
  90. जोगी बल अपड़ी कामेळी मा खुस। 
  91. आजा जोगी काळ सिद्ध। 
  92. नौ अँगुळी चन्दन, दस अँगुळी अंगोछा। 
  93. घोषण बिध्या सोदंत पाणी। 
  94. चेली सभ्युं का खुट्टा धोवो, अपडा खुट्टा घोंद लगो। 
  95. एक गुरू का सौ चेला भूखन मोरला अफी छंटेला। 
  96. छ्वटि पूजी कसम खांदी। 
  97. जख जति तख सती। 
  98. खाडू बेची ऊन पाई।  
  99. गुरू कन जाणी, पाणी पेण छाणी। 
  100. जोगी जोगी लड़या त्वमडै त्वमड़ा फुटया। 
  101. जोगी जुग्टा हाथ का न भात का।
  102. जय द्यो जगदीश, वेसे क्या रीस
  103. कौजाळा पाणी मा छाया नि आन्दी ।
  104. अपड़ा लाटा की साणी अफु बिग्येन्दी ।
  105. बड़ी पुज्यायी का बी चार भांडा, छोटी पुज्यायी का बी चार भांडा ।
  106. अपड़ा गोरुं का पैन्डा सींग बी भला लगदां ।
  107. कोड़ी कु शरील प्यारु, औंता कु धन प्यारु ।
  108. जन त्येरु बजणु, तन मेरु नाचणु
  109. गोरी भली ना स्वाळी ।
  110. राजौं का घौर मोतियुं कु अकाळ ।
  111. भैंसा घिच्चा फ्योली कु फूल ।
  112. सब दिन चंगु, त्योहार दिन नंगु ।
  113. त्येरु लुकणु छुटी, म्यरु भुकण छुटी ।
  114. कुक्कूर मा कपास और बांदर मा नरियूल
  115. हाथा की त्यारि, तवा की म्येरी ।
  116. लेजान्दी दाँ हौल, देन्दी दाँ लाखड़ु ।
  117. कखी डालु ढली, खक गोजु मारी ।
  118. बुढिड़ पली ही इदगा छै, अब त वेकु नाती जु हुवेगी ।
  119. हैंकौ लाटु हसान्दु च, अर अपडु रुवान्दु च ।
  120. बाखरौ कु ज्यू बी नि जाऊ, बाग बी भुकु नि राऊ ।
  121. लौ भैंस जोड़ी, नितर कपाल देन्दु फ़ोड़ी ।
  122. जख मेल तख खेल, जख फ़ूट तख लूट ।
  123. लगी घुंडा, फ़ूटी आँख ।
  124. जाणदु नि च बिछयू मंत्र, साँपे दुळी डाळदू हाथ ।
  125. तू ठगानी कु ठग, मि जाति कु ठग ।
  126. लूण त्येरि व्वेन नि धोळी,आंखा म्येकू तकणा।
  127. भिंडि खाणु तै जोगी हुवे अर बासा रात भुक्कु ही रै 
  128. अपड़ा जोगी जोग्ता , पल्या गौं कु संत ।
  129. बिराणी पीठ मा खावा, हग्दी दाँ गीत गावा ।
  130. पैली खयाली छारु(खारु), फ़िर भाडा पोछणी ।
  131. ब्वारी खति ना... , सासु मिठौण लग्युं... ।
  132. खाँदी दाँ गेंडका सा, कामों दाँ मेंढका सा ।
  133. (कामों दाँ आंखरो-कांखरो, खाँदी दाँ मोटो बाखरो ।)
  134. खायी ना प्यायी, बीच बाटा मारणु कु आयी ।
  135. बांटी बूंटी खाणि गुड़ मिठै, इखुलि इखुलि खाणि गारे कटै 
  136. भग्यानो भै काळो, अभाग्यू नौनू काऴो।
  137. नोनियाल की लाईं आग , जनाना देखुयुँ बाघ |
  138. जै बौ पर जादा सारू छौ वी भैजी भैजी बुन्नी |
  139. म्यारू नौनु दूँ नि सकुदु , २० पथा ख़ूब सकुदु
  140. जू दूध पेक़ी तै नि हुवे, त अब बुबा घुंडा चुसिक होन्दु ।बान्दर 
  141. मुंड मा टोपली नि सुवान्दी ।
  142. मि त्येरा गौं औलू क्या पौलू, तु म्येरा गौं एली क्या ल्यालु ।भेल़ 
  143. लमड्यो त घौर नी आयो, बाघन खायो त घौर नी आयो।
  144. ढेबरि मरिगे, गू खलैगे।
  145. नि खांदी ब्वारी , सै-सुर खांदी ।
  146. भैर तालु, और भितर बिरालु ।
  147. ब्वारी बुबा लाई बल अर ब्वारी बुबन खाई ।
  148. जु पदणु गीजि जालो, उ हगणु केकु जाल ।
  149. चळचळी डाळी चबड़ा बोट
  150. कंधा क्वारू और दूरा स्वार कब्या काम न्यांद
  151. आबत नी चैंदु कांगु बल्द नी चैंद ढांगु
  152. दुसरा द्याख चळचळी खळखळी बुबा रांड होग्ये मिखणी या नि मांगी
  153. पैली खयाल, तब कुटरी बाँध मेरा लाटा
  154. बिना पादयां गुवाँण नी औंदी
  155. गिच्चा कु बूबा कु क्या जांदू
  156. सौण मोरि बल सासू अर भादों ऐनी आंसू
  157. हूंदा ग्यूं ।। ता रूंदा क्यूं
  158. लोला ही लोला बल एक्की खोला।
  159. कभी रोयीं होंदी त ढौल भी आंदी
  160. कभी बल सौ धोता अर कभी कड़दु डु भी नी
  161. बिंडि खाण बान बल जोगि बणि अर पैलि रात भुखि रै
  162. तापयूं घाम बल क्या तपण अर दिखयूं मनखी क्या देखण
  163. जैकु मोर बल वु क्या नी कौर
  164. बुढ़्यो बोल्यूं अर आंवलों कु स्वाद,पिछनै दाँ आन्दु याद
  165. उंड फुँडा चुल फुंड अर चुल्लू फुँडा उंड फुंड
  166. जखि देखि पथली भात,उखी बितायी सारी रात
  167. सुन्दरू कौं कु गुन्दरू कुत्ता, भैर बाघ ,भितर मुत्ता।
  168. वैकि छ्वीं बल झंगोरै बीं
  169. भै बल बैंह। मतलब भाई एक बाँह की तरह होता है
  170. घुँडा घुँडा फुके गी अर कुत्राण कख होली आणि।
  171. जैन करी शरम वेका फूट्या करम
  172. ड्यूमा थौळ किलकी नि ऐंच भिटकी नि
  173. घौ बरख्या बटवे देखो
  174. नीती जैकी धीति 
  175. ब्याळी जोगी पुठा मा जट्टा
  176. बिठुवी मौ कू ठंडू पाणी
  177. माटो घोडा सुते लगाम
  178. माणा माथा गौनी अठारा माथ दौनी
  179. बाघे खायी सेई मनखि खायी अणसेई
  180. दिनभरि सेह लटकी ब्यखन दा पाणयूं अटकी
  181. औतो ते धन प्यारु
  182. अग्यो करी साली पाणी करी दौड़ी
  183. अणदेख्यू चोर बाबु बरोबर
  184. अति ऋण हाळ नि अर अति जुवां खाज नि
  185. बवोंत्या बौगि  जांद अर पंडित भूल जांद
  186. अति लाड अति खाड
  187. अद्म्यारी बिद्या अर ज्यू कू जंजाळ
  188. धार अंठ मौरी गगड़ बरखू धौऊ
  189. अंधु मरगी अर आफत छोडगी
  190. अपड़ा बक्त पाणी से पोर
  191. अपड़ा गौन्की खंडैली बी प्यारी
  192. अपड़ा देसों ढून्गू बी चोप्डू
  193. मौ गै पर लो नि गै
  194. भीतर नीच आलण देई मा नाची बालण
  195. समौ देखण अपडा घौर बटि
  196. लगि आग डब्यू बाघ बल कख च भलु
  197. कंडौळ सुख जान्दू पर जसाक नि जांदी
  198. भौरें माया रस चुसण तक हळये सेकी बुतण तक

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