उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, May 28, 2017

द्यशौंळ

Garhwali Satire by Asis Sundriyal 
-
जूँगा त जामा नी छा अबि तक पर जुल्फी जरूर धौणिंम तक आयीं छै। मुखिड़ि इन सुखीं छै जन रुड़ी का घाम मा पाणी का छोया। द्वीइ ग्लव्डि. आपस मा चप चिपकीं छै जन नमस्ते कन बेर द्वी हाथ रन्दन आपस मा चिपक्यां। शरीर पर मांगस को नौ नी छौ, हाथन जपगै कि हडग्यूं तै गीणी सकदु छौ क्वी बी।आँखा जरूर बड़ा बड़ा छा वेका ढाडु जना, अर वां चुले बड़ा छा वेका स्वीणा। तभी त बारा कैरिक सिरप अठारा सालम ब्वे की खुचलि छोड़ी बिराणा मुलुक ऐगे छौ घुंता।
घुंता पढ़ाई म त वो खूब छौ पर ये जमन मा बारा पास तैं क्य नौकरी मिलिणी छै। पर वेका मन मा त बनि बनि का ख्याल, अणहिटाळ बोड़ों की तरां पूछ अळगै अळगै कि उचड़फाळ मना छा। वो वास्तविकता तै गळदिवा ब्वे बुबा की तरह बिल्कुल देखण नि चाणू छौ। बस वेतैं त उछयदि -अन्याड़ करदा सौजड़या सि अपणा स्वीणा हि स्वाणा लागणा छा। आज भले वेकु पूछ छारम छौ पर फेर बि थ्वतुरुं घ्वाड़म छौ।
घुंता न कब घुंता पीणु छोड़े, कब वेकु लाळू चुणू बंद ह्वे अर कब वेन अपणु नाक फुंजणु सीखे , पता नि चले। इन लगणु च जनो कि ब्याले हि वो सलदराज़ पैनी ब्वे दगड़ डांड जाणे घोर घल्दु छौ अर आज वो सूट बूट पैनी सुपन्यो का पिछ्नै दौड़नु च। खैर, अब द्यखला बल ठकुरुं कि दीबा पूजीं।
अबि घुंता तै दिल्ली म अयाँ द्वी दिन बि नि ह्वे छ कि घनश्याम न- जो की वेका मामा कु नौनु छौ , वो अपणा ऑफिस की कैंटीन म लगे दे। बारा पास अर वो बि हिंदी मीडिअम से , खुणैं ये से बक्की हौरि नौकरी ह्वे बि क्य सकदी छै। घुंता न बि " कर्म ही पूजा है" का सिद्धांत पर काम करे अर कुछ हि दिन मा पूरा स्टाफ म अपणी ख़ास जगा बणै दे। आखिर पहाड़ी मेनत का ममला म त सबसे अगाड़ी हूँदै छन। अर फिर अबि तक त वेकी ब्वे की बणाई रवट्टी खायीं छै, बुबा कि बणयीं रवट्टी को स्वाद त वे अब पता लगणु छौ इलै दूर प्रदेश म वेका समणी कुवि दुसरो बाटु बि नि छौ। बल नचदु नि छौं त खांदू क्य छौं।
तन्खा आण लगे, घुंता खूब खाण लगे - या वेका मुखै च्लक्वार बताणी छै। बयां कि बल बाल अर खयां का गाल। एक दिन पालिका बाजार गे त खूब खरीददारी कैरिकी ऐ- कपड़ा, जुत्ता, चश्मा, टुपला अर झणी क्य- क्या। वेकी कुंगळी गात गठीला शरीर मा बदलेणी छै- दिल्ली की हवा कु असर हूणों स्वाभाविक छौ।
इन हुँदा करदा - कब पांच साल ह्वे गिन, पता नि चले। ये बीच घुंता घौर काम हि जांदु छौ। बिचरा कि प्राइवेट नौकरी ज्वा छै। जै दिन ऑफिस नि जावा वे दिनै ध्याड़ी साफ़।आजकलै मैंगै अर फिर दिल्ली जनो शहर, एक एक रुपया को मोल पता चैल जांद यख द्वी दिन रैण मा। पर जब बि वार - ध्वार को कुवि बी घौर जावा, घुंता अपणा घौर मा कुछ न कुछ जरूर भेजदु छौ। नौना की राजी ख़ुशी मिल जा, ब्वे बुबा तै हौरि क्य चयेंदु। घुंता का ब्वे- बाबू यी सोचिक खुश रैंदा छा।
खांदा कमांदा नौना तै देखीक, ब्वे- बुबा मन मा सिरप एक बात आंद कि अब झट कखि ये को ब्यो ह्वे जा त गंगा नहे ऐ जा हम। घुंता क ब्वे- बाब भी वेका ब्यो कु इन उत्साहित हुयां छा जन नौन्याळ कौथिग जाणू रंदिन। वो त बाद मा पता चलद कि एक आइस-क्रीम खाण बान बि कना खुट्टा घुरसंण प्वड़दिन।
अब घुंता का ब्वे-बाब, अपणु काम धाम छोड़िक, घुंता कु नौनी खुज्याण लगिन। जगा जगा बात करा, जगा जगा बटे टिपड़ी मंगावा, बामण तै पटावा, नाता- रिश्तदारु तै घचकावा- बस फज़ल- ब्य्खुनि यी हि काम ह्वेगे। जो शायद ही गौं का भैर गे होला कबि , वो चौदिशों घूमिक ऐ गेन - अपणा नौना कु नौनी खुजण कु। न नींद न भूख , न बरखा न घाम - कुछ नि देखि वून अपणा ये काम तैं पुरयाण मा। अर आखिर मा वो कामयाब ह्वे हि गेन- घुंता कु ब्वारी खुज्याण मा।
बस ब्वारी ख्वजदै, तुरंत घुंता कु रैबार दिए गे। रैबार पर रैबार देणं क बाद बि, घुंता कै दिन तक घौर नि ऐ। अर जब वो एक दिन घौर ऐ त ब्वे- बुबा को गिच्चो खोल्यूं को खोल्यूं रै ग्ये। घुंता कु आँखों पर कालू चश्मा लगयूं छौ, धौण म नौनियु से लम्बी धौंपली छ्वडी छै। कमीज का अद्धा बटन खुलयाँ छा अर जींस की सि पेंट जगा जगा बटे फटीं छै। ब्वे बुबा की आंख्युं मा त रात तब पड़े जब वेकी काख पर एक मोट्याण खड़ी छै जैथैं लोग इन द्यखणा छा जनु कि आजतक यूंका कुवि मनखी देख्या ही नई ह्वीं अर फिर घड़ेक मा जतना मुख उतना छुवीं...........
-
Copyright@ Asis Sundriyal 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments