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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 28, 2017

म्यारा ब्वै-बब्बा

Garhwali Poem by Payash Pokhara 
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रिटैर सि सिपै-चौकीदार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ।
खंद्वर्या कूड़ियूं का पैरादार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

पिनसिनी कि फसल-पात हुणीं च
मैना का मैना ।
लैंणा, कटेणां कु तैयार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

लैगी, बरमूडा, कैप्रि, जीन्स का जमना 
मा घुमुणुं छौं ।
दरदरा पट्टदार सुलार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

ब्वै का मुर्खला बब्बा की मुरखी बेचिं 
दीं मिल वै दिन ।
जै दिन बटैकि बिमार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

जाण न पछ्याण क्वी सारु दिदंरु 
भि नि राइ युंकू ।
द्वि अदम्यु कु परिवार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

नौना-बाळौ दगड़ हैंसि-खेलि मा 
सदनि रंगमत्या रौं ।
दुख-दैनि का असगार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

क्य कन, बूढ़-बुढ्यौं कु पापी पराण 
भि त नि मनदू ॥ 
अपणै छ्वारौं कु छुछकार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

रोज-रोज गेड़ मारि-मारिक गंठेणु 
च दानू सरैल ।
खटुला का सड़यूं निवार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

नाति-नतणों कु ळाळ चटणा कु ज्यू ब्वळ्द आज भि ।
दुदिबाळा कु बुखार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

हां, ह्वालु सोरग ब्वै-बाबुका खुटौं मा "पयाश" पर ।
एक लपाग कु लाचार ह्वैगीं,
म्यारा ब्वै-बब्बा ॥

@पयाश पोखड़ा ।


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