{** On : उत्तराखंड **}
.
.
उत्तर
दिशम च देश का
तभि
ता उत्तराखंड ।
बंणाद
बंणाद ये थईं
कतगौंन
फ्वड़नी मुन्न्ड ॥
.
कतगौंन
फ्वड़नी मुन्न्ड
राज्य
त बंणि ही ग्याया ।
फरक
द्यखीणू कुछ नी
जन
की तन च काया ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
हूंन्दु क्वी इन्नू
पुत्तर ।
कैकी काया पलट
दींदु कुछ सुन्दर उत्तर ॥ {9}
(08.05.2017) .
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
{On : भदैली गौ माता }
.
गौ माता की सेवा त
पुण्य कु काम च भाई ।
भदैला गौड़ौ फिर किलै
त्यगदन हमरी माई ॥
.
त्यगदन हमरी माई
वे गौड़ौ चा क्या दोष ।
भदौम बियेकि चुचों
वे फर क्यांकु रोष ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
छोड़ा बेकारै बार्ता ।
अब न छ्वड्यां कब्बी
कै भदैली गौ माता ॥ {*8*}
{On : भदैली गौ माता }
.
गौ माता की सेवा त
पुण्य कु काम च भाई ।
भदैला गौड़ौ फिर किलै
त्यगदन हमरी माई ॥
.
त्यगदन हमरी माई
वे गौड़ौ चा क्या दोष ।
भदौम बियेकि चुचों
वे फर क्यांकु रोष ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
छोड़ा बेकारै बार्ता ।
अब न छ्वड्यां कब्बी
कै भदैली गौ माता ॥ {*8*}
(07.05.2017) .
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
{On : पाड़न कन्नि द्वी भौ }
.
डांडा कांठा हमरा छन
{On : पाड़न कन्नि द्वी भौ }
.
डांडा कांठा हमरा छन
वादी छन कश्मीर ।
कुलैं कु लीसु हम खुणे
ऊँ कू केसर खीर ॥
.
ऊँ कू केसर खीर
बिगाड़ी क्या जी हमना ।
वख ता सेब बदाम
यख त दलम्या भी नीना ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
लगनि ई कन्ना कांडा ।
पाड़न कन्नि द्वी भौ
हम्म थैं पोड़ी डांड ॥ {०७}
कुलैं कु लीसु हम खुणे
ऊँ कू केसर खीर ॥
.
ऊँ कू केसर खीर
बिगाड़ी क्या जी हमना ।
वख ता सेब बदाम
यख त दलम्या भी नीना ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
लगनि ई कन्ना कांडा ।
पाड़न कन्नि द्वी भौ
हम्म थैं पोड़ी डांड ॥ {०७}
(06.05.2017) .
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
.
{On : जै गढ़वालौ स्वर्ग ब्वदाँ }
.
जै गढ़वालौ स्वर्ग ब्वदाँ
.
{On : जै गढ़वालौ स्वर्ग ब्वदाँ }
.
जै गढ़वालौ स्वर्ग ब्वदाँ
वख देखा त खंद्वार ।
मन कुंदिल ह्वे जांदु च
मन कुंदिल ह्वे जांदु च
कै की इना दीदार ॥
॰
कै की इना दीदार
॰
कै की इना दीदार
धुरप्वला पठला
नीना ।
बांझा प्वाड़ीं छन सार
बांझा प्वाड़ीं छन सार
शिकैत भी करना
कैमा ॥
॰
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
॰
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
रुख करा थोड़ा
घौरौ ।
अपड़ी कूड़ि कर ठीक
अपड़ी कूड़ि कर ठीक
चाए छै जै गढ़वालौ
॥ {६}
.
.
(04.05.2017) .
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
.
{ On : गढ़वाली घट्ट }
.
घट मा म्यारा बैठी की
.
{ On : गढ़वाली घट्ट }
.
घट मा म्यारा बैठी की
दलनू राया मूंग ।
भारि थक्यूं छौ दिन भरौ
भारि थक्यूं छौ दिन भरौ
वै थैं ऐ गी
निन्द ॥
.
वै थैं ऐ गी निन्द
.
वै थैं ऐ गी निन्द
घट्ट खाली रिंगणू
छौ ।
बिजली की कख डौर
बिजली की कख डौर
घट्ट पांणिन चलनू
छौ ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
घट्ट अब कख छन
गौं मा ।
चकक्यू पिस्यूं खावा
चकक्यू पिस्यूं खावा
राखा म्यारा
भैरौं घट मा ॥ {5/5}
.
.
(02.05.2017) .
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
.
{On : गढ़वाली लोक - नृत्य }
.
पंडौं नचणू जणन कू
.
{On : गढ़वाली लोक - नृत्य }
.
पंडौं नचणू जणन कू
अर ख्यन्नू झुमैलु ।
चौफल आदि सीखणा कू
चौफल आदि सीखणा कू
कोरीग्राफर रै
होलु ॥
.
कोरीग्राफर रै होलु
कोरीग्राफर रै होलु
तभी ता नचणू सीखी
।
कन बिध्या रै होलि
कन बिध्या रै होलि
सीख कन रै ह्वलि
तीखी ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
हम त बस इतगै
जंणदौं ।
बदलि नि साक़ी आज
बदलि नि साक़ी आज
तलक क्वी नचणू
पंडौं ॥
(01.05.2017) .
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
.
{On: नौना, नौनी & ब्वारी }
.
नौना कदन मां बाप कू
.
{On: नौना, नौनी & ब्वारी }
.
नौना कदन मां बाप कू
पितृ ऋण से उद्धार ।
आखरी क्रिया कैरि की
आखरी क्रिया कैरि की
भ्यजदन स्वर्ग का
द्वार ॥
.
भ्यजदन स्वर्ग का द्वार
भ्यजदन स्वर्ग का द्वार
नौनी भी कम नी
हूंदी ।
उ आंदै अपड़ा दगड़ी
उ आंदै अपड़ा दगड़ी
स्वर्ग दगड़ा ही
लांदी ॥
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं
ब्वार्रियूँ भी
कम नी समझा ।
ब्वारी बंणी जख जांद
ब्वारी बंणी जख जांद
स्वर्ग कै दींद
घर वे नौनौ ॥
(28.04.2017) .
अध्याय
3 : श्लोक 33 :
(श्लोक गढ़वलिम भि)
.
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥
.
श्लोक
गढ़वाली म :
.
चेस्टा करदा ज्ञान वान भि
अपणिं प्रकृत्यानुसार
प्राणि सब छन प्रकृति आश्रित
कैकु हठ क्या कैरलू ॥ [३ : ३३]
.
(08.05.2017) .
श्रीमद् भगवद्
गीता
अध्याय 3 : श्लोक 32 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
किन्तु म्यारा मत कु पालन
ईर्शा बस जू मनिख
करदा नीना ऊं समझ तू
मूढ़ मोहित और नष्ट ॥ [३: ३२]
अध्याय 3 : श्लोक 32 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
किन्तु म्यारा मत कु पालन
ईर्शा बस जू मनिख
करदा नीना ऊं समझ तू
मूढ़ मोहित और नष्ट ॥ [३: ३२]
(07.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 3 : श्लोक 31 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
दोष द्रिष्टि से परे अर
श्रधा युक्त भाव से
करद पालन म्यारा मत कू
हून्द कर्म मुक्त वो ॥ [३: ३१]
अध्याय 3 : श्लोक 31 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
दोष द्रिष्टि से परे अर
श्रधा युक्त भाव से
करद पालन म्यारा मत कू
हून्द कर्म मुक्त वो ॥ [३: ३१]
(06.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 3 : श्लोक 29 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
प्रकृति गुण से मोहित मनिख
रांद आसक्त कर्म गुण मां
इना अज्ञानी मनिखुं थैं
भ्रमित न कैरन ज्ञानि जन ॥ [3: २९]
अध्याय 3 : श्लोक 29 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
प्रकृति गुण से मोहित मनिख
रांद आसक्त कर्म गुण मां
इना अज्ञानी मनिखुं थैं
भ्रमित न कैरन ज्ञानि जन ॥ [3: २९]
(05.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 3 : श्लोक 26 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम् ।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
कन नि चैंदा ज्ञान्युं थैं
अज्ञान्युं मा बुद्धी भरम
बल्कि कै की आचरण
ऊंसे भी करवा उन्न ही ॥ [3: २६]
अध्याय 3 : श्लोक 26 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम् ।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
कन नि चैंदा ज्ञान्युं थैं
अज्ञान्युं मा बुद्धी भरम
बल्कि कै की आचरण
ऊंसे भी करवा उन्न ही ॥ [3: २६]
(04.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 3 : श्लोक 21 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
श्रेष्ठ करदन आचरण जू
बक्कि लोग करदन उन्न।
प्रमाणित कद श्रेष्ठ जै थैं
आचरण उनि कद जगत ॥[3: २१]
अध्याय 3 : श्लोक 21 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
श्रेष्ठ करदन आचरण जू
बक्कि लोग करदन उन्न।
प्रमाणित कद श्रेष्ठ जै थैं
आचरण उनि कद जगत ॥[3: २१]
(03.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 3 : श्लोक 15 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
कर्म पैदा बेदु से
अर बेद पैदा ब्रह्म से ।
ये वजह यू परब्रह्म ही
रांद स्थित यज्ञ मां ॥ [३: १५ ] (02.05.2017) .
अध्याय 3 : श्लोक 15 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
कर्म पैदा बेदु से
अर बेद पैदा ब्रह्म से ।
ये वजह यू परब्रह्म ही
रांद स्थित यज्ञ मां ॥ [३: १५ ] (02.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 61 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
इंद्रि हुंदना बशम जैकी
बुद्दि स्थिर हूंद तैकी ।
कर्मयोगी करद बशमां
इंद्रियूं थैंकी ध्ये कि मीं ॥ [२: ६१]
अध्याय 2 : श्लोक 61 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
इंद्रि हुंदना बशम जैकी
बुद्दि स्थिर हूंद तैकी ।
कर्मयोगी करद बशमां
इंद्रियूं थैंकी ध्ये कि मीं ॥ [२: ६१]
(01.05.2017) .
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 59 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
निराहारी मनिख का त
निब्रित हुंदना विषय ही ।
रस भी निब्रित ह्वै जंदन
बुद्दि स्थिर पुरुष का ॥ [२:५९]
अध्याय 2 : श्लोक 59 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
निराहारी मनिख का त
निब्रित हुंदना विषय ही ।
रस भी निब्रित ह्वै जंदन
बुद्दि स्थिर पुरुष का ॥ [२:५९]
30.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 72 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
ब्रह्मप्राप्ति कि स्थिति च या
जै थैं पै की अर्जुन ।
मोह नि हूंदू योग्युं थैं
ब्रह्मलीन हुंदना अंत मा ॥ [२: ७२]
अध्याय 2 : श्लोक 72 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
ब्रह्मप्राप्ति कि स्थिति च या
जै थैं पै की अर्जुन ।
मोह नि हूंदू योग्युं थैं
ब्रह्मलीन हुंदना अंत मा ॥ [२: ७२]
29.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 54 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
समाधिस्त स्थिर पुरुष का
पुछद लक्षण अर्जुन ।
ब्वल्दु, बैठदु, चलदु कन चा
समाधिस्त स्थिर पुरुष ॥ [२:५४]
अध्याय 2 : श्लोक 54 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
समाधिस्त स्थिर पुरुष का
पुछद लक्षण अर्जुन ।
ब्वल्दु, बैठदु, चलदु कन चा
समाधिस्त स्थिर पुरुष ॥ [२:५४]
28.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 53 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
बनि बनी का बचनौ सूंणीं
बिचिलित बुद्दि तेरि जब ।
ह्वैलि स्थिर परमात्मा मा
योग प्राप्त कैल्यू तब ॥ [२:५३]
अध्याय 2 : श्लोक 53 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
बनि बनी का बचनौ सूंणीं
बिचिलित बुद्दि तेरि जब ।
ह्वैलि स्थिर परमात्मा मा
योग प्राप्त कैल्यू तब ॥ [२:५३]
27.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 52 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
बुद्दि तेरी पार कलि
जब मोह रूपी दलदल ।
सुण्यां सण्यां भोगौं से
वैराग्य पै जैली तभी ॥[२:५२]
अध्याय 2 : श्लोक 52 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
बुद्दि तेरी पार कलि
जब मोह रूपी दलदल ।
सुण्यां सण्यां भोगौं से
वैराग्य पै जैली तभी ॥[२:५२]
26.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 51 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
समत्व बुद्धि युक्त ज्ञानी
कर्म फल थैं त्यागि की ॥
मुक्त बंधन ह्वै जंदन
अर पंदन ऊ परम पद ॥ [२:५१]
अध्याय 2 : श्लोक 51 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
समत्व बुद्धि युक्त ज्ञानी
कर्म फल थैं त्यागि की ॥
मुक्त बंधन ह्वै जंदन
अर पंदन ऊ परम पद ॥ [२:५१]
25.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 50 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
मुक्त रंदन पाप पुण्य से
समत्व बुद्दि वला मनिख ।
समत्व बुद्दि कि कैर चेष्ठा
सब्बि कार्य-कौसल योग ही त च ॥ [२:५०]
अध्याय 2 : श्लोक 50 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
मुक्त रंदन पाप पुण्य से
समत्व बुद्दि वला मनिख ।
समत्व बुद्दि कि कैर चेष्ठा
सब्बि कार्य-कौसल योग ही त च ॥ [२:५०]
24.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 49 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
दूर रांद समत्व बुद्धि से
सकाम कर्म धनंजय ।
ये वजह समत्व बुद्धि से
उपाय देख रक्षा कू ॥ [२:४९]
अध्याय 2 : श्लोक 49 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
दूर रांद समत्व बुद्धि से
सकाम कर्म धनंजय ।
ये वजह समत्व बुद्धि से
उपाय देख रक्षा कू ॥ [२:४९]
23.04.2017
..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 45 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
तीनौ गुणौं का भोग साधन
बेदु मां च उजागर ।
योग छेम से ऐंच उट्ठी
अंतःकरण हो अर्जुन ॥ [२:४५]
अध्याय 2 : श्लोक 45 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
तीनौ गुणौं का भोग साधन
बेदु मां च उजागर ।
योग छेम से ऐंच उट्ठी
अंतःकरण हो अर्जुन ॥ [२:४५]
22.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 48 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
योग स्थित बण समत्व
संगदोष थैं त्यागि दी ।
सिद्ध असिद्ध म सम ह्वे अर्जुन
कर्म कैर ई समत्वभाव योग च ॥ [२:४८]
अध्याय 2 : श्लोक 48 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
योग स्थित बण समत्व
संगदोष थैं त्यागि दी ।
सिद्ध असिद्ध म सम ह्वे अर्जुन
कर्म कैर ई समत्वभाव योग च ॥ [२:४८]
21.04.2017 ..
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 41 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
एक हि हून्दा निश्चय बुद्धि
कर्मयोग मा हे अर्जुन ।
अनेक प्रकारै बुद्धि हूंदा
अस्थिर बिचारा कामी मानिखम ॥ [२: ४१]
अध्याय 2 : श्लोक 41 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
एक हि हून्दा निश्चय बुद्धि
कर्मयोग मा हे अर्जुन ।
अनेक प्रकारै बुद्धि हूंदा
अस्थिर बिचारा कामी मानिखम ॥ [२: ४१]
20.04.2017 ..
गढ़वाली दोहा ““पखणौं का बुखणां”” :
.
.
ऊँका
त सूना पर भि रै
आंणी
रांन्द सुगन्ध ।
बड़ा
लोगू की बात चा
चुप
रांणू ही बंणद ॥ [१९७]
. (08.05.2017) .
.
मनिख कमांणा जंणद जू
नेक हूंद इन्सान ।
पैसा कमांणा वाला त
कत्ति मिलला बेईमान ॥ (१९६)
. (07.05.2017) .
मनिख कमांणा जंणद जू
नेक हूंद इन्सान ।
पैसा कमांणा वाला त
कत्ति मिलला बेईमान ॥ (१९६)
. (07.05.2017) .
.
आज गीजि कखड़ी अर
भोल बखरि की ओर ।
लगलि लगाम नि शुरूम जू
बंणि जालू ऊ चोर ॥ [१९५]
. (06.05.2017) ..
भोल बखरि की ओर ।
लगलि लगाम नि शुरूम जू
बंणि जालू ऊ चोर ॥ [१९५]
. (06.05.2017) ..
.
गाली खै छै काकन
छुरक्युं कु ह्वाला ग्यूं ।
काक मोरि इंग्लैंड मां
कख छुरक्यूं की छूं ॥ (१९४)
. (05.05.2017) ..
छुरक्युं कु ह्वाला ग्यूं ।
काक मोरि इंग्लैंड मां
कख छुरक्यूं की छूं ॥ (१९४)
. (05.05.2017) ..
.एक हाथन कब्बि भी
बजदी नीना तालि
झगड़ा कनकू चैंदना
हर दम ही द्वी पालि (१९३)
बजदी नीना तालि
झगड़ा कनकू चैंदना
हर दम ही द्वी पालि (१९३)
. . (04.05.2017) ..
अपड़ू मुन्ड
मुंडींदु नी
ब्वलदन अपना आप ।
कै भि काम कन्नौ चुचौं
चईंद दुनियो साथ ॥ (१९२)
ब्वलदन अपना आप ।
कै भि काम कन्नौ चुचौं
चईंद दुनियो साथ ॥ (१९२)
. . (03.05.2017) ..
.
आप भला त जग भलो
सोच च या साकार ।
भला कर्यां कू हूंद भलो
भलौं कु बेड़ा पार ॥ (१९१)
आप भला त जग भलो
सोच च या साकार ।
भला कर्यां कू हूंद भलो
भलौं कु बेड़ा पार ॥ (१९१)
. . (02.05.2017) ..
भारी भरोसू तुमरू
रा
सोलह आना सच्च ।
निथर तरींणी छै कनै
ह्वेगे छौ मि थगड़च ॥ [१९०]
सोलह आना सच्च ।
निथर तरींणी छै कनै
ह्वेगे छौ मि थगड़च ॥ [१९०]
. . (01.05.2017) ..
.नौनु त तापी यालि छयो
क्वी भी छौ नि सहारु ।
अदबौल्या सि बंणी कि तब
डबखुंणू राया बिचारु ॥ [१८९]
क्वी भी छौ नि सहारु ।
अदबौल्या सि बंणी कि तब
डबखुंणू राया बिचारु ॥ [१८९]
. . (30.04.2017) ..
परमेश्वर का पूठा
पर
दींदु च अब भी चुंगनि ।
ऊच्छेदी खरबग्नि च
मुंडरू हुयूं च छकणिं ॥ [१८८]
दींदु च अब भी चुंगनि ।
ऊच्छेदी खरबग्नि च
मुंडरू हुयूं च छकणिं ॥ [१८८]
. . (29.04.2017) ..
हौल जु लगदू
मिंडखौं से
लोग बल्द क्यों पल्द ।
ट्रैक्टरौ युग चलनू चा
अब कख बात या चल्द ॥ [१८७]
लोग बल्द क्यों पल्द ।
ट्रैक्टरौ युग चलनू चा
अब कख बात या चल्द ॥ [१८७]
. . (28.04.2017) ..
बथौं बण्यूं चा
अब भि रै
चार बीसि कै पार ।
इनि फुरती देई सबूं
हे म्यारा दातार ॥ [१८६]
चार बीसि कै पार ।
इनि फुरती देई सबूं
हे म्यारा दातार ॥ [१८६]
. . (27.04.2017) ..
खुट्’ट कु हाथम लेकि जब
काकी करद बात ।
ब्वलदा जमनू इनु हि च
इन ही यूं कि औकात ॥ [१८५]
काकी करद बात ।
ब्वलदा जमनू इनु हि च
इन ही यूं कि औकात ॥ [१८५]
. . (26.04.2017) ..
देलि नि लांघि छै
ब्वारि ना
अपड़ू हिस्सा मांगि ।
दैज मंगदिदां यूँन भी
कोखि गाडि की मांगि ॥ [१८४]
अपड़ू हिस्सा मांगि ।
दैज मंगदिदां यूँन भी
कोखि गाडि की मांगि ॥ [१८४]
. . (25.04.2017) ..
छ्वट्टु द्यखींदा
सदनी ही
गूंणि थैं अपड़ू पूंछ ।
किलै बोलि ह्वलि बात या
पता यु कै थैं नीच ॥ [१८३]
गूंणि थैं अपड़ू पूंछ ।
किलै बोलि ह्वलि बात या
पता यु कै थैं नीच ॥ [१८३]
. . (24.04.2017) ..
भाबिन बोली भैजी
मा
तुम थैं म्यारा सौं ।
तुम पच्छिन्डि कै द्या अब
तै दारू का नौ ॥[१८२]
तुम थैं म्यारा सौं ।
तुम पच्छिन्डि कै द्या अब
तै दारू का नौ ॥[१८२]
. . (23.04.2017) ..
छै मैना तक पालि
दे
बिना दूधि कू तैन ।
बादम सब्बी राज खुनी
झांसा देनि जू बेन ॥ (१८१)
बिना दूधि कू तैन ।
बादम सब्बी राज खुनी
झांसा देनि जू बेन ॥ (१८१)
. . (22.04.2017) ..
कलम तेरी
जबर्दस्त च
हे कलमा का सिपाहि
तेरी कलम कू पार त
विधि ना भी नी पाय ॥ [१८०]
हे कलमा का सिपाहि
तेरी कलम कू पार त
विधि ना भी नी पाय ॥ [१८०]
. (21.04.2017) ..
रूत रूत ह्वै
ग्या चुचौं
बांझा प्वणीं छन सार ।
कुदरत ना दे साथ नी
तां पर गरीब मार ॥ [१७९]
बांझा प्वणीं छन सार ।
कुदरत ना दे साथ नी
तां पर गरीब मार ॥ [१७९]
. (20.04.2017) ..
गढ़वाली मुंडरु - हाइकू
- {गढ़वालिम}
.
.
.
बारा
बरैली …..
भुकणम
थौ नी च …….
बफ़दार
च ….. {#:३५}
(08.05.2017) .
.
सुंदर सांड …..
महादेव मंदिर …….
नेक चढ़ावा ….. {#:३४}
(07.05.2017) .
महादेव मंदिर …….
नेक चढ़ावा ….. {#:३४}
(07.05.2017) .
.
ठिंडेड़ गौडु .....
एक बेल्यू दूध .......
ऐथरै आश ..... {#:३३}
एक बेल्यू दूध .......
ऐथरै आश ..... {#:३३}
(06.05.2017) .
.
धूलि अरघ …..
पंडित जी क मंत्र …….
खुश महौल ….. {#:३२}
धूलि अरघ …..
पंडित जी क मंत्र …….
खुश महौल ….. {#:३२}
(04.05.2017) .
बरखा ऐकि …..
गदनौं उफान आ …….
गोरु बगनि ….. {#:३१}
गदनौं उफान आ …….
गोरु बगनि ….. {#:३१}
03.05.2017) .
ब्यो कु कार्ड …..
बैंड बाजौं कु शोर …….
दहेज कि बू ….. [#: ३०]
. 02.05.2017) .
बैंड बाजौं कु शोर …….
दहेज कि बू ….. [#: ३०]
. 02.05.2017) .
ऊ पदान छा .....
अब प्रधान छन .......
राजनीति च ..... [#: २८]
अब प्रधान छन .......
राजनीति च ..... [#: २८]
. 01.05.2017) .
कुर्सी मीलि छै …..
कदर कख कैरि …….
थुंथरि फुटीं ….. {#: २७}
कदर कख कैरि …….
थुंथरि फुटीं ….. {#: २७}
30.04..2017) .
गैबणी बाछी .....
ग्वसींण प्रसन्न .......
ऐथरै आस ..... {#: २६}
. 29.04..2017) .
ग्वसींण प्रसन्न .......
ऐथरै आस ..... {#: २६}
. 29.04..2017) .
स्कूलौ टैम …..
बरखौ दबड़ाट …….
मां परेशान ….. {#:२५}
बरखौ दबड़ाट …….
मां परेशान ….. {#:२५}
. 28.04..2017) .
हिन्दू धर्म …..
सोलह संसकार …….
कन्नू को च ….. {#:२४}
सोलह संसकार …….
कन्नू को च ….. {#:२४}
. 28.04..2017) .
शाबास टप्पू .....
सिर म च गंठड़ी .......
घोड़म अप्फू ..... {#: २३}
सिर म च गंठड़ी .......
घोड़म अप्फू ..... {#: २३}
. 26.04..2017) .
जेठा मैनम .....
जननै न मर्द भी .......
सिर ढकदीं ..... {#: २२}
जननै न मर्द भी .......
सिर ढकदीं ..... {#: २२}
. 25.04..2017) .
कैन पुछणै .....
तीन म न तेरम .......
खोटु सिक्का ..... {#:२१}
तीन म न तेरम .......
खोटु सिक्का ..... {#:२१}
. 24.04..2017) .
दानौ ब्वल्यूं .....
अर औंलौ स्वाद .......
बादम आंद ..... {#:२०}
. . 23.04..2017) .
अर औंलौ स्वाद .......
बादम आंद ..... {#:२०}
. . 23.04..2017) .
रुक्मण्यु ब्या .....
कृष्ण भगै कि ला .......
सब खौले गीं ..... {#:१९}
. . . 22.04..2017) .
कृष्ण भगै कि ला .......
सब खौले गीं ..... {#:१९}
. . . 22.04..2017) .
बाछि पिजणीं …..
गौड़ि वीं थैं चटणीं …….
बाघ द्वबणूं ….. {#:१८} ...
गौड़ि वीं थैं चटणीं …….
बाघ द्वबणूं ….. {#:१८} ...
. . .
21.04..2017) .
डोठ बखुरु .....
तैका जौंल्या चिनखा .......
दुगुणु फैदा ..... [#:१७]
तैका जौंल्या चिनखा .......
दुगुणु फैदा ..... [#:१७]
. 20.04..2017) .
.
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}
.
के आधुनिक
लोकगीत/कविताएं , नज्म ;
, उत्तरकाशी गढ़वाल
से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म;
टिहरी गढ़वाल से
आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म;
रुद्रप्रयाग गढ़वाल
से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म, चमोली गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म, , सलाण से गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत; पौड़ी तहसील से गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म,
; लैंसडौन तहसील गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत ,
कविताएं , नज्म
.
Garhwali verses, Garhwali Folk
Songs, Garhwali Poems
[#KGDH/20-08#05#17#]
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