भवानुवादक - कृष्ण कुमार ममगाईं
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ब्यो का 7 बचन गढ़वाली स्लोक :
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जु शादिसुदा झन उ फेरौं का यूँ 7 बचनू थैं मनन कैरा अर जौंका ब्यो हूंणा छन उ रियलसल कैरा। संस्कृत का मन्त्रु कु यु गढ़वाली ड्राफ्ट रूपान्तर जन चा ।
प्रथम वचन:
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
याने (गढ़वालिम)
तीर्थुम बरतुम यज्ञोंम पाठुम,
दगड़ी रखल्य जू अपणां हि साथम ।
वामांग मा औलु तभी तुम्हारा
पैलू बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
द्वितीय वचन:
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!
याने (गढ़वालिम)
अपड़ा ब्वै-बब्बु जन म्यारा भि मनल्या,
मर्यादा जन सब्बी कर्म कल्या ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा
दुसरू बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
तृतीय वचन:
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!
याने (गढ़वालिम)
जीवन कि तिन्नी अवस्थौं म मेरी,
मेरु जु पालन करल्या त ब्वाला ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा
तिसरू बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
चतुर्थ वचन:
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!
याने (गढ़वालिम)
कुटुम्ब पालनकि सबि जुम्मेबारी,
लींदा प्रतिज्ञ उठांणा कि सारी ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा
चौथू बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
पंचम वचन:
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!
याने (गढ़वालिम)
घर-भैरा कामुम कै भी व्यवहारम,
खर्चा कनम जू मीं थैं भि पुछल्या ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा
पांचौं बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
षष्ठम वचनः
न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!
याने (गढ़वालिम)
अपमान नी कल्या दगड़्यों क बीचम,
जुवा आदि ब्यसनौ से रैल्या दूर ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा
छट्टू बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
सप्तम वचनः
परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!
याने (गढ़वालिम)
बक्की जननौ थैं माँ जन्न मनल्या
अर हमरा प्रेमम हैंकै नि स्वचल्या ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा
सातौं बचन यो ब्वल्दा कुमारी ॥
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: [जै भैरव नाथ जी की ]
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