(गढ़वळि नाटक पुनर्जीवितिकरण पप्रसिद्द लोक नाट्य सक्रिय शिल्पी डा .डी.आर. पुरोहित दगड़ भीष्म कुकरेतीअ टेली -छ्वीं )
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भीष्म कुकरेती - जी डा साब ! अजकाल दस बारा सालुं बटिं गढ़वळी नाटकुं मा सुन्नपट्ट हुयुं च।
डा .डी.आर. पुरोहित- हाँ दिखे जावो तो राष्ट्रीय स्तर पर बि इनि कुछ ..
भीष्म कुकरेती -ना पर मुंबई , पुणे मा मराठी नाटकों मा दुबर रंगत ऐ गे , मुंबई मा अब गुजराती नाटक खूब चलणा छन अर मुंबई म हिंदी नाटक बि अब ठीक ठीक चलणा छन।
डा .डी.आर. पुरोहित- हाँ वो तो च किन्तु गढ़वळि नाटकों की सबसे बड़ी परेशानी च बल इखमा नाटक का समझदार नाट्य लिख्वार नि छन , एकाद अपवाद हो तो हो।
भीष्म कुकरेती -मतलब जड़ नाट्य लिख्वार की सबसे बड़ी समस्या च।
डा .डी.आर. पुरोहित- बिलकुल सबसे पैल नाटक की समझ वाळ नाटक ल्याखन तो नाटक विधा अगवाड़ी बढ़णो बाटो साफ़ होलु। दिखणेर तो तबि आकर्षित होला कि ना ?
भीष्म कुकरेती - माना कि नाट्य लेखक मिल बि जावन तो मंचन की समस्या तो उख्मी च कि ना ?
डा .डी.आर. पुरोहित- जी आज मंचन खासो मैंगो ह्वे गे तो इखमा सामाजिक संस्था , समाज अर धनी वर्ग तै समिण आण पोड़ल।
भीष्म कुकरेती -जी कन ?
डा .डी.आर. पुरोहित- सामाजिक संस्थाओं व धनी वर्ग तै मंचन व्यवस्था करण पोड़ल अर समाज तै अपण खीसा से कंळदार खर्च करिक नाटक दिखण पोड़ल।
भीष्म कुकरेती -जी हाँ जनता तै पैसा लगाणो ढब डळण पोड़ल।
डा .डी.आर. पुरोहित- अर उत्तराखंड सरकार तै याने संस्कृति विभाग तै विजनरी ह्वेका नयो शिरा से आधुनिक नाटकों का संवर्धन , संरक्षण का वास्ता योजना बणाण आवश्यक च। आज की स्थिति तो भयानक च। संस्कृति विभाग बस एक तुर्री बजाण वळ विभाग बणी रै गे।
भीष्म कुकरेती -याने कि नाट्य शिल्प , समाज व संस्कृति विभाग तै एक दगड़ी ह्वेका काम करण से ही नाटक विधा माँ सुधार आलो।
डा .डी.आर. पुरोहित- बिलकुल तिन्नी स्तम्भ जब तक मीलिक काम नि कारल नाटकों विकास असंभव च।
भीष्म कुकरेती - जुगराज रयाँ।
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