Garhwali Poem by Payal Uniyal
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मेरा मन म बस्यूँ मेरू गौं
अर गौं का बीच मा मेरू घौर
व पठलिदार कूड़ि
तिबरि, डंडयलि अर ख्वळी
एक भितर द्यब्ता ठौ
दूसरा भितर नाज ल भ्वर्यां भकार
ओबरा रस्वड़ुबटि आंदि रस्याण
भैर लकड़ा फट्टू बन्यूँ जिंगला
आड़ा तिरछा ढुंगों न सज्यूँ चौक
मोल माटा ल लिप्यूँ म्यालु
कूणा फर घगरांदी जन्दरी
चौक मा व उरख्यलि
अर वखम सटि कुटदरों की
खट्टि मिठि छुंई।
एक कूणा पर
ढुंगा, माटा ल सज्यूँ चुल्हूँ
तिराल म व नारंगी डालि
अर वेम घिंडुणी घोल।
वलतरफ फुंगणौं खुण जयूँ बाटू,
अर बाटू किनरा पर सज्यूँ
पलदरा ढुंगू।
इनू कबि छौ अपणू घौर
आज बदलैगे भौत, भीतर-भैर
मेरू घौर, गौं, देश, समाज
सबि कुछ बदलिगै
नि बदली ता बस मन की सोच
घर गौं की याद अर अपणो की खुद।
अर गौं का बीच मा मेरू घौर
व पठलिदार कूड़ि
तिबरि, डंडयलि अर ख्वळी
एक भितर द्यब्ता ठौ
दूसरा भितर नाज ल भ्वर्यां भकार
ओबरा रस्वड़ुबटि आंदि रस्याण
भैर लकड़ा फट्टू बन्यूँ जिंगला
आड़ा तिरछा ढुंगों न सज्यूँ चौक
मोल माटा ल लिप्यूँ म्यालु
कूणा फर घगरांदी जन्दरी
चौक मा व उरख्यलि
अर वखम सटि कुटदरों की
खट्टि मिठि छुंई।
एक कूणा पर
ढुंगा, माटा ल सज्यूँ चुल्हूँ
तिराल म व नारंगी डालि
अर वेम घिंडुणी घोल।
वलतरफ फुंगणौं खुण जयूँ बाटू,
अर बाटू किनरा पर सज्यूँ
पलदरा ढुंगू।
इनू कबि छौ अपणू घौर
आज बदलैगे भौत, भीतर-भैर
मेरू घौर, गौं, देश, समाज
सबि कुछ बदलिगै
नि बदली ता बस मन की सोच
घर गौं की याद अर अपणो की खुद।
- पायल उनियाल।
अदालीखाल, पौढ़ी गढ़वाल
16/5/17
अदालीखाल, पौढ़ी गढ़वाल
16/5/17
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