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Wednesday, May 10, 2017

Garhwali Poems , Ghazals, Gajals, Sher by Payash Pokhara

पयाश पोखड़ा की गढ़वाली कविताएं , शेर, गजलें 
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विकास का नौ चार लैन
*******************
डिलि-द्यारादूणा ल म्यारा भय्यूं थैं इनु रुजगार द्याया |
आज म्यारा गांवा कि इक्कैक घर-कूड़ि खंद्वार ह्वाया ||
ठिट्ट चुलखन्दिम तक काळि डमरौण्यां सड़क पौंछे याल |
गांवा कि खुट्टि भैर रड़ाणा को कन सौंगि सौंग्यार ह्वाया ||
आळौ मा द्यू बतूलु,जळ्वठौं मा चिमिनि नि चमकदि अब |
गांवा का सूरज फर त चुकापट्ट अंध्यरौं की अंद्वार आया ||
घम-पाणि बिजिलि(1) त अब सरकरि पिनसनेर ह्वै ग्याई |
तू ये वैम मा नि रै कि त्यारा गौं मा कभि उदकांर ह्वाया ||
(1) सौर ऊर्जा-पन बिजली
@पयाश पोखड़ा |
"चांठौं का घ्वीड़"
*************
स्यो जो राजपथ मा सुरक कै डुंकरतळि मरणा छन |
स्यो जो इण्डिया गेट मा चाणा मुंगफ्वळि क्वरणा छन |
परदेसा की चौंप लगण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो पर्वठी ल्हेकि दुधकि लैनम खड़ु हूयूं च मदर डेरी |
स्यो जो ओगळ पळिंगा का भौ पूछणु च रेड़िम बेरी बेरी |
घ्युवा की कम्वळि फुटण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो पैरणा छन पिनसिनि हील्यूं का उचा उचा सैंडल |
स्यो जो भग्यनि घुमाणि छन दिनरात मारुति का हैण्डल |
घास लखड़ु की बिठिगि उफरण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो बीस गज जागा मा चारदिवरि अर पौ धराणु चा |
स्यो जो कर्जपात कैकि कज्यणि थैं सबुकि बौ बणाणु चा |
वनसैड ओपन पलाट कु बयनु दीण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो खड़ा छन कैदि स्यूंद गाडिक कोट पैंट टै लगैकि |
स्यो जो नड्डा जननि थैं बुलाणा छन अंग्रेजिम धै लगैकि |
अपणि गढ़वळि एड़िकै बिसरण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो बड़ बड़ा पुटगौं का छ्वटा अफसर बण्यां छन |
स्यो जो कुक्कर काखड़ौं का भि भलिकै पछ्यण्यां छन |
अपणि पुरणि पछ्याण लुकाण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो गढ़वळि संस्था सोसैटि को पैसा कठ्ठा कना छन |
स्यो जो रुम्कदां छक्वै दारु पीणा खुण छम्वटा कना छन |
झांझि दर्वळ्यौं की कछिड़ि लगाण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो खद्दर कु डमडुमु कुरता पैरिक आणा जाणा छन |
स्यो जो नेताजि का डडुळू पणै बणिक दरि बिछाणा छन |
जिन्दावाद जिन्दाभात टिण्डाभात खाण से पैलि--
सी छाया चांठौ का घ्वीड़ ||
स्यो जो चार आख़र जोड़ि जोड़ि सिक्कासैरि कना छन |
स्यो जो दिल्लि मा बैठिक गढ़वाळा की खैरि ब्वना छन |
"पयाश" पोखड़ा का गीत गज़ल बणाण से पैलि--
सी छाया चांठौ का घ्वीड़ ||
@ पयाश पोखड़ा |

=
***************************************
ज़िंदगि कु "पयाश", बस ! इत्गै हिसाब-किताब चा |
फ़ज़ल स्यवा-सौंळि अर ब्यखुन्यां समन्या साब चा ||(1)
सदनि वो उत्यड़ु फर उत्यड़ु लगाणु राया |
म्यारा गळ्या कु ढुंगु मि बाटु बताणु राया ||(2)
@पयाश पोखड़ा |
=
जिंदगि- एक गज़ल
****************
गंगाजि का जौ हुईं च जिंदगि |
बिरणौ का नौ हुईं च जिंदगि ||
हाथ जोड़ि खड़ाखड़ि छवां |
द्यप्तौं कु ठौ हुईं च जिंदगि ||
रोज़ नै-नै कीला ज्यूड़ि बांध |
गुठ्यारा की गौ हुईं च जिंदगि ||
मौळि नि कभि जो नासूर |
कन गैरा घौ हुईं च जिंदगि ||
तेरि खुद ज़िकुड़ि मा बिनांद |
शूळ-पिड़ा डौ हुईं च जिंदगि ||
धुरपळि धरिं छन मुण्ड मा |
कूड़ो कि पौ हुईं च जिंदगि ||
त्यारु जि नि राई क्वी सैं-गुसैं |
सर्या गौं कि बौ हुईं च जिंदगि ||
गौं-गळ्या खालि च मुलक मा |
सूना का भौ हुईं च जिंदगि ||
सितगा नि तक्ण्यौं रे किदला |
सिक्कासैर्यूं की मौ हुईं च जिंदगि ||
सस्ता मैंगा कि बात नि "पयाश" |
टका सौ-सौ हुईं च जिंदगि ||
@पयाश पोखड़ा |
===================
एक गीत गंज्यळि
**************
ग्वाया लगांदा चौमासा थैं देळि उगड़णि दे |
लगुलि रितु बसन्त कि ठंग्रि मा चढणि दे ||
फोळि सि हुटण्यूं की डिमडल्यूं थैं ठसोळिक |
दळम्यां का बियौं थैं मुलमुल हैंसणि दे ||
फीकि मळमळि अर बकळि सि जीभि मा |
हिंसोला किनगोड़ा कि मिठ्ठी बूंद तरकणि दे ||
उल्यरा दिनु थैं अभि सौरास नि पैटैई |
दिन चारेक रंगमत मैना थैं मैता मा रणि दे ||
धगुला झिंवरा ज़िकुड़ि थैं आंख्यूं मा पैजमी |
स्वीणो थैं चूड़ि फूंदा अर बिन्दी पैरणि दे ||
क्वीनों ल घचकाणि च या छमना हवा |
मीथैं थड्या चौंफला गीतु दगड़ उडणि दे ||
दुख खैरि फर अब खुटळि जिबाळ लगैदे |
बौळ्या बणकै पयाश थैं गौं मा रिटणि दे ||
@पयाश पोखड़ा |
===================
दिवंगत पूरण पन्त "पथिक" की मधुर स्मृति थैं समर्पित एक गज़ल---"ख्वज्णा रवां"
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सर्या ज़िन्दगि जारु-जख्यरु, जीम-जिमदरु ख्वज्णा रवां |
हम त म्वरण से पैलि अपणो पछतौ दिदंरु ख्वज्णा रवां ||
नवळि तुलबुल भ्वरिं अर पंद्यरि भि दिनरात खत्येणि चा |
वार ध्वार चोळि सि तिसळु वे पाणि पिंदरु ख्वज्णा रवां ||
कौळ्यण्या घळतण्या छुयुं मा जीब तिड़क्वळै सि ग्याई |
हम त सदनि वीं टटमरिं दाणि मेळु-घिंघरु ख्वज्णा रवां ||
बाळापना की वा कूड़िबाड़ि गोठपल्ला अर गौड़ि बाछी |
चिफ्ळदि उमर मा भि सुपिन्या बैलु बिंदरु ख्वज्णा रवां ||
आंखि मेरि रुणि छे पर आंख्यूं मा इ आंसु कैका रै होला |
गळ्वड़ियूं मा अटकीं आंसु बूंद मा वे रुंदरु ख्वज्णा रवां ||
अब न याद न पराज़, न भटुळि न आग घुघरांद "पयाश"|
झणि किलै आज भि वे ज़िकुड़ि लुछदरु ख्वज्णा रवां ||
@ पयाश पोखड़ा |
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----------- गज़ल----
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कब क्य कै साक दूधल वीं दै कु |
दुन्यां मा कब ह्वै साक क्वी कै कु ||
लोग जै भग्यान थैं सौकार बताणा छन |
मीथैं त जम्मा नि लागु वो द्वि ढै कु ||
आग मुंजैकि मवार न्यूतणा छन जो |
कभि नि द्याखु वूंका चुलम क्वी तैकु ||
सुण्यां कु अणसुणु कैकि बौग सरणु जो |
चुप रौ, अब क्य कन तेरि सीं धाद धै कु ||
डाळि बोटि फूलु दगड़ खुपसट कनि छन |
कुटमणों फर प्वत्ळ्यूं कु प्यार च नै नै कु ||
एक ब्वै एक बब्बा एक ल्वै च पर तैभि |
न भै म्यारु ह्वै साक कभि न मि भै कु ||
हिक्वळि फील्यूं की नस नाड़ि न्यूरेणि छन |
मेरि ईं सूळ पिड़ा क्य समझलु क्वी हैंकु ||
================
एक गौंछ्यळु गीत इनु भि..........
("घंजीर" भै साबा की खुचिल 'अंज्वाळ' पांचेक ध्वळनु छौं !)
छुयुँ-छुयुँ मा कबरि-कबरि,
छुवीं ऐ जालि जबरि हमरि,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो……
आँसु ल डबळईं आँखि तुमरि !!!
से उठिकि सुबेर ल्याकि,
सुपन्यळ्या आँखि ध्वै-धाकि,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो......
मेरि शकल लुकंईं तेरि आँखि !!!
मेरि खुद ल्हेकि ऐलि बरखा,
आँख्युं मा आँसु बूँद सरका,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो.......
गळ्वड़्युं मा आँसु की तरका !!!
मेरि खुद जबरि त्वै लगालि,
टपराँदि आँखि मी ख्वज्यालि,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो......
घुट्ट-घुट्ट भटुळि त्वै लगालि !!!
दगड़्यों दगड़ त्यारा गौं,
तु सुणलि कि मि भि औं,
ख्याल राखि दौड़ि नि जै हो......
बिना चुन्नी अर नांगा पौ !!!
चौबट्टा मा छट्ट छोड़ि गैन जो हथ छड़ैकि |
"पयाश" ज़रा बाटु बतै दे वूंथैं ठिट्ट घनै कु ||
@ पयाश पोखड़ा ||
===================
"सुबेर नि हूंदि" (गज़ल)
******************
काम काज़ा की अब कैथै देर नि हूंदि |
अजकाल म्यारा गौं मा सुबेर नि हूंदि ||
घाम त तुमरि देळिम कुरबुरि मै बैठु जांदु |
अगर सूरज़ थैं बूण भजणा कि देर नि हूंदि ||
खोळ्यूंं का द्यप्ता भि दगड़म परदेस पैट जांदा |
जो गौं गळ्यां मा घैंटी डौड्ंया की केर नि हूंदि ||
गुठ्यारा की गौड़ि अपणि बाछि थैं सनकाणि चा |
द्विया खळ्कि जांदा जो या दानि गुयेर नि हूंदि ||
द्यप्तौं का ठौ का द्यू बळ्दरा भि हर्चिगीं कखि |
द्यप्तौं का घारम बल देर च पर अंधेर नि हूंदि ||
जब बटैकि उज्यळौं मा रैणा कु ढब ऐ ग्याई |
अंध्यरौं मा गांवा की मुकजात्रा बेर बेर नि हूंदि ||
होलि तू दूणेक,नाळेक,पाथेक,सेरेक परदेस मा |
जलमभुमि कभि अपणों खुण सवासेर नि हूंदि ||
जो बैठिगीं, वो बैठिगीं भग्यान वे खैरा चमसू |
'पयाश' बांजि पुंगड़ियूं मा क्वी हेरफेर नि हूंदि ||
@ पयाश पोखड़ा ||
==============
गज़ल
******
उजड़्यां चौका चुलौं मा किर्याण हि किर्याण चा |
क्वी बतावा त सै, यो गांव चा कि तिथाण चा ||
म्वर्यां ल्याक लमपसार हुई च जो चिलौ पराळ मा |
सुन्यपात प्वड़िं जिदंगि को इनु ढकीण डिस्याण चा ||
बिसर्यामा भि नि मोरि जै कखि तू ये गांव मा |
यख त काणा गरुडू अर सड़्याण हि सड़्याण चा ||
अहेड़ समैणा झिंवरा निन्यरा मंगळेर बण्यां छन |
बरैनाम मनखि यख खालि हुयूं चौकु खल्याण चा ||
अत्वणि बत्वणि घाम पाणि बर्खि बर्खी लूछि गैन |
त्यारा गांव गळ्या की 'पयाश' रईं क्य पछ्याण चा ||

@पयाश पोखड़ा |
============
गज़ल
*******
च्यकच्यईं ज़िकुड़ि फर गज़ल लेखि जैई |
ब्यखुन्यईं मुखड़ि फर फ़ज़ल लेखि जैई ||
रैबार मीलू नि मीलू पर टक लगैकि |
चिठ्ठीम अपणि असल कुसल लेखि जैई ||
सर्या गाँवा की नज़र त्यारा मुख लगीं चा |
अपणां नांवा की क्वी मसल लेखि जैई ||
देळि लंघयाँ त्वै कत्गै ज़मना बीति गैन |
रड़दि फटळि फैड़्यू की सकल देखि जैई ||
द्वि कौड़ि को सगोर नि राया जौं फर |
वेका नौ म्यारा बाँठा की अकल लेखि जैई ||
अब नि करदी क्वी आँखि कैथै जग्वाळ |
ब्वग्दा आँसु कि चखळ पखल देखि जैई ||
अपणा मुरक्या जोग फर कतै नि रुसाणु |
दगड़्या "पयाश" को भाग पंजल लेखि जैई ||
©पयाश पोखड़ा |
=========
एक कौथिगेर गज़ल........
तू पुंगड़्यूँ का बीच जमीं,
हैरि-भैरि मरसू छे !
मि त फाँगों मा यखुलि खड़ु,
सुख्यूँ सि मरसेट छौं !!
तू बड़ा-बड़ा डूण्डों की,
झंग्वरा की बोट छे !
मि त गोर ऐथर ध्वळ्यूँ,
भुकमर्या सि झुंगरेट छौं !!
तू भड़भड़ि मिट्यौण्या,
 बीड़ि की सि सोड़ छे !
मि मस-मस कै फुकेन्दि,
पनामा की सिगरेट छौं !!
तू ब्यावा की रमछोळ मा,
फ्यारा अर ग्वतराचार छे !
मि घुळिअरगा की खुट्टा धुवै,
अर बुढण्युँ की ससभेट छौं !!
तू फुर्र उडदि घिंडुणी सि,
चंट-चंखड़, च्वीं-च्वीं छे !
मि सदनि कु मंगत्या सि,
लोया, लाटु लमलेट छौं !!
==============
एक गज़ल इनि मेसिकि भि ।
**************************
जिदंगि मा नकन्यट च तबरि तक।
जिकुड़ि मा सकस्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा रकर् यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा धकध्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा डंगड्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा घमघ्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा लकल्यट च तबरि तक ।
ज़िकुड़ि मा छकछ्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा बगछ्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा खुपस्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा गंगज्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा थकथ्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा ककड़्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा धमध्यट च जबरि तक ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
==========

गढ़वळि गज़ल ।
***********************************
क्य पुछदि अपणि पुंगड़्यूं का हाल भुला।
द्वि मेलि जख्या नि जामि ये साल भुला ॥
गौड़ि न भैंसि न घ्यू न दूध न क्वी लैंदु ।
बिसरि ग्यौं झणि कब छांच छ्वाळ भुला।
बिणसि गैन मवार पणसि गैन बूण मनखि,
निरदया परदेसा ल इनि घात घाल भुला।
उंदर्यूं का बाटा सबि पैट्यां छन लगालगि,
कटेदिं नि बल रैस्यरा की उकाळ भुला ॥
अब त आंख्यूं थैं भि रुणा मा डैर लगद ।
रात्यूं अहेड़ रुंद दिनमान स्याळ भुला ॥
तैकु न कल्यौउ न पौंणा बरत्यूं कु रस्वड़ू,
अब नि तड़ेदीं वो चांदण तिरपाल भुला॥
जो आंखि त्वै धार पोर जांदा द्यखणि रैईं।
वी आंखि लगी छन त्यारा जग्वाळ भुला।
तू मेरि सांग फर कांध लगाणु को नि ऐई।
छैंछी आबत अस्नौ चार डुट्याळ भुला।
छज्जा मा बैठिक क्य ह्यरणु छे 'पयाश' ।
नि दिखेंदा चखुला चौका तिर्वाळ भुला ॥
© पयाश पोखड़ा ॥

==============
गज़ल
******
आंख्यूं मा आंसु सि छ्वळै त ग्या होलु ।
आदिम च वो कखिम फ्वळै त ग्या होलु ॥
छुवीं बथुम सदनि मौल्यार कख रै साक। जिकुड़ु च यो कखिम कळै त ग्या होलु ॥
पुरणा तुरणा लारा लत्ता कै कामा का ।
बटन च वो कखिम ग्वळै त ग्या होलु ॥
ब्याळि तक बड़अद्मै मा भयां नि द्याखु ।
माटु च वो कखिम घ्वळै त ग्या होलु ॥
कामा कु न काजा कु द्वि सेर नाजा कु ।
प्यटपाळ च वो कखिम पळै त ग्या होलु॥
औलदि का बाना जु लंगड़ ल्हीणु राया ।
म्वरधार च वो कखिम ध्वळै त ग्या होलु।
सदनि इकसनि चलक्वरा दिन कख रदीं।
घाम च वो कखिम स्यळै त ग्या होलु ॥
सर्या जिदंगि दुन्या थैं जणदा पछ्यणदा ।
"पयाश" कखिम घंघत्वळै त ग्या होलु ॥
©पयाश पोखड़ा ॥
===============
गज़ल
******
ढुंगु सि दिल बरैनामा कु ।
काजा कु न कै कामा कु ॥
त्वै बिसरणा की चाना मा ।
न क्वी ज्यू कु न जामा कु ॥
ब्यखुनि फज़ल अंध्यरौं मा ।
क्य कन द्वफरा का घामा कु ॥
माया दगड़म लगैकि ढबैकि ।
किळै डरणा छीं बदनामा कु ॥
'पयाश' नि उत्ड़्यौ सित्गा भि ।
सीं बड़अद्मै मा खामखामा कु ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
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विधान सभा चुनौ-२०१७(उत्तराखण्ड)
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वोट दीण से पैलि जरसि--?
कि तुमरु भोट मंगदरु ----
स्यो गढ़वळिम बच्याणु च तुम दगड़ ।
स्यो गढ़वळिम भासण दीणु च ।
स्यो गढवळि रीति रिवाज/नाता रिश्तों कु जणगुरु चा ।
स्यो दरजा पांच तक अपरा गांवा की प्रैमरि इसगोला म जयूं चा ।
स्यो विदान सभा का कै गावा कु चा ।
से कु फटलों अर ढुंगों की कूड़ि अभि तलक गांव मा छैं च ।
से कु अपड़ा गांवा मा आणु जाणु छैं च ।
स्यो विदान सभा का सबि गांवा का नाम जणदु चा ।
स्यो तैळ्या मैळ्या सारी मा बुतीं फसल पात अर बीजा कु धर्यां नाजु कु नाम जणदु चा ।
स्यो उकळि हिटदा दा सुसगरा त नि भ्वनु चा ।
स्यो कुरता सुलार दगड़ रबड़ सूल पैरद।
स्यो कतगा ब्यो बरतियूं मा न्यूतु दे ग्याई।
स्यो कतगा बरसी छपिण्डी जगर्यूळ द्यप्त्यूळ मा दिख्याई ।
==================
गज़ल
*******
दिदा दुन्या दिख्यां दुन्यदरि
बताणा छन ।
अपणु बिरणु माल थैं सरकरि
बताणा छन ॥
बघनखा पैर्यां छन हथुकि अंगुळ्यु मा ।
सर्या मुलक मा अपणि रिस्तदरि
बताणा छन ॥
दिनमान छुयूं मा जौंकु गिच्चू नि पटांदु ।
वो छुयांळ हमरु बच्याणु थै बिमरि
बताणा छन ॥
लंग्वट्या यार लंग्वटु बेचि भाजि ग्याइ ।
अजकाल दगड़्यों थैं लोग ब्यौपरि
बताणा छन ॥
अंधु घोल छोड़िकै अकाळ म्वार बब्बा।
सैंति पाळि सितरा करौ वींथै बिचरि
बताणा छन ॥
नश म गुंग बणि आंख्यूं मा फूल पोड़िगे ।
चुड़ापट्ट दीन द्वफिरि थैं कुरबरि
बताणा छन ॥
बल 'पयाश' की सिरमथि बीए पास चा ।
गौं गळ्या मा ब्वारी थैं भारि चरचरि
बताणा छन ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
========
ऐगीं नेताजी भारे !!
*****************
करळि सुफेद ट्वप्लि पैरिक,
त्वै पुजणा को ऐगीं ।
त्यारा तिड़क्वळ्या तव्वा मा,
भट भुजणा को ऐगीं ॥
अंग्वठा दिखै ग्या छायो जो,
चुनौ जीतणा का बाद ।
फेरि त्यारा गळ्या मा त्यारु,
अंग्वठा चुसणा को ऐगीं ॥
कभि नि धराई छायो मिल,
तैल्या मैल्या ख्वाळ अंठा मा ।
भोटु का लिबद गौं गळ्या मा,
सबुथैं लुछणा को ऐगीं ॥
अभि तलक त नि चिताई कैल,
त्यारा पस्यौ कु मोल ।
आज त्यारा ल्वै दगड़ फेरि,
कत्तल रुजणा को ऐगीं ॥
फ्यफ्नौं की दळखा बिवयूं फर,
लीसू लगाणाकु को आया ?
त्यारा मुक नजर लगैकि,
आंखि बुजणा को ऐगीं ॥
गैरहळ्या ब्वै छोड़िक कांधिम,
भारत माता ब्वकुणु रै ।
त्यारा बाटों मा उज्यळु द्यख्दै,
बतुलु मुंजणा को ऐगीं ॥
रौलि गदनि कूल नवलि पंद्यरि
अर आंखि बिसगीं छन ।
स्यूं कुड़गटीं गल्वड़ियूं ऐथर कैर,
आंसु फुंजणा को ऐगीं ॥
हम त सदनि दुख पिड़ा की
दाळ बिराणा रवां ।
आज छीमी का म्याला बणि
भड्डुंद उजणा को ऐगीं ॥
त्यारा तिड़क्वळ्या तव्वा मा,
भट भुजणा को ऐगीं ॥
©पयाश पोखड़ा ॥
====
त मिल क्य कन ?
**************
तेरि आंख्यूं मा आंसु की पंद्यरि नवळि,
त मिल क्य कन तब ?
बगत की हत्थ्यू मा थमीं दाथी थमळि,
त मिल क्य कन तब ?
कभि नि ज्वाड़ा हथ द्यप्तौं का ठौ मा,
तू रेची ल्हे देळिम अपणि मुण्ड कपळि,
त मिल क्य कन तब ?
ओगळ पळिंगु टुकुलु द कख कि छुवीं,
त्यारा भागम त सदनि भुज्जी कंडळि,
त मिल क्य कन तब ?
अधीतु नि हो जरा ग्वत्राचार त हूण दे,
भुला तिल पैलि खोळ्याल स्य बड़डलि,
त मिल क्य कन ?
जामण मंगदरौ की लैन च सुबेर बटैकि,
जो तुमरा ठ्याकुंद खट्टि दै नि जमलि,
त मिल क्य कन ?
ठुलि ब्वारी थैं परदेस पणसै गे 'पयाश',
ननि ब्वारी घारम खपलि कि नि खपलि,
त मिल क्य कन ?
©पयाश पोखड़ा ॥
==

अणत्वसि राया म्यारु मन,
तेरि मयळ्दु माया का लिबद ।
कभि आख़र नि मीला मिथैं,
कभि हर्चि गैन म्यारा शबद ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
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