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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, May 10, 2017

सुनील भट्ट की गढ़वाली कविताएं

Garhwali Verses by Sunil Bhatt 

          "रूईं प्वीं फेर वी  छुईं"
-
कख लग्याँ तुम चक्कर मा, तुमरी बी छ्वीं ।💔
रूईं प्वीं फेर वी छ्वीं ।।.........हैं ! 😣
कख लग्याँ तुम चक्कर मा, तुमरी बी छ्वीं ।💔
क्य स्वचणा छाँ दि ईं दाँ..... हे राम कख🖓👎
न भै ना ..बुरौ मौ ..☻😈 कतै ना ...😠
द्यखणा त छाँ तुम क्य छन छवीं👺
रूईं प्वीं फेर वी छ्वीं।।😨
इतगै साल त ह्वैगैनी, हे राम कख!
कब स्या थोर बियाली 🐃🐃
कैबरयौं दूध द्याली,।🍼🍼
अर कै दिन तीस बुझाली। 🙂🙂
दा बुबा रै🙄ना क्वी छ्वीं,  रूईं प्वीं फेर वी छ्वीं🐵
कनु बी क्या,  हे राम कख,
अक्वै अक्वै ह्वाँ👀 देखी भाऽली,
उज्यड़्यूँ च रै गल्यौ चड़्याऽली।
चुकापट्ट, रूणाकट्ट हे छोरो,
झड़म तड़म😬😬,
हे! खड्यूँणयौं क्वाचा।
ढंढी सुखीं रै अब खा माछा😻।।।
=
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        जरा सभंलीऽऽक.....
                           यूँ भावों की एक तुराक ..
         "पंच केदार पुजुणू छौं"
हम्म....अब ऐ गेनी चुनौ नजीक,
हे मेरी ब्वै! अब दिख्याँ तौंकी गिच्ची।
चिफऽली, पितऽली हाँ भै सच्ची,
रड़म रैड़ी खेल्या धौं रड़ागुसी।।
अब तौंथैं मेरू भारी ख्याल आण,
द्वी दिनौं मी हीरो बणाण ।
गपोड़्यौंन करड़ करड़ कैरि,
म्यरा कंदूड़ क्वरी खूबकै खाण।
चुनौ मा तुमुथैं खूब बखाण,
अर जीतै माऽला गौऽला डऽलैकी,
घिडुड़ै जन फुर्र ह्वै जाण ।।
मी "उत्तराखंड" छौं दगड़्यौं,
टुप्प बैठी तमाशु द्यखुणू छौं।
मिल्याँ सच्चा सेवादार ईं दाऽऽ,
हे देव्तौं, पंच केदार पुजुणू छौं।।
एक तुराक/स्वरचित
  सुनील भट्ट 06/11/2016
--
पंच केदार पुजणू छौं" भाग-2
        
यनु सी लगणु अब
मेरी खैरी का दिन,
कटेई गेनी दिदौं।
गाती का दुखदा,
मौऽली सी गेनी दिदौं।।
म्यरा सैत्याँ, म्यरा पऽल्याँ
म्यरा अपड़ा आज जब देखुदू ऊँथैं
औऽऽ मत्थी टुक्कु मा बैठ्यूँ,
त मेरी वा सुखीं डाली,
हैरी भैरी  द्यखेंदी दिदौं।
अर वींका फाक्यौं कु खुशी मा नचणू,
म्यरा दिलै झैल बुझौंदी दिदौं।।
खूब ह्वुयाँ , खूब रयाँ
गौं गल्या, दगड़ी कुटुंब परिवार
अर अपणा भै बंदौं बी खूब ख्याल रख्याँ।
सदनी सुपन्यूऽऽई  द्यखणू ह्वै मीकुणै
अर अजी बी सुपन्या द्यखुणू छौं,
मी उत्तराखंड छौं दगड़्यौं,
पंच केदार पुजणू छौं ।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
19/12/2016
पलायन से जोड़ी देखा।
   
       "मेरी तिमलै डाली"
मेरी तिमलै डाली, झणी कु लछैगे,
चुफ्फा तलैई बी, खूबकै चुगनैगे।।
मी त रैग्यौं बौण जयूँ
अर नौना गोर चरौणा,
सासु बिचरी त भितरै सैंईं रैग्ये।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे ।।
सुख दुख मा कबरयौं
कै ध्वारों जाणू नी हुयेंदू ,
तमाशुगेर बणी बल, ऊ त द्यखदै रैगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे ।।
अपणी अपणी खाणी पीणी
दुख दर्द बी अपणा अपणा छन,
हर्चीगे अब ऊ सारू भरोसू, बुरू जमानु ऐगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे।।
ठठा मजाक बणौण मा कै
हैंके कुछ नी ख्वयेंदू,
देल्यौं देल्यौं जै जैकी झणी कु छ्वीं सरकैगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे।।
हम स्वचणा रा कि ऊ ऐ जाला
ऊ त ब्वना  तुम अफी लीजा,
छौंदा हथ्यौं खुट्यौं बल तू डूंडी किलै ह्वैगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
17/11/17

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