सन ७५ में एक नया नाम जुड़ा गड्वाली नाटक में वो है राजेंदर धस्मान जी का ! मै गढ़वाली के रंगमच का एक जाना माना नाम बनगया था ! लोग मेरे नाम से भी नाटक देखने आने लगे थे ! सन ५८ ५९ से सरोजनी नगर में एक संथा "साहित्य कला समाज " जो कभी एकाकी नाटक करती थी ने अपना नाम बदल कर "जागर" रख दिया था उसके तत्वाधान में राजेंदर जी का लिखा नाटक " जक जोड़ " सुरु हुआ ! मुझे राजेंदर जी ने कहा की मै उसमे रोल करू लेकिन मुझे उसे बीच में ही छोड़ना पडा ! उसके दो कारण थे ! एक तो सब लोग देर से रिहर्सल में आते थे ! दुसरा ये जगह मेरे घर से बहुत दूर थी लिहाजा मैंने राजेंदर जी से साफ़ २ कहा दिया अगर लोगो ९ बजे रात की बजाये ७ बजे या ८ बजे आजे तो में काम कर सकता हूँ बरना मुझे माफ़ कर दे मै नहीं कर पाउँगा ! ये वही सस्था थी जिसमे मैंने बहुत पहले रोल मागा था तब इससे जुड़े किसी कलाकार ने कहा था की अभी तुम हमारे लिए पान बीडी लाओ फिर देखेंगे ! नाटक इसका निर्देशन किया था मोहन डन्द्रियाल जी ने जो सफल रहा ! ये नाटक " शांता ते कोर्ट चालु आ हे / खामोश अदालत जारी है " से प्रभावित था !
२१ जुलाई ०९
सन १९७५ में राजेंदर धस्मान जी का नाटक "अर्धग्रामेश्वर " का मंचन हुआ ! मुझे मित्त्रानंद कुकरेती जो लोक सभा में थे उनका एक ग्रुप था जो साथ साथ काम करते थे मित्रा /गोवेर्धन थपलियाल /महेश बुदाकोटी ! मित्रा यधपि नाटक के बारे में जानते थे लेकिन ये दोनों नाटक से कोषों दूर थे ! मित्रा जी ने एक बार कहा था की मै तुमाहरे साथ नाटक जरुर करगा ! जागर ने इस नाटक निर्देशन मित्रा को देकर उनकी यह इछा पुरी कर दी ! नाटक की स्क्रिपट को पड़कर उन्हें एक पात्र डुबकी दास के लिए मेरा ध्यान आया और सीधा मेरे पास चले आये ! मित्रा जी ने मुझे कहा की मै इस नाटक में काम करू !
जागर में बतोर कलाकार के , एक मै ही था जो उनके ग्रुप से नहीं था बाकी सब उनके ग्रुप से थे ये इसलिए लिख रहा हूँ बाद में ये भी एक बहुत बड़ा किस्सा हुआ था जागर और मेरे बीच जिसका में बाद में जिक्र करुगा ! हम दोनों बैठे और स्क्रिप्ट के बारे मे बात करने लगे , उन्होंने मुझको डुबकी दास ( औजी ) का रोल करने को कहा मैं उनको कहा मै करुगा और जरुर करुगा क्यूंकि उस पात्र में अभिनय के दृष्टि से बहुत संभावनाए मूझे दीखी !
धस्माना जी का यह नाटक गड्वाली नाटको में एक मिल का पत्थर था जिसे हम हिंदी नाटको के समकक्ष रख सकते है ! नाटक पाहड के परिवेश व उसकी मूल समस्याओ पर आधारित था ! उसमे एक सूरदास का पाठ था जिसे चद्रसिंह राही ( गायक) अदा करने वाले थे ! जैसे ही रिहर्सल सुरु हुई , मेरा पाठ आया और जैसे ही डुबकी दास का जिक्र आया राही जी भड़क उठे ! उन्होंने दास सब्द को लेकर आपति जताई साथ में नाटक के कुछ कंटेट पर भी ! राजेंदर से उन्होंने साफ़ साफ़ कहा की या तो पात्र बदल दिया जाए तो नाटक होगा वरना मै तब एक गड्वाली जज हुआ करते थे भोलादत्त तीस हजारी कोर्ट में, उनके पास जाकर इस नाटक पर स्टे आर्डर लेकर आउंगा ! मैंने राही को उनकी उस धमकी के बिरोध में अपना रोस दिखाया और कहा की अगर आप जज के पास जायेंगे तो मै नया मंत्री जिन्हें मै अच्ही तरह से जानता था के पास जाकर तुमारे इस धमकी व जज की सिकायत करूंगा ! मैंने राजेंदर जी से इस पात्र को न बदली की बात कही और अपने नाटक औंसी की रात का जिक्र किया जिसमे सबर्ण और हरिजनों के बीच का टकराऊ हवाल दिया लेकिन वो राही के इस धमकी इसने डर गए थे की उन्होंने डुबकी दास की जगह उस पात्र नाम बदल `कर "मातबर " रख दिया और स्क्रिप्ट में भी बदलाऊ किया जिस को देखकर मुझे बडा दुःख हुआ ! देहली में इस नाटक के की रिपीट सो हुई ! हर सो मै कुछ न कुछ नया पंगा होता रहा कलाकारों के बीच !
अद्ध ग्रामेश्वर के देहली में रिपीट सो हो रहे थे ! नाटक जितना अछा था वो उतना ही बिबादाप्स्त भी रहा अन्दर और बहार ! उन दिनो मै गढ़वाली फिल्म के बारे में सोचने लगा था ! नाटक अनुभव थोडा होगया था स्क्रीन प्ले लिखने आ गया था ! अभिनय मै कर ही रहा था तो सोचा क्यों ना गड्वाली फिल्म बनाई जाय ! कुलमिला कर एक सोच पैदा होगी थी ! एक रोज मै और राजेंदर जी किसी एक मित्र मिस्टर बडोला जी लक्ष्मी
बाई नगर में थे वे उनके और मेरे भी रिस्तेदार थे उनके घर पर बैठ ! हम तीनो खा पी रहे थे ! बातो बातो में मैंने राजेंदर जी से कहा की आप समारिका में मेरा एक बिज्ञापन डाल दे
' "गड्वाली फिल्मो के लिए लड़के /लड़कियों की जरूरत है ! "
बस इतना कहना था की वो व्यंग से बोल उठे ........
" ------- गड्वाली लड़कियों को खराब करेगा ? " और लगे देने लेक्चर !
बात आई गई हो गई उनके लिए लेकिन अब मैंने ठान लिया की , चाहिए कुछ भी होजाये मै फिल्म बनाके रहूंगा चाहिए मुझे कितनी आपदाओं कितनी मुसीबतों से गुजरना पड़े ! मन में एक ठेस ( since this incident, i never spoke a single word with him from 1976 t0 2007 i.e 32 yeras paased ) जरुर लगी परन्तु एक संकल्प जागा ! इसी बीच मुम्बे से इस नाटक को करने का निमत्रण आया ! सायद गडवाल भ्रात्र माडल से या कोई और संस्था से ! बम्बे जाने की त्ययारिया जोर सोरो पर सुरु हो गई ! लोदी रोड में हिंदवान जी के घर के उप्पर छत में टेंट लगा कर रिहर्सल होने लगी ! मुम्बे जाने से पहले एक सो वो देहली में भी करना चा रहे थे ! इस नाटक में एक ग्रुप डांस होता है जिसमे १० १२ लड़किया होती है अब एक समस्या आ गई थी की डांस के लड़किया मिल नहीं पा
रही थी ! हिद्वान जी के बगल में कश्मीरी फैमली रहती थी जिनकी दो या तीन लड़किया थी सो , हिद्वान जी ने उन्हें यह कह कर रिहर्सल में आने को कहा की वो उन्हें मुम्बे ले जायेगे और वो इसी बहाने उनके साथ आगई ..मै देख रहा था ! सब सुन रहा था !
जैसा मैं पहले भी कहा था की मै ही एक अकेला कलाकार था जो बाहर से था और अब ये कसमीरी लड़किया ! बाकी सब उनके ग्रुप से थे ! कुछ लोगो तो मुझे काटने का प्रयाश करते लेकिन वो मुझे काट नहीं पाए क्यूंकि मेरा रोल ही ऐसा था की जो किसी और पर फिट नहीं बैठता या यु कहिये की कर नहीं सकता इसीलिए मै उनकी मजबूरी था ! देहली में होने वाली सो से एक दिन पहले गोबर्धन थपलियाल जो सचिब थे ग्रुप के मैंने
कहते सूना की कल शो हो जाएगा तो इन कश्मीरी लड़कियों का मुबे नहीं लेजायेगे ! उन बहिनों को जरा भी आभास नहीं था की उनको केवल कल तक के लिए ही बुलाया गया है जब की उनको यह कहकर लाया गया था की उनको मुम्बे ले जायेगे !
जब मैंने सूना तो मुझ से राहा नही गया मैंने थपलियाल जी से कहा --
' क्यों नहीं ले जायेगे आप इन्हें ? जब आप को लड़किया नहीं मिल रही थी तो तब आपने इसने ये कहा की तुम को हम बम्बे ले जायेगे अब काम निकल गया तो उनको मुम्बे ले जायेगे .!".
उन्होंइ मुझे खुरकर कहा " --- ये हमरा अपना अंदुरनी मामला है तुम कौन होते हो बीच में बोलने वाले ! तुम तो बहारे के हो ! .".
मेरा उत्तर था " ---इसलिए तो कहा रहा हूँ ये लड़किया बहार से है आपकी ग्रुप से नहीं ? और जो आप के ग्रुप नहीं उनका यूज करके बाद में बहार का रास्ता देखा दो यही ना ? मेरे मित्र हरी सेमवाल ने मुझे शांत रहने को कहा ! मैंने साफ़ साफ़ कह दिया कल में, मै फैईन आर्ट्स देहली में नाटक जरुर करूंगा लेकिन मुबे तब जाउगा जब इन लड़कियों को मै नई देहली रेलवे स्टेशन में देख न लू !
नाटक हुआ ! सब अपने अपने घर चले गए ! वो जानते थे की मै सच्ची बात के लिए किसी हद तक भी जा सकता हूँ ! इसलिए मे तब गढ़वाली रंग मच में एक बिबादापस्त ( कोन्त्रोवेर्सियल ) अभिनय के फिल्ड में ऐक्टर के रूप में या बिना किसी लांग लापोड़ के सीधी - सच्ची अपनी बात करने पर , चाहिए वो सामने वाले को बुरी लगे , याने मुहफट और साफ़ कहना मेरी आदत थी जिसके बजह से की लोग मुझे पच्चा नही
पा रहे थे ! मैंने राजनीति नहीं सखी ! सीखा तो निर्भीक होकर सच्ची बात कहना ! जिसका नुक्सान मुझे बात में झेलना पडा !
दुसरे दिन मुझको मनाने उन्होंने हरी को भेजा की मै अपनी जिद छोड़ दू ! मैं ने हरी को समझाया की बात उनकी नही है ! बात है वसूलो की ... और उपर से मुझे गुस्सा इसलिए भी आया की देहली में तो उनकी लड़किया स्टेज में नहीं आ सकती भले दुसर की लड़कियों जाये , अगर उनकी लड़कियों आ गई तो , कही छिन्टा कसी न हो जाए या मंच पर नाटक करने की बात कही उनकी शादी में अड़ंगा न बन जाए लेकिन मुबे जाने के लिए
सब की लड़कियों परिवार के साथ जा रही है और वो सब वहा स्टेज में डांस करेगे / पाठ भी करेगे ये देखकर/ सुनकर मेरा पारा आपे से बाहार हो गया था ! दिन के ४. ४५ पर नई देहली से दादर जानेवाली ट्रेन पर हम सब का रिज़र्वेशन था !
२१ जुलाई ०९
सन १९७५ में राजेंदर धस्मान जी का नाटक "अर्धग्रामेश्वर " का मंचन हुआ ! मुझे मित्त्रानंद कुकरेती जो लोक सभा में थे उनका एक ग्रुप था जो साथ साथ काम करते थे मित्रा /गोवेर्धन थपलियाल /महेश बुदाकोटी ! मित्रा यधपि नाटक के बारे में जानते थे लेकिन ये दोनों नाटक से कोषों दूर थे ! मित्रा जी ने एक बार कहा था की मै तुमाहरे साथ नाटक जरुर करगा ! जागर ने इस नाटक निर्देशन मित्रा को देकर उनकी यह इछा पुरी कर दी ! नाटक की स्क्रिपट को पड़कर उन्हें एक पात्र डुबकी दास के लिए मेरा ध्यान आया और सीधा मेरे पास चले आये ! मित्रा जी ने मुझे कहा की मै इस नाटक में काम करू !
जागर में बतोर कलाकार के , एक मै ही था जो उनके ग्रुप से नहीं था बाकी सब उनके ग्रुप से थे ये इसलिए लिख रहा हूँ बाद में ये भी एक बहुत बड़ा किस्सा हुआ था जागर और मेरे बीच जिसका में बाद में जिक्र करुगा ! हम दोनों बैठे और स्क्रिप्ट के बारे मे बात करने लगे , उन्होंने मुझको डुबकी दास ( औजी ) का रोल करने को कहा मैं उनको कहा मै करुगा और जरुर करुगा क्यूंकि उस पात्र में अभिनय के दृष्टि से बहुत संभावनाए मूझे दीखी !
धस्माना जी का यह नाटक गड्वाली नाटको में एक मिल का पत्थर था जिसे हम हिंदी नाटको के समकक्ष रख सकते है ! नाटक पाहड के परिवेश व उसकी मूल समस्याओ पर आधारित था ! उसमे एक सूरदास का पाठ था जिसे चद्रसिंह राही ( गायक) अदा करने वाले थे ! जैसे ही रिहर्सल सुरु हुई , मेरा पाठ आया और जैसे ही डुबकी दास का जिक्र आया राही जी भड़क उठे ! उन्होंने दास सब्द को लेकर आपति जताई साथ में नाटक के कुछ कंटेट पर भी ! राजेंदर से उन्होंने साफ़ साफ़ कहा की या तो पात्र बदल दिया जाए तो नाटक होगा वरना मै तब एक गड्वाली जज हुआ करते थे भोलादत्त तीस हजारी कोर्ट में, उनके पास जाकर इस नाटक पर स्टे आर्डर लेकर आउंगा ! मैंने राही को उनकी उस धमकी के बिरोध में अपना रोस दिखाया और कहा की अगर आप जज के पास जायेंगे तो मै नया मंत्री जिन्हें मै अच्ही तरह से जानता था के पास जाकर तुमारे इस धमकी व जज की सिकायत करूंगा ! मैंने राजेंदर जी से इस पात्र को न बदली की बात कही और अपने नाटक औंसी की रात का जिक्र किया जिसमे सबर्ण और हरिजनों के बीच का टकराऊ हवाल दिया लेकिन वो राही के इस धमकी इसने डर गए थे की उन्होंने डुबकी दास की जगह उस पात्र नाम बदल `कर "मातबर " रख दिया और स्क्रिप्ट में भी बदलाऊ किया जिस को देखकर मुझे बडा दुःख हुआ ! देहली में इस नाटक के की रिपीट सो हुई ! हर सो मै कुछ न कुछ नया पंगा होता रहा कलाकारों के बीच !
yatak bhej diyaa hai ................
मैने जागार के साथ ४/५ रिपीट शो मे काम किया दो/teen देहली में एक मुरादाबाद और एक बॉम्बे में ! बॉम्बे के बाद मैंने जागार से तोंबा करदी और वहा से आते ही मैंने "आंचलिक रंगमंच " की स्थापना करके अपना नाटक " तिम्ला का तिम्ला खतया------ " का मंचन किया गडवाल सभा की लिए ! इस से जुडा किस्सा भी अपने आप में बडा दिलचस्प है इसे आगे ब्यान करुगा ! जब दुसरा शो हुआ राही जी की जगह महेश तिवाडी को लिया गया कारण आप जान ही गए ! मुरादाबाद गए वहा भी नाटक की इत्श्री हुई ! नाटक की एक हेरोइन इंदु रावात को बुखार था वो पाठ करने से असमर्थ थी उनकी जगह उनकी छोटी बहिन को मंच पर उत्तरा गया ! देहली में कंकाल जी बीमार पड़ गए उनकी जगह एक इस कलाकार जो अपने को बहुत उस्ताद समझते थे उनको उत्तारा गया नाटक जैसे तैसे हो ही गया ! मेरा रोला अहम था जितने भी अबतक शो हुए थे उसे लोगो ने वा नेशनल पेपरो में मुझे हाई मार्क दिए ! मेरा काम उनको बहुत पसंद आया ! जागर की अंदर की दलगत राजनीति वो भी मेरे को लेकर नुझे बहुत बैचैन करनी लगी ! मुझे किसी तरह से निचा दिखाने का हर प्रकार से प्रयास किया जाने लगा था ! age bhe hai
१९७६ मुम्बे जाने से पहले और मुबे आने के बाद का नाटक
अद्ध ग्रामेश्वर के देहली में रिपीट सो हो रहे थे ! नाटक जितना अछा था वो उतना ही बिबादाप्स्त भी रहा अन्दर और बहार ! उन दिनो मै गढ़वाली फिल्म के बारे में सोचने लगा था ! नाटक अनुभव थोडा होगया था स्क्रीन प्ले लिखने आ गया था ! अभिनय मै कर ही रहा था तो सोचा क्यों ना गड्वाली फिल्म बनाई जाय ! कुलमिला कर एक सोच पैदा होगी थी ! एक रोज मै और राजेंदर जी किसी एक मित्र मिस्टर बडोला जी लक्ष्मी
बाई नगर में थे वे उनके और मेरे भी रिस्तेदार थे उनके घर पर बैठ ! हम तीनो खा पी रहे थे ! बातो बातो में मैंने राजेंदर जी से कहा की आप समारिका में मेरा एक बिज्ञापन डाल दे
' "गड्वाली फिल्मो के लिए लड़के /लड़कियों की जरूरत है ! "
बस इतना कहना था की वो व्यंग से बोल उठे ........
" ------- गड्वाली लड़कियों को खराब करेगा ? " और लगे देने लेक्चर !
बात आई गई हो गई उनके लिए लेकिन अब मैंने ठान लिया की , चाहिए कुछ भी होजाये मै फिल्म बनाके रहूंगा चाहिए मुझे कितनी आपदाओं कितनी मुसीबतों से गुजरना पड़े ! मन में एक ठेस ( since this incident, i never spoke a single word with him from 1976 t0 2007 i.e 32 yeras paased ) जरुर लगी परन्तु एक संकल्प जागा ! इसी बीच मुम्बे से इस नाटक को करने का निमत्रण आया ! सायद गडवाल भ्रात्र माडल से या कोई और संस्था से ! बम्बे जाने की त्ययारिया जोर सोरो पर सुरु हो गई ! लोदी रोड में हिंदवान जी के घर के उप्पर छत में टेंट लगा कर रिहर्सल होने लगी ! मुम्बे जाने से पहले एक सो वो देहली में भी करना चा रहे थे ! इस नाटक में एक ग्रुप डांस होता है जिसमे १० १२ लड़किया होती है अब एक समस्या आ गई थी की डांस के लड़किया मिल नहीं पा
रही थी ! हिद्वान जी के बगल में कश्मीरी फैमली रहती थी जिनकी दो या तीन लड़किया थी सो , हिद्वान जी ने उन्हें यह कह कर रिहर्सल में आने को कहा की वो उन्हें मुम्बे ले जायेगे और वो इसी बहाने उनके साथ आगई ..मै देख रहा था ! सब सुन रहा था !
जैसा मैं पहले भी कहा था की मै ही एक अकेला कलाकार था जो बाहर से था और अब ये कसमीरी लड़किया ! बाकी सब उनके ग्रुप से थे ! कुछ लोगो तो मुझे काटने का प्रयाश करते लेकिन वो मुझे काट नहीं पाए क्यूंकि मेरा रोल ही ऐसा था की जो किसी और पर फिट नहीं बैठता या यु कहिये की कर नहीं सकता इसीलिए मै उनकी मजबूरी था ! देहली में होने वाली सो से एक दिन पहले गोबर्धन थपलियाल जो सचिब थे ग्रुप के मैंने
कहते सूना की कल शो हो जाएगा तो इन कश्मीरी लड़कियों का मुबे नहीं लेजायेगे ! उन बहिनों को जरा भी आभास नहीं था की उनको केवल कल तक के लिए ही बुलाया गया है जब की उनको यह कहकर लाया गया था की उनको मुम्बे ले जायेगे !
जब मैंने सूना तो मुझ से राहा नही गया मैंने थपलियाल जी से कहा --
' क्यों नहीं ले जायेगे आप इन्हें ? जब आप को लड़किया नहीं मिल रही थी तो तब आपने इसने ये कहा की तुम को हम बम्बे ले जायेगे अब काम निकल गया तो उनको मुम्बे ले जायेगे .!".
उन्होंइ मुझे खुरकर कहा " --- ये हमरा अपना अंदुरनी मामला है तुम कौन होते हो बीच में बोलने वाले ! तुम तो बहारे के हो ! .".
मेरा उत्तर था " ---इसलिए तो कहा रहा हूँ ये लड़किया बहार से है आपकी ग्रुप से नहीं ? और जो आप के ग्रुप नहीं उनका यूज करके बाद में बहार का रास्ता देखा दो यही ना ? मेरे मित्र हरी सेमवाल ने मुझे शांत रहने को कहा ! मैंने साफ़ साफ़ कह दिया कल में, मै फैईन आर्ट्स देहली में नाटक जरुर करूंगा लेकिन मुबे तब जाउगा जब इन लड़कियों को मै नई देहली रेलवे स्टेशन में देख न लू !
नाटक हुआ ! सब अपने अपने घर चले गए ! वो जानते थे की मै सच्ची बात के लिए किसी हद तक भी जा सकता हूँ ! इसलिए मे तब गढ़वाली रंग मच में एक बिबादापस्त ( कोन्त्रोवेर्सियल ) अभिनय के फिल्ड में ऐक्टर के रूप में या बिना किसी लांग लापोड़ के सीधी - सच्ची अपनी बात करने पर , चाहिए वो सामने वाले को बुरी लगे , याने मुहफट और साफ़ कहना मेरी आदत थी जिसके बजह से की लोग मुझे पच्चा नही
पा रहे थे ! मैंने राजनीति नहीं सखी ! सीखा तो निर्भीक होकर सच्ची बात कहना ! जिसका नुक्सान मुझे बात में झेलना पडा !
दुसरे दिन मुझको मनाने उन्होंने हरी को भेजा की मै अपनी जिद छोड़ दू ! मैं ने हरी को समझाया की बात उनकी नही है ! बात है वसूलो की ... और उपर से मुझे गुस्सा इसलिए भी आया की देहली में तो उनकी लड़किया स्टेज में नहीं आ सकती भले दुसर की लड़कियों जाये , अगर उनकी लड़कियों आ गई तो , कही छिन्टा कसी न हो जाए या मंच पर नाटक करने की बात कही उनकी शादी में अड़ंगा न बन जाए लेकिन मुबे जाने के लिए
सब की लड़कियों परिवार के साथ जा रही है और वो सब वहा स्टेज में डांस करेगे / पाठ भी करेगे ये देखकर/ सुनकर मेरा पारा आपे से बाहार हो गया था ! दिन के ४. ४५ पर नई देहली से दादर जानेवाली ट्रेन पर हम सब का रिज़र्वेशन था !
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments