गढ़वाली दोहा ““पखणौं का बुखणां””
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Garhwali Couplets by Krishan Mamgain
दोहा लम्बर 161 :
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गुरु त गुड़ ही रै ग्यया
च्याला शक्कर बणिं जांद ।
फिर भी चेला गुरुम ही
गुर सिखणूं कू आंद ॥ [१६१]
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दोहा लम्बर 162 :
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तू ठगणी कू ठग छई
मी जाती कू ठग ।
पार नि पै सकदू मेरू
कोशिस कैर जतग ॥ (१६२)
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दोहा लम्बर 155 :
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नाच नचणु त आंद नी
करलु बतांदा चौक ।
अपणीं कमी छुपांण कू
बाना हुंदन भौत ॥ (१५५)
.दोहा लम्बर 143 :
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शक कु इलाज हूंद नी
हो लुकमान हकीम ।
शक से पीछु छुड़ाण मां
फेल सभी स्कीम ॥ [१४३]
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दोहा लम्बर 127:
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हैंककु लाटु हंसांदु चा
अपड़ू लाटु रुलांद ।
दुनियां की या रीत चा
दुख बस अपड़ु सतांद ॥ (१२७)
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दोहा लम्बर 105:
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कैकि मरीनी गैबणीं
लैंदी कैकि खांद ।
ईं शरम कू बाग यू
दिनम गौंम नी आंद ॥ (१०५)
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दोहा लम्बर 144 :
.अपड़ु हि सूनू खोटु रा
कै पर दींण क्य दोष ।
आस त इन्नी कै नि छै
बैठ्यां छां खामोश ॥ [१४४]
.अपड़ु हि सूनू खोटु रा
कै पर दींण क्य दोष ।
आस त इन्नी कै नि छै
बैठ्यां छां खामोश ॥ [१४४]
दोहा लम्बर 120:
.क्या कन ये नौन्याल कू
अपड़ि मस्ति मां रांद ।
काम काज कुछ करदु नी
हगदिदां गीत लगांद ॥ (१२०)
.क्या कन ये नौन्याल कू
अपड़ि मस्ति मां रांद ।
काम काज कुछ करदु नी
हगदिदां गीत लगांद ॥ (१२०)
दोहा लम्बर 69:
अन्ध्यरी और बिन्दरि का
भितरकि जंणद नि छाय ।
अल्ट्रसौंड पर कांडा लग्या
भ्रूण हत्य पनपाय ॥ (६९)
दोहा लम्बर 60:
कन भग्यानका भाग की
मिलदि खणीं च खाड ।
निरभगि थैंत दबाणुं कू
मिलदू नी चा माटु ॥ (६०)
बाकी फिर कभी अगले अंक में ........
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की }
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