(बी . मोहन नेगी दगड़ भीष्म कुकरेती टेली -छ्वीं 24 -5 -2017 )
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भीष्म कुकरेती -नेगी जी अचकाल फेसबुक्या चौंतराम नि दिखयाणा छंवां जी ?
बी. मोहन नेगी -ओहो ! माराज ! भै डेढ़ मैना बटिं कूड़ छंवै याने रिपेयरम व्यस्त छौं , कैकि खाणी , कैकि पीणी अर क्यांक फेसबुक !
भीष्म कुकरेती -नेगी जी ! फेसबुक याने सोसल मीडिया मा गढ़वळि साहित्य काम का बाराम क्या ख़याल च जी ?
बी. मोहन नेगी -भै काम त दिख्याणु च हाँ। लोग बाग़ ताणि त मारणा इ छन। फेसबुक चाहे मौसमी चौंतरा च पण खेती बाड़ी तो नजर आणि च।
भीष्म कुकरेती - पाठकों बाराम क्या ख़याल च ?
बी. मोहन नेगी -कांड त इख्मी लगीं छन जी। पाठक गढ़वळि बंचण चाणा छन पर ढब ही नी त पौढ़न कनै ?
भीष्म कुकरेती -मतलब ज्वा समस्या पारम्परिक माध्यम मा च वनि समस्या सोशल मीडिया मा ...
बी. मोहन नेगी - बिलकुल जी बिलकुल ..
भीष्म कुकरेती -तो बि सोसल मीडिया मा पाठक वृद्धि का वास्ता कुछ तो करे जै सक्यांद।
बी. मोहन नेगी -हाँ सवादी कविता हो तो ... बात बण सकदी
भीष्म कुकरेती -कविता तो अधिक पोस्ट हूँणे ही छन।
बी. मोहन नेगी -जख तख हो कविता पोस्टर या कविता दगड़ चित्र अवश्य हूण चएंदन जाँसे पाठक आकर्षित हो अर कुछ तो पौढ़ ल्यावो।
भीष्म कुकरेती - गैर पद्य साहित्य म सुखो च।
बी. मोहन नेगी -पारम्परिक माध्यम मा बि इनि च पर सोशल मीडिया माँ कुछ तो ह्वे इ सकेंद।
भीष्म कुकरेती -जन कि ?
बी. मोहन नेगी - लालचंद राजपूत सरीखा साहसी लोकुं तै रोज गढ़वळिम जोक्स पोस्ट हूण चएंदन।
भीष्म कुकरेती -हाँ बात म दम च। हौर ?
बी. मोहन नेगी -व्यंग्य चित्र ह्वावन तो पाठकों तैं पढ़णो ढब बि पोड़ल।
भीष्म कुकरेती -जी हाँ
बी. मोहन नेगी -लघु कथा , लघु कथ्य , लघु नाटक बि रोज पोस्ट ह्वावन तो पाठक वृद्धि का पूरा अवसर छन।
भीष्म कुकरेती -जी हाँ
बी. मोहन नेगी - इनि लघु रूप माँ कै विषय पर घपरोळ -चर्चा बि पाठक बढ़े सकदन। पर विषय चर्चा लैक हूण चयेंद हाँ।
भीष्म कुकरेती -जी
बी. मोहन नेगी - फिर रोज आण , पहेली , कहावत पोस्ट होवन तो पाठक जमा होला अर पढ़णो ढब्याला।
भीष्म कुकरेती -100 % सही और ...
बी. मोहन नेगी -कुछ प्रतियोगिता हूणा रावन तो पाठकों की रूचि बि बढ़ली अर ल्वायलिटी बि बढ़ली।जन कि खानापूरी , ज्ञान आदि विषयी प्रतियोगिता
भीष्म कुकरेती -जी हाँ यो तो भौति बढ़िया सुझाव च नेगी जी
बी. मोहन नेगी - ये मेरी ब्वे सी मिस्त्री धाइ लगाणु च। फिर हैक दिन हां।
भीष्म कुकरेती -जुगराज रयाँ आधुनिक मौलाराम जी ...
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