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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 28, 2017

जणी मी म्वरयूँ छौं"

गढ़वाली पोएम बी सुनील भट्ट 
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जैबर्यौं मुख अग्नै,
अंध्यारू छ्यै जांदू ।
सारू भरोसू दिखेंदू नी क्वी,
कुछ बी समझ मा नी आंदू।
दुख विपदा, पीड़ा सैंदू सरैल,
तिसालु पराण टपरांदू ।।
सची दगड़्यौं तब यनु सी लगदु,
कि जणी मी म्वरी ग्यौं।
कर्मौं का फल छन, भ्वगणु छौं।
नरक मा छौं यख भटकणु छौं,
जणी मी म्वरयूँ छौं ।।
जैबर्यौं म्यरा मन की होंदी,
गाती मा छपछपी सी लगदी।
माया की ठंडी नयार ब्वगदी,
जु भी चैंदू  चीज मिलदी।
बगछट्ट ह्वै दिल नाची जांदु,
रंगौं मा लरतर गीत गांदु।
सची दगड़्यौ तब यनु सी लगदु,
जणी मी म्वरी ग्यौं ।
कर्मौं का फल छन, भ्वगणु छौं।
स्वर्ग मा छौं अब यखी रै जौं,
जणी मी म्वरयूँ  छौं ।।
कबर्यौं पितृ द्यव्ता,
स्वीणौ मा म्यरा औंदन,
मुंडु मलासी बात या मीतैं समझौंदन ।
माया का धागौं मा ना अऽलिझी रै तू,
ज्यूंदु छै बुबा रै ज्यूंदु सदानी  रै तू।
स्वर्ग मा बिछांयु रै माया कु जाल,
नरक मा बी माया की चाल।
मनखी छै तू जाणी ले,
सरैल कु मोल पछ्याणी ले।
संत जु तुलसीदास ह्वैनी,
बात या सच्ची बोली गेनी ...कि....
"बड़े भाग मानुष तन पावा।  सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा।।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाहे न जेहीं परलोक संवारा"।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
20/05/17


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