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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Wednesday, May 10, 2017

श्रीमदभगवतगीता (गढ़वाली)

-Translation By Krishna Kukmar Mamgain 

अध्याय 1 : श्लोक 1 : (श्लोक गढ़वलिम भि )

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥
.
श्लोक गढ़वलिम : .
धर्मछेत्र्म   कुरुछेत्र्म 
युद्ध  करनू    खड़ा हुयाँ ।
म्यारा अर पांडू का नौना
क्या कना छन  संजया  ।।१/
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अध्याय 17: श्लोक  23 :   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा॥ 
.
श्लोक गढ़वाली म :
.          
तत्, सत् तीन शब्द इ
ब्रह्म सूचक शब्द छन ।
यूँ हि शब्दु से शुरू शुरू मा
यज्ञ, ब्राह्मण, वेद बंण्णिं ॥ [17:23]
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अध्याय 17: श्लोक  24 :   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌॥
.
श्लोक गढ़वलिम
:.         
तब्बि त आरम्भ हुंदन 
यज्ञ, तप अर दान की
सब्बि क्रिया बमुंणु द्वारा
ॐ का आह्वान से ॥ [17:24]
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 2 : श्लोक 38 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
जय पराजय लाभ हानी सुक्ख दुख समझ समान ।
सोचि की इन युद्ध कैर पाप कू च यो नि काम ॥2/३८॥
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अध्याय 12 : श्लोक  15 :   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.        

क्षुब्ध हूंदु नी जैसे क्वी भी
अर जु कै से नि हून्द क्षुब्ध ।
सुक्ख दुक्ख भय उद्वेग से
मुक्त चा जू प्रिय च मीं ।  [12:15]
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 4 : श्लोक 3 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :
.
सखा छै अर भक्त छै तू ये वजह बतलाय त्वे ।
उत्तम रहस्य ये पुरातन योग ज्ञान कु अर्जुन ॥ [४:३]
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता 
अध्याय - अध्याय 4: श्लोक 17: (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :
.
कर्म तत्व भि जणन चैंदा अर जणन चैंद बिकर्म भी ।
अकर्म गति भी जणन चैंद क्योंकि छ गहन गति कर्म की ॥ [:१७]
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता 
अध्याय 4: श्लोक 9:  (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः ।
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :

.
दिब्य जन्म अर कर्म म्यारा जंणदु जो च अर्जुन ।
देह त्यागी मींमै आन्दा पुनर्जन्म नि लीन्द ऊ ॥ [४:९] .
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 2: श्लोक 17:  (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :
.
नाश रहित त खालि वी च जै मां दुनिया ब्याप्त चा ।
इना अविनाशी कु नाश कन्नु क्वी नि समर्थ चा ॥२/१७॥
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 1 : श्लोक 26 :
.
तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥
श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
.
श्लोक गढ़वाली म : 
.
अर्जुन द्यखदा द्वी पाल्यूं चच्चादादामम्माभै ।
गुरुनाती नतणौ मित्रों स्वसरों देखी दंग रै ॥१/२६॥ ****************************************************************  

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 3 : श्लोक 5: (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌ ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म : 
.
क्वी भि मनिख रै नि सकदू बिना कर्म कब्बि भी 
बशीभूत च प्रकृति का अर कर्म करनू बाध्य चा ॥३/५॥
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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 2 : श्लोक 2:
.
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.

न शस्त्र काटी  सकदु ईं
न आग फूकी सकदि ईं ।
न पांणि ही भिगै सकद 
न हवा सोखी सकदि ईं ॥२/२३॥
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अध्याय 10: श्लोक 22:   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ [१०/२२]
.
श्लोक गढ़वाली म :
.        
बेदु मा साम बेद छौं मी
देबू मा मी इन्द्र छौं ।
इंद्रियूं मा मन छौं मी
अर समस्त जीवुम चेतना ॥ [१०/२२]
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अध्याय 14: श्लोक 17:   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥ [१४/१७]
.
श्लोक गढ़वाली म :
.        
सतोगुण से ज्ञान उपजद
रजोगुण उपजान्द लोभ ।
अर तमोगुण से उपजद
अज्ञान, मोह अर प्रमाद ॥  [ १४/१७]
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अध्याय 4: श्लोक 8:   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.        
भक्तु कू उद्धार करनू
बिनाश करनू दुस्टु कू
अर धर्म स्थापना करनू
प्रकट हूंदु जुग जुगम मी ॥ [४:८]
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अध्याय 15: श्लोक 12:   (श्लोक गढ़वलिम भि)
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यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्‌ ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्‌ ॥  
.
श्लोक गढ़वाली म :
.        
सूर्यो तेज जु सैरि दुन्या
थैंकि करदा दीप्तिमान
अर जु चाँद अर अग्निम च
वे तेज भी मेर्वी समझ ॥ [१५/१२]
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अध्याय 18: श्लोक 66:   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.        
सब्बि धर्मूं त्याग कैकी
शरण मेरी ऐ जा तू
सब्बि पापु से मुक्त त्वेथैं
कैरि द्यूलु फिकर नि कैर ॥ [१८:६६]
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अध्याय 10: श्लोक 37: (श्लोक गढ़वलिम भि)

वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥ [अ0 १०: श्लो0 ३७]

श्लोक गढ़वलिम :
.
बृष्णिबंश्यूम मि बासुदेब छौँ
पांडऊंम छौँ मि धनन्जय ।
मुन्यूं मा मी ब्यास छऊं
अर कब्यूं मा शुक्राचार्य छौँ ॥ [10/37]
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अध्याय 7: श्लोक 9: (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु  [अ0 ७: श्लो0 ९]
.
श्लोक गढ़वलिम :
.
पृथ्विम पवित्र गंध छौं मी 
तेज छौं मी अग्नि मा ।
जीवन छौं सब्बी प्राण्यूंमा  
अर तपस्यूं म तप छौं मी ॥ [७:९]  
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अध्याय 10: श्लोक  25:   (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌ ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
महर्षियूं  मां भृगु छौं मीं
वांण्यूंम छौं मीं ओंकार ।
यज्ञ्यूंम जप कीर्तन छौं मीं
अर स्थावरूंम  हिमालय ॥ [१०:२५]

******  
Of and By  कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: [जै भैरव नाथ जी की ]
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