-Translation By Krishna Kukmar Mamgain
अध्याय 1 : श्लोक 1 : (श्लोक गढ़वलिम भि )
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥
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श्लोक गढ़वलिम : .
धर्मछेत्र्म कुरुछेत्र्म
युद्ध करनू खड़ा हुयाँ ।
म्यारा अर पांडू का नौना
क्या कना छन संजया ।।१/१॥
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अध्याय 17: श्लोक 23 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
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ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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ॐ, तत्, सत् तीन शब्द इ
ब्रह्म सूचक शब्द छन ।
यूँ हि शब्दु से शुरू शुरू मा
यज्ञ, ब्राह्मण, वेद बंण्णिं ॥ [17:23]
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अध्याय 17: श्लोक 24 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
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तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्॥
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श्लोक गढ़वलिम
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तब्बि त आरम्भ हुंदन
यज्ञ, तप अर दान की
सब्बि क्रिया बमुंणु द्वारा
ॐ का आह्वान से ॥ [17:24]
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 38 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
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सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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जय पराजय लाभ हानी सुक्ख दुख समझ समान ।
सोचि की इन युद्ध कैर पाप कू च यो नि काम ॥2/३८॥
सोचि की इन युद्ध कैर पाप कू च यो नि काम ॥2/३८॥
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अध्याय 12 : श्लोक 15 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
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यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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क्षुब्ध हूंदु नी जैसे क्वी भी
अर जु कै से नि हून्द क्षुब्ध ।
सुक्ख दुक्ख भय उद्वेग से
मुक्त चा जू प्रिय च मीं । [12:15]
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 4 : श्लोक 3 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
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स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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अध्याय 4 : श्लोक 3 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
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स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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सखा छै अर भक्त छै तू ये वजह बतलाय त्वे ।
उत्तम रहस्य ये पुरातन योग ज्ञान कु अर्जुन ॥ [४:३]
उत्तम रहस्य ये पुरातन योग ज्ञान कु अर्जुन ॥ [४:३]
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय - अध्याय 4: श्लोक 17: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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अध्याय - अध्याय 4: श्लोक 17: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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कर्म तत्व भि जणन चैंदा अर जणन चैंद बिकर्म भी ।
अकर्म गति भी जणन चैंद क्योंकि छ गहन गति कर्म की ॥ [४:१७]
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श्लोक गढ़वलिम :
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कर्म तत्व भि जणन चैंदा अर जणन चैंद बिकर्म भी ।
अकर्म गति भी जणन चैंद क्योंकि छ गहन गति कर्म की ॥ [४:१७]
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 4: श्लोक 9: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः ।
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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अध्याय 4: श्लोक 9: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः ।
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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दिब्य जन्म अर कर्म म्यारा जंणदु जो च अर्जुन ।
देह त्यागी मींमै आन्दा पुनर्जन्म नि लीन्द ऊ ॥ [४:९] .
देह त्यागी मींमै आन्दा पुनर्जन्म नि लीन्द ऊ ॥ [४:९] .
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2: श्लोक 17: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
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श्लोक गढ़वलिम :
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नाश रहित त खालि वी च जै मां दुनिया ब्याप्त चा ।
इना अविनाशी कु नाश कन्नु क्वी नि समर्थ चा ॥२/१७॥
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इना अविनाशी कु नाश कन्नु क्वी नि समर्थ चा ॥२/१७॥
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 1 : श्लोक 26 :
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तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रा न्पौत्रान्सखींस्तथा ॥
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
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श्लोक गढ़वाली म :
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अध्याय 1 : श्लोक 26 :
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तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रा
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
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श्लोक गढ़वाली म :
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अर्जुन द्यखदा द्वी पाल्यूं चच्चा, दादा, मम्मा, भै ।
गुरु, नाती नतणौ मित्रों स्वसरों देखी दंग रै ॥१/२६॥ ****************************** ****************************** ****
गुरु, नाती नतणौ मित्रों स्वसरों देखी दंग रै ॥१/२६॥ ******************************
श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 3 : श्लोक 5: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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क्वी भि मनिख रै नि सकदू बिना कर्म कब्बि भी ।
बशीभूत च प्रकृति का अर कर्म करनू बाध्य चा ॥३/५॥
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बशीभूत च प्रकृति का अर कर्म करनू बाध्य चा ॥३/५॥
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श्रीमद् भगवद् गीता
अध्याय 2 : श्लोक 23 :
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नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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न शस्त्र काटी सकदु ईं
न आग फूकी सकदि ईं ।
न पांणि ही भिगै सकद
न हवा सोखी सकदि ईं ॥२/२३॥
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अध्याय 10: श्लोक 22: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ [१०/२२]
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ [१०/२२]
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श्लोक गढ़वाली म :
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बेदु मा साम बेद छौं मी
देबू मा मी इन्द्र छौं ।
इंद्रियूं मा मन छौं मी
अर समस्त जीवुम चेतना ॥ [१०/२२]
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अध्याय 14: श्लोक 17: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥ [१४/१७]
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥ [१४/१७]
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श्लोक गढ़वाली म :
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सतोगुण से ज्ञान उपजद
रजोगुण उपजान्द लोभ ।
अर तमोगुण से उपजद
अज्ञान, मोह अर प्रमाद ॥ [ १४/१७]
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अध्याय 4: श्लोक 8: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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भक्तु कू उद्धार करनू
बिनाश करनू दुस्टु कू
अर धर्म स्थापना करनू
प्रकट हूंदु जुग जुगम मी ॥ [४:८]
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अध्याय 15: श्लोक 12: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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सूर्यो तेज जु सैरि दुन्या
थैंकि करदा दीप्तिमान
अर जु चाँद अर अग्निम च
वे तेज भी मेर्वी समझ ॥ [१५/१२]
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अध्याय 18: श्लोक 66: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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सब्बि धर्मूं त्याग कैकी
शरण मेरी ऐ जा तू
सब्बि पापु से मुक्त त्वेथैं
कैरि द्यूलु फिकर नि कैर ॥ [१८:६६]
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अध्याय 10: श्लोक 37: (श्लोक गढ़वलिम भि)
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥ [अ0 १०: श्लो0 ३७]
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥ [अ0 १०: श्लो0 ३७]
श्लोक गढ़वलिम :
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बृष्णिबंश्यूम मि बासुदेब छौँ
पांडऊंम छौँ मि धनन्जय ।
मुन्यूं मा मी ब्यास छऊं
अर कब्यूं मा शुक्राचार्य छौँ ॥ [10/37]
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अध्याय 7: श्लोक 9: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥ [अ0 ७: श्लो0 ९]
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥ [अ0 ७: श्लो0 ९]
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श्लोक गढ़वलिम :
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पृथ्विम पवित्र गंध छौं मी
तेज छौं मी अग्नि मा ।
जीवन छौं सब्बी प्राण्यूंमा
अर तपस्यूं म तप छौं मी ॥ [७:९]
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अध्याय 10: श्लोक 25: (श्लोक गढ़वलिम भि)
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महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
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श्लोक गढ़वाली म :
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महर्षियूं मां भृगु छौं मीं
वांण्यूंम छौं मीं ओंकार ।
यज्ञ्यूंम जप कीर्तन छौं मीं
अर स्थावरूंम हिमालय ॥ [१०:२५]
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Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: [जै भैरव नाथ जी की ]
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