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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 28, 2017

गढ़वाली कविता

Garhwali Poem by Preeetam Apachyan 
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==प्रीतम अपछ्याण 
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सुख दिखेंदा जूदा जूदा दु:ख सब्यूं का यकनसी
भमतळे की पिड़ा सयेंदी सुख बिलांदा स्यट स्वीं.
हूणा को सुख जाणाा को दुख ई दुन्यां की रीत भै
हूण जाणा बीच ही सब बाटा पैंडा क्यप्प सी.
जर बिमारी बिरोजगारी हाय गरीबी लत्ता स्यौर
चूंदि कूड़ी गोठ बिगचीं छन दुखों की ढंडि सी.
फटग्वसेंदा बाबु ब्वे चा अणमीली कज्याण छा
जमाना की सिकासैर्युंन् बिग्चि नौना नौनि बी.
सुख पियेंदा बोतळूंन् दु:ख खतेंदा आँसु मा
दया माया कै नि औंदी चिफ्ळि गिच्ची खसखसी.
जमाना मा रूणु नी रे सुख दिखौ ना दुख कखी
प्येजा हैंसी आंसु भैजी आंदि जांदी सांसु सी.
==प्रीतम अपछ्याण 

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