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Sunday, May 28, 2017

सुनील थपलियाल घंजीर के लेख , व्यंग्य , निबंध

Garhwali Satire, Articles, Essays by Sunil Thapliyal Ghanjir 
Garhwali Satire, essays, articles from Garhwal, Uttarakhand , Himalaya, North India , South Asia; 
Garhwali Satire, essays, articles
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सुनील थपलियाल घंजीर के लेख , व्यंग्य , निबंध 
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मन कु भात....1 

एक दिन अर एक रात बेबपरवा कुट्ज कु साथ ....
हरीश जुयाल कुट्ज जी दगड़ि न मालूम किलै घंजीर का तीन बीसी झकझका खुटौं फर गति ऐ जांद ? सुप्त हृदय हिर हिर कन बै जांद ।
ब्यालि एक जोरदार दावत मा कोरदार इनभिटेशन छौ । घंजीर फर खज्जी छै ।
घंजीर फर एक चटोरी जीभ च् , एक नि भ्वरेंण्या लद्वड़ि च् । द्विया साजिश करदन । घंजीरी इंजन इसटाट करदन । जिकुड़ि वश मा नि रांदि ।
घंजीर फंचि बंणाद । अफु तै लोचदार बंणाद अर कोरदार पौंछ जांद ।
पाड़ बटि हरीश जुयाल कुट्ज जी ताल उतरदन... धन आवेशित कुटज अर ऋण आवेशित घंजीर कु मेल कोरदार कु भ्रमित आकाश सैन नि करदु ... सुख्यां निरसा बादल मुंड फ्वड़ै करदन ... आंखा घुर्यंदन ... दावत मा दुयूं की टिच फुल भ्वरीं पलेट मा अपंणु रासायानिक विघ्नी पांणि छिड़कदन ।
पर कुट्ज जी का ककड़ाट का अगनै बेकूप बादल दल की नि बसांदि । मुक लुकै क् मथि पाड़ भाज जंदन ... अर कुट्ज जी अपंणि चिर परिचित विजयी मुस्कान घंजीर जनै सरकंदीं ।
घंजीर कुटज जी का काला जादु थै नमन करद ... अर दावत पलेट मा विराजमान आखिरी बासमति थै पुटगि का अंध्यरा कूंणा पिचगै की लंबू पावरफुल डकार ल्हींद ।डकार दावत की सफलता का सैन बोर्ड कु काम करद ।
कुट्ज जी की कड़ कड़ कड़ ... तड़ तड़ तड़ फैरिंग पतपता घंजीर फर अनवरत जारी रंदन ...
अर घंजीर की गिच्ची खुली रैंद ।
!!!


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मन कु भात .....२
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★सुनील घंजीर 
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वी जीबन दिंदी
वी ल्ही जंदी ।।
य तुकबंदी मिन गंगा जमुना का संबध मा तुकै । हम NCR तरफा पाड़ीयूं तैं पाड़ जनै मुक कना मा गंगा जमुना पार कन प्वड़दीं । छंछर ऐतवार खुंणि मेरू मुक कुरदर हरद्वार जनै छयो ।
कुरदरा सौं !
जादातर पाड़ि लोखु की जिकुड़ीयूं मा कुरदरै छवि काली च् । इलै हम कुरदरा सौं नि खांदा । खासकर मी जना जात्री मनिख्यूं खुंणि जौं खुंणि कुरदर कु अर्थ च् जेमु बस अड्डा कु भीषण कष्टकारी ,हड़बड़ी,व रकाबकी माहौल ।
कुरदर का अन्य रमणीक स्थलों से हमरू क्वी परिचय नी छ् ... बस बटि उतरदै मि अफु तैं माछु सि मैसूस करदु जैखुंणि रेड़ी पटरी से ल्हेकर लैंटर छत वला दुकनदार तक कांडु लगै क् ताक मा बैठ्यां छन ।
मि जब बि कुरदर जांदु त् वखम बटि चड़म चंपत हूंणै कोशिश करदु । कुरदर से मेरू क्वी लगाव नी छ् । कुरदर कबि बि म्यारा हृदय मा एक गज प्लाट नि काट साकू । यु सदनि परायु लगि मी तैं । इलै मि कुरदर से बात नि करदु । कुरदर बि मी तैं अपुंणु नि मनदु ।
अबै दौ पैली बार मेरी जिंदगी मा मौका ऐ कि मी थै वखि तक जांणु छौ । पैली बार एक शुभकाम मा न्यौता छौ । वख एक चिरपरिचित मिलनसार कुट्ज ममा छौ । कुटज ममा मा मोटरसैकल छै । उं मा कलाकार दगड़्यौं की लिस्ट छै । उंल मी तै गौर सिंह जी से मिलै । गौर सिंह जी का हत रंगु से लप्वड़्यां छया । उंमा पचासौं कूची छै ... अनेकों कैनवास छया । उंकी बंणई जतगा पेंटिगु फर नजर गै उं सबुम गौर सिंह जी को सिद्व कलाकारी व्यक्तित्व झलकुंणु छौ ।
तीन रौंड चाय अर पांच रौंड पांणि का बाद हमरू दिल भाई गौर सिंह जी की कला से संबधित बारीकियों व उंकी संघर्ष गाथा मा खूब रमे गे छयो कि ध्यान ऐ कि गडवलि गजल विद्यासल्ली भैजी जगमोहन सिंह बिष्ट जी बि अपंणी मिठ्ठी आशीर्वादी चाय बंणै क् हमरू जग्वाल कना छन।
भाई गौर सिंह जी से मुलाकात का बाद धुधरटी कुरदर खुंणि मेरा दिल मा एक खिड़की खुल गे छै ....
भैजी जगमोहन जी का घौर भोल ।
!!!

मन कु भात .....३

सधारण भात बंणाणु असान च् पर मन माफिक भात बंणाणु मुश्किल च् ।
खुशी की बात च् हमरा कतगै गडवलि लिख्वार सर्यूल आज बि मन लगै की अपंणि भाषा मा अपंणा लुक्यां ढक्यां शब्दु की झौल मा खुशमन किसरांणि भात पकांण मा जुट्यां छन ।
दिखे जा त् कोरदार एक जोरदार जगा बि च् । भाषा/ संस्कृति का यख अनेक पैरादार मील जाला । कोरदार बटि पाड़ै गदीन्यूं मा नयेंणा कु जांणु बि सौंगु च् । भस्स्स इस्कूटी कु स्यल्फ इसटाट बटन हि त् दबांण ।
गडवलि गज़ल तैं नयी धुरपलि दींण वला जगमोहन बिष्ट जी बि कोरदार मै रैंणा छन । उंकू एक खुटु गौं मा त् हैंकु कोरदार मा रैंद । उंसे यखि मुलाकात ह्वे ।
बल ...
कोरदार की फिजा च् बौलिं बौलिं
न कुछ ब्वनी च् न ब्वन दींणि च् ।
उं से मीलि क् जिकुड़ि मा इन शांति कु ऐसास हूंद जन कि कैं उच्ची धार मा स्थापित मंदिर मा बैठिक मिलद ! भौत शांत स्वभाव का मालिक धीर गंभीर अर कट टु लेंथ बात कन वला जगमोहन जी अफु तैं भौत शालीन तरीका से सैत्याकार बथांणा मा झिझकदा छन । उंकी गजल जिंदगी की हर ऐंगल फर फोकस मरदीं ...अर सीधा जिकुड़ि मा रस्ता बंणदीं ।
उंकी द्वी कितबी "कर्च-कबर्च" व "अपंणा अपंणा रूपकुंड" प्रकाशित ह्वे गेन .. अर तिसरी फर वो जी जान से जुट्यां छन । भगवती नंदा राजजात् फर स्वयं का अनुभौ तै यात्रा वृतांत का रूप मा प्रस्तुत ह्वेली य किताब बल ।
महाकवि कंन्हैयालाल डंडरियाल जी की सुप्रसिद्व यात्रा बिरतांत "चांठों का घ्वीड़" की उ़ंमा द्वी प्रति छै ... वैदानुसार उंल एक किताब मीथै भेंट दे । मि चरण्यां गदल्यलु सि उंकी पिरेम ढंढी मा डुबकी लगै क् गदगुदु मैसूस कन बै ग्यों ।
चा पांणि कोलडिरिंक की औपचारिकता का बाद कुट्ज -घंजीर की अंणमेल जोड़ि तरोताजा ह्वे ग्या ... पर हमुन अपंणा ककड़ाट से उंकू पीसफुल घरेलु वातावरण हीटफुल कैर द्या । वख मा वूं वाक्यों फर बि चरचा ह्वे जौं फर कनै जरोरत नि छै पर जख कुटज को साया हो बल वख आराम से वक्त जाया हो ।
अभि मुलाकात अधा रस्ता मा छै कि तबरि वखम एक उर्जावान शख्शियत की एंट्री ह्वे ..उंल मि दगड़ि उत्साह पूर्वक गलभेंट कैरी ... पता लगि आप गडवलि साहित्य का एक मजबूत स्तंभ श्री जगदंबा प्रसाद कोटनाला जी छन । उंकू कुट्ज-घंजीर सभा मा आंण से वार्तालाप सै दिशा मा अटगंण बै ग्या । उंल् मी थै जतगा भेटेज दे मि उतगा लैक त् नि छयो पर मेरा प्रति उंकी पिरेम उष्मा साफ साफ मैसूस हूंणि छै।

मन कु भात ....६


मि घंजीर छौं ! छ्वटु आदिम छौं । कुछ मीतै आदिम बि नि चितांदा । 
जूंगा म्यारा बड़ा छीं पर बात मि छ्वटि करदु । 

मि भात खांदु । हतुल गमजा गमजा कै खांदु ।

 मि डिल्ली रांदु । 
मीतै चार पैंसा चैंणा छन कि मि एक टैमौ भात द्वी टैमै रव्टी ,चार झुलड़ि - द्वी रूड़ियूं की अर द्वी जड्डौं की मुल्या सकूं ।
मीतै चार पैंसा चैंणा छन कि मि एक सौ यक्यावन रूप्या न्यूतु लिखै सैकू ।
डिल्ली मा दिल नि लगदु मेरू किलै कि मि छ्वटु आदिम छौं । 
चार छै मैनौं मा हि घौर अटगि जांदू । कंई कुमंई रोडभेजु अर उंका अनुबंधित ढाबों का नौ मा कैरि आंदू ।
बड़ा आदिम बव्दीं गौं मा "कुछ" नी छ् धर्यूं ।
मेरी छ्वटि बुद्वि उंका "कुछ" थै नि जांण पै कबि ।
जो कबि गौमा छ्वटा आदिम छया छक्वे घात  खींदा छया वो बूंण जैकी बड़ा आदिम हुयां छन । अब वो गालि मंगलि नि दींदा । उंसे बड़ु संस्कारी अब क्वी नी छ् । ब्याला पैदा हुयां नौनौ कु बि आप ब्वलदीं वो ।

  उं बड़ा आदिमु थै मुजबानि मैट्रो इसटेशनु का नाम याद छन  ।
बस बदलंणा मा सल्लि छन वो ।
बूंण जैकी गंवा छ्वटा लोग देशी फुकी क् बड़ा लोग ह्वे गेन अर अफु फर चिपग्यां गडवलि निशान खुर्ची खुर्ची क् हटांणा छन ।
पर मि ठैरू जड़ मूरख छ्वटू आदिम जै फर गडवलिपनै घात लगीं च् ... जो पाड़ु मा ग्वर्ख्या , मुसलबान, बिहरी , बंगली , सारनपुरी सबु दगड़ गडवलि मा बच्यांण बै जांद इन मानि की कि जु प्राणि गडवाल मा दिखे जा वी गडवलि ।
यु म्यारू छ्वटा आदिम हूंणौ पकू परमांण च्।

अर मिन घात घलंणी बि नि छोड़ि । मेरी अपंणी स्वयं की सबि इच्छौं खुंणि घात घलीं छन । 
मि ये एडभांस जमना दगड़ नि अटग सकदु इलै छ्वटु आदिम हि रैंण चांदू । 
पर मि चांदु आप खूब अटगा अटगा मा मिस्यां रयां अर वूं उच्चा बेकूप पाड़ु से भि भौत बड़ा ह्वे जयां ... भौत बड़ा ।
अर वख पौंछ्यां जख सब कुछ हो ।

!!!

सुनील थपल्याल घंजीर
.... घिलमंडि .....
इशारा :: 
(यू लेख जरा गंभीर किस्मो च कृपया हास्य की उम्मीद ना करें )
)..विक्की ! (हैप्पी बर्थडे मनाने वाला एक गढवाली कान्वेंट स्कूल स्टूडेंट ) ...दलेदर सर ! गढवाली मे "घिलमिंडी" खाना किसे कहते हैं ?
)...हां भै आज लगंणु च कि तू गढवली सिखंणा मा इनटिरेस्टिड छै । इना इना शब्द सिखंण चांणू छै जो गर्वीला पहाड़ीयूंल अर ठेठ गढवली हूंणौ दावा करंण वलोंन भि गुठ्यार धोल यलीं ।
पर तू 'घिलमंडी' किलै सिखंण चांणू छै ? कैल ब्वाल त्वैमा ?
).. दलेदर सर ...! मेरे पापा बार बार कहते रहते हैं कि मैने अपने टाइम मे बहुत "घिलमंडी " खा रखीं हैं ।
)..द रै य बात चा ! अब आई म्यारा गौं । भै ब्यटाराम त्यारू बब्बा बिल्कुल ठिक ब्वलंणू चा । वै भग्यान त इन इन घिलमंडी खंई छन कि तेरी ब्वे भी ऊं हि घिलमंडीयूं कु परिणाम चा ।
)...वाट डू यू मीन दलेदर सर ?
)...हबै घिलमंडी त बड़ा बड़ा लोगु की भी खंई छन। हल्या टैपा लोखु जनोंल ले 'हाथ' अर 'फूल' दगड़ि मीलि कै खुर्सी हथ्यांई छन ।
)... मींस ? इसमे पापा की घिलमंडी का क्या ?
).. हां हां ! आ जरा अपंणा पापा की घिलमंडी गाथा भी सूंण ले
ब्यो से पैली वो गीत लगांदा छया
"ऐजा हे भनुमती पाबौ बजारा "... अर ब्यो का बाद लगांण बैठ गीं .... " कैमा न ब्वल्यां भैजी सैंणी कु मरयूं छौं" ....
ई ह्वाई घिलमंडी ... मेरा छंछ्या थकुला । कुछ समझी कि ना ?
)... नो सर ! आई अम नॉट कैचिंग यू !
)...देख लौला ... कि त्यारा पापा ल ब्यौ से पैली तेरी माँ भरमै कि त्यारा गौला कु लॉकेट बंणौलो अर गुलबंद पैना कै तेरी ब्वे थै ल्है आया , मतलब ?
) ...मतलब पापा ने घिलमंडी खाई ।
)... हां बिलकुल रैट । अब पता चली त्वे घिलमंडी कु मतलब !
)...नो नो सर ,मेरे पल्ले कुछ नहीं आया । क्या आपने भी घिलमंडी खाई हैं ?
)... ब्यटाराम पूछ ना ...! तिरीस बरसू बटै सिंचैं विभाग म चपरसी छौं । मेरा लैमचूस अगर मी घिलमंडी खांणि आंदि त मि अपंणी जैड़ींयूं मा पांणी नि लगांदू । स्यू त्यारू बब्बा ल्ये हल्या छयो अर घिलमंडी खै खै की मंत्री जी का स्यालौ राइट हैंड हुयूं चा । प्रापर्टी डीलर बंणि क् सर्रा देहरादून बेचणू चा ।
)... सौरी सर मै तो चला । मेरा फेवरिट टी.वी प्रोग्राम हन्नी सिंह द रॉक शो आने वाला है गुडबाय
)... हां ब्यटाराम अभी तेरी उमर नी छ घिलमंडी खांणै । बगत अपंणा आप त्वे घिलमंडी खांणु भी सिखै द्यालू अर यांकु अर्थ भी समझै द्यालू ।तबरी तक तू तै हनी सिंग का गांणौ मा घिलमंडी खा ।
( गर्वीले पहाड़ियों के लिऐ ' घिलमंडी ' का मतलब बताना जरूरी है ... घिलमंडी मतलब गुलाटी मारना )
सार : घिलमंडी खाते रहें प्रगति पथ चढते रहें
" सर्वाधिकार असुरक्षित "
!!!
व्यंग...

आदिम तबि तलक मनिख च् जबतलक वेमा तंग कनै सोशल इंजीनियरिंग च् । तंग कनौ व्यंग भौत सुलभ साधन च् । पर व्यंग कनौ कुछ विषै त् चयेंद । जंग.. बिना हत्यारै कख छै ?
ब्यालि एक सुंदर कवि सम्मेलन मा पक्वड़ा अर चा पींणौ मौका मील ... आयोजन की सफलता फर हमथैन क्वी डौट नि छयो किलै की काव्य रस छलकेंणा बाद भोजन की ब्यबस्था विद हलवा बि छै ... अब साब लिफफू कीसाउंद ठिक से स्यट कैरिक आश्वस्त हूंणा बाद घार जनै मुंडलि कार त् नप एक फेसबुक मित्र समंणि रस्ता रोकी खड़ा ह्वे गीं कि बल घंजीर साब आशा च् भोल ये आयोजन फर एक टौपदार व्यंग्य पढंणौ मीललो ?
/भैसाब आप थैन पक्वड़ा नि मीला ?
/ बल सबसे भंड्या त् मिलै साफ करीं !
/आप थैन कवींयूं की प्रतिभा समज नि ऐ ?
/बल सबसे जादा तालि त् मिलै पिटीं !
/फिर व्यंग कखम पैदा कन साब ... ?? नंग कन्यांणा काम तबि अंदन जब खज्जी हो ... बिना खज्जी का धज्जी कनै उडये जा ?
/बल अज्जी क्य बात कना छौ ...तुम वी घंजीर छौ न्हा जो तोता मैना की पिरेम कानि फर बि व्यंग कना रंदौ ...यु त इतगा बड़ु आयोजन निमंड़ि ग्या ... ये फर आप थै कखि बि क्वी प्वेंट नि मीलो ...??? आपकी प्रतिष्ठा कु क्य होलु ??
वे निरदयी फेसबुकी फरैंड की कटाक मीथै सैन नि ह्वे ... अर मि अपंणि प्रतिष्ठा बचांणा वास्ता वे साफ सुथरा आयोजन फर व्यंग की संभावनाओं की तलाश कन बैठ ग्यूं... ।
देखा जि आयोजन की सफलतो श्रेय त् आयोजक ल्ही जाला पर एक व्यंगकार हूंणा नाता मि अपंणि प्रतीष्ठा दांव फर कनकै लगा द्यूं ... आयोजन कतगै सफल ह्वे जाउ तब बि एक सिद्व व्यंगकार थैं व्यंग तलाशी क् ल्हांण चैंद ... आज रात भले मी थै निंद मरण प्वाड़ा पर मिन आयोजकु का नीला सुलार कुर्ता किलै पैन्यां छाया यां फर जरूर चुटकी कसंण ... उनि बि खयां पिंया लोखु थै क्य मालूम कि यु व्यंग छयो कि जोक ।
!!!
.. *ममा वंदना* ....
एक हमरा नामचीनी व्यंग्यकार ममा छन नाम च् उंकू 'विशेष छुंयाल कुटुरू' ।व्यंग्य विद्यम कुटरू ममौ क्वी सानी नी छ् । गढवलि का सिद्व साहित्यकारू दगड़ उंको उठंणु बैठणु च् । फिर भि उंकू छिबड़ाट अर तिबड़ाट धूल-माटू उडांण वलों जन च् । 
मिल कतगै दफा टोक लगाई उंफर कि ममाजि तुम इतगा भारी भारी का डिमांडिंग लिख्वार ह्वे ग्यो पर तुमरी गंभीरता अबि तलक ढंडीउंदै प्वड़ीं च् ? जै कै दगड़ि रले- मिले जंदौ ....गोबरमैन से ल्हेकर गीज़रमैन तक सबुकी खुचलिम बैठ जंदो ...., जरा अपंणी रिपुटीशन त् चिताया करो !
भस जी इतगम त् कुटरू ममा अपंणु फेमस कुटुरू ख्वलंण बैठ गीं ... बल लाटा ! तु ठैरू स्यकुंदौ पल्यूं बढ्यूं कबूतर , तु क्य जांणि घुघती हूंणौ मलब, त्वे क्य मालूम कि "मनिख कमांणा" क्यां खुंणि बुलदीं .... ???
तुम ठैरा अपंणी सपंणी वला ... तुमथै क्य पता कि जब गौंमा कैकु बोड़ भ्याल फंस जांद त् हमरू गफ्फा नि घुटेंदू .... तु स्यकुंदै सिकासैरी न कैर यख ... कि पड़ोसीयूं मा भगनलाल थै मगनलाल नि जंणदु अर मगनलाल थै छगनलालो पता नि हूंदू ....अर यख गौंमा जरसि कैका बल्द फर अट्टा पोड़ जावा त् हमरा फट्टा सुक जंदीं ।
बाकी रै म्यारा साहित्यकारू की श्रेणिम आंणै बात त् ... यांमा क्वी खाश उतणेंणै बात नी छ् ... किलैकि जौं साहित्यकारू की गिंवड़्या कुदड़ि सारि बांजि प्वड़ीं छन वी साहित्यकार हुयां छन .. बिना बाछि मलासि भि वो गौड़ि बाछि फर कव्यता कना छन ...दिखे जा त् उंसे बड़ू साहित्यकार त् वो च् जो अपंणी गौड़ि का नाक पुटगा जूंका भैर गडणैं जुगत कनु च् ... बाछी थै मलसणुं च् ... भस फरक इतगै च् कि एक त् कव्यता ल्यखणुं च ता हैंकु कव्यता जींणू च ..।
मि अपंणु सबु दगड़ मेस मांग वलु सुभौ नि छोड़ सकदु .... तु म्यारू भणजु छै पर त्वे चुलै मीथै अपंणु कुंणजु प्रिय च् जो सबुक पूजा पाठ ब्यो काज निमटांणु च् पर वैल अपंणी धरतिम उगंणु नि छोड़ि... न अफ्फू थै वेल बड़ु चितायो ...
ममा म्यारा ऐथर अपंणी कुटरी ख्वलंणु राई अर मीमा उंका समंणि मूंण हिलांणा सिवा हैंकु क्वी लालु चारू नि छायो
!!!
एक ★ परिचय ....
🎩
सुशील पुखर्याल (सुपु) जी दगड़

जौंकु मि परिचय देंणु छौं वो कै बि परिचय का मौताज नि छन । मय फोटु #सुपु जी सपत्नीक फेसबुकम सबुक समंणि परगट हूंणा हि रंदन । व बात अलग च् कि छवि से #सुपु जी कवि नि लगदा बलकन मास्टर जी लगदीं ... इलै गुरजी मान लिंंऐ जांऐ ।
कैमा सूंण कि बल संगलाकोटि तरफा छन ... सिरप युई कारण नी छ उंथै कोटि कोटि नमन कनो बलकन वो जु छिटगा ध्वलदीं वो एकचुली तिजाबी हुंदन कि जैउंद प्वाड़ा ना कि वेकु बर्कबान ह्वायो ना !
उंकू लेखन व चिंतन जादातर व्यबस्था की टेढी चाल फर फोकस रैंद ... बोकस विषय मा बि रोचक तत्व फिट कनु उंकी खाशियत च् ...। कम ब्वल्यां मा वो संसार छैल जंदन । चोरी का भय से रचनाओं कु फोटु फिरेम तैयार करदन । य बढिया तकनीक च् ज्व सिखंण चैंद उंथैन जो चोर उचक्कों का भय से सोशल सैटु से दूरी बंणै क् रखदन ।
#सुपु जी की द्वी तीन तड़काफुल छिटगा आपकी स्यवा मा परेस्तुत छन ...
१)
कन प्वड़ीं यूंका
गरा़ हीन
नँग्यूल खुंण ब्वना
बोल्ड सीन ।।
२)
जन जन मनिख
वरिष्ठ हूंणु रैंद
तन तन मनिख
गरिष्ठ हूंणु रैंद ।।
३)
ब्वा सरकार जी
गजब कना छौ
इनै मद्य निषेध
उनै ठ्यका ख्वना छौ ।
परिचय कु फैनल टच ...
---------------------------
चार दिन पैली मि उं से जुड़ु इलै यांसे भंड्या परिचय उंका बारा मा मीथै बि नी छ् ... अब आप लोखु मन मा प्रश्न उठ सकद कि जब मीम पूरी जानकारी नी छ् उंका बारा मा तो परिचय ल्यखंणै क्य जरोरत रै होलि ?
तो भै बंधुओ तबि त् मी खुंण घंजीर बुले जांद नथर वजीर नि बुलेंदु ????
!!!






गढवलि मासिक पत्रिका : स्याल रूंणा छीं
क्षाक्षात्कार पृष्ठ ......
दिं .. २१/०८ /२०१६
( मुबैलफूनिक बातचीत का आधार फर .....
गढवलि किशरांण की बकीबातै कव्यता ढंड ... "श्री #धर्मपालरावत " जी (... ग्राम - सुंदरखाल / बिलौक बीरोंखाल - पौड़ि गडवाल) का दगड़म एक बिगरैलु क्षाक्षात्कार )
........................................................
मैमान : * श्री धर्मपाल रावत जी ..... जौंकि कव्यतों मा दिखेंद ठेठ पाड़ि छंद बिंद ...
--------
इंटरब्यू लिवाक : सुतली बांधयाल ( वरिष्ठ
-------------- जलकाकार )
=============================
😯 सुतली बांधयाल : हलो ! हलो ....
#धरमपाल जी बुना छौ ?
😀 _/\_ धर्मपाल रावत जी : जिजि जिजि जिजि
😯 .... नमस्कार साब ... मि किमगिड़ि गाड बटि 'सुतली बांधयाल' ब्वनु छौं !
गढवलि भाषा की अग्रणि पत्रिका... "स्याल रूंणा छीं " मा एक चलमुलू क्षाक्षात्कार चैंणु च् साब आपौ ... राजि ह्वे जंया माराज ... धुपंणु कनु छौं !
धर्मपाल रावत जी 😀 _/\_ नमस्कार जी...
नमस्कार ....सुतली बांधयाल जी ... जिकुड़ा से द्वी पाथा आभार आपकु भकार भोरि कै.. जु तुम हमरु ख़्वाल जनै बिरड़ों आज... अर् अपंड़ि यीं प्रतिष्ठित् पत्रिका "स्याल रूंणा छीं " मा मिथैं भि ज़रा रूंणा कु मौका द्याई आपन ...
पर साब असल बात इन च कि म्यारु नौं "धरमपाल" न #धर्मपाल" च...हो ; आप जंणदै छौ भयाराडि ये "र" कु भौत बडू चक्कर च ... बड़ू 'र' कबरि 'राहू' ह्वे जा कुछ नि पता लगुदू ... इलै मेरू छ्वटा र्र से ही काम चैल जांद भारै .........
..............................
सु.बां 😯 : माफि साब ....माफि ,आपन त् लुकयूं ढकयूं ऐकी सांसम् किलीयर कैर याल धर्मपाल जी .... आभार बि आपन खूब भकार भोरिक दे द्याई ... पर खूब च् कि 'खंखार भोरिक नि द्याई ... हिहिहिहिहि .... चला खैर तुमरू हि बोलु च कि ... ह्वाई तब !
अच्छा साब एक बात त् पक्की च कि आप ठेठ गडवलि भाषाई व निपट पाड़ि शैली का कवि बंणि झपन्यलि लगुलि सि फैलेंणा छौ यख ... ?
ध.पा 😀.... : सुतली जी पैलि बात त इन च कि मि अफ्थैं कवि नि मनदू... बस उनी ज़रा शब्दों थैं लाछि-लूछि कि मिसे दिन्दू... अर् आप जना महानुभाव वां खुणे "कविता" बोलि दिंदो... युत पाठकु कु प्यार पिरेम च् मीकु ... मि ऊंकू आभारी छौं जो म्यारा लिख्यां फर पिठै लगंदी ...अर कमेंटणा रंदि ... हाहाहाह ...
................................
😯 : धर्मपाल जी .... आपकी कव्यतों मा आपकी भाषा शैली एकदम गंवड़्या छाप की रैंद जबकि लोग झटफट मौडन हूंणै कोशिश कना छीं ?
😀 : जी जी जी जी ...सुतली बांधयाल जी.., मि रैणा खांणा कु भले हि भैर बूँण - ऊंण कूँण (मतबल देरादूँण) जरूर रैन्दू... पर म्यारु चखुलु सि घुघुतु प्राण त् 24 घड़ि अपंड़ि धुरपलि /गौं गुठ्यार पाड़ु मै फिरणुं डबकुंणु रैन्द ... क्य कन मजबूरी च बुने यख रैणा की.... नथर अपुडु घोळ कै थैं प्यारु नि रैन्दु....?? सुतली साब अपुड़ घार अर् अपंड़ि घरर्या बोलि/भाषा से मि थैं भौत लगाव च... इले मेरी कव्यतों मा गंवड़्या इसटैल मैसूस हूंद आपथै मिजाण ...
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😯 : धर्मपाल जी ...तुमल इन कब चिताई कि तुमथै बि कव्यता ल्यखंण चैंदि ?? अर अपंणा जिकुड़ा की हंसी खुशी /दुख दर्द की फंचि पाठकु का समंणि ख्वलंण चैंद ?
😀 -जी जी जी जी ...इन मिल नि चिताई साब ... वु त कै अपंणा शुभचिंतकल् मि घुच्याई छौं ... बलकन पिचगाई छौं ..... बल आपम् भरसक दिखेंणीं च जुता खांणा की ... आप कविता लेखी सक्दो... चला धारा कव्यतो हैल कांधम ....
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😯 : वा वा धर्मपाल जी कमाल च् कमाल कि आपा रूपम् एक शुद गडवलि आवाज हमथै मिलीं च.... अर आप बि पाठुक थै बैराईटी कु स्वाद चखांणा छौ ...अच्छा त् इन बथावा कि गडवलि भाषा लिखाड़ुम् आपका प्रिय रचंणाकार कु छीं ...?
😀 - जि जि जि जि ...आजकल भौत लोग छिन जु भौत हि अच्छू घसगांणा छीं ... अब मिल द्वी-चारों कु नाम लींण... त बाकि आठ-दसों थैं ज़रा नखुरु लगंण....म्यारा हिसाब से सब्भी लोग भौत अच्छू लेखदी..... एक से एक धुरन्धर पोड्यां छिन सुतली साब यख जु अपड़ि भाषा अर् संस्कृति चमकांणा फर दिन-रात लग्यां छिन....
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😯 : सै बात रौत जी ! त् अज्यूंतलक कौं कौं गडवलि साहित्य का स्वनाम धन्य लोखु दगड़ मुलाकात ह्वे आपकी ??? अर वो महारथी आपका लेखन का बारम क्य राय रखंदि ?
😀 - जिजिजिजि ...मुलाक़ात त अभि ज्यादा उस्ताद लोखु दगड़ नि ह्वाई मेरि बांधयाल जी ... किलैकि अबि त् लेखनम् म्यारा दूदा दांत बि नि टुटा ...अर पुटगी भ्वनो बि सवाल च् ....पर हाँ गढ प्रसिद्व हास्य कविता का सितारा श्रीमान " ह.जुयाल कुट्ज " जी दगड़ै एक मुलाक़ात जरूर यादगार च् मेरी...
उंल बिना कमचूसि कयां मेरू हौंसला तड़तड़ी धारम् चढै द्या ... सिखंणा कु बि छक्वे मील मिथैं वूं से... बल " भुलाराम लगै दे जोल लस्सस्स .... काट दे घास घस्स्स्स्स "
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😯 : गजब साब गजब ... क्य बुन तब आपौ जबाब नी ... खच्च बीच बीच म् आप देशी शेरो शैरी बि घतोल दिंदौ ... इन किलै ?
😀 - जिजिजिजि ...मि घर्या ग्वदिड़ी कु साग भौत बढ़िया सवदि मनदू .. .. पर रोज-2 नि खै सक्दु न ... बिखलांण पोड़ि जांद...साब
कभि-कभि बुनै होटलै दाल मक्खनी बि टेस्ट कनम् क्य बुरै च् ... बड़ु स्वाद आंद.... साब !अर अपंणि ग्वदड़ि की कीमत बि पता चैल जांद ... हाहाहाहा .... कन बोलि ? उन बि जिंदगिम् एकरसता म्यार हिसाब से ठिक्क नी....
ह्वे जांद कभि-कब्भी..... ....ह्वाई तब...
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😯 : धर्मपाल जी ... फेसबुकम त् आप खूब धमाचौकड़ि मचै क् रखदौ क्य बात ?
😀 - ये फ़ेसबुका भ्वार ही त छौं मि लक लक झक झक कनु ... जु भि छौं जन बि छौं पिंपुरु जन .... ये कै भ्वार हि आज आप जना हस्तियों से या मुलाकत हूणि च ....
म्यारा ज्यादातर पाठक ये फ़ेसबुक मै हि मेरी पीठ थपथपांणा रंदी ... जौंकु हौंसला अफ़जाई से आज मि 89 फर नॉट ऑउट छों... भौत भौत धन्यबाद उंकू !
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😯 : अहा आप दगड़ छुंई लगांणम भौत आनंद आंणु च् ....जनबोलिक रसधार ह्वेलि ब्वगंणि ... तुमरू मिजाज कमाल च धर्मपाल जी !
जरा आजकल का गडवाला हालात , पलायन , गडवलि भाषा कु अप्रचलन व जंपत हूंदा गौंऊ का संबध मा आपका क्य उद्गार छीं ??
😀 - जिजिजिजि बांधयाल जी ...यु विषै बस्तु भौत उच्चा लेबला छीं .... यूं फर मेरू कुछ ब्वलुंणु छ्वटु मुक बड़ि बात ह्वे जालि भै .....यूँ विषयों फर बड़-बड़ा बुद्धिजीवि , विचारक , चिंतक, आंदोलनकारी भै-बन्ध लग्यां हीं छिन खुटा घुरसंणा फर ... हम त् उंका पिछनै छौं साब ... सुतली साब पुटगि पलंणा का साथ जरा बीच बीचम एकाद कागज बि कालू कैर दींदु मीकु फिलाल इतगै भौत च् ... !
हाहाहाहा .....इनै सुंणैदि सुरूक कै .... य्हा ब्याळि मिल भि घड़ेक टोप टिकाई कि चिंतन करे जा ..... पर तबार कज्यंणिल् घचकै द्युं मि... बल क्या अमाँणा छौ घरपाल भैंसू सि। ... ध्याड़ि नि जांणा छौ कि आज....??
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😯 : वाह आपकी त् बात हि निरालि च् ... भौत बढ्या भै धर्मपाल जी इनी जुत्यां रावा ... पर इन बथावा कि आप थै देरादूंणि ढंक्करचाल मतलब लैफ इसटैल कतगा रास आंणु च् ..?
😀 - कत्तै भि ना सुतली बांधयाल जी ... जम्मा ना ... पर कनु बि क्याच् तब ... मजबूरी कु नौं बल... क्याफुंणि गाँधी...? उत् ज़रा मुख लुकांणौ सवाल च् बल .. अर् सिकासैरयों मा छौं घुंडा छिलांणु मि बि यखुन्द ये निरदया ड्याराडूंण
हैंकी बात या बि च् कि मि पाड़ा का सुंगर, बांदर, सौलु, कुरस्यलु , रिक्क अर् बागा का डौर लुक्यूं छौं ये तिड़्यांण्या डेराडूंण ...नथर मेरू चुसंणा रावा यख ... अर् साब जै दिन वु दिन आलू कि यूं बाग ,बांदर , सुंगरू से गढ़वाल खल्ये जालू .... ठिक वे दिन मिल ये परदेशी डेराडूंण जनै ढुंगू धोलि दींण.... टक्क लगै कि.... कट लगै की .... हाहाहाहाह !
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😯 : एक आखिरी कटगताल जरा हौरि मार दियां धर्मपाल दा हमरा पाठकु खुंणि .... य्हा तुम यु "ह्वाई तब" ... अर "ह्वाई तब" .... रटंणा भजंणा रंदौ .. ...?
😀 - जिजिजिजि .... हिहिहिहि ...एकदम सै क्वेश्चन भैजी .... एकचुली यु म्यारु फेवरेट तकिया कलाम मेरी गिच्चि फर चप चिपग्यूं च बुनै ..... अर् म्यारा चांण वला दगड़्या ये ह्वाई तब का बारम वगत वगत फर पुछंणा रंदी मिथैं....
त बांधयाल जी आज आप बि अपंणि सुतली बांध ल्यो कि जब हम अपड़ि बात पूरी कै दिंदो त "ह्वाई तब" समझो ... अर टॉपिक थैं बदळंण(चेंज करंण) दौं बि हम "ह्वाई तब" कैर दिंदौं ... क्य कन ठेठ पाड़ि मनिख छौं ! कैकि बथौं से ज़रा असैमत रैन्दो त ... तब भि "ह्वाई तब" ह्वे जांद अर ह्वाई तब हुंगरा बि पुर्यान्द ... प्रत्युत्तरम् कैका बुल्यां फर हम "ह्वाई तब" ठोक सकदौं ... हाहाहाह ... पर एक बात छ् यु सबुका मुख से अच्छु बि नि लगदु ...
ह्वाई तब बुलंणा कु शुद्व गडवलि गिच्चु चैंणु च् भैसाब .... आप म्यारू ईशारा समझंणा ह्वेला .... हाहाहा ..ह्वाई तब....
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😯 : धरमपाल जी जांदा जांदा जरा एक जिज्ञासा छै ... जरा वीं थैं बि शांत कैर द्यो कि आज बि आपा गौं मा उतगै बड़ा मूला हुंदि ज्यां खुंणि आपौ गौं फीमस च् ???
😀 : ( लंबी खामोशी का बाद ) भस सुतली माराज चितै ग्यूं मि ... तुम किलै छौ "मूलौं " की खोज खबर ल्हींणा ... हा हा हा ... चुप कारा भै !
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😯 : माराज मि समज ग्यूं .... अब भंड्या टैम खैयाल मिल आपकू ... हाहाहाहा ... ह्वाई तब ...
अच्छी बात धर्मपाल जी ... जै उत्तराखंड ... भौत भौत धन्यबाद आपकु ...आप दगड़ भौत चलमलि गप्प शप्प ह्वे ग्या आज ... नमसकार ...
😀 : जिजिजिजिजि ...नमस्कार नमस्कार ... #ह्वाईतब !
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सुनील थपल्याल घंजीर
मान्यता प्राप्त गडवलि लिख्वार : ( २३४ )
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बल गडवलिम् ल्यखुंणु सीदि दाथिल घास कटुंणु जन कठंण काम च् । अगर दाथि सीदि ह्वे जा त् चक्कु बंण जा ... अर चक्कु से घास नि कटेंदु ...
जन गडवलि सीदि ह्वे ग्या ... पर चक्कु नि बंण जांणि .... चक्कु घास नि कटदु पर टिमाटर त काट ही दींद .... पर गडवलि सिंपल अर मौर्डन ह्वे जांणा बाबजूद न त् ल्खंणम् आंणि न ब्वलंणम् .... जबकि अचकल्यूं ब्वे -बुब्बा / बैला बिंदरा / अगा पछा वली रीत खतम ह्वे ग्या ।।
जन जन जनता शिक्षित हूंणि राई तन तन वूं शिक्षितुल ठेठ गडवलि शब्द भ्याल लमडा दीं ... अर वींमा पाठ्य पुस्कीय शब्द रला दीं ... अब स्थिति या च् गडवलि लिख्यां मा पिचतर परसैंट देस्यवलि अर पच्चीस प्रतिशत गडवलि शब्दु का... छू ,छा , छै ,कै ,रै , हे , खै बकै रै गीं ...
सुंणेणम् त् इन आंद कि गडवलिम लेखन कनु चैनीज ल्यखुंणु पढंणु जन दुष्कर काम च् ... बल ईं थै पढणु ल्यखुंणु मुश्किल हि ना बलकन समझुंणु भि मुश्किल च् .... इन त् पढ्यां लिख्यां ब्वलंणा छीं .....पर म्यारा हिसाब से इन बात कतै नी छ् ....यू एक भ्रम फैल्यूं च् ...
जन भ्रम बैलगाड़ि चलांण वला थै हूंद कि मारूति चलांणि कठंण काम च् ... जबकि असलियतम् बैलगाड़ि चलांण चुले मारूति चलांणि असान च् ... भै बैलगाड़ि कु बल्द एक प्रांणि हूंद ... प्रांणि फर दिमाग हूंद ... भावना हूंद ... अगर बल्द इन जांण जा कि वेथै हकांण वलु वेकु मालिक नी छ् त् क्य मजाल एक कदम अगनै बढा द्या .... गैल समझा वे थै ... जबकि मारूति का भौं त् मालिक च् चा चोर च् .... गधा च् चा घ्वाड़ा च् ... मारूति रफटा ह्वे जांद ....
उनि गडवलि ल्यखंणा का फैदा छीं ... एक त् यख पलायन / खुद / अर पुरंणि चीज बस्तु की फोटू फर रूंणा धूंणा का अलावा चौथु क्वी विषय नि चैंदु ल्यखंणा कु ..... यां चुले हौरि असानि क्य ह्वे सकद ल्यखंणनम् ..... ईं मा हौरि भाषा जन मगजमारी व विषयों की गंजामंजी नी छ् ... इलै द्वी अक्षर गडवलिम् ल्यखंणा से हि यख मान्यता प्राप्त लेखक हूंणै गुंजैश बंण जाद ... अब घंजीर थै हि देख ल्यो जरा ... जै थै इन नि पता कि हिंसर अर किनग्वड़ि का क्यां खांणा से गिच्चु कालू हूंद अर क्यां खंया से स्यलंगु हूंणौ भय हूंद ?
घंजीर ल्ये मान्यताप्राप्त लेखक ह्वे ग्या बल ... देशी भाषम् ल्यखदु त् जैल पुछंणै छायू घंजीर ....
इलै नव लिख्वारू थै कीमती सला च् कि गडवलि अपनांऐ अर मान्यता प्राप्त लेखक बंण जांऐ .....
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हम गडवलि छौं : २६९
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हम गडवलि छौं ... हम भौत फटा फट हिंदी अंगरेजी सिखदौं ... चट पंजबी तौर तरेका अपनंदौ ... पट अपंणि कुड़ी जनै पीठ फरकंदौं ... हट हट अपंणा सौं संस्कारू कु पांणि बिसगा दिंदौ ! नल्ल सरमा बरमा बि बंण जंदौ !
पतनी द्वी चार बच्यां खुच्यां लोग वो कु छीं जो दिन रात पाड़ पाड़ कना रंदि / पाड़ का गीत गांणा रंदि / जो सुबेर पलायन पलायन वला ब्यखुनि पिलायन पिलायन ह्वे जंदि ... उंका त् कमेंट बि खुद लगंदि .... उंकि लिखौट बि गडवलि रैंद / ज्यां थै वो भाषा बचाओ को अंग समझदीं ... भाषा उंकि बचा नि बचा पर कुछ लोखु खुंणि इन लोग भौत उत्सुकता पैदा करदीं कि देखो कुछ लोखुम् कतगा फालतु टैम च् कि मथि दुन्या दगड़ कदमताल छोड़िक ताल ढंढ बैठंणा छीं !
हरै भै हम बि ईं दुन्या का अंग छौं ... हम गडवलि लिखाड़ ल्यख़ंणा कु राष्टिय अंतरराष्टिय मुद्दा किलै नि उठांदा ? बल पाड़ौ पांणि देशीयूं का पुंगड़ा उपजांद ... उनि पाड़ त् टूरिस्टु खुंणि हूंद ! घुमण फिरणौं खुंण हूंद ! रैंणा कु नि हूंदू ... बिचरा बाग बांदर सुंगरुल् कख रैंण ... कबि मचपूरि रै ह्वेलि हम फर त् राया छौं झूट किलै बुलंण भै ... पर अब दरवजा खुल गीं ... गेट खुल गीं ... फुंड फूका तौं सग्वड़ौं ... तूंणि ... तिमलौं ... ज्य कनै वूं भेल भौंकारों पाखौं / गदनौं / डांडा कांठौं कु ... उंफर गीत लगंणा छाया वु नेगी जीन् लगै हि यलीं ... यां से जादा वूंकू क्वी काम नी ...
आओ मूख्यधारा म् शामिल ह्वे जंदौं ... पंदरा अगस्त मनंदौ ... औलंपिकम् अपंणा खिलकारीयूं की असफलता फर गालि दिंदौ ... जन शोभा डे दींणीं च् .... आओ हम बि शोभा डे बंण जंदौ ....
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Pati ति की गति : २८२


एक पति हूंणा कारण मेरी इसतिथि इन च जन 'चापत्ती' ! चापत्ती पैली थड़कये जांद ... वींक रस रंग लुच्छी क् छंणे जांद आखिरिम् कलच्वंणि तोला ध्वले जांद ... पति हूंणा ल्याज से अब मी बि ठिक उनि मैसूस कनु छौं...!
पति त् संसारम् कम नि छीं बलकन बनि बनि का छीं ....पर उंकी तुलनम् मि एक घंजीर छौं जैफर सिरप जुत्ता ज्वाड़ा लगदीं...
नामी गिरामी पतीयूं मा राष्ट्रपति /सेनापति /भूपति /संपति /प्रजापति /वाचस्पति / कैलाशपति / कुबेरपति /अरबपति/ बर्हस्पति / गणपति / नरपति कु नाम आंद जु मि त् ह्वे नि साकू पर कंगलापति / खकपति जरूर छौं.... ।
ज्यां कारण मेरी शून्यमति हुईं च् ! ज्व सिरमथि मीथै मिलीं च् वा ल्हे सन्मति हूंदी त् क्य पता तीन पत्ती म्यारा भाग बि लग जांदि .... पर कख दैबै मौ....वख बि रात प्वड़ीं च् ???
ईं दुन्यम् खालिश पति हूंणौ मतबल आदिमै चकरापति अर हंडरैड परसैंट रगड़ा पट्टी .... ज्यंदगी की चौड़ि चट्टी !
लोखु की 'शानपति' देखिक अपंणि जिकुड़ि की छट्टी बट्टी ! इनम दुन्या हट्टि कट्टी दिखेंद भारै .... अपंणि त् दूद दै बि खट्टि च् दगड़्यो ! सिरप पति हूंणा से ये जमन मात्र क्षति हि क्षति च् ... अर हूंदि बि नी छ वेकी गति .... न दिन स्वांणा न रति ... बिना दालि की भति ... बासमति कख्वे चखति ... जोगम् रंदिन लत्ती !
बल खाली कीसी रीति हति ...
काम नि करदी मति...
नि हूंदि छुचौ सदगति !
पति गति इति ।
!!!
 कुतगलि : २९५

कतगै दौ बैठ्यां बैठ्यां बि कुतगलि लग जांद ... कुतगलि से मेरू भौत लगाव च् ... क्वी जरसि मी जनै अंगुला करद त् मि फर कुतगलि लग जांद । अचकल्यूं बंदा चाहे लाखों मील बि दूर हो तो बि कुतगलि लगये जा सकेंद । इंटरन्यट ,सोशल साइट प्रबल जरिया छीं यां खुंणि ।
पैली मी फर सौरास वला कुतगलि लगांदा छाया । उबरि तक मि इसमाट फून अर इंटरन्यट से दूर छायो । सौरास्यूं का हिसाब से पांच जंवयूं का थुपडों मा सबसे निकम्मू जंवै मी हि छायो।
उंकी असैनीय कुतगल्यूं से खिन्न ह्वै की मिल एक ढै हजारो इसमाट फून ल्हे द्या ... अर 'टू जी' फर 'फोर जी' कव्यता मिसांण बैठ ग्यूं । कव्यता कैल बि मुक नि लगै त् .. मि व्यंग्य ल्यखंण बैठ ग्यों... यख बि परिणाम शून्य हि राई ... मिल कहानी ल्यखीं , गीत ल्यखीं पर क्य मजाल कैफर कुतगलि लगि होलि ।
मिल ल्यखुंणू फुनै चुला द्याई... अर पढंण बैठ ग्यूं.... पढण / द्यखंण से उल्टां मी फर कुतगलि लगंण बैठ गीं... सौरास करों से त् मि सैक नि साकु पर यख बि मेरू हैड़ कमजोर ह्वे ग्या । मिल हार नि मानी । अब मि कमेंटिंग का फील्डम उतर ग्यूं ।
एक फेमस कवि की कविता फर वाह वाह कमेंटु की बरसात हूंणि छै... मीथै कुतगलि लगांणै मुसदूंलि दिखे ग्या अर मिल वीं कव्यता फर ' बेकार/ बदहवास / बेसिरपैर की बकवास ' लेखि क् अपंणु बचकाना कमेंट सुरुक कै वेकी पोस्ट फर सरका द्याई.... भस्स जी इनै कमेंट कु सुर् र् र् हूंण अर उनै दम्म्म् झुर् र् र् र् हूंणू ... कवि का चाहकारों फर हिर् र् र् कुतगलि लगिंणि ...
मी जनै बम ध्वलेंण बैठ गीं ... म्यारा कपड़ा फणेंण बैठ गीं... मीथै बकवास साबित कना कु चैलेंज दिये ग्या ... म्यारू कविता ज्ञान शून्य बथये ग्या । पर चलो कुतगलि लगांणा बाद दिनभर मि बिजी रौं... कवि बिचरू नेपथ्यम् क्वलंण पैथर चुटये ग्या अर मीथै हौट सीट मील ग्या... कमेंटकार मीथै पुछंणा रैं अर मि मन हि मन रौंसेंणु रौं कि म्यारा मनै त् पूरी हूंदा लगंणि च् जी ... मीथै बि कुतगलि दींणि ऐ ग्या जी । उन वे महान कवि की कविता मिल पैड़ि नि छै... भस कमेंटु से अंताजा लगाई कि कवि अच्छु च् त् कविता बि अच्छी ह्वेली ... पर मेरू असल काम अच्छी कविता पढणौं नी छ् कुतगलि लगांणौं च् आज बटि ।
रचनों फर दिमाग रेचि की उतगा प्रसिद्वि नि मिलदि जतगा कैकी कयां कुयां मा जोल लगांणा से हूंद ।
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डींगू : २९६

मी थै फुल कौनफिडेंस छायो कि म्यारा 'डींगा' जन शरीर फर 'डींगु ' बुखाड़ नि अटैक कैर सकदु । पर वैल रियायत नि बरती । चिपग ग्या मीफर । डाक्टरुम गौं त् बल त्वे फर नाड़ि नि दिखेंणि छीं ... गुलकोस बि कनकै चढांण ? तु गोली खा । उंल मि भगबान भरोसा फर घार भेज द्यूं बल बुखाड़ उतनु रै जूस पींणु रै ।
मि बचंण चांदु छौ ... इलै मि ब्वाडा रांदेवै दुकनिम पौंछ ग्यों । वख स्यल्समैन कम वैद जीन् हजार रूप्यम् बिमरी काट कोर्स फंचि पखड़ा द्याई । घार आंदा आंदा मि बिसरी ग्यूं कि पैली गिलोय पींण कि... ऐलुबेरा ? ज्वर नाशक काड़ा कि आंवला रस ? बन बनि टैबलेट बि छै दियीं ? मि अबि घंगतोलमै छाई कि तबरि कैल भटसैप म् एक होमियोपैथी दवै की शीशी भेज द्या अर दावा कैर द्या कि भस तीन खुराकम् डींगू पलतीर .... मि एक सौ तीन बुखाड़ लेकी अटगु ... अर वीं सीसी बि लयों । सुबेर मिल अंगरेजी दवै खैं / दिनम आर्युवैदिक / ब्यखुनी होमोपैथी ।
तीन दिनुम बि बुखाड़ नि उतुरू ... सब तीर फील ह्वे गीं ... डींगा फर डींगू ह्वे ग्या य खबर फैल ग्या ... मीम फून आंण बैठ गीं... डाक्टरी सला मिलंण बैठ गीं .... बल नीम की गिलोय कु काड़ा बंणा...कुनस हैड़ त् फरकेंणु नि छायो नीमा डालम चढांणा छाया लोग मी थै । मी बि उंकी हां मा हां मिलांणु रौं अर हर्बि हर्बि पताल जांदा पलेटलेट बि च्यक करांणु रौं .... अब पता लग कि डींगु नि छायो वाईरल छायो ? पर यु बुखाड़ ज्वी छायो उधाड़ कै चल ग्या भैलोखो ... ।
उन बुखाड़ आंण से आदिम थै अपंणि औकाती पता बि चैल जांद नथर सदनि ठिक रैंणम् वो दुन्या थै अपंणा अगनै कुछ नि चितांदू ...एक सादारण बुखाड़ म् बि इतगा ताकत च् कि वो बथा साका कि हे महाबलि इंसान पैली मी से त् निबट ... दुन्या त् भौत बादै बात च् ।
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कड़वाचौथ : ३१५

इसटार टीपी का सर्व सुलभता का जमनम् इन नि बुले सकेंदु कि " कड़वाचौथ" क्य ह्वाई । गडवलि बि ईं धरती कु जीव च् । जु त्युहार हम नि मनांदा छाया उंथै मनांणम् हम सबसे अगनै ह्वे ग्यों । कबि हम चूनै रव्टि खांदा छाया , यांकु मलब इन नी छ् कि आज बि हम वे हि बदरंग टिक्कड़ चपांणा रौंवा ।
आज हमुल डांडा नि जांणु, पंद्यरी पांणि नि ब्वकुंणु , पुंगड़ा नि खैंणणा , मोल नि ध्वलुंणु , चुलु नि फुकंणु , म्याला नि लिपंणा , गोर नि चरांणा , पलकुंड नि लगांणि , क्याड़ा नि गडणां , बधांण नि पुजंणि त् किलै ना हम बि कड़वाचौथ जन मनमोहक चंदा पूजू सुंदर त्यूहार से मुक फरकौंवा ।
आवा हम बि ये बिरंणा आकाश मा परदूषित चंद्रमा ख्वजंणा का नै रिवाजम् अफु थै फिट करौं ...जमना दगड़ चलौं... अपंणा चक्करचाली चेहरा थै चौकलेटी बंणाणम कसर नि छ्वड़ौं ... कुल मिलैकी इंसानौ मकसद खुश रैंणौ च् तब चाहे खुशी डौंखा माछा पखड़ि मीला या कड़वाचौथ मनैकी ।
बी पोजिटिब ... बल !


कड़वाचौथ रांणि : ३१६

रांणि हजूर पांणि नि भ्वरदि ।
त्रेता युगम् बि इतगा रांणि नि रै ह्वेली जतगा ये कलयुगम हुईं छीं । 
अनपढा क्य 'यम.बी.ऐ' क्य सबि मेमसाबु खुंणि 'कड़वाचौथ' औथोराईज मनमौज हुयूं च् । पर सौत(सौतन) वला टैमफर कड़वाचौथ इतगा फीमस नि छौ ।
ब्यो बंद वला बलवान पुरूष जौंकु सिरमथीयूं जी दगड़ सर्या बरस कलुष रैंद वोबि ये शुबदिनम् झुस्स ह्वे जंदिन । जो सर्वकलाकार चतुर पुरूष छै मैना पुरंणु दंतमंजन बुरूस बदलंणम् बि अलगसेंणू रैंद वो बि अपंणि दुर्लभ कड़वाचौथी पुजै व कंनफर्म सत्कार खुंणि पगले जांद ... अर अपंणि गांणि स्यांणि बिसरी की मेमसाबू की एकदिवसीय मिठि बांणि फर सत्तु ह्वे जांद ।
अचकल्यूं वौजन घटांणा खुंणि लोगबाग बन बनि की तांणि लगांणा छीं । इलै दिनमनी भूकु रैंणु मैलाऔं खुंणि उतगा खैरी काम नी छ् जतगा बारामास पुटगीयूं कु भैर दिखेंणु च।
इसटार टीपी द्यखंणम् ताकत नि खरचेंदि । घास कटणम् जरूर हांफा फरके जंदी । पर उबरि तक घास कटणौं एकमात्र सिंगल औप्शन रैंदु छायो अब त् झंणि कतगा चीज ह्वे गीं कटेंणा कु । सबसे पैली त् कीसी कटेंद / पतिदेवै जुबान कटेंद / सासु ससुरौं कु अधिकार कटेंद / द्यूरांण जिठांण कु नातु कटेंद / भै भयात कटेंद / यारी दोस्ती मस्ती कटेंद । कटे कटे कै कड़वाचौथ त्यूहार बि मनेंद । कटाव इतगा बढ ग्या कि बदमाश लोखुल कड़वाचौथ फर भौत चुटगुला मिसा दीं / हास्य कव्यता मिसा दीं ... पर यूं सबु थै दरकिनार कैरिक मैलाऔं का जोश फर क्वी बोझ नि प्वाड़ु ...बल जु चुटगला / व्यंग्य मिसांणा छीं उंका होश ठिकांणा फर नि छीं... औफोर हमरि बिदेश मंतरी सुसमा सुराज ले चंद्रमा ख्वजंणी च् अर हमजन सादारण कज्यंणीयूं जन बरत धनी च् ...जैमा कि सर्या स्वदेश /बिदेश समयूं च् ... हमुम ल्ये क्याच एक खरमुंड नर का सिवा वेथै बि अपंण कब्जम् नि रैंण द्यावा बल ।
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