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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 28, 2017

Garhwali Poems by Balbir Rana ' Adig'

ज्यून बोली क्वे याद कनु च
मैन सोची मजाक मा ब्वनु च
मैं दुन्याक होर छोर ढूंढणु रो
वा बाळोपन आजतक यख रुणु च ।
===
मातृ भाषा
जै भाषाक माहौल मा
आँखा ख़्वली
जै भाषा मा ब्वैsन
लाड़ प्यार करि
ब्वन सिखण से पैली
जै भाषा तें
अवोध मन बिंगी जांद
जू भाषा ब्वै की दुधे धार दगड़
शरीर मा पोंछद
वे खुणि बोल्दा मातृ भाषा
अर मातृ भाषा
जीवन पर्यंत म्वरदी नी ।
2. नयीं पीड़ी
मेरु क्या दोष च
ब्वैन हिन्दी मा लाड़ करि
बुबान अंग्रेजी मा प्यार
स्कूलम हिंगलिश सीखी
त मेरी मातृ भाषा
क्या ह्वे।
@ बलबीर राणा "अडिग"
-===
******जिन्दगी कु सार******
मथि वालाळ तुु बंधन नि द्याई
जीवन कु एक सार द्याई
ऊसर जिन्दगी मां
झमा-झम बरखा की फुहार द्याई
तब बटिं सिंचणु रे संगसार मेरु
नव तौरण से हरि भरि यु सगोडि उगायी
कोटिस प्रणाम वे सृष्ठी कर्ता कु
जैन यु संगम बणाई
=



Copyright@ Balbir Rana Adig 



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