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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, February 20, 2018

उत्तराखंडियों के कुछ पारम्परिक व चेहते पकोड़ों की रस्याण

रुसाळ --  भीष्म  कुकरेती
-
 पंडित  नेहरू श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद श्री नरेंद्र मोदी ही ऐसे प्रधान मंत्री हुए हैं जिनके हर शब्द आम भारतीयों के पास पंहुच जाते हैं और ये शब्द जनमानस में अपना    प्रभाव छोड़ने में कामयाब हुए हैं।श्री नरेंद्र मोदी  के शब्द डिजिटल क्रान्ति के कारण अधिक खलबली मचाने में अधिक कामयाब हुए हैं। मोदी जी के शब्द चाय पर चर्चा पहले देवालय   फिर शौचालय पकोड़े  शब्दों  ने वास्तव में हर तबके  के भारतीयों को  सोचने पर  मजबूर किया है।
    आजकल ऑफलाइन ऑन लाइन में पकोड़े चर्चे में हैं  . मैं इतिहास पर कलम चलाता हूँ तो  मुझे पकोड़े के इतिहास व पकोड़ों  की किस्मों हेतु आदेस आने लगे हैं।  अभी परसों ही गाँव से व ऋषिकेश  से कुछ रिस्तेदार  एक शादी में सम्मलित होने मुंबई आये तो चर्चा पकोड़े पर अटक गयी . आश्चर्य यह है कि गाँवों में भी पकोड़ों पर नई नई कहावतें गढ़ी जा रहे हैं . ब्वारी सवोर पकोड़ा बणाण से भी प्रयोग होने लगे हैं . एक और आश्चर्य कि गाँव व ऋषिकेश या भानियावाला या थानों भोगपुर में बन वनस्पति से पकोड़े बनाने पर भी चर्चा होने लगी है और कुछ ने अभी अभी वन बनस्पति के पकोड़े भी तले व खाए .
  इसका साफ़ साफ़ अर्थ है कि जनमानस में पकोड़ों के प्रति अधिक जिज्ञासा जागी है .
  इस श्रृंखला में मैं उन पहाड़ी पकोड़ों की छ्वीं लगाउंगा जो सामान्य हैं ,  कुछ प्राचीन पकोड़े हैं  और कुछ आधुनिक पकोड़े हैं –
                      दाल के मस्यट का  गोला बनाकर भूड़ा  (पकौड़े , भजिया ) बनाना
  1-आम भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
-
उड़द के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
सूंटके भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
गहथ के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
मूँग के भूड़े  (पकोड़े , भजिया ) – भूतकाल में बिरले अब प्रचलन में हैं
2- पट्यूड़ /पटुड़ी(अधिकतर तवे में या फाणु बनाते वक्त )
गहथ के पट्यूड़
उड़द के पट्यूड़ बिरला
कच्चे मक्का के दानों से पट्यूड़ किन्तु इसे लगुड़ कहते हैं किन्तु है यह पट्युड़ ही या इन्हें टिकिया या कटलेट भी  कहा जा सकता है
-
 3-  पत्तियां , डंठल व आलण (आटा) के साथ बनने वाले पकोड़े , पत्यूड
-
  अ – गेंहू , मकई , जौ के आटे के आलणसे बनाये जाने वाली पत्यूड़
पिंडालू के पत्तों को काटकर
पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़
कद्दू , ओगळ, या अन्य  वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़
 ब – बेसन के आलण से बनने वाले पत्यूड़
पिंडालू के पत्तों को काटकर
पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़
कद्दू , ओगळ, या एनी वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़
कई फूलों  से भी पत्यूड़ बनाये जाते  हैं
स – गहथ के मस्यट से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़
विभिन्न पत्तियों, फूलों  से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़
-
   4 ----बेसन की  पकोड़ियाँ (भजिया )

         अ ---फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
कचनार की  पकोड़ियाँ (भजिया )
कद्दू के फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया)
 केला फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
 ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
सरसों फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
गोभी फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
बन बनस्पति फूलों  की  पकोड़ियाँ (भजिया )
ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
धनिया अदि के फूलों पकोड़े (भजिया )
    ब- फल के पकोड़े  (भजिया )
बैंगन फल के पकोड़े  (भजिया )
मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )
शिमला मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )
कच्चा केला के फल के पकोड़े  (भजिया )
कटहल के फल के पकोड़े  (भजिया )
तेंडुल  के फल के पकोड़े  (भजिया ) (बिरला )
करेला के फल के पकोड़े  (भजिया )
भिन्डी के फल के पकोड़े  (भजिया )
  स –पत्तियों , डंठल के  पकोड़े (भजिया )
पालक पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
मेथी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
राई पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
आलू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया) बिरला
धनिया पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
प्याज पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
पिंडालू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
कद्दू के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
मूला /मूली के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
ओगळ पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
फूलगोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
तैडू की पत्तियों के पकौड़े , भजिया
छीमी के पत्तों के  पकौड़े
 गाँठ  गोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
गंद्यल /कड़ी पत्ते के पकौड़े 

दसियों वन बनस्पति की पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
   द- कंद मूल ,जड़ों के पकोड़े ( भजिया )
आलू
प्याज
अन्य कंद बंद  के  पकोड़े (भजिया)
   ध-मांसाहारी पकोड़े (भजिया )
अण्डों के पकोड़े (भजिया)
मच्छी पकोड़े (भजिया )
प्राऊन पकोड़े (भजिया )
 च -अन्य पकोड़े



पनीर
मशरूम
   5-  विभिन्न टिकया
आलू टिकिया
पिंडालू टिकिया
 6- बिना आलण के तली पकोड़ी या फ्राई
आलू फ्राई
पिंडालू फ्राई
मिर्च फ्राई
लहसुन फ्राई
गोभी फ्राई
अंडा फ्राई
मछली फ्राई
प्राऊन फ्राई




में सम्मलित होने मुंबई आये तो चर्चा पकोड़े पर अटक गयी . आश्चर्य यह है कि गाँवों में भी पकोड़ों पर नई नई कहावतें गढ़ी जा रहे हैं . ब्वारी सवोर पकोड़ा बणाण से भी प्रयोग होने लगे हैं . एक और आश्चर्य कि गाँव व ऋषिकेश या भानियावाला या थानों भोगपुर में बन वनस्पति से पकोड़े बनाने पर भी चर्चा होने लगी है और कुछ ने अभी अभी वन बनस्पति के पकोड़े भी तले व खाए .
  इसका साफ़ साफ़ अर्थ है कि जनमानस में पकोड़ों के प्रति अधिक जिज्ञासा जागी है .
  इस श्रृंखला में मैं उन पहाड़ी पकोड़ों की छ्वीं लगाउंगा जो सामान्य हैं व कुछ प्राचीन पकोड़े हैं –
                      दाल के मस्यट का  गोला बनाकर भूड़ा  (पकोड़े , भजिया ) बनाना
  1-आम भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
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उड़द के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
सूंटके भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
गहथ के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )
मूँग के भूड़े  (पकोड़े , भजिया ) – भूतकाल में बिरले अब प्रचलन में हैं
2- पट्यूड़ /पटुड़ी(अधिकतर तवे में या फाणु बनाते वक्त )
गहथ के पट्यूड़
उड़द के पट्यूड़ बिरला
कच्चे मक्का के दानों से पट्यूड़ किन्तु इसे लगुड़ कहते हैं किन्तु है यह पट्युड़ ही या इन्हें टिकिया या कटलेट भी  कहा जा सकता है
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 3-  पत्तियां , डंठल व आलण (आटा) के साथ बनने वाले पकोड़े , पत्यूड
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  अ – गेंहू , मकई , जौ के आटे के आलणसे बनाये जाने वाली पत्यूड़
पिंडालू के पत्तों को काटकर
पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़
कद्दू , ओगळ, या अन्य  वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़
 ब – बेसन के आलण से बनने वाले पत्यूड़
पिंडालू के पत्तों को काटकर
पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़
कद्दू , ओगळ, या एनी वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़
कई फूलों  से भी पत्यूड़ बनाये जाते  हैं
स – गहथ के मस्यट से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़
विभिन्न पत्तियों, फूलों  से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़
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   4 ----बेसन की  पकोड़ियाँ (भजिया )

         अ ---फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
कचनार की  पकोड़ियाँ (भजिया )
कद्दू के फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया)
 केला फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
 ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
सरसों फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
गोभी फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
बन बनस्पति फूलों  की  पकोड़ियाँ (भजिया )
ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )
धनिया अदि के फूलों पकोड़े (भजिया )
    ब- फल के पकोड़े  (भजिया )
बैंगन फल के पकोड़े  (भजिया )
मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )
शिमला मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )
कच्चा केला के फल के पकोड़े  (भजिया )
कटहल के फल के पकोड़े  (भजिया )
तेंडुल  के फल के पकोड़े  (भजिया ) (बिरला )
करेला के फल के पकोड़े  (भजिया )
भिन्डी के फल के पकोड़े  (भजिया )
  स –पत्तियों , डंठल के  पकोड़े (भजिया )
पालक पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
मेथी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
राई पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
आलू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया) बिरला
धनिया पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
प्याज पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
पिंडालू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
कद्दू के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
मूला /मूली के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
ओगळ पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
फूलगोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
 बंद गोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)


दसियों वन बनस्पति की पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)
   द- कंद मूल ,जड़ों के पकोड़े ( भजिया )
आलू
प्याज
अन्य कंद बंद  के  पकोड़े (भजिया)
   ध-मांसाहारी पकोड़े (भजिया )
अण्डों के पकोड़े (भजिया)
मच्छी पकोड़े (भजिया )
प्राऊन पकोड़े (भजिया )
 च -अन्य पकोड़े





पनीर
मशरूम
   5-  विभिन्न टिकया
आलू टिकिया
पिंडालू टिकिया
 6- बिना आलण के तली पकोड़ी या फ्राई
आलू फ्राई
पिंडालू फ्राई
मिर्च फ्राई
लहसुन फ्राई
गोभी फ्राई
अंडा फ्राई
मछली फ्राई
प्राऊन फ्राई

पांडवो के गढ़वाली पुरोहित धौम्य और आज के पंडे व बद्रीनाथ -केदारनाथ के धर्माधिकारी -

(महाभारत  काल में उत्तराखंड में मेडकल टूरिज्म )
  -
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -11

   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )     - 11                   
  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--116  

      
उत्तराखंड में पर्यटन  तिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 116    

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ 
-- 
  महाभारत में जतुगृह पर्व में पांडवों द्वारा दुर्योधन नियोजित  लाक्षागृह में ठहरना , वारणावत में शिव पूजन मेले का आनंद लेना व लाक्षागृह के जलने व पांडवों का बच निकलने का उल्लेख है।  यहां से पांडव कुंती सहित उत्तराखंड के वनों में छुप गए व विचरण करते रहे। हिडम्बवध पर्व में पांडव दक्षिण पश्चिम उत्तराखंड के जंगलों में गमन करते रहे।  यहां भीम द्वारा हिडम्ब  का वध करना , हिडम्बा के आग्रह पर भीम द्वारा हिडम्बा से विवाह करना प्रकरण है और फिर मत्स्य , त्रिगत , पंचाल , कीचक जनपदों से होते हुए एकाचक्र नगरी  (वर्तमान चकरौता ) पंहुचने की कथा है।  बकवध पर्व में एकचक्र नगरी में भीम द्वारा बकासुर वध का वर्णन है।  
               चैत्र रथ पर्व में पांडवों का एकचक्र में ब्राह्मणों द्वारा पांडवों को विभिन्न नीतियों का वर्णन है।  द्रौपदी स्वयंबर की सूचना मिलने पर पांडवों का द्रौपदी स्वयंबर में भाग लेने का संकल्प की कथा भी इसी पर्व में है। 
                                  राजघराना परिवार का एकचक्र में ठहरना याने चिकित्सा व्यवस्था होना 

      पांडव राजघराने के सदस्य थे।  वे आदतन वहीं ठहरे होंगे जहां मेडिकल फैसिलिटी रही होंगीं।  जैसे आज के अमीर व सभ्रांत उत्तराखंड में यात्रा करते एमी वहीं ठहरते हैं जहां चिकत्सा सुविधा भी उपलब्ध हो। बहुत काल तक पांडवों का एकचक्र में ठहरने का साफ़ अर्थ है तब चकरोता में मेडिकल फैसिलिटी थीं। 
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                           पांडवो के गढ़वाली पुरोहित धौम्य और आज के पंडे व बद्रीनाथ -केदारनाथ  के धर्माधिकारी 

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   चैत्ररथ पर्व में 182 /1 -12 ) में  ऋषि देवल के भाई धौम्य ऋषि को पांडवों द्वारा पुरोहित बनाने की कथा है।  पांडवों का द्रौपदी स्वयंबर यात्रा से पहले पांडवों को पुरोहित की आवश्यकता पड़ी।  स्थानीय राजा गंधर्वराज की सूचना पर पांडव ऋषि धौम्य के आश्रम उत्कोचक तीर्थ क्षेत्र में धौम्य आश्रम पंहुचे और गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य को पुरोहित बनाया। आगे जाकर धौम्य ने  पांडव -द्रौपदी विवाह , इंद्रप्रस्थ में यज्ञ में पुरोहिती ही नहीं निभायी अपितु जब पांडवों के 13 साल वनवास में भी साथ निभाया। 
            धौम्य आश्रम का सीधा अर्थ है जहां ज्ञान (मनोविज्ञान ) , विज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान ) व अज्ञान ( भौतिक ज्ञान जैसे शरीर ज्ञान , सामाजिक ज्ञान , राजनीति ज्ञान समाज शास्त्र आदि ) की शिक्षा दी जाती हो।  एकचक्र (चकरौता  )के पास आश्रमों के होने से हम स्पष्टतः अनुमान लगा सकते हैं कि तब गढ़वाल में चिकित्सा शास्त्र के शिक्षण शास्त्र के संस्थान भी थे।  आज के संदर्भ में देखें तो कह सकते हैं कि चिकित्सा शास्त्र शालाओं के होने से स्वतः ही पर्यटक आकर्षित होते हैं। 
                                गढ़वाली पुरोहित धौम्य द्वारा पांडवों का पुरोहित बनने का अर्थ है कि उत्तराखंड पर्यटन , उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म को एक प्रबल जनसम्पर्क आधार मिलना।  ऋषि धौम्य पांडवों के आजीवन पूजहित रहे।  गढवाली पुरोहित ऋषि धौम्य का पांडवों का आजीवन पुरोहित बनने का अर्थ है  कि उत्तराखंड टूरिज्म का हस्तिनापुर ही नही अन्य क्षेत्रों में भी मुंह जवानी (वर्ड टु माउथ) प्रचार हुआ होगा।  प्रीमियम ग्राहकों का पुरोहित बनने का सीधा अर्थ प्रीमियम ग्राहकों के मध्य सकारात्मक छवि /धारणा बनना है। 
     किसी भी पर्यटक क्षेत्र को हर समय ब्रैंड ऐम्बेस्डर की आवश्यकता पड़ती है।  पांडव काल में गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य उत्तराखंड टूरिज्म के ब्रैंड ऐम्बेस्डरों में से एक प्रभावशली राजदूत थे। 
              वर्तमान संदर्भ में देखें तो आज भी चार धामों के धर्माधिकारी , फिक्वाळ  ( दक्षिण गढ़वाल में गंगोत्री -यमनोत्री के पंडों को कहा जाता है )  , पंडे व अन्य पुरोहित उत्तराखंड टूरिज्म (मेडिकल सह ) के आवश्यक अंग हैं और जनसम्पर्क हेतु आवश्यक कड़ी हैं।  मैं अपने सेल्स लाइन में कई स्थानों जैसे जलगांव महाराष्ट्र , विशाखा पटनम (आंध्र ), चेन्नई , गुजरात , इंदौर में फिक्वाळों से मला हूँ जो पुरहिति करने अपने जजमानों के यहाँ आये थे। 
              बद्रीनाथ के राजकीय व पारम्परिक मुख्य धर्माधिकारी स्व देवी प्रसाद बहगुणा (पोखरि ) जाड़ों में जजमानों के विशेष अनुष्ठान हेतु भारत के विभिन्न शहरों में जाते थे।  बहुगुणा जी तब भी जाते थे जब परिवहन साधन बहुत कम थे।  बहगुणा जी के प्रीमियम ग्राहक ही होते थे। 
       देव प्रयाग के स्व चक्रधर जोशी कई जाने माने व्यापार घरानों  के पुरोहित थे व  घरानों  प्रयाग वेध शाला बनाने में योगदान दिया।  
            आज बद्रीनाथ के धर्माधिकारी मंडल सदस्य श्री  सती जी व उनियाल जी भी अपने जजमानों को मिलने देश के विभिन्न भागों में जाते हैं। 
             पंडों का तो उत्तराखंड पर्यटन विकास में सर्वाधिक योगदान रहा है।  परिहवन साधन बिहीन  युग में पंडे वास्तव में पूजा अर्चना के अलावा टूरिस्ट एजेंसी का सम्पूर्ण कार्य संभालते थे। हरिद्वार से धाम तक  और फिर धामों से हरिद्वार तक यात्री जजमानों के आवास -निवास  (चट्टियों में व्यवस्था ) , भोजन , परिहवन (कंडे , घोड़े , कुली ) व मेडिकल सुविधा आदि का पूरा इंतजाम पंडे याने उनके गुमास्ते ही देखते थे।   पंडों द्वारा पर्यटक को भूतकाल में उनके कौन से पुरखे उत्तराखंड आये थी की सूचना देना पर्यटन विकास की प्रतिष्ठा वृद्धि हेतु एक बड़ा जनसम्पर्कीय माध्यम है।  
    जनसम्पर्क के मामले व अच्छी छवि बनाने में आज भी  फिक्वाळ , पंडे , धर्माधिकारी , मंदिरों में विभिन्न पूजा अर्चना करने वाले पुरोहित उत्तराखंड पर्यटन के प्रतिष्ठा प्रचार -प्रसार में महत्ती भुमका निभाते हैं।  

                 ऋषि धौम्य से उत्तराखंड पर्यटन को प्रतिष्ठा लाभ 

मेडिकल पर्यटन या अन्य प्रकार के टूरिज्म में प्रतिष्ठा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  अवश्य ही ऋषि धौम्य के पांडव पुरोहित बनने से उत्तराखंड को प्रतिष्ठा लाभ मिला होगा।  पांडव काल में ही नहीं आज भी पुरोहित धौम्य महाभारत द्वारा उत्तराखंड को प्रतिष्ठा दिला ही रहे हैं। 
     ऋषि धौम्य के पांडव  पुरोहित बनने से  लोगों के मध्य उत्तराखंड के प्रति विश्वास जगा होगा और बढ़ा होगा। 
     ऋषि धौम्य  ऋषि धौम्य के पांडव  पुरोहित बनने से उत्तराखंड पर्यटन आकांक्षियों में आसंजस्य की स्थति समाप्त हुयी होगी और उन्होंने  उत्तराखंड भ्रमण योजना बनाने में कोई देरी नहीं की होगी। 

                      


Copyright @ Bhishma Kukreti   /2 //2018   

Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 

                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ======== 

  
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