उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, February 11, 2018

पलायन रोको , पलायन रोको पर शेर के मूछ के बाल कौन गिनेगा ?

Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
-
 पलायन रोको , पलायन रोको पर शेर के मूछ के बाल  कौन गिनेगा ? 
-
 चबोड़ , चखन्यौ , भचकताळ    :::   भीष्म कुकरेती   
-
स्थान -ड्याराडूण, डिल्ली या बम्बै 
समय 1989  से 2099  मध्य क्वी बि साल
-
गुंदुरु गांवक  रिस्ता मा सबसे कणसु  भाई- भैजी ! क्या जबाब दीण ?
 सुंदुरु  - गांवक रिस्ता से गुंदुरु से ज्याठ - हाँ भैजी सब पुछणा छन बल ... 
 गांवक रिस्ता मा सबसे बड़ो भाई बंदरु  सबसे ज्याठ - एक मिनट हां।  जरा मि ' पहाड़ों में बिच्छू घास खेती से पलायन रुकेगा ' भाषण पूर करदु तब बात करुल। पर्स्युं उत्तरी गढ़वाल संघ की मीटिंग मा म्यार भाषण च त तैयारी जरूरी च। 
गुंदुरु - भैजी अरे भानु काकाक रोज फोन आणा छन बल हम मादे कु ?
सुंदुरु - मेकुण त फोन इ नि ना  द्वी दैं घौर बि ऐ गे भानु काका। 
गुंदुरु - क्या आफत च।  गढ़पुर पट्टी पलायन रोको संघ वाळुंम काम कुछ नी बल बस।  बुलणा छन बल परिवार से  एक भाई रिवर्स माइग्रेसन कारो बल। 
सुंदुरु - जान खांई च यूंन मेरी। अरे क्वी प्रोग्राम उरायो अर द्वी चार बादी -बादणी डांस राखो तो बात बि खपद। 
गुंदुरु - हां बीच मा यूं पर रबत लग्युं छौ बल अपण बच्चों तैं गढ़वळि सिखाओ , गढ़वळि सिखाओ अर अब रबत लग्युं च बल रिवर्स  माइग्रेसन कारो रिवर्स माइग्रेसन कारो बल जु बि रिटायर ह्वे गेन बल उ गाँव मा बसों बल। 
सुंदुरु -अरे कथगा पैथर सि पलायन रोको संघ का भानु काका पड्यां छन म्यार पैथर बल मि रिटायर ह्वे ग्यों त मि तैं अब अपण मातृ भूमि सेवा वास्ता गांव बसण चयेंद।  अरे गांव बसण क्वी खाणो काम च। 
गुंदुरु - हां फोन पर भानु काका मि तै समजाणु छौ बल जन  सिंसईं ,  खाटळी का विद्यादत्त पोखरियाल जी लखनऊ बिटेन गांव मा बसि गेन उनि मि तैं बि गांवम बसण चयेंद। पोखरियाल जीन 267 फलदार पेड़ लगाई ऐन बल। 
 सुंदुरु - अर ओ झंगोरा से पलायन रोको संघ का उम्मेद जेठू  जी  कम छन क्या।  वी बि लग्यां  छन बल " सुंदुरु ! तू  रिटायर ह्वे गे त गांव म बस  अर झंगोरा खेती कौर अर पलायन रोक। 
गुंदुरु - फिर वो 'कुखड़ पाळो गढ़वाल में पलायन रोको समीति ' का घ्याळु जीजा जी बि मि तै   ' गढ़वाल में पलायन रोकने हेतु कुखुड़ कैसे पालें ' किताब दे गेन अर पुछणा रौंदन बल " कब छै रै गाँव जाणि कुखुड़ पळणो कुण ?"
सुंदुरु - अरे इक नाती छन , नतणा छन ऊँ तै छोड़ि मि झंगोरा बुतणो गढ़वाल जौंल हैं ?
गुंदुरु - अर मि इतरी बड़ी जायजाद छोड़ि कुखुड़ पाळणो गाँव जौलु हैं ?
हुस्यारी (बंदरु नातण ) - गछोटे दादा जी ! मंझले दादा जी ! आपने पलायन रोको वालों से पूछना था ना कि वे क्यों नहीं वापस पहाड़ जा रहे हैं ?
गुंदुरु = बेटा पूछी च सब्युं तैं पूछ च। 
हुस्यारी -तो उनके आन्सर क्या थे ?
सुंदुरु - एक बुलणु बल वैक नौन नि जाण दीणा छन।  हैंक बुलणु छौ बल वैक मिसेजै तबियत खराब रौंद त गाँव नि बस सकुद।  अर तिसर  बुलणु छौ बल चूंकि वैकि मिसेज पंजाबी च त वु गाँव तो छोडो उत्तराखंड मा कखि बि नि बस सकुद। 
गुंदुरु - भानु काकाक बुलण च बल चूंकि वूं माँ इन जमीन नी च कि मॉडर्न हॉउस बणै साकु।  घ्याळ जीजा क संजैत मकान च त सेटल हूण मुश्किल च त  मशरूम से पलायन रोको का अध्यक्ष मंथा ज्योरुन कब का अपण गांवक जमीन बेचिक देहरादून मा सेकिंड होम का वास्ता प्लॉट ले याल छौ तो अब गाँव वापस जावन तो कनै जावन। 
सुंदुरु - अर सब हमर पैथर पड्यां छन बल वापस गाँव जावो अर पलायन रोको। 
हुस्यारी - तो आप भी दादा जी ने किया वैसे क्यों नहीं करते ? कुछ दिन पहले तक 'पलायन रोको' आंदोलनकारी रोज दादा जी को तंग करते थे कि गाँव में बसो , गांव में बसो, रिवर्स माइग्रेसन कारो।  अब कोई नहीं आता। 
द्वी - क्या कौर भाई साबन ?
हुस्यारी - कुछ ना।  एक नई संथा खड़ी कार।  'बिच्छू घास से गढ़वाल में पलायन रोको ' संस्था खोलि दे। अब दादा जी हर जगह भाषण देते रहते हैं बिच्छू घास की खेती करो और पलायन रोको। अब कोई दादा जी के पास नहीं फटकते हैं। 
द्वी चड़म से उठिक एक दगड़ी - अच्छा त हम चलणा छा। 
हुस्यारी -दादा जी ! चाय तो पी के जाईये। 
गुंदरु - नहीं बेटा मुझे अभी जाकर अपण नै संस्था ' खन्नु -खरपट से पलायन रोको समीति'  संस्था का लेटर हेड छापणो आडर दीणो जाण। 
सुंदुरु - मीन बि अब्याक अबि ' नारियल की खेती से पलायन रोको संघ ; संस्था का लेटर हेड छपवाणन।  

    

-
1/2 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
-
-
    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
-
 Best of Garhwali Humor Literature in Garhwali Language , Jokes  ; Best of Himalayan Satire in Garhwali Language Literature , Jokes  ; Best of  Uttarakhand Wit in Garhwali Language Literature , Jokes  ; Best of  North Indian Spoof in Garhwali Language Literature ; Best of  Regional Language Lampoon in Garhwali Language  Literature , Jokes  ; Best of  Ridicule in Garhwali Language Literature , Jokes  ; Best of  Mockery in Garhwali Language Literature  , Jokes    ; Best of  Send-up in Garhwali Language Literature  ; Best of  Disdain in Garhwali Language Literature  , Jokes  ; Best of  Hilarity in Garhwali Language Literature , Jokes  ; Best of  Cheerfulness in Garhwali Language  Literature   ;  Best of Garhwali Humor in Garhwali Language Literature  from Pauri Garhwal , Jokes  ; Best of Himalayan Satire Literature in Garhwali Language from Rudraprayag Garhwal  ; Best of Uttarakhand Wit in Garhwali Language from Chamoli Garhwal  ; Best of North Indian Spoof in Garhwali Language from Tehri Garhwal  ; Best of Regional Language Lampoon in Garhwali Language from Uttarkashi Garhwal  ; Best of Ridicule in Garhwali Language from Bhabhar Garhwal   ;  Best of Mockery  in Garhwali Language from Lansdowne Garhwal  ; Best of Hilarity in Garhwali Language from Kotdwara Garhwal   ; Best of Cheerfulness in Garhwali Language from Haridwar    ;गढ़वाली हास्य -व्यंग्य ,  जसपुर से गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; जसपुर से गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढांगू से गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; पौड़ी गढ़वाल से गढ़वाली हास्य व्यंग्य ;
Garhwali Vyangya, Jokes  ; Garhwali Hasya , Jokes ;  Garhwali skits , Jokes  ; Garhwali short Skits, Jokes , Garhwali Comedy Skits , Jokes , Humorous Skits in Garhwali , Jokes, Wit Garhwali Skits , Jokes
=

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments