History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of Himalayan Purslane (Portulaca oleracea) in Uttarakhand context
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -29
History of Wild Plant Vegetables , Agriculture and Food in Uttarakhand -29
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास -- 69
History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes in Uttarakhand -69
आलेख : भीष्म कुकरेती
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उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास -- 69
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आलेख : भीष्म कुकरेती
उत्तराखंडी नाम - लुण्या
हिंदी नाम - कुल्फा , कुल्फो
संस्कृत -लोणिका , लोणी
भारत में तकरीबन हर जगह मिलने वाले इस पौधे के कई क्षेत्रीय नाम हैं।
कुल्फा /लुण्या भूमध्य सागरीय क्षेत्र , यूरोप , लैटिन अमेरिका सभी जगह मिलता है और इसका उपयोग भिन्न भिन्न रुप हेतु होता है। भूमध्य सागरीय क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के इस पौधे के अवशेष (700 BC ) मिले हैं। उत्तराखंड में शायद यह पौधा 2500 ाल से उपयोग में लाया जा रहा होगा।
उत्तराखंड में अकाल के वक्त लुण्या का बहुत उपयोग किया जाता रहा है। अब इसका उपयोग कम ही हो गया है।
लाल तने वाले पौधे की पत्तियां छोटी ,कुछ मोटी , रसीली होती हैं , कुल्फा का तना एक मित्र तक जा सकता है। फूल पीले होते हैं। पानी नहर के किनारे अधिक होता है। इसकी रसायनिक रचना सुबह और शाम तोड़ने में भी भिन्न हो जाता है।
आयुर्वेद में लुण्या को पेशाब खुलने या पेशाब गति बढ़ाने , तापमान कम करने , यकृत संबंधी बीमारी ठीक करने आदि में होता था। जले पर भी लगाया जाता था।
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कुल्फा /लुण्या की सब्जी
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लुण्या की सब्जी आम हरी सब्जी जैसी बनाई जाती है।
डंठल सहित धोया जाता है।
डंठल , पत्तियों , फूलों व कलियों सहित काटा जाता है।
फिर छौंका लगाकर इसे कुछ देर तक तेल में भूना जाता है और मसले व कुछ पानी मिलाकर पकाया जाता है। नमक कम डाला जाता है क्योंकि पौधे में नमक होता है। बजी लसलसी होती है। लुण्या को कम आंच में पकाया जाता है।
आभार - प्रोफेसर आर.डी. गौड़
Copyright@Bhishma Kukreti Mumbai 2018
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