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Sunday, February 11, 2018

पलायन के समर्थन में दो शब्द

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पलायन के समर्थन में  दो शब्द 
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती   
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   अब जन कि ये हफ्ता बि फेसबुक मा सौ मादे साठ गढ़वाली कविता पलायन पर छे ,कविता  पलायन से बांजी कूड्यूं रुण धूण पर केंद्रित छे।  कवि याने समाज का प्रतिनिधि त हमर समाज पलायन याने समाधान से दुखी च।  मेरी समज मा यि नि आंदि बल जब सामयिक संस्कृति अर्बनाइजेशन याने शहरीकरण की च त फिर पलायन तैं गाळी देकि यि कवि कौन  सा धज घौटी ल्याल।  आज तो समय की दरकरार च बल युवाओं तैं प्रोत्साहित  करे जावो कि वु न्यूआर्क मा , ऑस्ट्रेलिया मा ,जापान मा नौकरी लैक बणन अर हमर कवि बुना छन कूड़ि -पुंगड़ी संबाळो। ये कुणि बुल्दन बल पिछ्ल्वाड़ी बाड़ी खाण , पिछ्ल्वाड़ी पाणी पीण , न्यूआर्क की जगा गांव मा नौकरी खुज्याण।   
   फेसबुक की बात ले ल्यावो तो गांवासी गढ़वाली अबि बि बुलणा रौंदन -प्रवासी मुंबई मा रैकी गढ़वाल की बात करणा रौंदन या अब प्रवासी हम तैं सिखाल ? पर यी गढ़ववासी  भूल गेन कि अंग्रेजुं समय से लेकि आज तक अद्धा से सअधिक विकास मा भागीदारी प्रवास्युं की ही च।  सन साठ सहत्तर से पैल गांवुं आर्थिक स्थिति त मन्या ऑडर से ही चल्दी छे।  आज अधिसंख्य गढ़वाली पढ़्यां -लिख्यां छन तो वु प्रवास्युं कारण ही पढ़िन।  जरा अपण गाउँ सँजैत भांडु पर नाम त द्याखौ तो पैल्या कि इ भांड बि प्रवास्युंन ही निड़ै छया।  यो एक कटु सत्य च कि आज बि गांवुं मा मंदिरुं आधुनिकरण हूणु च वु प्रवास्युं बल बूता पर हूणु च अर  फिर बि गढ़वाल वासी प्रवास्युं कुण बुलणा रौंदन बल - तुम प्रवासी हम तैं सिखैल कि गांवक विकास कनै करण ? 
    एक कविन अबि द्वी चार दिन पैल ल्याख बल यदि मुंबई वळ प्रवास्युं  तै गढ़वाल की इथगा इ खुद लगणी च त गढ़वाल मा किलै नी बसणा छन।  मि निखालिस प्रवासी छौं त इथगा इ बोल सकुद बल खुद पर त म्यार बस  नि चलद पर मि मुंबई का प्रवास्यूं तै थोड़ा भौत प्रभावित कर सकुद छौं कि वु अपण बच्चों तै इन शिक्षा देन कि भैर देसुं  सरकार हमर युवाओं अपण देस मा स्वागत कारन।  जी मि तैं त खुद लगणी छन किन्तु मेरी नई जनरेसन तै गढ़वाल की खुद नि लगदी जी।  अब तो कवि खुस रालो। 
    गढ़वासी भौत सा बगत प्रवास्युं मजाक उड़ांदन।  एक तरफ प्रवास्युं मजाक उड़ांदन अर दुसर तरफ जनरल रावत , डोभाल , धस्माना आद्युं पर गर्व करदन अर अपण रिस्तेदारी बि बथांदन।  भाई यूं तै क्वी बताओ तो सै कि यी अधिकतर प्रवास्यूं संतान छन।  प्रवास अर प्रवास्यूं तै विलियन या खलनायक बणान सर्वथा बंद हूण चयेंद।  या मानसिकता भविष्य दृस्टा मानसिकता नी च  अपितु कूप मंडूकता की मानसिकता च।  
   प्रवास अर प्रवास्युं तै विलियन।  खलनायक बणानो अर्थ च कि यथास्थिति से मुक लुकाण।  पलायन तैं यदि हम समाधान मानिक चलला  तो हम इन युवा पैदा करला जु एक कंम्पीटिटिव युवा ह्वाल।  हम तै त पलायन का वास्ता प्रतियोगी  युवाओं की फ़ौज तयार करणै बात करण चयेंद ना कि पलायन रुकणै बात।  जब हमसे पलायन रुके इ नि सक्याण त किलै हम अपण युवा पीढ़ी तै घंघतोळ मा रखवां ? आज आवश्यकता च गढ़वाल का युवाओं तैं विदेशों मा नौकरी लैक बणानो की।  जी हाँ ! आज छ्वीं लगाओ कि किस तरह ग्रामीण गढ़वाली युवा न्यूआर्क , न्यजीलैंड या जापान में नौकरी पाए।  


13/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
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