उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास -- 89
History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes in Uttarakhand -89
History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes in Uttarakhand -89
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आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
-गुलाब जामुन आज उत्तराखंड का मुख्य मिष्ठानों में गिना जाता है। लेकिन गुलाब जामुन के अर्थ में ना तो गुलाब है ना ही जामुन। गुलाब जामुन तीन फ़ारसी शब्दों के मेल से बना है। गोल /गुल +अब +जामुन। गोल का अर्थ है फूल , अब माने पानी और जामुन माने फळिंड। याने जो जामुन जैसे दिखे और स्वाद में गुलाब जल जैसा। गुलाब जामुन कुछ कुछ अरबी मिष्ठान ' लुक़मत अल -कादी ' जैसा है किन्तु अवयव अलग अलग। 'लुक़मत अल -कादी ' के लिए लोट के गोलियों को तलकर शहद की चासनी में छोड़ा जाता है जब कि गुलाब जामुन खोया के लोट के तले गोलियों को गुड़ या चीनी की चासनी में छोड़ा जाता है। भोजन इतिहासकार माइकल क्रोंड का कहना है कि 'लुक़मत अल -कादी' और गुलाब जामुन दोनों फ़ारसी शब्द हैं और दोनों का जन्म स्थान ईरान है। गुलाब जामुन ईरान से हिंदुस्तान पंहुचा।
क्रोंडल के अनुसार लोककथा है कि बादशाह शाहजहां के फ़ारसी शाही रसोइये ने गलती से अकस्मात गुलाब जामुन (लुक़मत अल -कादी की जगह ? ) बनाया और शाह जहां के रसोई की शान बनकर हिन्दुस्तान के जिव्हा प्रिय मिष्ठान बन गया। या हो सकता है बादशाह शाहजहां ने मुमताज महल के किसी बच्चे होने की ख़ुशी में खानशामाओं को कोई नई मिठाई बनाने का आदेश दिया हो और गुलाब जामुन का जन्म हो गया हो।
अधिकांश इतिहासकार यही कहते हैं की गुलाब जामुन बादशाह शाह जहां के समय भारत में आया या जन्म लिया और आज भारत ही नहीं कई देशों में गुलाब जामुन मिष्ठान एक उद्यम है।
उत्तराखंड में गुलाब जामुन
वैसे हो सकता है कि मंदिरों के पंडे , धर्माधिकारी जब जाड़ों में जजमानों को मिलने मैदानों में निकलते रहे होंगे तो किसी जजमान ने उन्हें गुलाब जामुन खिलाया होगा ही। पर हमें कहीं यह वृत्तांत नहीं मिलता है।
जहां तक उत्तराखंड का प्रश्न है हरिद्वार में सबसे पहले गुलाब जामुन हलवाइयों ने बनाना शुरू किया होगा फिर धीरे धीरे सरकते सरकते गढ़वाल पंहुचा होगा। हो सकता है गुलाब जामुन ने मुरादाबाद या पीलीभीत से अल्मोड़ा की ओर रुख किया हो। एक बात तय है कि जब पहाड़ी उत्तराखंड में गुड़ या चीनी खरीदने की तागत आयी होगी तभी गुलाब जामुन को भी पंख लगे होंगे।
गढ़वाल राइफल , कुमाऊं रेजिमेंट का गुलाब जामुन प्रसारण में हाथ रहा होगा किन्तु कितना हाथ रहा है यह खोज का विषय है।
कोटद्वार , भाभर , दुगड्डा , डाडामंडी में तो तय है कि बिजनौर से आये बनियों ने ही गुलाब जामुन बनाना शुरू किया होगा। श्रीनगर में तो तय है जैन व्यापारियों ने गुलाब जामुन का परिचय गढ़वालियों को कराया होगा।
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