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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, February 11, 2018

गढ़वाल में वसंत पंचमी सरस्वती पूजा हेतु नहीं अपितु हरियाळी पूजन और सामूहिक गीत प्रारंभ हेतु प्रचलित थी

आलेख - भीष्म कुकरेती 
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  फेसबुक व अन्य इंटरनेट माध्यमों में हम (मै भी ) वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन का पर्याय मानकर के एक दूसरे  को वधाईयें देते रहते हैं।  किन्तु गढ़वाल में वसंत पंचमी में सरस्वती पूजा एक गौण पक्ष रहता था।  हाँ यदा कड़ा कोई बच्चे को पाटी  दिखा देता था बस सरस्वती पूजा यहीं तक सीमित थी (मुझे भी इसी दिन पाटी दिखाई गयी थी ). हमारे सामान्य लोक या लोक साहित्य में कहीं  भी सरस्वती बंदना के कोई प्रतीक सामने नहीं आये हैं कि  हम कह सकें कि वसंत पंचमी का सरस्वती पूजन से सबंध है। 
     वास्तव में वसंत पंचमी का वसंती रंग से भी उतना संबंध नहीं है जितना हम इंटरनेट माध्यम में शोर करते हैं।  किसी ने एकाध रुमाल हल्दी के रंग में रंग दिया तो रंग दिया अन्यथा मेरे बचपन में बसंती  रंग व पीले रंग में कोई अंतर् भी नहीं समझा जाता था। 
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                     हरियाली याने कृषि और लोहार का  सम्मान 
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      वास्तव में गढ़वाल में बसंत पंचमी का अलग महत्व है जो अन्य मैदानी क्षेत्रों में है ही नहीं। 
   गढ़वाल में बसंत पंचमी का पहले अर्थ होता था हरियाली लगाना।  इस दिन लोहार अपने अपने ठाकुर के लिए प्रातः काल से पहले जौ को जड़ समेत उखाड़ कर अपने ठाकुर के चौक में रख देते हैं। 
    फिर परिवार वाले स्नान आदि कर हरियाली अनुष्ठान शुरू करते हैं 
पहले दरवाजे के ऊपरी हिस्से में हल्दी से पिटाई लगाई जाती है और पिठाई जौ के पौधों में भी छिडकी जाती है। पुराने हरियाली को उखाड़ा जाता है  
      तीन चार जौ की जड़ों को ताजे गाय के गोबर में रोपा जाता है और फिर उन जौ के पौधों को दरवाजे के दोनों मोहरों  (दरवाजे के  ऊपरी कोने -क्षेत्र ) में चिपकाया जाता है।  इस तरह सभी कमरों पर हरियाली चिपकायी जाती है।  आळों में भी हरियाली चिपकायी जाती है। इसी तरह गौशाला के हर कमरे के मोहरों में भी जौ की हरियाली चिपकायी जाती है। 
   इस दिन स्वाळ -पक्वड़  भी बनाये जाते हैं और बांटे जाते हैं लोहार हेतु विशेष  ध्यान रखा जाता है। लोहार को अन्न या धन दिया जाता है। इस दिन गुड़ का मीठा भात याने ख़ुश्का भी बनाया जाता है।
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             गंगा स्नान 
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बहुत से लोग गंगा स्नान हेतु छोटे या बड़े संगम पंहुचते थे। 
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 कर्ण व नासिका छेदन 
वसंत पंचमी के दिन नासिका व कर्ण छेदन को शुभ माना जाता है।    
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  सामूहिक गीत व नृत्य की शुरुवात 
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      आज बसंत पंचमी की रात से गाँवों में सामूहिक नृत्य , गीत व लोक नाट्य कार्यकर्म भी शुरू होते थे जो बैशाखी तक चलते रहते थे। 
   मुझे एक लोक गीत की पहली पंक्ति याद है जो पहले दिन अवश्य ही गाया जाता था -
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 हर हरियाली जौ की 
खुद लगी बौ की। 
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     बद्रीनाथ कपाट खुलने  का दिन निश्चितीकरण 
बसंत पंचमी के दिन न्य पंचांग भो खोला जाता है और नए वर्ष की कुंडली भी देखि जाती है। 
 बसंत पंचमी के दिन बद्रीनाथ कपाट खुलने का दिन भी निश्चित होता है।    
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Copyright @ Bhishma  Kukreti , 2017 
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