आलेख - भीष्म कुकरेती
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फेसबुक व अन्य इंटरनेट माध्यमों में हम (मै भी ) वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन का पर्याय मानकर के एक दूसरे को वधाईयें देते रहते हैं। किन्तु गढ़वाल में वसंत पंचमी में सरस्वती पूजा एक गौण पक्ष रहता था। हाँ यदा कड़ा कोई बच्चे को पाटी दिखा देता था बस सरस्वती पूजा यहीं तक सीमित थी (मुझे भी इसी दिन पाटी दिखाई गयी थी ). हमारे सामान्य लोक या लोक साहित्य में कहीं भी सरस्वती बंदना के कोई प्रतीक सामने नहीं आये हैं कि हम कह सकें कि वसंत पंचमी का सरस्वती पूजन से सबंध है। -
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हरियाली याने कृषि और लोहार का सम्मान -
पहले दरवाजे के ऊपरी हिस्से में हल्दी से पिटाई लगाई जाती है और पिठाई जौ के पौधों में भी छिडकी जाती है। पुराने हरियाली को उखाड़ा जाता है
तीन चार जौ की जड़ों को ताजे गाय के गोबर में रोपा जाता है और फिर उन जौ के पौधों को दरवाजे के दोनों मोहरों (दरवाजे के ऊपरी कोने -क्षेत्र ) में चिपकाया जाता है। इस तरह सभी कमरों पर हरियाली चिपकायी जाती है। आळों में भी हरियाली चिपकायी जाती है। इसी तरह गौशाला के हर कमरे के मोहरों में भी जौ की हरियाली चिपकायी जाती है। -
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कर्ण व नासिका छेदन
वसंत पंचमी के दिन नासिका व कर्ण छेदन को शुभ माना जाता है।
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सामूहिक गीत व नृत्य की शुरुवात -
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बसंत पंचमी के दिन बद्रीनाथ कपाट खुलने का दिन भी निश्चित होता है।
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