Fertility Tourism in Uttarakhand in Mahabharata Era
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन -9
Medical Tourism Development in Uttarakhand (History Tourism ) -9
(Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series--114 )
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 114
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
महाभारत के आदिपर्व के 129 वें अध्याय में गुरु कृपाचार्य , कृपाचार्य भगनी कृपी और गुरु द्रोणाचार्य जन्मकथाओं का उल्लेख है।
एक आश्रम जहाँ कुरु सम्राट शांतनु आखेट हेतु आते थे वहां महर्षि गौतम पुत्र शरद्वान तपस्या करते थे। शरद्वान सरकंडे के साथ पैदा हुए थे और हर समय धनुर्वेद अध्यन , परीक्षण में लग्न रहते थे व भारी तपस्या भी करते थे । देवराज इंद्र ने जलन बस शरद्वान ऋषि की तपस्या भंग हेतु जानपदी नाम की एक देवकन्या को शरद्वान ऋषि के आश्रम में भेजा। जानपदी एक वस्त्र पहनकर ऋषि शरद्वान को रिझाने लगी। देवकन्या देखकर ऋषि शरद्वान अति आकर्षित हुए और उनका वीर्य स्खलन हो गया. मुनि को पता भी नहीं चला और वीर्य सरकंडों पर गिर गया, मुनि शरद्वाज वहां से चले गए। मुनि का वीर्य दो भागों में बंट गया। उस वीर्य से एक पुत्र हुआ और दुसरा पुत्री। इसी समय सम्राट शांतनु उधर आये और दोनों बच्चों को उठाकर अपने महल ले गए। ततपश्चात ये बच्चे गुरु कृपाचार्य व कृपी नाम से प्रशिद्ध हए।
गुरु द्रोणाचार्य की भी तकरीबन इसी तरह की कथा आदिपर्व के इसी अध्याय में है।
गंगाद्वार (हरिद्वार ) में महर्षि भरद्वाज का आश्रम था। एक बार महर्षि भारद्वाज अन्य ऋषियों के साथ किसी कठोर अनुष्ठान हेतु गंगातट पर आये । वहां कामवासना वशीभूत कोई अप्सरा गंगा में पहले से ही स्नान कर रही थी। उस अप्सरा के शरीर को देख भारद्वाज ऋषि आपा खो बैठे और उनका वीर्य स्खलित हो गया। उन्होंने उस वीर्य को यज्ञकलश (द्रोण, डुलण ) में रख दिया। उस कलश के वीर्य से पुत्र हुआ जिसका नाम भारद्वाज ऋषि ने द्रोण रखा। बालक द्रोण ही बाद में कौरव पांडवों के गुरु हुए। इतिहासकार मानते हैं कि द्रोण (कलस या डुलण ) में जन्म लेने के कारण गुरु द्रोणाचार्य का नाम द्रोण नहीं पड़ा अपितु द्रोण घाटी ( पहले सदी से पहले द्रोणी घाटी नाम सिक्कों में मिलते हैं -डबराल उ.इ. भाग 2 , पृष्ठ 308 ) . भारद्वाज ने द्रोण को पाला व अस्त्र शस्त्र शिक्षा मुनि परुशराम से दिलवाई।
दोनों ऋषियों (शरद्वान व भारद्वाज ) का संबंध उत्तराखंड से है। शरद्वान आश्रम शायद सहारनपुर में कहीं था जो जौनसार से निकट था। भारद्वाज की कर्मस्थली तो हरिद्वार , देहरादून व भाभर था ही।
तीनो का जन्म वीर्य स्खलन से हुआ। माना कि महाभारत के समय में टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक व संस्कृति थी तो वह तकनीक कैसे विलुप्त हो गयी ? यदि थी और जैसे सिंध सभ्यता (उत्तराखंड संदर्भ में सहारनपुर व निकट क्षेत्र ) समाप्त हुयी और विभिन्न तकनीक भी सभ्यता समाप्ति के साथ खो गए। पर मैं इस सिद्धांत पर विश्वास नहीं कर पाता हूँ कि माह्भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक थी।
मेरा अपना अनुमान है कि वीर्य दान संस्कृति के तहत ही कृपाचार्य , कृपी और द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। हो सकता है शकुंतला प्रकरण में विश्वामित्र जैसे ही शरद्वाज ऋषि ने अपने बच्चों को छोड़ा हो और मुनि भारद्वाज ने लोकलाज के कारण बच्चा पैदा होने के बाद अप्सरा का त्याग किया हो। वीर्य दान अधिक तार्किक लग रहा है कि उन अप्सराओं/स्त्रियों को इन मुनियों ने वीर्य दान दिया हो। वीर्य दान के साथ अंड दान भी तो फर्टिलिटी का अंग है। हो सकता है कि शरद्वाज व भारद्वाज ऋषियों ने संतान प्राप्ति हेतु उन स्त्रियों से गर्भाशय प्राप्ति हेतु कोई लेन देन किया हो। गर्भाशय दान में स्त्री अन्य पुरुष का बच्चा रखती है।
यदि टेस्ट ट्यूब तकनीक महाभारत काल में विद्यमान थी तो भी यह तय है कि उत्तराखंड में टेस्ट ट्यूब या टिस्यू कल्चर तकनीक विद्यमान था और मेडकल टूरिज्म हेतु एक प्रोडक्ट या सेवा थी।
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उत्तराखंड में फर्टिलिटी टूरिज्म के तंतु
यदि टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक केवल कल्पना है तो यह सिद्ध होता है कि उत्तराखंड में वीर्य दान का प्रसार प्रचार बाहरी क्षेत्रों में था और जैसे पांडवों का जन्म वीर्य दान से हुआ वैसे ही कृपाचार्य , कृपी और द्रोणाचार्य का जन्म वीर्य दान से हुआ। अगर देखें तो जौनसार भाभर या आस पास हिडम्बा से भीम पुत्र घटोत्कच , गंगाद्वार (हरिद्वार ) उलूपी से अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन का जन्म वीर्य दान संस्कृति के तहत ही हुआ। चूँकि इतिहास तो राजाओं का लिखा जाता है सामन्य जनता का नहीं तो यह तय है कि उत्तराखंड में वीर्य दान प्राप्ति हेतु आम लोग भी उत्तराखंड आते थे। और अगर टेस्ट ट्यूब तकनीक थी तो भी पर्यटक इस तकनीक लाभ हेतु उत्तराखंड आते थे।
जो भी सत्य रहा होगा वह इतिहासकारों के जिम्मे छोड़ हम कह सकते हैं कि संतान उत्पति हेतु अन्य क्षेत्रों से लोग उत्तराखंड आते थे और मेडिकल टूरिज्म से लाभ उठाते थे.
फर्टिलिटी टूरिज्म में संतान इच्छुक या तो वीर्य दान देकर किसी अन्य महिला से अपनी संतान चाहता है या कोई महिला अन्य पुरुष से वीर्य दान प्राप्त कर अपनी संतान उत्पति हेतु यात्रा करती है।
यदि महाभारत काल में उत्तराखंड में फर्टिलिटी टूरिज्म आम बात थी तो उसके निम्न कारण रहे होंगे -
1 - हृष्ट -पुष्ट संतान की गारंटी
2 - स्थानीय संस्कृति में फर्टिलिटी दान को सामजिक , सांस्कृतिक व वैधानिक स्वीकृति
3 - फर्टिलिटी /संतानोतपत्ति में सफलता का प्रतिशत अधिक होना
4 - फर्टिलिटी /सन्तानोत्पति में दानदाता व ग्राहक का निरोग होने की गारंटी
5 - लागत - महाभारत काल हो या वर्तमान काल हो हर कार्य की कीमत होती है। फर्टिलिटी टूरिज्म में क्वालिटी अनुसार तुलनात्मक लागत कम होनी चाहिए
6 - माता पिता का संतान पर अधिकार हेतु साफ़ साफ़ नियम - यदि हम शकुंतला जन्म , कृपाचार्य व कृपी जन्म का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि माता -पिताओं ने अपनी संतान ही छोड़ दी थी वहीं द्रोणाचार्य जन्म का विश्लेषण करेंगे तो इसमें माता ने संतान पर अधिकार छोड़ दिया और वह अधिकार पिता ने लिया। शकुंतला को छोड़ कृपाचार्य , कृपी व द्रोण की माताओं की कोई पहचान नहीं मिलती है।
कुंती और माद्री के संदर्भ में संतान का पूरा अधिकार माताओं ने लिया और वीर्यदाता पिताओं ने संतान पर अधिकार छोड़ दिया था। किन्तु सभी पिताओं ने भविष्य में अपने पुत्रों की सहायता की थी जैसे सूर्य व इंद्र ने। और समाज में विदित था कि कौन किस पुरुष का पुत्र है।
कुंती और माद्री के संदर्भ में संतान का पूरा अधिकार माताओं ने लिया और वीर्यदाता पिताओं ने संतान पर अधिकार छोड़ दिया था। किन्तु सभी पिताओं ने भविष्य में अपने पुत्रों की सहायता की थी जैसे सूर्य व इंद्र ने। और समाज में विदित था कि कौन किस पुरुष का पुत्र है।
7 -उच्च वंश वीर्य प्राप्ति - हिडम्बा व उलूपी द्वारा क्रमश: भीम व अर्जुन से संसर्ग केवल प्रेम हेतु नहीं था अपितु उच्च कुल वीर्य प्राप्ति भी था। तभी तो भीम व अर्जुन ने अपनी संतान छोड़ दी थी। उन संतानों पर अधिकार माताओं का था।
8 -सूचनाओं की गोपनीयता - फर्टिलिटी टूरिज्म में दानदाता/विक्रेता व ग्राहक आपस में सूचना को गुप्त रखने या न रखने का पूरा समझौता करते हैं। महाभारत के उत्तराखंड फर्टिलिटी टूरिज्म संदर्भ में भी सूचना की गोपनीयता हेतु समझौता हुआ दिखता है।
महाभारत काल में उत्तराखंड में उपरोक्त फर्टिलिटी टूरिज्म प्रिंसिपल तकरीबन वर्तमान फर्टिलिटी टूरिज्म विकास सिद्धांतो के निकट ही थे।
Copyright @ Bhishma Kukreti 10 /2 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
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========स्वच्छ भारत , स्वस्थ भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========
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