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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, March 9, 2010

Young Uttarakhand Cine Awards 2010









आधी आबादी

लिख रही हैं नए दौर में,
नित नित नयी कहानी,
आज वक्त ने करवट बदली,
सृजन की कीमत पहचानी.

ओढ़ लिया है आत्मविश्वास,
घूंघट बात पुरानी,
काल के कपाल पर लिख दिया,
नहीं है बात सुहानी.

अपने देश में देखो आज,
कुर्सियों पर है कब्ज़ा,
कर रही हैं कुशल नेतृत्व,
कोई नहीं है हर्जा.

नेताओं के नखरों ने,
"आधी आबादी" को,
उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिलाया,
हो जाए बिल मंजूर,
महिला दिवस पर आज,
सही वक्त है आया.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ८-४-२०१० "महिला दिवस" पर)

सुबेर अपणा पहाड़

डांड्यौं मा घाम आई'
ह्वैगि ऊजाळु तिबारी मा,
सुबेर राति काळी,
बोडा जी जमाण लाग्यां,
बोडिन चा उमाळी.

बोडाजिन पिनि फटाफट,
टपटपु चा कु गिलास,
अर गोरु बाछरू तैं खलाई,
हरयुं हरयुं घास.

ऊठिग्यन नाती नतणा,
होणु छ किब्लाट,
हल्सुंगी काँधी मा धरि बोडा,
लागिगी डोखरा का बाट.

नाती नतणा बस्ता लीक,
उकाळि का बाटा जाणा स्कूल,
पुंगड़्यौं फुन्ड खिल्यां छन,
लय्या, पय्याँ, फ्योंलि का फूल.

यनि रैं पैं रंदि छ,
"सुबेर अपणा पहाड़",
कुमाऊँ अर गढ़वाल,
दूर देश मा कखन देखण,
यु छ मन मा सवाल?

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ७-४-२०१०)
Bagi-Nausa(chandrabadni) to Delhi
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

जलम्यां कु गर्व

गर्व च हम
यिं धरती मा जल्म्यां
उत्तराखण्डी बच्योंण कु
देवभूमि अर वीर भूमि मा
सच्च का दगड़ा होण कु

आज नयि नि बात पुराणी
संघर्षै कि हमरि कहानी
चौंरा मुंडूं का चिंणी भंडारिन्
ल्वै कि गदन्योन् घट्ट रिगैनी
लोधी रिखोला जीतू पुरिया
कतगि ह्‍वेन पूत-सपूत
ज्यू जानै कि बाजि लगौण कु

गंगा जमुना का मैती छां हम
बदरी-केदार यख हेमकुण्ड धाम
चंद्र सुर कुंजा धारी माता
नन्दा कैलाश लग्यूं च घाम
भैरों नरसिंग अर नागरजा
निरंकार कि संगति च हाम
पांच परयाग हरि हरिद्वार
अपणा पाप बगौण कु

मान सम्मान सेवा सौंळी
प्यार उलार रीत हमरि
धरम ईमान कि स्वाणि सभ्यता
सब्यों रिझौंदी संस्कृति न्यारी
धीर गंभीर अटक-भटक नि
डांडी कांठी शांत च प्यारी
कतगि छविं छन शब्द नि मिलदा
पंवड़ा गीत सुणौण कु

मेलुड़ि गांदि बासदी हिलांस
परदेस्यों तैं लगदी पराज
फूलुं कि घाटी पंवाळी बुग्याळ
ऊंचा हिमाला चमकुद ताज
फ्योंली बुरांस खिलखिल हैंसदा
संगति बस्यूं च मौल्यारी राज
आज अयूं छौं यखमु मि त
पाड़ी मान बिंगौंण कु

Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
Copyright@ Dhanesh Kothari

हमारू मुल्क

कथगा प्यारू, दुनियाँ मा न्यारू,
छमोट भरिक, पेन्दा छौं पाणी,
गौं का न्योड़ु, दिन रात बग्दु,
ठंडा पाणी कू धारू.
प्यारा उत्तराखंडी भै बन्धु,
"हमारू मुल्क" छ प्यारू.

हिंवाळि कांठी, मुल-मुल हैन्सदि,
लग्दि छन, कथगा स्वाणी,
हैन्सदु बुरांश, झळ-झळ हेरी,
रौल्यौं मा बग्दु पाणी,
कथगा प्यारू, दुनियाँ मा न्यारू,
प्यारा उत्तराखंडी भै बन्धु,
"हमारू मुल्क" छ प्यारू.

घुघती घुरान्दि, बास्दी हिल्वांस,
झुम्दि छन, झपन्याळि डाळी,
ऊलार मन मा, प्यारी डांडी रौंत्याळी,
कथगा प्यारू, दुनियाँ मा न्यारू,
प्यारा उत्तराखंडी भै बन्धु,
"हमारू मुल्क" छ प्यारू.

माल्या खोळा, बेल्या बाखी,
छोरा छारा, करदा छन घ्याळु,
बोडा जी तिबारी मा, ह्वक्का पेन्दा,
अहा! अपन्णु मुल्क उत्तराखंड,
प्यारा भै बन्धु, कथगा प्यारू,
"हमारू मुल्क" दुनियाँ मा छ न्यारू.

जनु भी सोचा, जनु भी बोला,
हमारू पहाड़, भारी छ रौंत्याळु,
जुन्याळि रात मा, गौं जैक देखा,
डांडी कांठ्यौं मा, ज्वानी कू ऊजाळु,
प्यारा भै बन्धु, कथगा प्यारू,
"हमारू मुल्क" दुनियाँ मा छ न्यारू.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ४.३.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी.चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.

टीरी तेरी याद

औन्दि छ आज,
देखि थै कबरी यूं आंख्यौंन,
बिसरी नि सकदु सच मा,
आज भी त्वैसी छ मायामोन.

सन-७९ मा देखि थै,
फिल्म हाल मा फिल्म आशा,
टीरी आज समैईं पांणी का पेट,
होंणी छ मन मा घोर निराशा.

शीशा हो या दिल,
बल आखिर टूटि जान्दु छ,
त्वै तैं हेरी टीरी आज,
सुण्यु गीत याद दिलान्दु छ.

दगड़्या दिगविजय डोभाल जी,
"मेरु गौं डूबिगी भैजी" यनु बतौंदा,
"ज़िग्यांसु" का मयाळु मन मा,
एक करुणा भाव जागौन्दा.

एक नौनु डुब्याँ गौं कू,
गौं का एक बौडा तैं बतौंदु,
"तख देख बौडा डाम बणिगी,
डूबिगिन सुपिन्या हमारा,
कखन देखण प्यारु गौं,
गवांड़्या अर दगड़्या प्यारा".

जैन भी देखि होली टीरी,
ऊँ तैं "टीरी तेरी याद" आली,
मिटी नि सकदी मन सी सबका,
ज्युन्दा ज्यू सदानि सताली.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु",
(सर्वाधिकार सुरक्षित ४.३.२०१०)
ग्राम:बागी-नौसा,पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.
निवास: "दर्द भरी दिल्ली"
E-mail: j_jayara@yahoo.com

आंसू मत बहाओ

जो हो गया है,
जो हो रहा है,
वो तो होना ही था,
और होता ही रहेगा,
इसलिए मत बहाओ,
आँखों से आंसू,
जब धरती पर पानी,
खत्म हो जायेगा,
शायद इनकी जरूरत पड़े.

दिल की व्यथा,
व्यक्त करते हैं आंसू,
सोचता है,
अपने मन में,
कवि "ज़िग्यांसु",
कभी कभी कवि मन,
पहाड़ तेरी याद में,
हो जाता है क्वांसु.

रखूंगा जब कदम,
उत्तराखंड की धरती में,
देखूँगा मिलन,
अलकनंदा और भागीरथी का,
हर्षित होगा कवि मन,
तब आँखों से निकलेंगे,
ख़ुशी के आंसू,
"आंसू मत बहाओ",
बिना बात के,
कहता है कवि "ज़िग्यांसु"

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ३.३.२०१०)
E-mail: j_jayara@yahoo.com

सरलता ….

गीली लकड़ी
सुलगता चूल्हा
फून्कनी से फूंकते-फूंकते
आंसुओं की धार |
पीसती चक्की
गोदी में नन्ही
पाँव हिलाकर उसे सुलाती
उड़ते आटे से सफेद बाल |
गोबर से सने हाथ
रोता नन्हा
कोहनी से थपथपाती
पोंछती उसकी नाक |
भरी दोपहरी
पसीने से नहाती
खेत गुडाई
गीतों की तान |
कास माँ..... जैसी
सरलता ………
उधार ही मिल जाये
तो जीवन धन्य हो जाये |

copyright@*****विजय कुमार 'मधुर'

महंगाई

राजशी ठाट
भोगने वाले
क्या जाने
पीर …….
उस मजदूर की
जो दिन भर
खटकर
जुटाता है
दिहाडी
खिलाता था पहले
बच्चों को
दो बकत की रोटी
अब एक बकत की |

तनख्वा

बनिए की नौकरी
कमरतोड़ मेंहनत
तनख्वा चन्द रुप्प्ली
लड्खडाती सेहत |

copyright@विजय कुमार 'मधुर'

भरोसा कू अकाळ

जख मा देखि छै आस कि छाया
वी पाणि अब कौज्याळ ह्‍वेगे
जौं जंगळूं कब्बि गर्जदा छा शेर
ऊंकू रज्जा अब स्याळ ह्‍वेगे
घड़ि पल भर नि बिसरै सकदा छा जौं हम
ऊं याद अयां कत्ति साल ह्‍वेगे
सैन्वार माणिं जु डांडी-कांठी लांघि छै हमुन्
वी अब आंख्यों कू उकाळ ह्‍वेगे
ढोल का तणकुला पकड़ी
नचदा छा जख द्‍यो-द्‍यब्ता मण्ड्याण मा
वख अब बयाळ ह्‍वेगे
जौं तैं मणदु छौ अपणुं, घैंटदु छौ जौं कि कसम
वी अब ब्योंत बिचार मा दलाल ह्‍वेगे
त अफ्वी सोचा समझा
जतगा सकदां
किलै कि
अब,
दुसरा का भरोसा कू त
अकाळ ह्‍वेगे

copyright@धनेश कोठारी

मंथन

होने दो हिने दो
आज विचरो का मंथन
विचारो से उत्पन होगी क्रांति
जग करेगा उसका अभिनन्दन !

सुना है की राजधानी
उंचा सुनती है
सता में बैठे लोग
अंधे,गूंगे, बहरे होते है
अब अंधे, गुंगो को ..
रहा दिखानी होगी
उनसे उनके ही राग में
उनसे बात करनी होगी
करना होगा दूर हमको
उनका वो गुंगा/अंधापन ... होने दो होने दो ..

भूखा - भूखा न सोयेगा अब
अधिकारों की बात करेगा
खोलेगा राज वो अब
पतित भ्रष्ट , भ्रष्टा चारो का
हटो ह्टो, दूर हटो, है
ग्रहण करेगी जनता आज राज सिंघ्खासन ..... होने दो होने दो

हासिये पर हो तुम
जनता का रथ मत रोको
बदने दो उसको उसके लक्ष्य तक
मत उसको टोको
रोक न पावोगे प्रभाऊ उसका
गर बिगड़ गई वो
सांस लेना होगा तुमको दूभर
गर बिफर गई वो ...
भुलोमत , मतभूलो
की है जनता जनार्धन .... होने दो ...

आम पथों से राज पथ तक
बस एक ही होगा नारा
हक़ दो, हक़ दो ...हटो
है राज हमारा .......
एक ही स्वर में नभ गूंजेगा तब
स्वीकार नही है , भ्रष्टो का शाशन .. होने दो ...

पराशर गौर
६ मार्च २०१० सुबह ७.२७ पर

Wednesday, March 3, 2010

बसंत की बरात

धरती पर आई है,
तभी तो पहाड़ पर,
बुरांश की लाली छाई है,
पीले रंग में रंगि फ्योंलि,
उत्तराखंड अपने मैत आई है.

बनो बाराती आप भी,
पहाड़ी परिवेश में,
सज धजकर,
ऋतु बसंत आई है,
मन में उमंग छाई है,
मैं नहीं कह रहा हूँ,
पहाड़ से बहती हवा ने,
मेरे पास पहुँच कर,
यंग उत्तराखंडी मित्रों,
चुपके से बताई है.

लेकिन! मित्रों आज,
पहाड़ पर,
बचपन में देखी,
"बसंत की बरात" की झलक,
मन में उभर आई है,
तभी तो कवि "ज़िग्यांसु" ने,
आपको भी बताई है.

क्या आपके कदम?
उत्तराखंड की धरती की ओर,
"बसंत की बरात" में जाने को,
बढ़ रहे हैं,
कल्पना में पहाड़ पर,
ख़ुशी ख़ुशी चढ़ रहे हैं,
अगर नहीं ऐसा,
तो कल्पना में खोकर,
देख लो "बसंत की बरात",
सकून मिलेगा आपको,
क्या ख़ुशी की बात.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ३.३.२०१०)
E-Mail: j_jayara@yahoo.com
M-9868795187

हठी यादें

मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गई जिंदगी,
अबतो बस हथेलियों पर यादों के रेणु नजर आते हैं.

कीमत लगा के तू, तुम, आप पुकारते हैं लोग,
जो गर्दन घुमा बुलाले वो इशारे कहाँ नज़र आते हैं,
आड़े आया ना कोई मुश्किल में,
सब मशवरे (सलाह) दे हठ जातें हैं,
तुम्हारे मुस्कराने का कोई मतलब तो रहा होगा,
प्रीति के संकेत यूँ ही व्यर्थ तो नज़र नहीं आतें हैं.

तुम्हारी याद भी तुमसी हठी,
तुम जाके नहीं आये और तेरी याद के साये आके नहीं जातें है.

मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, आर. के. पुरम,
नई दिल्ली

उम्मीद

तुम चले जाओगे तनहाइयाँ रह जाएँगी,
वक्त तो गुजरेगा, वक्त की बेवफाइयां रह जाएँगी,
मुझसे नाराज नाहो ऐ मेरी जिन्दगी, बस तेरी मेहेरबनियाँ रह जाएँगी.

देना होगा साथ तुझे मेरा वरना जिन्दगी कैसे कट पायेगी,
इस जहाँ के बाद गर और है जहाँ कोई,
तुझसे शायद मुलाकात वहीँ हो पायेगी.

मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, आर. के. पुरम,
नई दिल्ली

बुरु नि माण्यां होळी छ

यंग उत्तराखंड की महाराणिन,
सब्यौं तैं यनु सनकाई,
होळी फर छ न्युतु आपतैं,
घोटी घोटिक समझाई.

जब पौन्छिन महाराणी का महल,
यंग उत्तराखंड का सब्बि दगड़्या,
रंग लगाई सब्यौन खेली होळी,
मुक छन लाल पिंगळा बण्यां.

कै दगड़्यान करि मजाक,
"निशान" जी तैं भाँग पिलाई,
रंगमाता ह्वैक कविवर जी न,
महाराणी फर यनु बताई.

"चाँदी जनु रंग छ तेरु,
बुरांश जना गलोड़ा लाल,
एक तू ही रूपवान छैं राणी,
हौर छन कंगाल".

कवि "जिज्ञासु" देखण लग्युं छ,
होळी सी पैलि होळी का रंग,
मन मा यनु घंग्तोळ होयुं छ,
होळी खेलौं पर कैका संग?

रचनाकार: कवि "ज़िग्यांसु"
२६.२.२०१० (होळी उत्सव-२०१०)

सचिन! तुम्हें सलाम

क्रिकेट जगत के बादशाह,
कर दिया कैसा काम,
भारतवासी ही नहीं,
विश्व भर में कर रहे,
लोग तुम्हें सलाम.

बल्ले से जब करते हैं,
आप रनों की बारिश,
प्रतिद्वंदी टीम के खिलाड़ी.
सिर में खुजाते खारिश.

देखते हैं दर्शक जब,
आपके चौक्का छक्का,
हो जाते हैं उछल-उछल कर,
रोमांचित हक्का-बक्का.

ली होगी प्रेरणा पहाड़ से,
देखी होगी मसूरी,
तभी तो कर रहे हैं आप,
हसरत अपनी पूरी.

गावस्कर जी कह हैं रहे,
खड़े करो नए एवरेस्ट,
रिकार्डों की झड़ी लगा दो,
बनो दुनियां में बेस्ट.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
E-Mail: j_jayara@yahoo.com 25.2.2010

द्वी छ्वटी कविता

(1)
बुरु नि मन्या
होरी च
लगनू रंग
पण मनमा
कुछ हौरी च |

2)
बुदीन्दा की गाणि
घ्यू की माणि
लप्लपांद जीभ
मुखडी देखि स्वाणि |

copyright@ विजय कुमार 'मधुर' vkumar64mca@gmail.com

दिलकी बात…….

मी करदू
सर्य साल इंतजार
होरी का बाना
त्वेसे भ्यटेणकु
मौका त मिलालू
लगौलू तेरी
गल्वड्यू पर रंग |
पण तू सदनी
म्यार आण से पैलिही
लपत्वले जांदी
हौरिही ही रंगुमा |
ईन्दा सोचियाली
बणिक टल्ली औलू
पह्ल्लू रंग त्वेपर
मीही लगौलू |
घम्चंदु छो
ब्वलण कु जो बात
डंका का चोटपर
सब्योंते बतौलू |

copyright@ विजय कुमार 'मधुर' vkumar64mca@gmail.com