गीली लकड़ी
सुलगता चूल्हा
फून्कनी से फूंकते-फूंकते
आंसुओं की धार |
पीसती चक्की
गोदी में नन्ही
पाँव हिलाकर उसे सुलाती
उड़ते आटे से सफेद बाल |
गोबर से सने हाथ
रोता नन्हा
कोहनी से थपथपाती
पोंछती उसकी नाक |
भरी दोपहरी
पसीने से नहाती
खेत गुडाई
गीतों की तान |
कास माँ..... जैसी
सरलता ………
उधार ही मिल जाये
तो जीवन धन्य हो जाये |
copyright@*****विजय कुमार 'मधुर'
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments