जो हो गया है,
जो हो रहा है,
वो तो होना ही था,
और होता ही रहेगा,
इसलिए मत बहाओ,
आँखों से आंसू,
जब धरती पर पानी,
खत्म हो जायेगा,
शायद इनकी जरूरत पड़े.
दिल की व्यथा,
व्यक्त करते हैं आंसू,
सोचता है,
अपने मन में,
कवि "ज़िग्यांसु",
कभी कभी कवि मन,
पहाड़ तेरी याद में,
हो जाता है क्वांसु.
रखूंगा जब कदम,
उत्तराखंड की धरती में,
देखूँगा मिलन,
अलकनंदा और भागीरथी का,
हर्षित होगा कवि मन,
तब आँखों से निकलेंगे,
ख़ुशी के आंसू,
"आंसू मत बहाओ",
बिना बात के,
कहता है कवि "ज़िग्यांसु"
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ३.३.२०१०)
E-mail: j_jayara@yahoo.com
Nice Poem Sriman
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