डांड्यौं मा घाम आई'
ह्वैगि ऊजाळु तिबारी मा,
सुबेर राति काळी,
बोडा जी जमाण लाग्यां,
बोडिन चा उमाळी.
बोडाजिन पिनि फटाफट,
टपटपु चा कु गिलास,
अर गोरु बाछरू तैं खलाई,
हरयुं हरयुं घास.
ऊठिग्यन नाती नतणा,
होणु छ किब्लाट,
हल्सुंगी काँधी मा धरि बोडा,
लागिगी डोखरा का बाट.
नाती नतणा बस्ता लीक,
उकाळि का बाटा जाणा स्कूल,
पुंगड़्यौं फुन्ड खिल्यां छन,
लय्या, पय्याँ, फ्योंलि का फूल.
यनि रैं पैं रंदि छ,
"सुबेर अपणा पहाड़",
कुमाऊँ अर गढ़वाल,
दूर देश मा कखन देखण,
यु छ मन मा सवाल?
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ७-४-२०१०)
Bagi-Nausa(chandrabadni) to Delhi
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

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