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Sunday, February 11, 2018

छांच छुळण खाणौ काम नी च (झळकां इतिहास

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छांच  छुळण खाणौ काम नी च (झळकां इतिहास )
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 छांच छुळै , मंथन     :::   भीष्म कुकरेती   

 
छांच  छुळण सरा दुनिया म हूंद पर भारत म कुछ जादा ही हूंद तबि त जौन सबसे अधिक संविधानै  धज्जी उड़ैन वी विरोधी पार्टी मोदी की छांच  छुळणौ बान 26 जनवरी कुण संविधान बचाओ रैली करदन। 
   भारत मा छांच  छुळण अलग इ संस्कृति च जब कि हौर देसुँ मा  घी ना चीज की अहमियत च त उन्नादेसूं मा छांछ छुळणै बिगळीं संस्कृति च।  भारतीयूं इथगा बड़ी जिकुड़ी च बल भारतीय दिबता त समोदर की बि छांच छोळ दींद छा। दही , दही छुळण बतांद बल भारत एक च।  
   गढ़वाळम बि छांच छुळे जांद अर ड्याराडूण , डिल्ली  क्या मुंबई मा बि गढ़वळि अबि बि पारम्परिक रीति से छांच छुळदन याने ऐल्युमिनियम की रै मथनी से दै कर्ड चर्निंग या दही छुळदन।  कुछ इलेक्ट्रिक ब्लेंडर बि अजमांदन पर इन बुल्दन बल इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से घी ठीक से नि बणद।  मि तैं डाउट च , किलैकि चूँकि हम टेक्नॉलोजी विरोधी छंवां त ठीक से मट्ठा नि छोळ सकदा त बिजली पर भगार लगै दींदा जन विरोधी पार्टी जब जितद नी च त ईवीएम मशीन पर दोषारोपण कर दींदन।
     पर कुछ सत्य बि च कि इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से  घी उन नि बणदु जन हाथ छुळै से बणद किलैकि दही मा बैक्टीरिया हूंदन त वु हम मनुष्यों तरां मसीनौ गुलाम थुका छन कि हमर मशीन चलाण पर हमर आज्ञा मानी जावन। 
    खैर मुंबई बात जाणि द्यावो गढ़वाल की बात करे जावो।  जख तक छांच छुळणो बात च , गढ़वाळम खस संस्कृति या वां से पैल छांच चमड़ा थैलों मा छुळे जांद छे।  फिर लखड़क पर्या , रै अर नेतण की सहायता से छांच छुळयाण शुरू ह्वे।  किंतु पर्या , रै बणाण कठिन ही छौ तो सैकड़ों साल तक चमड़ा  थैलाऊँ म छांच छुळे  गे होली।  ऋग्वेद मा नेतण लगीं रै अर पर्याक वर्णन च।  कौटिल्य अर्थशास्त्र मा त कॉमर्शियल छांछ छुळै बात बि च।   हम हिंदुस्तान्यूं तैं  गर्व च कि हमन पिछ्ला तीन या चार हजार साल से अपण छांच छुळणो संस्कृति मा क्वी छेड़ छाड़ नि कार।  हम संस्कृति प्रेमी  जि छंवां  त किलै तकनीक बदलला।  फिर कु कार इथगा खटकर्म ?  जब मेनत करणो कुण जनानी छैं छन त किलै तकनीक मा बदलाव की सुचे जाव। 
    जी दही जमाण से लेकि , छाच छुळण , घी गळाण सब कुछ हमर इक जनानी करदी छै।  गढ़वाळम जमण जन शब्द नि मिल्दो किलैकि हमर डखुळ  (जख पर दही जमाये जांद ) जब सौ साल तक ठीक से धुये नि जाल त जमण की आवश्यकता पोड़ी नि सक्यांद।  इलै इ झड़ददा से लेकि पड़ नाती तक परिवार मा पळयो या दही कु एकी स्वाद चलदो।  इलै त गाँवुं  मा पळयो चखिक पता चल जांद बल छांच कैं मौकी होली। 
   छांच छुळणो बगत अधिकतर रात भोजनो परांत ही हूंद छौ।  सुबेर त कुटण -पिसणो बगत हूंद।  दिन मा त पुंगड़ -पटळ , घास -लखड़ुं बगत जि हूंद।  जै परिवार मा दिन मा छांच छुळे जावो वै परिवार मा गरीबी ही हूंदी छे।  
    छांच खते नि जयांदि अपितु बंटे जयांदि अर अर एक हैंकाक छांच खाणम जजमान -बामण , छुट बामण -सर्युळया बामण या दुघर्या -तिघर्या जनानी क भेद नि हूंद।   
   गढ़वाळम मीन नि सूण कि क्वी ब्वाल बल पळयो पकाई या पकावो।  पळयो थड़काये जांद याने पळयो पकाण सरल च।  हां झुळी पकाये जांद ना कि थड़काये जांद।  किलै इ शब्दांतर होलु , पता नी। 
    बगैर आलणो पळयो नि सुचे जांद।  हमर मुख्य आलण छा - झंग्वर , चूनु , मुंगरड़ी , जौक आटो।  हूंद त चौंळ , कौणी , ओगळौ आटु , पर कम।  झुळळी पर तो झंग्वरौ एकाधिकार छौ। गढ़वाळम मिठि झुळळी इतिहास शहद से शुरू ह्वे छौ फिर शीरा , गुड़ तक पौंछ अर अब त चिन्नी ही झुळी दगड्याणी च जी। उन अब चूंकि  चून, मुंगेरड़ी , झंग्वर दिबतौं भोजन ह्वे त अब बेशन ही एकमात्र आलण रै गे। 
 हां  बिंडी छांच ह्वे जाव तो खट्ट्या बणाणो रिवाज बि भौत छौ।  अब त भौतुं तै पता बि नी खट्ट्या कै मरजौ नाम च।  खट्ट्या मतलब जन दूध तैं खिटैक  खोया बणाए जांद तनि छांच तैं खिटैक खट्ट्या बणाये जांद मसलुं का साथ। 
   अब जब पळयो छ्वीं हो अर लूणौ बात नि ह्वावो तो पळयो बेसवादी ही माने जाल ।  दिखे जावो तो पळयो स्वाद अपण आप मा कुछ नी अपितु पळयो असली स्वाद तो लूण निर्धारित करद।  लूण का साथी छा -मिर्च , ल्यासण , धणिया , आदु , हल्दी , भंगुल , जीरु , अजवैण , पोदिणा , भंगजीरु , मुंगण्या , पद्या , पितकुट  (सुकयीं मेथी )टिमरु ,  तिल , राई , दालचीनी , जम्बू , हींग अर पता नी क्या क्या मसल छा पुरण जमन मा.  अर हम तै गर्व च कि हमम गढ़वाल का मसालों इतिहास नी पता। 
 बरसातम पळयो -झुळी मा ककड़ी डाळे जांद। 
   पळयो रात नि खाये जांद छौ अर अमूनन कल्यो मा  हौळ,  ग्वाठम या यात्रा मा पळयो नि लिजये जांद छौ। मीन कबि नि सूण कै गुठळन ग्वाठम पळयो थड़कै हो। 
    एक हैंक खासियत गढ़वाळ की राई कि हमन तीन हजार साल से पळयो की रेसिपी नि बदल।  
  
    


27/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India , 
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