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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, February 11, 2018

कोल युग (प्राचीन उत्तराखंड) में मेडिकल टूरिज्म: एक दृष्टि

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास परिकल्पना -4  

   Medical Tourism Development in Uttarakhand     -   4                
  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--109  

      
उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 109     

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ ) 
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   प्राचीन काल याने पाषाण युग आदि में भी उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म हेतु कुछ रूप में प्रसिद्ध था ही।  भारत से कई प्रदेशों से हिम गिरियों  में मोक्ष पाने याने मरने, आत्मघात  करने आते थे।  अंदाज लगाना कठिन नहीं है कि बीमार लोग उत्तराखंड में प्राकृतिक उपचार हेतु आते थे और जो स्वस्थ हो गए हो गए वे यहीं बस जाते थे या अपने प्रदेश वापस बौड़  जाते थे। शेष अपनी जीव हत्या कर मोक्ष प्राप्त कर लेते थे। 
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       कोल जाति समय में मेडिकल टूरिज्म 
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 कॉल या डूम (कृपया इस शब्द को आज के संदर्भ छुवाछूत में न लें ) जाति  (60 -70 हजार साल पहले से ) का उत्तराखंड के संस्कृति विकसित करने में आर्य जातियों से कहीं हाथ अधिक रहा है ।  पाषाण संस्कति को उत्तर प्रस्तर उपकरण संस्कृति विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान है। 
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        कृषि से मेडिकल टूरिज्म - कोल -डूम जाति ने जब केला , जामुन , सेमल की कृषि शुरू की व कुक्क्ट , मोर ,व शहद शुरू किया तो अंदाज लगाया जा सकता है कि इन वस्तुओं को स्वास्थ्य से अवश्य जोड़ा गया था और अन्य क्षेत्र के लोग जिन्हे इनकी जानकारी नहीं थी तो वे उत्तराखंड आये ही होंगे और यही तो मेडिकल टूरिज्म है।  माना कि उत्तराखंड की कोल जाति के पास इन स्वास्थ्य वर्धक वस्तुओं का ज्ञान नहीं था और यहां के निवासी इन वस्तुओं के ज्ञान हेतु बाहर गए या बाहर से अन्य लोग इस प्रकार के ज्ञान को लाये तो भी वः मेडिकल टूरिज्म भी कहा जाएगा।
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             कोल युग में अंध विश्वास (?) याने मेडिकल टूरिज्म का विकास
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  कोल युग में उत्तराखंड में कई अंध विश्वास (मानसिक शांति हेतु कर्मकांड ) प्रचलित हुए जैसे हंत्या -भूत प्रेत पूजा ; दाग -घात लगाने व दूर करने के तातंत्रिक विधियों  का विकास भी इसी युग की देन है। इसी तरह पीपल , बड़ , नीम , आम , महुआ , बबूल , भोजपत्र , किनगोड़ा , सरी , रिंगाळ , तुलसी  बुग्याळ आदि वृक्षों को स्वास्थ्य से , पावनता , कष्टनिवारण , जादू -टोना , से जोड़ने की बिभिन्न विधिया इसी युग में शुरू हुआ।  साफ़ अर्थ है कि इन मानसिक व शारीरिक व्याधि उपचार विधियों के ज्ञान प्राप्ति या ज्ञान बाँटने का काम हुआ होगा याने उत्तराखंड के लोग बाहर गए होंगे व बाहर के लोग उत्तराखंड आये होंगे।  इसे ही आज मेडिकल टूरिज्म कहते हैं।  
     मानसिक व भौतिक चिकिता क्षेत्र में पशु बलि (मानसिक शांति का एकअंग  ) व कई पशुओं के अंगों का उपयोग; पेड़ पौधों से चिकित्सा , आग-राख से चिकित्सा ; मिट्टी , जल से चिकित्सा इस युग में फली फूली और इसमें कोई शक नहीं कि कोल -डूम युग में चिकित्सा ज्ञान , चिकत्सा हेतु लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आवागमन हुआ होगा।  याने कोल -डूम युग में  मेडिकल टूरिज्म विकसित हो ही रहा था।  
3000 साल पुराने चरक संहिता, सुश्रुता संहिता में 700 से अधिक पेड़ -पौधों का जिक्र है जिसमे कुछ उत्तरखंड में ही पैदा होने वाले पौधों का जिक्र है तो इसका अर्थ है कि पेड़ों से आयुर्वेद चिकित्सा का विकास हजारों साल से चल रहा था।  चिकित्सा विकास याने स्वयमेव मेडिकल टूरिज्म का विकास. 
      


Copyright @ Bhishma Kukreti   5 /2 //2018   

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 

                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 

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