उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास -- 87
History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes in Uttarakhand -87
History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes in Uttarakhand -87
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आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
-पहाड़ी उत्तराखंड में मैदानी हिस्सों में बसावत न होने से गन्ना पैदा नहीं होता था तो पहाड़ी उत्तराखंड में मिष्ठान ना के बराबर ही रहे हैं। अरसा , हलवा, खीर को छोड़ दें तो कोई विशेष मिष्ठान नहीं मिलते हैं। अधिसंख्य मिष्ठान अंग्रेजी शासन के बाद ही प्रचलित हुए हैं। पहले मीठे के लिए शहद का प्रयोग किया जाता था।
पेठा एक ऐसा मिष्ठान है जो आज उत्तराखंड में प्रसिद्ध है किंतु यह पारम्परिक मिष्ठान नहीं है। यहां तक कि हरिद्वार , रुड़की का भी यह पारम्परिक मिष्टान नहीं कहलाया जाता है। यद्यपि हरिद्वार में यात्रियों हेतु खूब पेठा बिकता है।
पेठा भुज्यल के फल से बनाया जाता है।
भारत में पेठे का इतिहास
स्वाति दफ्तौर द हिंदू, ( 9 जून 2012 ) में लिखती हैं कि पेठा मिठाई का जन्म शाहजहां के रसोई में हुआ। एक दिन बादशाह शाहजहां ने अपने रसोइयों से मांग की कि मुझे ऐसी मिठाई दो जो ताजमहल जैसा सफेद हो मीठा हो। रसदार हो। रसोइयों ने कुछ दिन बाद पेठे फल से पेठा मिठाई बनाकर बादशाह को पेश किया और इस तरह पेठे का जन्म हुआ।
पेठा जन्म की दूसरी कथा भी बादशाह से ही शाहजहां से जुडी है। ताजमहल बनाते वक्त 22000 मजदूर दाल रोटी खाते खाते ऊब गए। बादशाह ने अपने मुख्य इंजीनियर उस्ताद इसा ईफेंडी से यह चिंता जाहिर की। उस्ताद इसा ने पीर नस्कबंद साहिब से बात की। नस्कबंद ध्यान में गए और खुदा से पेठा मिष्ठान बनानी की विधि प्राप्त की।
कुछ सालों में ही आगरा के पेठे सारे भारत में गए।
उत्तराखंड में पेठा प्रवेश
पेठा ने कब उत्तरखंड में प्रवेश किया होगा के बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है। रेपर ने 1808 में हरिद्वार में जलेबी का वर्णन किया है किन्तु अन्य मिठाइयों का जिक्र नहीं किया है। यदि तब जलेबी हरिद्वार में मिलती थी तो अवश्य ही पेठा भी मिलता होगा।
शाहजहां का पोता सुलेमान सिकोह जब भागकर श्रीनगर आया तो क्या अपने साथ भेंट में पेठा मिठाई भी लाया होगा ?
हाँ यह तय है कि मैदानी यात्री चार धाम यात्रा करते वक्त अवश्य ही पेठा लाते रहे होंगे और पेठा देकर चट्टियों में कुछ स्थानीय वस्तुएं खरीदते रहे होंगे।
अंग्रेजी शासन में ही पेठे का प्रचार उत्तराखंड में अधिक हुआ होगा। स्वतन्त्रता बाद पेठे का अधिक प्रसार हुआ और आज हर शहर में पेठा उपलब्ध है।
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