औंस्या रात्यूं मा भि जळ्यूं त छाई ।
पर दूर कखि एक द्यू बळ्यूं त छाई ॥
न वैल बताई, न मिल कुछ चिताई ।
पर वैकु सर्य्या सरैळ कळ्यूं त छाई ॥
गरम-गरम लाल धत्कार भैर बटैकि ।
पर भितनां नौंणि जनु गळ्यूं त छाई ॥
कोच यो ? कैल भि गिच्चु नि ख्वालु ।
पर वो ट्वक्वरा खैकि पळ्यूं त छाई ॥
बिना वीरों की भि जंदरि रिटणी राया ।
पर ग्यूं दगड़ घूण जनु रळ्यूं त छाई ॥
@पयाश पोखड़ा ।
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