Satirical Garhwali Poetry by सुनील भट्ट
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खिलै पिलैई ब्वख्ठ्या बणैया छन,
मरख्वल्या खाडू हमरा पल्याँ छन।
मरख्वल्या खाडू हमरा पल्याँ छन।
लताड़ ढांगा सिंग पुड़्यौणा,प्वड़ी प्वड़ी हमतैं आँखा दिखौणा।
फक्यादि फौजी, मेरू घौर आलु,तब तेरी मुंडिली, खट्टैंई गंड्डकालु।
खाणु जब त्वै द्वी लत्ती द्यालु,दयखुलु तब त्वै, कु जी बचालु
जब तेरी अक्ल, ठिकाणु लगालु
तब त्वै पड़ौसी, बुबा याद आलु।।
तब त्वै पड़ौसी, बुबा याद आलु।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट **
17/04/17
17/04/17
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