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Sunday, May 28, 2017

रमेश हितैषी की गढ़वाली -कुमाउँनी कविताएं

रमेश हितैषी
मोबाईल
मोबाईल क्रांति.
सब सुख शांति.
अफु अफु में सब मस्त छैं.
कैक पास लै टैम नहाति.
मोबाइल देखो भांति भांति.
इच्छाओं की नि छा अनंत ना आदि.
आंगुइ आंखी तंग परेशान छैं.
पर पुर डिमाक में पड़ि रै शांति.
ठडिणकि ताकत बिल्कुल निच.
सभ्यता बटोई बै ल्याणी कां बटि.
रग बग नज़र कसि हैरै.
मोबाइल बनि रौ जीवन साथी.
हे राम यो कसि क्रांति.


हम



-
हम अगर जल, जंगल, जमीन की बात कना छंवा त क्या बुरु कन छंवा
जब य जल, जंगल, जमीन सुरक्षित नि रैली त, हम कुछ कैरिक क्या जाताणा छंवा।
यदि फेस बुक टाइम पास करणकि साईट च, त हम यो भलु नि कना छों ।
कथैं भोल यो पछतावा नि ह्वा कि, कुछ करण टैम मा हम ख़ाली बक्त गवाणा रों।
अपणि जमीन माँ लोग चौकीदार बनिगी, भैर वालू थैं ऐथर बडाणा छों.
अजी बी जन चेतना नि त बताओ हम क्या करना छों
-- 
 
भाषा​
-
​बुल्हाओ भै बैणियों भाषा अपणी.
ऐन्छा तुमुकैं सिखाओ कैकणी।
अब हमुल कमर कसणी​.
भाषा अपणी छूटण नि दिणी। ​
अपणी भाषा बुल्हांनै रौला.
जड़ु से अपणी जुड़ी रहला।
भाषा सिखण सिखणंम सरम नि कणी.
अघिन पीढ़ी कैं जरूरै सिखाणी​.​
=
अपणि भाषा (हमरि भाषा)
=
इजा हैबै जो बुलाणु सीखो ,उछा हमरि दूद बोली।
गढ़वाली कुमई अर भोटिया, य छा जगों अपनी बोली।
जो सबै जगु जो बुलई जै, उ हिंदी हैगे मात्री भाषा।
12 साल बाटि आस लागि रै, कभणि बनली उत्तराखंड की अपणि भाषा।
को बुलां अपणि गों की बोली, वेतिकी पछ्याण हरैणी छा।
कुमै गढ़वाली सुणिनि नि में, हिंदी कम अंग्रेजी जादा छा .
पर क्या कनु गों हमर, देखने देखने खालि हमें।
एक दिन गौर कुल बल हम, यसु हमुहै नेता कमें।
टिहरी जौनसारी अर दान्पुरिया, अल्मोड़ा कि कथै सुणिनि ना।
दोसान्दकि त बात नि करो, अपनि बोली बुलानैं ना।
जब ख़तम है जाली बोलि हमरि, कसिक हमरी भाषा बनलि.
बिन भाषा साहित्य नि हूनू ,हमरी क्या पछयांण रहैलि।
रंगा रंग नाच गहाण, उ कें अपणि संस्कृति बतानि। .
नाची, गै बै नि बचली सभ्यता, पड़ी लिखी ले मुर्ख है जानी। .
घर, गों, मुल्क छ्वाड ,अब त देश लै छोड़ मई।
बोली क़्वे नि बुलानु अपणि , क्या पत लोग कति जा मई।
जब पहाड़ में रहिल लोग, तब त बोलिल पहाड़ी उ।
जब रोजी रोटिके ठिकाणु निछा, कै कै यो जिम्मेदारी दियूं।
पहाड़ छोड्याकु प्रताप छा यौ , तबत हम अंग्रेज हैगोयु।
जनता नेता सब शहरी हैगी, हम जस लिख्वार पहाड़ा का चिन्तक हैगोयु। .
हम जस लिख्वार पहाड़ा का चिन्तक हैगोयु .........................................
हम जस लिख्वार पहाड़ा का चिन्तक हैगोयु ...
==
मीथैं बचावा
=
मीथैं बचावा मिली जुलिक सब,
नागू गात दिखेणु चा.
तुम सब सैत्या पाल्या म्यारा झणि,
तुमथैं किलै नि दिखेणु चा.
 क़्वी म्यरा छाती को ल्वे च पीणु,
क़्वी ल्वे पेकी धक्याणु चा.
क्या हुणु यु कब तक ह्वालु,
समझण मा कुछ नी आणु चा
=
पहाड़ी.
-
दिल्ली की शान अर कपाळ पहाड़ी. 
हर कॉलोनी में बेसुमार पहाड़ी.
गिणती का लाखों मा छन बल,
पर निगलळंदा देखिंद खुतिड़ा अर बाड़ी.
मेहनत करण मां सबसे अगाड़ी,
फैदा लींदा सबसे पिछाड़ी.
=
तीस लाख
=
उत्तराखण्डी हौय हम दिल्ली कि सान,
कै हैबै काम नि छों खैगो हमुकै यौ अभिमान.
तीस लाख छो बस गिणती गिणति छा,
ईमानदार सिध साद, बस ई तमका इ मैडल यौई मान.
 मुख समणी हमरि तारीफ है जैं,
पुठ पछिन क्वे नि कुनु हमरू ध्यान.
पोरों उनुल कौ तुम हमर छा भैक सामान,
आज कसिक होयुं हम आई मेहमान.
दिल्ली चमकाणी पहाड़ी इंसान,
हमेशा कौय हमरु झूठौ गुणगान.
बचाओ भै बन्दों अपणु मान सम्मान,
बिन मान मिली हूँ क्ये लै भीख सामान.
आपणो लिजी मिली बै लड़ाओ ज्यान,
बिल्कुल नि कणु अब औरोँ हणि काम.
आजि छा बघत न होवो सुनसान,
बकरक चार खुट में पांच न बनो पधान.
 अपण पहाड़कि अस्मिता लिजी,
हण पड़लू हमुकैं एकजुट एक ज्यान.
=
सुभ चिंतक छों​
-
-
उतरैणी पंचमी शिवरात मुबारक.
अमुसी रात छिलुक जागणी छों. 
 चालीस साल हैगी उत्तराखंड छोड़ी.
आजी लै उत्तराखण्डक सुभ चिंतक छों.
पलायन कि मार झेलणी छों.
एक मुठी में रहैणी छों.
एक जुट एक मुट है गोयू.
हम एकतकि मिसाल छों
सहीदो कैं न्याय दिवाणू.
हम उनर कर्जदार छों.
अपणी बोली भाषा कि बात कुल.
हम उत्तराखण्डकि पछ्याण छों.
मसक सारणी छों कमर बांधनी छों.
कैक बखाणंम अणी नि छों ,
अपण हक़ हकूबक लिजी.
अपणी ज्यान दीणी लै छों.
सबुक मान सम्मान कबै.
अतिथि देवो भव रीत निभणी छों.
अपणा नन तिन घर छोड़ी बै.
दुहरुक मौज कराणी छों,

==
तिन तिन जोड़ी बै किलै तू पंछी.
लि छैं तू घोळ बनाइ.
 चार दीना की जरवत तेरी.
किलै करछै खाल खिंचाई.
रे पंछी किलै करछै खाल खिंचाई
पल पल छीन छिन सोच बनौ छै.
बुण छै अफी जिबाई
रे .पन्छी बुण छै अफी जिबाई
==
पुर्नजन्म
-
हुंदु च बल पुर्नजन्म.
हे बिधाता मि इथगा बोलमु 
त एक बार वी घर मा हो,
जख ये जूनि मा जन्मु.
वी ईजा बुबा हों, वी गों गुठ्यार और अपडुकु प्यार.
कर्ज चुकाण वी माटिकु.
जख मि छोड़ी क ऐग्यों.
वी गोरु बखरा और बल्दुकि जोड़ी.
जौंल मिथैं जोळ माँ खैंचि सवारि करै.
वी गदना धारा नावला देखूं,जख रूड़ी ह्यूंद भैसू थै पाणी पिवै
वी डाँड़ी कांठ्यों माँ घुमु.
जख मेळु किल्मोड़ा घिन्गोरु और भमोरा खै.
एक दौ पुरी जूनी वखि रौं.
जैं देव भूमि मा म्यरा पुर्वज और भगवान दगड़ी रैं
=
Copyright @रमेश हितैषी 

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