Satirical Garhwali Poetry by Sunil Bhatt
-
"खांसी चौमासी"
खांसी चौमासी, झूठा सबूत
झणी कन कना, रोगी छन रे।।
झणी कन कना, रोगी छन रे।।
लाटा काऽला,फूलों का ड्वाऽला
राज भ्वगणा,भोगी छन रे।।
राज भ्वगणा,भोगी छन रे।।
मनखी यू देव्ता,रक्वैड़ी लग्यूँ चा
सीणू नी खाणू,कर्मयोगी छन रे।।
सीणू नी खाणू,कर्मयोगी छन रे।।
सीखणा नी यूँसै,द्यखणा नी यूँतैं
ठगणौं बैठ्याँन,ढोंगी छन रे।।
ठगणौं बैठ्याँन,ढोंगी छन रे।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
11/04/2017
11/04/2017
गढ़वाली आधुनिक लोकगीत , कविता, लोकगीत, गढ़वाली व्यंग्य लोकगीतकविता/ , आधुनिक लोकगीत, व्यंग्य कविता , गढ़वाली व्यंग्य कविता Satirical Garhwali poem by Garhwali Poet, Satirical Garhwali poem by Sunil Bhatt ,Folk Songs, Modern Garhwali folk Song
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments