Garhwali Poems by Satish Rawat
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मौल्यार
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बहुत कठिन होंद
अपणि जड़ों से जुड्यूँ रैण
ये आधुनिक समाज मा;
पर बिना आधार का
कित्गा टिक्ला हम?
शब्दों की माला बणैकि
बण जाँदन
भला, मिठा अर्
खुदेड़ गीत,
मिल जाँद
परम्परा कु संगीत
अर् अपणि
जड़ों की "आवाज़"
प्रस्तुत होणा कु
अपणि बोली मा,
तब हमरी संस्कृति मा
ऐ जाँद
एक नयु मौल्यार.
28/05/2016
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कित्गा पायी ! कित्गा ख्वायी !
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कित्गा पायी ! कित्गा ख्वायी !वक़्त भी द्वी आँसू र् वाई,पुरखों की समलौण
दगड़्यों ! हमन कौड़्यूँ का मोल बेच द्यायी,निमदरि, डन्ड्यालि हर्चि गेन
नौला, खाँदा लुकि गेन जँदरि, उर्ख्यलि रकर्याणि छन
इखुलि हँसुलि, मुर्खुलि रै गेन
हर्चि ग्याँ हम भी
जमना का कौथिग मा,नयु जमानो ऐ ग्याई
कनुकै लगौं हिसाब कि हमन कित्गा ख्वायी !कित्गा पायी !
दगड़्यों ! हमन कौड़्यूँ का मोल बेच द्यायी,निमदरि, डन्ड्यालि हर्चि गेन
नौला, खाँदा लुकि गेन जँदरि, उर्ख्यलि रकर्याणि छन
इखुलि हँसुलि, मुर्खुलि रै गेन
हर्चि ग्याँ हम भी
जमना का कौथिग मा,नयु जमानो ऐ ग्याई
कनुकै लगौं हिसाब कि हमन कित्गा ख्वायी !कित्गा पायी !
25 June, 2016
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धाद
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लोभ का धागा सुलझाँदा- सुलझाँदा
खुद ही यूँमा अलझि ग्यऊँ.मनख्यूँ की यीं भारी भीड़मा इखुल्या-इखुली रै मि ग्यऊँ.कनुकै जाण अपणा पहाड़ शहरूँ का रस्तों मा रिबिड़ि ग्यऊँ.उड़ साकू जख पंख फैलै की इन खुला आसमान मि चाणू छऊँ.डांडी-काँठी धाद लगाणी छन ऐजा बाला अपणा गाँऊ.
खुद ही यूँमा अलझि ग्यऊँ.मनख्यूँ की यीं भारी भीड़मा इखुल्या-इखुली रै मि ग्यऊँ.कनुकै जाण अपणा पहाड़ शहरूँ का रस्तों मा रिबिड़ि ग्यऊँ.उड़ साकू जख पंख फैलै की इन खुला आसमान मि चाणू छऊँ.डांडी-काँठी धाद लगाणी छन ऐजा बाला अपणा गाँऊ.
29 June, 2016
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सगैर
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भैर निरभगी बरखा बौलैणी,भितर मन म्यारु झूरि गे.दिन-रात लग्या छन सगैर,आँख्यूँ की निंद नी पूरि ह्वे.
डाली-बोट्यूँ की टुटणा की आवाज़,निरभागी स्वाड़ा मेरू प्राण डरै गे.उड़ गेन धुरपालि की फटाली,आज डैर मेरा साँसा थै हरै गे.
हे ! निरभगी चाल न चमsक,कखि मेरी आँखीं न फूटी जै.सरगा दिदा तेरी गिगड़तल्यूँ नs,मेरा नौना-बालों की नींद टुटी गे.
नौना-बाला छाति मा चिपकी की,तेरा रूप देखी भारि डैरि गे.डाराणू छ रौला-गदन्यौं कू स्वींसाट,गाड कित्गा मथी सैरि गे.
हे ! नरसिंग ठाकुर कख छाँ ?हे ! नागर्जा हमथै बचावा.स्वाड़ा, बरखा, चाल, गिगड़तल्यूँ थै,हे ! पितृ देवतों अब रोकि द्यावा.
16/07/2016
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पलायन कि पिड़ा
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भौत कठिन होंद अपणौ से दूर रैण कु नि चाँद कि हम भी राँदा अपणा ब्वे-बाब दगड़ि वु हमsरा,हम वूँका
सुख-दुःख का बणदा सहारा;वु लग्याँ रँदिन सारा कि कब आला म्यारा हम थैं लगी राँद खुद अपणौं की,अपणा पहाड़ की,अपणा गौं-गुठ्यार की;खारा पाणि मs तैरणी तिसळि आँखि सुचणी ही रँदिन कि कब आला वु दिन जब हम भि हर घड़ि अपणौं कु प्यार पै सक्वाँ, अपणौं थै प्यार दे सक्वाँ.
सुख-दुःख का बणदा सहारा;वु लग्याँ रँदिन सारा कि कब आला म्यारा हम थैं लगी राँद खुद अपणौं की,अपणा पहाड़ की,अपणा गौं-गुठ्यार की;खारा पाणि मs तैरणी तिसळि आँखि सुचणी ही रँदिन कि कब आला वु दिन जब हम भि हर घड़ि अपणौं कु प्यार पै सक्वाँ, अपणौं थै प्यार दे सक्वाँ.
02/08/2016
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खड़्यंजौं कु बाटु
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कबि कित्गा बेफिकर ह्वेकि जाँदु छा मि यूँ बाटौं मs झणि कित्गा बार सम्भळ्यूँ छ यूँ बाटौं कु मेथै कई बार बचा यूँन मेथै लमड़ण से आज कख हर्चि होलु वु खड़्यंजौं कु बाटु ? मि जाण चाणू छौं वेमा बेफिकर ह्वेकि,अपणि मस्ति मs कुछ गीत गुनगुनै की,एक लपाग इना अर् एक लपाग उना धैरि की,कखिम उत्डे़-उत्डे़ की, कखिम आँखा बूजि की, कखिम मठु-मठु अर्
कखिम भागि-भागि की ; पर क्य करण ! मि इन नि कैर सकदू यूँ चिफळा सीमेंटेड रस्तों मs मि इन नि जै सकदू.
कखिम भागि-भागि की ; पर क्य करण ! मि इन नि कैर सकदू यूँ चिफळा सीमेंटेड रस्तों मs मि इन नि जै सकदू.
11/08/2016
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छुटु बाटु
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कंक्रीटूँ का जंगळ मs धुक-धुक करणू छा एक छुटा रस्ता कु बड़ु दिल,
10-12 मीटर कु ननु बाटु
30-35 डिग्री का कोण फर जाणू छा नर्सरि मs, माटा कु कच्चु संगड़ु बाटु ऊबड़-खाबड़ सीधु बाटु मुंड मs टकराणा डाळ्यूँ का फौंगा तीर-ढीस जम्यूँ औड़ौ
माटा अर् घास की मिठि-मिठि खुशबू खुद लगै ग्या पहाड़ की.
10-12 मीटर कु ननु बाटु
30-35 डिग्री का कोण फर जाणू छा नर्सरि मs, माटा कु कच्चु संगड़ु बाटु ऊबड़-खाबड़ सीधु बाटु मुंड मs टकराणा डाळ्यूँ का फौंगा तीर-ढीस जम्यूँ औड़ौ
माटा अर् घास की मिठि-मिठि खुशबू खुद लगै ग्या पहाड़ की.
14/08/2016
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सहारु
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भगवान जी !
कभि-कभि याद अंद्या तुम
भौत ज्यादा.
तुमरि रची सृष्टि
नि पछयाँण साक क्वी
कभि तऽ लगदो कि तुम साथ छाँ
अर कभि पड़ जाँदु एकदम अकेला
कभि तऽ रैंद मन खुश
अर कभि उदास
कभि रख देंदा तुम
कंधा मऽ हाथ
तऽ दगड़्या जन सहारु लगदो
कभि-कभि रख देंदा तुम
जब म्यारा मुंड मऽ हाथ
तरपर-तरपर होंण बैठ जाँद
सुख का आँसू की बरसात
बण जाँदु मि एक ननु नौनु
भूल जाँदु सब ज्ञान-अज्ञान
बौगण बैठि जाँदु तुम दगड़
किलैकि मि जणदु छौं
तुमऽरा हाथों नऽ सम्भाल ही देण मेथै.
अब न तऽ डरदु छौं
अर न ही घबराँदु
ये जीवन मऽ तुमरु ही सहारु चाँदु.
तुम ऐ जँद्या जीवन मऽ -
कभि बुळख्या, कभि कमेड़ु,
कभि कलम, कभि पाटी,
कभि शब्द, कभि कल्पना,
अर कभि कविता कु रूप धरि की.
कभि नि कैर सकदो
इंसाफ अफु डगड़ ही
नि निकाळ सकदो टैम
अपणा वास्ता
मि चाँदु कि एक घड़ि खूब सोचूँ तुम थैं,
खूब बच्यौं तुम दगड़,
खूब एहसास करु तुमरु
बिल्कुल एकांत मऽ.
कभि आधार
तऽ कभि सहारु बण जँद्या तुम
स्थापित ह्वे जँदिन तुम मऽ
विचारूँ का गौं
बढण बैठ जाँद भावनाओं की लगुली,
खिल जँदिन शब्दूँ का फूल,
रंग जाँद जीवन
तुमऽरा ही रंग मऽ
प्रभु जी !
अपणा रंग इनी बिखराणा रैंया
हमऽरी धरती थैं
रँगू मऽ अपणा रंगिकि
सजाणा रैंया.
30/08/2016
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एक कोशिश
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नि चल सकदो क्वी म्यारा
अरऽ क्वी तुमऽरा अनुसार,
जीवन मऽ अगना बढ़णऽ कु
कभि जीत तऽ
कभि स्वीकार भी करण पोड़दी हार
जीवन मऽ कखि-न-कखि, कबि-न-कबि
करण ही पोड़दू समझौता;
एक कोशिश करिकि देखद्याँ
कि मि चलु तुमऽरा
अरऽ तुम चलऽ म्यारा अनुसार.
27/08/2016
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विकास का नाम पर
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कैका सुपन्यों कु पुँगुड़ कुर्चि की
पंडौ नि नचै जाव ,
कैका दिल मा भारि-भारि का
जड़खंद न धरे जाव ,
कैकि कुंगळि आँख्यूँ मा
रोलर नि चलये जाव ,
कैकि हत-खुट्यूँ थैं
मजबूरी का धागऽळ न बँधे जाव ,
कैका मासूम मन मा
सबळा, गैंति, जे.सी.बी. न चलऽये जाव ,
कैका नौना-बाळौं जन सैंत्या-पळ्या डाळा-बोटों मा
कुलऽड़ि न चलऽये जाव ,
पुरखौं कु खैरि खै-खै कि बसऽयूँ गौं
इन न उजऽड़े जाव ,
प्रकृति दगड़ छेड़-छाड़ करि की
इन विकास नि करे जाव ,
विकास का नाम पर
इन विनाश नि करे जाव.
08/09/2016
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चकड़ेत
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लोग पौंछ गेन चाँद पर ,
हम टँगड़ि खिंचदा रै ग्यँवा.
एक कदम वु अगना बढ़िन ,
हम फाळ मरदा रै ग्यँवा.
वु शान से बोलदन अपणि भाषा ,
हम शरमाँदा रै ग्यँवा.
वूँन जोड़िन एक-एक पायी ,
हम पींदा-पिलाँदा रै ग्यँवा.
वु बण गेन बिजनस मैन ,
हम नौकरी मा अटक्याँ रै ग्यँवा.
ठाट-बाट ऐन वूँका हमऽरा भ्वार ,
हम अपणौं कु वाडु सरकै ग्यँवा.
नि छाँ हम भि कै से कम ,
अब चकडे़त इत्गा ह्वे ग्यँवा.
ठुसगि-फुसगि लगैकि हम ,
सभ्यूँ थैं अपणा वश मा कै ग्यँवा.
12/09/2016
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लुट्टा-लुट
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हे जी !
भ्वारो-भ्वारो
माणा भ्वारो,
पाथा भ्वारो,
सुप्पा भ्वारो,
कण्डा भ्वारो,
दूण भ्वारो,
किट भ्वारो,
ठुपरा भ्वारो,
बिठळा भ्वारो,
ड्वारा भ्वारो,
कुठार भ्वारो,
उबऽरा भ्वारो,
ड्रम भ्वारो,
कंटर भ्वारो,
बन्ठा भ्वारो,
गागर भ्वारो,
जैरकीन भ्वारो,
लुठ्या भ्वारो,
कट्वरा भ्वारो,
चमचा भ्वारो,
सब्बि खाली चीज भ्वारो;
पर ये भण्डार थैं
जरा हमकु भी बचै कि रख्याँ
हम भी लैन मा छाँ
अफी-अफी न सपोड़ा
इन जुल्म नि कारो.
13/09/2016
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हमऽरु टैम
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कभि तऽ उ दिन आलु
जब मनखि कूणा-काँणौं भटीन
भैर निकळि जालु
हरा-भरा डाँडा-काँठौं मा घोल बणालु
नौना-बाळौं थैं घौर ले आलु
अपणा घौर मा अपणौं दगड़ रालु
रोजगार पहड़ूँ मा पालु
हमऽरु पहाड़ आधुनिक सुख-सुविधाअों कु
मुल्क बणि जालु
दुनिया कु सबसे सुन्दर शहर मने जालु
कैका सारा नि रैण
ड्यूटी अपणि निभाँदा जावा
एक दिन जरूर
हमरु भि टैम आलु.
17/09/2016
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दगड़्यों कि डाळि
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मि सुचणू छा
कि व्हेगे होलि
व डाळि खूब बड़ि
ज्व लगा छा कैन
खल्याण मा
जख कट्ठा होंदा छा
गौं का सब्बि नौना-नौनि
खिलणा का वास्ता
खूब झुंटि खिलदा छा
वीं झपन्यळि डाळि मा
पर व दगड्यों कि डाळि
नि दिखेणी आज
हाँ ! वींकि जगा मा
बण ग्या पाणि का वास्ता
सीमेंट कु स्टैण्ड पोस्ट
जु जगा-जगा भटीन
दरकुणू छ
अर टुट्यू नळखा
पाणि कि जगा मा
आँसु बौगाणू छ.
18/09/2016
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व्यस्तता का बाना
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कित्गा रूप
धरिन तुमन,
कित्गा नाता
लगैन तुमन,
कित्गा धर्म
निभैन तुमन,
कित्गा सुख
देन तुमन,
कित्गा इशारा
कैन तुमन,
कित्गा भाषा
बिंगैन तुमन,
कित्गा खण्ड
खेलिन तुमन,
कित्गा सुपन्या
दिखैन तुमन,
कित्गा रस्ता
बतैन तुमन,
कित्गा ज्यूँरा
तुलैन तुमन,
कित्गा रूँदा
हँसैन तुमन,
मनखि कित्गा
चेतैन तुमन,
कित्गा धै
लगैन तुमन,
हे प्रभु !
हमऽरा बाना;
हम बिसिरि ग्याँ तुमथैं
व्यस्तता का बाना.
18/09/2016
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पहाड़
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पहाड़ !
तु कित्गा बड़ु छै
इत्गा विपदा झेली भी
झणि कब भटीन
अपणि छाति तानी
अपणु मुण्ड उठैऽ
शान से खड़ु छै
म्यारा प्यारा पहाड़,
सच, तु कित्गा बड़ु छै !
27/09/2016
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ताकत
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चुप बैठी क्वी काम नि होंद
दुनिया घचकाणी रा, तऽ आराम नि होंद
जब गौळा- गौळा ऐ जा
तब जरूरि ह्वे जाँद
जवाब देण
जब फन उठाँद साँप कटणऽ खुण
तब वेका अगना
दूधै कट्वरि नि रखे जाँद
वेकि मुँडळि
गम बूटूँ नऽ कुर्चे जाँद
कबि-कबि जरूरी ह्वे जाँद
जहरीला कीड़ा-मक्वड़ों थैं
वूँकि औकात बताण
कबि-कबि जरूरि ह्वे जाँद
दुन्या थैं अपणि ताकत दिखाण.
02/10/2016
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आदत
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साब !
मीतैं आदत पुड़ी छ -
खटारा बसूँ मऽ
सफर कनै,
दफ्तर, संस्थानूँ मऽ
लम्बी लैनूँ मऽ लगणै,
छुटऽ-बड़ऽ बाबू-साबूँ की झिड़की खाणै,
बिनऽ धूपणऽ खुश कराणै
कोशिश कनै;
इलै मीतैं तुमऽरी व्यवस्था पर
क्वी आश्चर्य नि होंद
क्य कन साब !
नखरु मीऽ छौं
आदत नखरि पड़ि ग्या
व्यवस्था अनुसार चलणै.
11/10/2016
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निंदि-बाळि
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कूणा बुढ़ड़ि आली
बाला तैं डराली
बाला डैरि जाली
खुचलि मऽ मेरि आलि
चुप से जाली
बेमाता आली
सुपन्यों का झूला झुलाली
बाला तैं हँसालि
पर्यूँ का देश लिजालि
निंदि-बाळि आली
बाला से जाली.
13/10/2016
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भीख
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सड़की किनरऽ फुटपाथ मऽ
बैठी छा वऽ चुपचाप
भँय्य छा सिवळ्यू
एक ननु नौनू
मुण्ड झुकैकि दिखणी छा
एकटक वेतैं
अर आण-जाण वळा वींतैं
नि छा वींतैं परवाह कैकि
अर कैतैं वींकि
वींकु अपणा अगनै धर्यूँ छा
एक मैलु कट्वरु
व वखम बैठी भीख नि मँगणी छा.
16/10/2016
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माँ
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माँ दिनभरा काम-काज से
कतगा भी थकी ह्वा
फिर भी कोशिश करदऽ
जल्दी-से-जल्दी बण जा खाणु
नौना-बाळौं का सेण से पैलि
अगर से भि जा नौना-बाळा कभि
तऽ प्यार से
घचोळ-घचोळी
जोर जबरदस्ती करि
उठै दींद
अधनिंद मऽ ही खलै दींद खाणु
अर् छपछऽपि पड़ जाँद माँ पर
माँ सेण नि दींद कभि
बिना खाणु खयाँ.
16/10/2016
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ओजोन पर ओळ
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पीलु-सि,
पक्यू-सि,
थक्यू-सि जून
फिर टँगे ग्या सरऽग मा;
ओजोन पर लगऽयाल
हमऽन कचाक
कैरयाल भरि-भरी ओळ;
कुज्याँण तब !
जबऽरि प्वाड़लु
बेहोश ह्वे कि यु जून
सड़्यू आम-सि
पत्त
धरति मा.
30/11/2016
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पैलि अर अब
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प्यार-प्रेम बण्यूँ रा
इलै पैलि
उजाड़ दींदा छा
बीचऽ कि दिवाल;
अब
चिणें जाँद
बीच मऽ दिवाल
कि प्यार-प्रेम
बण्यूँ रा.
30/11/2016
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संस्कृति
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हँसदा रँया
ख्यलदा रँया
नाम अपणु खूब कमऽयाँ
सदनि अगना बढ़दा रँया
खाणि-कमाणि खूब कयाँ
खूब फलि-फूलि जँया
हैरा-भैरा बण्याँ रँया
खुश रँया
सुखि-संति रँया
अपणि संस्कृति बचाण वळौं
जी रँया, जुगराज रँया.
25/12/2016
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बड़ु मन
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छुटऽ मनऽ लऽ कबि
बड़ऽ काम नि होंदा,
सियीं आँख्यूँ का कबि
सुपन्य सच नि होंदा,
बड़ा मनखि से बड़ु
मन होंद,
बड़ऽ मनऽ लोग कबि
छुटा नि होंदा,
बिजी आँख्यूँ तैं
द्वी घड़ि खूब निंद आँद,
सियीं आँख्यूँ कि
निंद हर्चि जाँद,
पसीना बौगाण वळौं कि
कबि हार नि ह्वाई,
स्वाणा मनऽ भलऽ स्वीणा
कबि अधूरा नि राई,
सुपन्यों कि डाळि तैं
पाणि दींदा रावा,
सच ह्वाला सुपन्य एक दिन जरूर
लपाग तऽ बढ़ावा.
30/12/2016
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टौफ्यूँऽ डाळि
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कित्गा खुज्याई
पर कखि नि पाई
व टौफ्यूँऽ डाळि
ज्व तुमऽरि छा लगऽयी
चौका तीर सग्वड़ा मा ;
जीं डाळि भटी लाँदा छा तुम
रंगलि-पिंगळि टौफि
अर बुल्दा छा कि -
अबि डाळि छुट्टि छ
जब बड़ि ह्वे जाली
तब बिंडि-बिंडि लौलु ;
तुम बुल्दा छा कि -
आज डाळि इत्गा बड़ि ह्वे ग्या,
आज जरा और बड़ि ह्वे ग्या,
आज झपन्यळि ह्वे ग्या,
अब बिंडि टौफि आण बैठ गेन;
जरा-जरा कैकि डाळि ज्वान
अर तुम बुड्या हूँणा रँया
अब नि दिखेंदा तुम
आँदा-जाँदा, बाटौं मा;
आँदा-जाँदा बाटा भटी
सदऽनी दिखणूँ राँदु
तुमऽरा गुठ्यारा तीरौ सग्वडु
यीं आस मा कि
कबि त दिख्येला तुम
अर तुमऽरि लगऽयी
टौफ्यूँऽ डाळि.
08/01/2017
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फर्ज
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फूलूँ तैं त्वाड़ा न, खिलण द्यावा
वूँ तैं भि अपणौ दगड़ जिन्दगी अपणि जीण द्यावा.
हमन बणऽयीन कानून अपणि सुरक्षा खुण भौत
यूँ सीधा-साधा सजीवूँ तैं भि जीण द्यावा.
किलै चितौला हम सब्बि चीजूँ पर अपणु हक ?
जु राजि-खुसि जीणू वे तैं भि जीण द्यावा.
दुनियै दौड़-भाग मा रेगिस्तान-सि ह्वे ग्याँ हम
द्वी घड़ि सीधि-साधि प्रकृति दगड़ तऽ बितावा.
कीड़ा-मक्वड़ा भी स्वाणा रँदिन भौत
एक नजर टक्क लगैकि देखि तऽ द्यावा.
अधिकारूँऽ बात करदाँ बिन्डि, फर्ज कु निभालू ?
आशीर्वादै एक डाळि नयी पीढ़ी खुण लगै द्यावा.
31/01/2017
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जीण
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मनखि अपणु फर्ज किलै जि भुलणू ह्वालु !
उळझ्या रिश्तौं कि गेड़ किलै नि खुलणूँ ह्वालु ?
ताजा फूलूँ-सि जिंदगी तैं किलै बासि करणूँ ह्वालु !
अपणि खुट्यूँ मा कुलऽड़ी कचाक किलै मरणू ह्वालु ?
अमीर बणी किलै अफु तैं बड़ु मनणू ह्वालु !
द्वी पैंसौं बान किलै अपणौं दगड़ लड़णूँ ह्वालु ?
सुख-चैना बान किलै अटगा-अटऽग करणूँ ह्वालु !
काळि कमै फारि नि होंद, किलै नि सुचणूँ ह्वालु ?
सौंगि जिंदगी तैं कर्जा बोझनऽ किलै दबाणूँ ह्वालु !
पचै नि सकण ये जन्म मा इत्गा, तऽ किलै खाणू ह्वालु?
मनखि, मनखि देखी फुकेकि म्वासु किलै बणणू ह्वालु !
दिमाग नि लगाणू, किलै कैका भकलौण मा आणू ह्वालु ?
छुटु-सि मनखि किलै आज भुँया नि दिखणू ह्वालु !
कित्गा मौका दींद प्रकृति पर जीण किलै नि सिखणू ह्वालु ?
07/02/2017
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जिंदगी
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कभि वसंता फुलूँ-सि, कभि पतझड़ा पत्तौं-सि ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि रूड़ी घाम-सि, कभि छुयाँ पाणि-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
कभि बसगाळा पाणि-सि बौगद, कभि ह्यूँ-सि ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि फजला घाम-सि, कभि ब्यखुनी घाम-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
कभि रुमुक-सि इखुलि, कभि रात-सि शांत ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि पूर्णमऽसी जून-सि, कभि गैणौं जन टिमट्याँद जिंदगी.
कभि चखुलौं-सि च्वींच्याँद, कभि स्याळूँ-सि ऐड़ाँद जिंदगी;
कभि दुदाळ भैंसि-सि, कभि लताड़ गौड़ि-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
कभि खड़ि उकाळ-उँदार सि, कभि सैंणु तपड़-सि ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि हैरि डाँड्यूँ-सि, कभि गम्म सरऽग-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
कभि कित्गा रुवै अर कभि कित्गा हँसै जाँद स्वाणि जिंदगी;
सकरात्मक सोच रालि तऽ मुळ-मुळ हँसणी राँद जिंदगी.
10/02/2017
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मनखीऽ खोज
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इना-उना द्याखऽदी
वार-प्वार द्याखऽदी
उबु-उंदु द्याखऽदी
ताळ-मथि द्याखऽदी
यख फुंडै द्याखऽदी
तख फुंडै द्याखऽदी
इख उंद द्याखऽदी
तख उंद द्याखऽदी
देश मा द्याखऽदी
विदेश मा द्याखऽदी
डांडा वार द्याखऽदी
डांडा पार द्याखऽदी
ईं धार द्याखऽदी
वीं धार द्याखऽदी
डाळी टुक्कु द्याखऽदी
रौल्यूँ उन्द द्याखऽदी
वल्या ख्वाळ द्याखऽदी
पल्या ख्वाळ द्याखऽदी
ये कूणा द्याखऽदी
वे कूणा द्याखऽदी
कखि तऽ मिलऽलु मनखि
गौं गुठ्यार द्याखऽदी
19/02/2017
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विकासैऽ बारि
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हे डाँडि-काँठ्यूँ !
तुमऽरि खयीं खैरि सुदि नि जालि
एक दिन जरूर
यु बाँजि पुँगड़ि चलदि ह्वालि
गौं-गालौं मा खूब चखळ-पखळ रालि
कूड़ि-बाड़ि ख्यालऽला नना नौना-बाळा
घिंडुड़ि फिर घौरूँ मा घोल बणालि
दाना-सयणौंऽ धाद,
नना नौना-नौन्यूँऽ किलक्वरि सुण्यालि
रिबड़ी गौड़ि एक दिन
अपणा कीला पर आलि
बगऽत बदलऽण मा कित्गा टैम लगऽद !
विकासैऽ बारि ब्याळि वूँकि छा
भ्वाळ तुमऽरि बारि भि आलि.
25/03/2017
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व्यस्त मनखि
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मनखि अब मनखि तैं, मुख नि लगाँद,
सुख-दुखै छ्वीं-बथा, कैमा नि लगाँद.
पैला दाना-सैंणा लुखूँऽ, भुक्कि याद आँद,
मनख्यात आज, मनख्यूँ तैं खुज्याणी राँद.
जरऽसि आराम पाणा बाना, सुख हर्चाणू राँद,
द ब्वाला ! अफु तैं, अफि से ही लुकाणूँ राँद.
लम्बा-चौड़ा रिश्ता-नाता, अब नि लगाँद,
तीन-चार मबतूँ तैं ही, अपणि कुटुमदरि बताँद.
उणिंदु सालूँ भटी छ, फिर भि व्यस्त इत्गा राँद,
अपणौंऽ ध्वार-धरऽम जाणौं, बगऽत भि नि राँद.
प्रकृतीऽ प्यारु मनखि, वीं से ही बचणूँ राँद,
सुचुदु छ ठगणूँ छौं औरूँ तैं, पर अफी ठगेणू राँद.
28/03/2017
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मनखीऽ रूप
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कबि ढुँगु-सि करकुरु
कबि ठूँसु-सि कुँगळु
कबि कागज-सि हल्कु
कबि घासाऽ बिठगा-सि गरु
कबि तवाऽ भैलौं-सि चमकिलु
कबि म्वासु-सि काळु
कबि मनखि-सि चालाक
कबि प्रकृति-सि सरल
ह्वे जाँद मनखि,
छुटा-स जीवन मा
कित्गा रूप
दिखै जाँद मनखि.
05/04/2017
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स्वाणि दुनिया
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दुनिया भौत स्वाणि छ, मनैऽ नज़रूँ से द्याखा त सही;
लेखीऽ प्राण हळ्कु ह्वे जाँद, क्वारा कागज मा ल्याखा त सही.
दुसरौंऽ मन मा क्या होलु? अफी नि सुचणु, पुछणै पहल कारा त सही;
भुरे हि जालि ऊलारऽ ल भांडि-कूंडि, जरा-जरा कै कि पाणि सारा त सही.
प्रकृति से स्वाणु क्वी नी दुनिया मा, प्रकृति से प्यार कारा त सही;
प्रकृतीऽ समण हम छाँ कूरै मेलि, स्यूँ सिक्यूँ तैं भँया धारा त सही.
हरि-भरि ह्वे जालि रूखि-सूखि जिंदगी, पितरूँऽ पुंगड़्यूँ मा हैळ लगावा त सही;
सुदि-मुदि नि ठगाण अफु तैं अफी, भला काम मा अफु तैं ब्यळमावा त सही.
जीतैऽ पैलि फैड़ि होंद सोच, भलि सोचैऽ बिज्वाड़ जमावा त सही;
बोझ नि धरण कुंगळा दिल मा बिंडि, नना नौना-बाळौं जन ह्वे जावा त सही.
23/04/2017
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