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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 28, 2017

आसीस सुंद्रयाल की गढ़वाली कविताएं

गवर्या डागटर
Satirical , Realistic Garhwali Poem by Asis Sundariyal 
-
हमर यखौ/ गवर्य डागटर
उन त वो
कम्पाउंडर च 
पर लोग वे कु डागटर हि ब्वादिन
किलैकि
एक त
लोगों कु आज तक डागटर द्यखयूं नी
अर
दुसरु वो डागटर से कम दिखेंदु भी नी
ठाट छन भग्याना
ब्वे बाबू कोटद्वार रंदा
बच्चा पौड़ी पढ़दा
पिछला मैना डेरादूण जमीने रजिस्ट्री कै
ये मैना सेकंड हैंड कार ल्है
अब बक्कि चयेंदु क्या च
घर्र स्टार्ट कै गाडी अर सर्र पौड़ी
छंछर वख अर सुम्बार यख
कबि सुम्बार को ज्यू नि ब्वालु ता
मंगल ऐ जावा
न कुवि द्यखणं वलु
न कुवि पुछण वलु
मज़ा छन साब
सरकारि नौकरी जो मिलीं च
पर
आज भले यीं सरकरि नौकरी भ्वार
डागटर साब ऐश छन कना
पर वो वे दिन नि भूला
जब
लोगुन वूं तै अपणी नौनी देंण से
साफ़ कै दे मना
इलै ना कि वो गवर्य डागटर छ
पर इलै कि वो घर्या डागटर च
वो त वेकु जोग भलु छौ
जो वेकु बुबा मास्टर छौ
अर वेन रिटायर्ड हुंदै /
कोटद्वार म प्लॉट ल्हे
बस इन समझा/ वे प्लौटा परताप ही
डागटर साबौ ब्यो ह्वे
इलैहि / जनि डागटर साबम जरा पैसा ह्वे
वून सीधा डेरादूण म प्लॉट ल्हे
ताकि इन नि ह्वा
कि
घर्या बोलिक वूंका नौना तै /
नौनी नि द्या...............
=

.बंबई वलि बोडी
उन ता /मेरि बोडी बम्बे रैंद
पर
साल छः मैना मा/ एक बार
ऐ जांद / घार
 अर
सीधा ऐकी/ अपणा भित्र जैकी
ह्वे जांद लम्पसार
उन ता / मेरा बुबा भयूँ मा
आजतक क़्वी बँटवारु नि ह्वे
पर
ब्वाडा तिन्नी भयूँ मा बीचौ च
त/ बोडी बीचा खंड पर/ आंदे कब्ज़ा कै देंद
उनौ हौरि दिनु / मि रैंदु वे भित्र
मेरा ब्यो कु पलंग / आलमारी / ड्रेसिंग टेबल
सब कुछ वे हि भित्र च
ब्वारी का गैणा/ नौनौ क खेल खिलौणा
सब कुछ वे हि भित्र च
पर हमारि क्या मज़ाल
कि/ बोडी आंण क बाद /
हम जो खुट्टी बि धैर दीवां/ वे भित्र
आज भि बोडी/ बीस भांडों मा
अपणा मैतै / डाडूली अर पणै तैं
खट बिरै देंद
पोर ब्वाडा न /पाणी डिग्गी बणाणो
अपणु बांजु पुंगडु देंणु "हाँ " क्य बोली
कि
बोडिन पंचैतीमै पित्र पूजिदीन/ ब्वाडा का
अबि/ ऐंसु श्वासअ मरीज
कमलू काकान/ कतना हाथ - खुट्टा जुडीं बोडी कु
पर मजाल क्य च / कि बोडिन एक अंगुल जमीन दे दे हो
वे अपंण घौर तक रोड लिहजाणु
उल्टें/ छ्यडला कांडों बाड हौरि कैरया
अपण कारा पर
उन त
बोडी बड़ि बड़ि बात करद
हमारु बंबे मा इन छ/ उन छ
पर
बोडी
जब घौर बटे जांद
सट्टी/झुंगरु/ कोदू
छीमी/ भट/ गैथ
कट्टा /कुटरा भोरि-भोरी लिहिजान्द
पर
जो हमरा गौं का लोग वख रैन्दिन
वो ब्वादीन
कि
न बोडी/ न ब्वाडा
न नौना न ब्वारी
न नाती न नतणं
ये कोदू/ झुंगरू कुइ नि खांद
त फिर
पतानि किलै
उन ता /मेरि बोडी बम्बे रैंद
पर
साल छः मैना मा/ एक बार
ऐ जांद / घार
=
=
बमबारी
Garhwali Poem by Asis Sundariyal 
-
जै दिन बटे
लीखौंन् कै सुसाइड अटैक
जुवों पर
अर
फेर
जुवोंन् ध्वलीं लीखौं पर बम
वे दिन बटे
बरमण्ड हुयुं च मेरो झम
ब्वन- बच्याणु
सुणण-सुणाणु
द्यखण- दिखाणु
सब कुछ ह्वेगे कम
सिरप स्वचुणु छौं जादा
कि
समझणा किलै नि छॉं हम
=
=
फरक......
उत्तराखण्ड बणण से "पैलि"
अर
उत्तराखण्ड बणणा बाद "अब"
मा
सिरिप
यी फरक च
कि
पैली
वो बिरणा रुवांदा छा/हमतैं
अर
अब
यूँ अपणों खुणि रूणा छा/हम
अर स्वचणा छा.....🤔
कि विकास की बात कन
त्
कैमा कन...........?
=
=
कुटुमदरि
-
Garhwali Poem By Asis Sundariyal 
-
ददा
चूंदी कूड़ि छाणु छौ
जगा जगा कनस्तरा कत्तर कुच्याणू छौ
पर
नाति
धुरपली़ म
डिश टी.वी एनटिना अठगाणू छौ
अर
एक एक करि कूड़ि फटल़ी उदैं रड़ाणू छौ........
पर
बक्किबात त तब ह्वे
जब ददी भित्र बटि दौड़ि छज्जम अै
अपणा बकला़ चश्मों तैं नाकम् अठगै
अर नाति तैं धै लगै
बल बबा! आ अब उदैं उतर जा
भल्ला सिग्नल आणन अब त टी.वी पर
नाती भुयां अै अर टी.वी ऐथर लमपसार ह्वेगे
द्फरा ह्वेगे
भितरखण्ड सियीं भुल्ली अज्यूं तक भैर नि अै
दीदी ज़रूर गैसा चुल्हा म रस्वै बणाणी छै
लीड कोचि कंदूड़
अफ्वी अफ
झणि क्य बबड़ाणी छै
बुबाजी की सुबेर हि बटि
कच्ची अर पक्की मिक्स कैरि चढ़यीं छै
अर
ब्वे त द्वी दिन बटे सत्संग मा जयीं छै
बोडी-बोडा बूण बटि अयां छाया
बांजी पुंगड़यूं सैर कनू जयां छाया
ब्वाडा का हत्थ पर कैणासा ढुंगा पकड्यां
अर
बोडी का हैरा अयांरा पत्ता तोड़ि ल्हयां
काका कूणा पर बैठि कै कविता ल्यखणू छौ
 अर
जैं भाषा वेका अलावा क्वी नि ब्वलदु/बच्यांदु
वीं बोली का उज्जवल भविष्य का स्वीणा द्यखणु छौ
जनो मि द्यखणू छौं
अर
काकी अपणा मैत छै पैटीं
कपाल़ फर हत्थ लगैकी छै बैंठीं
जनोकि
तुम मा बटि कुछ लोग बैठ्यां छन..........
=
=
कुटुमदरि
Garhwali Poems By Asis 
-
ददा
चूंदी कूड़ि छाणु छौ
जगा जगा कनस्तरा कत्तर कुच्याणू छौ
पर
नाति
धुरपली़ म
डिश टी.वी एनटिना अठगाणू छौ
अर
एक एक करि कूड़ि फटल़ी उदैं रड़ाणू छौ........
पर
बक्किबात त तब ह्वे
जब ददी भित्र बटि दौड़ि छज्जम अै
अपणा बकला़ चश्मों तैं नाकम् अठगै
अर नाति तैं धै लगै
बल बबा! आ अब उदैं उतर जा
भल्ला सिग्नल आणन अब त टी.वी पर
नाती भुयां अै अर टी.वी ऐथर लमपसार ह्वेगे
द्फरा ह्वेगे
भितरखण्ड सियीं भुल्ली अज्यूं तक भैर नि अै
दीदी ज़रूर गैसा चुल्हा म रस्वै बणाणी छै
लीड कोचि कंदूड़
अफ्वी अफ
झणि क्य बबड़ाणी छै
बुबाजी की सुबेर हि बटि
कच्ची अर पक्की मिक्स कैरि चढ़यीं छै
अर
ब्वे त द्वी दिन बटे सत्संग मा जयीं छै
बोडी-बोडा बूण बटि अयां छाया
बांजी पुंगड़यूं सैर कनू जयां छाया
ब्वाडा का हत्थ पर कैणासा ढुंगा पकड्यां
अर
बोडी का हैरा अयांरा पत्ता तोड़ि ल्हयां
काका कूणा पर बैठि कै कविता ल्यखणू छौ
 अर
जैं भाषा वेका अलावा क्वी नि ब्वलदु/बच्यांदु
वीं बोली का उज्जवल भविष्य का स्वीणा द्यखणु छौ
जनो मि द्यखणू छौं
अर
काकी अपणा मैत छै पैटीं
कपाल़ फर हत्थ लगैकी छै बैंठीं
जनोकि
तुम मा बटि कुछ लोग बैठ्यां छन..........
=
=
घ्यालू़
-
Garhwali Poem by Asis Sundariyal 
जो बड़ा बड़ा
विद्वान
गढ़वाल़ी
बोली तैं
भाषा की मान्यता दिलाणा वास्ता
रात दिन घ्याल़ू मचाणा छन
फजल ब्यखुनि कन्त कोरी खाणा छन
बनि बनि गोष्ठी उर्याणा छन
क्या यूंका अपणा घौर मा
खुद का नौना-नौनी गढ़वल़ि बच्याणा छन?
या
ये सिरिप लोगुं तैं उल्लु बणाणा छन
सुद्दि घ्याल़ू मचाणा छन
Copyright@ Asis Sundariyal 
-
-
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