हमारा उत्तराखंड,
कल्पित ऊर्जा प्रदेश,
आज अँधेरे में डूबा है,
क्योंकि, पहाड़ पर पानी,
रौद्र रूप धारण करके,
बरस रहा है बरसात में,
ऊफान पर हैं नदियाँ,
दरक रहे हैं पहाड़,
विनाश का मंजर,
निहार कर पर्वतजन,
हो रहे हैं हताश,
किसी के टूट रहे हैं घर,
पहाड़ का टूट गया है,
सड़क संपर्क,
संचार का साधन,
खामोश हैं मोबाइल यन्त्र,
बिना चार्जिंग के,
नहीं हो पा रहा है,
प्रवासी उत्तराखंडियौं का,
स्वजनों से संपर्क,
आज पहाड़ पुराने,
"लालटेन-लैम्प युग" में,
लौट आया है २१वीं सदी में.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:२२.९.२०१०
(पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
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