उत्तराखंड मा भादौं का मैना,
गाड, गदनौं अर धौळ्यौंन,
धारण करि ऐंसु विकराल रूप,
अतिवृष्टिन मचाई ऊत्पात,
नाश ह्वैगि कूड़ी, पुंगड़्यौं कू,
जान भि चलिगि मनख्यौं की,
आज पर्वतजन छन हताश,
प्राकृतिक आफत सी,
निबटण कू क्या विकल्प छ?
आज ऊँका पास .
संचार, बिजली, सड़क संपर्क,
छिन्न भिन्न ह्वैगी,
अँधियारी सब जगा छैगी,
हरी जी की नगरी,
विश्व प्रसिद्ध हरिद्वार मा,
शिव शंकर जी की,
मानव निर्मित विशाल मूर्ति,
गंगा नदी का बहाव मा,
धराशयी ह्वैक बल,
कुजाणि कख बगिगी,
यनु लगदु भगवान शिव शंकर,
प्रकृति का कोप का अगनै,
असहाय कनुकै ह्वैगी?
यनु लगणु छ आज,
लम्पु-लालटेन कू युग,
पहाड़ मा बौड़िक ऐगी,
बसगाळ बर्बादी ल्हेगी,
सब्ब्यौं का मन की बात,
जुमान फर ऐगी,
हे लठ्यालौं आज,
पहाड़ की भौत बर्बादी ह्वैगी.
पहाड़ की ठैरीं जिंदगी,
ठण्डु मठु जगा फर आली,
पहाड़ फर आफत की घड़ी,
बद्रीविशाल जी की कृपा सी,
बगत औण फर टळि जाली,
पर मनख्यौं का मन मा,
"उत्तराखंड मा बसगाळ-२०१०" की,
दुखदाई अतिवृष्टि की याद,
एक आफत का रूप मा बसिं रलि.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(दिनांक:२२.९.२०१०, पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.
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