उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, October 19, 2010

औंसी की रात

सड़क बणौण वाळा मजदूर,
सड़क का न्योड़ु,
एक पुंगड़ा मा,
टेंट का भितर बैठिक,
रात मा अबेर तक,
खाणौ-पेणौ खैक,
खेन्न लग्याँ था ताश,
सड़क बिटि एक जनानि की,
आवाज आई ऊँका पास,
"होटल कथगा दूर होलु",
"यख फुन्ड त जंगळ छ".

मजदूरून जब सुणि,
तब एक सयाणा मन्खिन बोलि,
अरे! चुपरा अर रण द्या,
खबानि कुछ यीं रात मा,
पर फिर भि,
ऊन जबाब दिनि,
झट सी एक जनानि,
जैंका मुण्ड मा पट्टी सी लगिं,
बदन मा चोळा सी पैरयुं,
टेंट भितर ऐक सामणी बैठी,
अर खाणौ का खातिर बोन्नि,
"मैकु रोठठी खलावा",
सब्बि मजदूरू न सोचि,
शायद अस्पताळ बिटि,
या भागिक अयिं छ,
दगड़ा का सयाणा मन्खिन,
जग्दु लम्पु वींका सामणी बिटि,
झट-पट कैक दूर सरकाई,
कखि बुझै नि द्यो,
यनु विचार मन मा आई.

जब ऊन पूछि, तू कु छैं?
"मैं भंडारी रावत छौं",
पट्टी. तळैं, पौड़ी गढ़वाल की,
वीं जनानिन बताई,
थोड़ी देर मा एक छोट्टा,
दगड़्या फर फट्ट भैरू आई,
अरे! भूतणि छ या,
सब्ब्यौं तैं या बात बताई,
वा जनानि अचाणचक्क,
कुजाणि कख भागिगी,
फेर नजर नि आई,
भौत साल पैलि,
१९७२ किछ या बात,
वे दिन थै बल बग्वाळ,
अर "औंसी की रात".

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा " जिज्ञासु"
(दिनांक: २८.०९.१०)
एक सज्जन श्री कीर्ति सिंह थलवाल, प्रताप नगर, टिहरी गढ़वाल, जो दिल्ली भ्रमण पर आये थे, उनके द्वारा सुनाई लगभग १९७२ की आप बीती पर आधारित. वे उस समय पौड़ी-श्रीनगर मार्ग से बुगाणि को बन रही सड़क पर कार्यरत थे

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments