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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, September 25, 2018

कालिदास साहित्य में बिजनोर , हरिद्वार , सहारनपुर वर्णन

Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur in Kalidasa Literature 
                    
                               हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                  

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
   कालिदास साहित्य चंद्र गुप्त काल की  है। 
कालिदास ने उत्तराखंड विशेषकर गढ़वाल वर्णन अधिक किया है। 

  अभिज्ञान  शाकुंतलम में बिजनौर व भाभर 
अभिज्ञान शकंतुलम में पृथक अंक में कण्वाश्रम व मालनी नदी का वर्णन है जो अजमेर गढ़वाल , भाभर व बिजनौर के क्षेत्र में आता है द्वितीय , तृतीय व चतुर्थ अंक की घटनाएं भी कण्वाश्रम की हैं याने गढ़वाल व बिजनौर का समावेश ही है।  
    कालिदास साहित्य में कण्वाश्रम 
  कुलपति कण्व का आश्रम आज के भाभर (कोटद्वार , बिजनौर,  क्षेत्र ) में स्थित था।  आज भी भाभर में कण्वाश्रम नाम चलता है। आश्रम मालनी तट के दोनों ओर बसा था। गौरी गुरु नामक पर्वत श्रेणी वर्णन है। 
कण्वाश्रम हिमलय के तलहटी में बसा था।  यद्यपि कण्वाश्रम में रथ आ सकते थे फिर भी भूमि ऊपर नीचे थी। 
    मेघदूत में कनखल व सावधानी वर्तनी पड़ती थी (शकुंतला अंक -१)
कण्वाश्रम में दस सहस्त्र ऋषि व छात्र अध्ययन करते थे (शकुंतला अंक ५ ) अर्थात निकट कृषि क्षत्र रहा होगा। 
मालनी से नहरों की भी चर्चा कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम मेंहै कई वनस्पतियों व जानवरों का उल्लेख मिलता है। 

पूर्व मेघदूत में यक्ष मेघ से कुरुक्षेत्र से कनखल होते हुए हिमालय श्रेणियों में जाने की पैरवी करता है। उत्तर मेघदूत कव १ वे अंक में कनखल का उल्लेख हुआ है। कुरुक्षेत्र से कनखल सहारनपुर क्षेत्र से ही आया जाया जा सकता था। 
 मालिनी नदी - कण्वाश्रम में बहने वाली नदी आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है। मालिनी के बारे में विद्वानों जैसे भगवत शरण अग्रवाल का मत है  तब यह नदी सहारनपुर , अवध से होते हुयी घाघरा में गिरती थी 
भाभर /बिजनौर की जलवायु - भाभर याने भाभर , हरिद्वार , सहारनपुर के बारे में कालिदास ने शकुंतला में व मेघदूत में वर्णन किया है।  ग्रीष्म में भाभर में वृक्षों से पत्ते झड़ जाते थे 

(शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ , पृष्ठ ३१४ - ३४० )
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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History; 
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